Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 313
________________ आहार सम्बन्धी 47 दोषों की कथाएँ ...249 दिया। भोजन के बाद कलपति अपने स्थान पर जाने के लिए तैयार हआ। श्रावक भी सब लोगों को बुलाकर उनके पीछे-पीछे चलने लगे। कुलपति ने सपरिवार कृष्णा नदी को पार करने हेतु नदी में पैर रखा लेकिन पादलेप के अभाव में वह डूबने लगा। लोगों में उसकी निंदा होने लगी। ___ इसी बीच उसे बोध देने के लिए आचार्य समित वहाँ आए। उन्होंने सब लोगों के सामने नदी से कहा- 'हे कृष्णे! हम उस पार जाना चाहते हैं।' तब कृष्णा नदी के दोनों किनारे आपस में मिल गए। नदी की चौड़ाई उनके पैरों जितनी हो गई। आचार्य कदम रखकर नदी के उस पार चले गये। पीछे से नदी चौड़ी हो गई पुन: उसी प्रकार वे वापस आ गए। यह देखकर कुलपति एवं सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। कुलपति ने अपने पाँच सौ तापसों के साथ आर्य समित के पास दीक्षा ग्रहण की और वह आगे जाकर ब्रह्मशाखा के रूप में प्रसिद्ध हुई।29 23. मूलकर्म प्रयोग : भिन्नयोनिका कन्या का दृष्टांत किसी नगर में धन नामक श्रेष्ठी अपनी भार्या धनप्रिया के साथ रहता था। उसकी पुत्री का नाम सुन्दरी था। वह भिन्नयोनिका (खुली हुई योनि वाली) थी। यह बात उसकी माँ को ज्ञात थी, पिता को नहीं। उसके पिता ने किसी धनाढ्य श्रेष्ठी के पुत्र के साथ उसका विवाह निश्चित कर दिया। विवाह का समय निकट आने लगा। माँ को चिन्ता हुई कि यदि शादी के बाद इसका पति इसे भिन्नयोनि का जानकर छोड़ देगा तो यह बेचारी दुःख का अनुभव करेगी। इसी बीच किसी साधु का वहाँ भिक्षार्थ आगमन हुआ। मुनि ने उदासी का कारण पूछा। माँ ने सारी बात बता दी। साधु ने कहा- 'तुम डरो मत, मैं इसे अक्षतयोनि वाली बना दूंगा।' तब मुनि ने उसे आचमन औषध और पान औषध बताई। औषध के प्रभाव से वह अक्षतयोनिका बन गई और यावज्जीवन भोग भोगने में समर्थ हो गई।30 24. छर्दित दोष : मधु-बिन्दु दृष्टांत वारत्तपुर31 नामक नगर में अभयसेन नामक राजा रहता था। उसके मंत्री का नाम वारत्रक था। एक बार एषणा समिति से धीरे-धीरे चलते हुए धर्मघोष नामक साधु भिक्षार्थ किसी घर में प्रविष्ट हुए। मंत्री की पत्नी ने साधु को भिक्षा देने के लिए घृत शर्करा युक्त पायस के पात्र को उलटा। शर्करा मिश्रित एक घृत बिंदु

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