Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 296
________________ 232... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन श्रावकों ने चिन्तन किया कि अब तक सभी साधुओं ने खा लिया होगा अत: वंदना करके अपने स्थान पर चले जाना चाहिए। प्रहर से अधिक समय बीतने के बाद वे श्रावक साधु के उपाश्रय में गए और नैषिधिकी आदि श्रावकों की सारी क्रियाएँ की। साधुओं ने जाना कि ये श्रावक अत्यन्त विवेकी हैं। बातचीत के दौरान साधुओं को ज्ञात हुआ कि ये अमुक ग्राम के निवासी हैं। चिन्तन करने पर साधुओं ने निष्कर्ष निकाला कि वे अवश्य ही हमारे लिए अपने ग्राम से मोदक लेकर आए हैं। जिन साधुओं ने खा लिया, उनको छोड़कर जो पूर्वार्द्ध की प्रतीक्षा कर रहे थे तथा जो खा रहे थे उन्होंने अपने हाथ का कवल पात्र में डाल दिया। जो कवल मुख में डाल दिया था, उसे निगला नहीं, मुख से निकालकर समीपवर्ती मल्लक पात्र में डाल दिया। पात्रगत सारा आहार और मोदक परिष्ठापित कर दिए। श्रावक और श्राविकाएँ क्षमायाचना करके अपने गाँव में वापस चले गए। जिन्होंने भोजन किया अथवा आधा किया, वे भी अशठभाव के कारण निर्दोष थे। 8. मालापहृत दोष : भिक्षु दृष्टांत जयन्तपुर' नामक नगर में यक्षदत्त नामक गृहपति था। उसकी पत्नी का नाम वसुमती था। एक बार उनके घर में धर्मरुचि नामक साधु ने भिक्षार्थ प्रवेश किया। उस साधु को संयतेन्द्रिय, राग-द्वेष रहित तथा एषणा समिति से युक्त देखकर यक्षदत्त के मन में दान देने की विशेष भावना जाग गई। उसने अपनी पत्नी वसुमती को कहा- 'इन साधुओं को मोदकों का दान दो' मोदक ऊपर के माले में छींके पर रखे गए मध्य घड़े में रखे हुए थे। वह उनको लेने के लिए उठी। साधु मालापहृत भिक्षा को जानकर घर से बाहर चले गए। तत्काल उसी घर में भिक्षार्थ किसी अन्य भिक्षु ने प्रवेश किया। यक्षदत्त ने उस भिक्षु से पूछा'अमुक साधु ने छींके से उतारकर दी गई भिक्षा को ग्रहण क्यों नहीं किया? प्रवचन-मात्सर्य के कारण भिक्षु ने कहा- 'इन लोगों ने कभी अपने जीवन में दान नहीं दिया अतः इनको पूर्व कर्म के कारण धनाढ्य घरों का स्निग्ध और मधुर भोजन नहीं मिलता है। ये गरीब घरों से अन्त-प्रान्त भोजन प्राप्त करते हैं।' यक्षदत्त ने भिक्षु को मोदक देने हेतु वसुमती को कहा। वह छींके पर रखे घट से मोदक लेने के लिए उठी। घट में उत्तम द्रव्य से निष्पन्न मोदक की गंध से कोई सर्प आकर बैठ गया। वसुमती ने एड़ी के बल पर खड़े होकर मोदक लेने के

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