Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 284
________________ 220... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन 9. भगवतीसूत्र (अंगसुत्ताणि-2), 9/177 10. प्रश्नव्याकरणसूत्र (अंगसुत्ताणि-3), 10/7 11. ज्ञाताधर्मकथासूत्र, 1/1/112 12. दशवैकालिकसूत्र, 5/1/55 13. पिण्डनियुक्ति, गा. 1-671 14. पंचवस्तुक, 286-398 15. पंचाशक-तेरहवाँ प्रकरण 16. अष्टकप्रकरण-पांचवाँ, छठा एवं सातवाँ 17. पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 1-107 18. प्रवचनसारोद्धार, 1/563-568, 734 19. यतिदिनचर्या, गा. 175-227 उद्धृत-धर्मसंग्रह पृ. 110, भा. 3 20. विधिमार्गप्रपा, पृ. 81-86 21. दशवैकालिकसूत्र, 5/1/82-83 22. से भिक्खु वा... एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूताई जीवाइं सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीतं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं..... जाव णो पडिगाहेज्जा।। आचारांगसूत्र, 2/1/1/331 23. सूत्रकृतांगसूत्र, 1/3/60-63 24. से जहाणामए अज्जो! मए समणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मिएति वा उद्देसिएति वा मीसज्जा एति वा अज्झोयरएति वा पूतिए कीते पामिच्चे अच्छेज्जे अणिसढे अभिहडेति वा। स्थानांगसूत्र, 9/62 25. भगवतीसूत्र, 7/1 26. प्रश्नव्याकरणसूत्र, 2/1/110 27. निशीथसूत्र, 13/64-78 28. उद्देसियं कीयगडं, पूईकम्मं च आहडं। अज्झोयर पामिच्चं, मीसजायं च वज्जए । दशवैकालिकसूत्र, 5/1/70 29. उत्तराध्ययनसूत्र, 26/32 30. उद्दिष्टं साधिकं पूति, मिश्रं प्राभृतकं बलिः। न्यस्तं प्रादुष्कृतं क्रीतं, प्रामित्यं परिवर्तितम्॥

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