Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 303
________________ आहार सम्बन्धी 47 दोषों की कथाएँ. ...239 14. चिकित्सा दोष : सिंह दृष्टांत एक अटवी में एक व्याघ्र अंधा हो गया। अंधेपन के कारण उसे भक्ष्य मिलना दुर्लभ हो गया। एक वैद्य ने उसका अंधापन मिटा दिया। स्वस्थ होते ही व्याघ्र ने सबसे पहले उसी वैद्य का घात किया, फिर वह जंगल में अन्य पशुओं को भी मारने लगा। 15 15. क्रोधपिण्ड : क्षपक दृष्टांत हस्तकल्प नगर में किसी ब्राह्मण के घर में मृतभोज था । उस भोज में एक मासक्षमण की तपस्या वाला साधु पारणे के लिए भिक्षार्थ पहुँचा। उसने ब्राह्मणों को घेवर का दान देते हुए देखा। उस तपस्वी साधु को द्वारपाल ने रोक दिया। साधु कुपित होकर बोला- 'आज नहीं दोगे तो कोई बात नहीं, अगले महीने तुम्हें मुझको देना होगा।' ऐसा कहते हुए वह घर से निकल गया। देव योग से उसका कौटुम्बिक व्यक्ति पाँच-छह दिन के बाद दिवंगत हो गया। उसके मृत भोज वाले दिन वही साधु मासक्षमण के पारणे हेतु वहाँ पहुँचा। उस दिन भी द्वारपाल ने उसको रोक दिया। मुनि कुपित होकर पुनः बोला- 'आज नहीं तो फिर कभी देना होगा ।' मुनि की यह बात सुनकर स्थविर द्वारपाल ने चिन्तन किया कि पहले भी इस साधु ने दो बार इसी प्रकार श्राप दिया था। घर के दो व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो गए। इस बार तीसरा अवसर है। अब घर का कोई व्यक्ति न मरे, अतः उसने गृहनायक को सारी बात बताई। गृहनायक ने आदर पूर्वक साधु से क्षमायाचना की तथा घेवर आदि वस्तुओं की भिक्षा दी। 16 16. मानपिण्ड : सेवई दृष्टांत कौशल जनपद के गिरिपुष्पित नगर 17 में सिंह नामक आचार्य अपने शिष्य परिवार के साथ आए। एक बार वहाँ सेवई बनाने का उत्सव आया। उस दिन सूत्र पौरुषी के बाद सब तरुण साधु एकत्रित हुए। उनका आपस में वार्तालाप होने लगा। उनमें से एक साधु बोला- 'इतने साधुओं में कौन ऐसा है, जो प्रात:काल ही सेवई लेकर आएगा।' गुणचन्द्र नामक क्षुल्लक बोला- 'मैं लेकर आऊंगा।' साधुओं ने कहा - 'यदि सेवई सब साधुओं के लिए पर्याप्त नहीं होगी अथवा घृत या गुड़ से रहित होगी तो हम उसका प्रयोग नहीं करेंगे, तुम्हें घृत और गुड़ से युक्त पर्याप्त सेवई ही लानी होगी।' क्षुल्लक बोला- 'जैसी तुम्हारी इच्छा होगी, वैसी ही सेवई लेकर आऊंगा।' ऐसी प्रतिज्ञा करके वह नंदीपात्र

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