Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 282
________________ 218... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन जाना चाहिए और वहाँ उतने समय ही रुकना चाहिए, जितने में एक गाय दुह ली जाये।55 धर्मसूत्र में अन्य मतों को उद्धृत करते हुए यह भी कहा गया है कि संन्यासी किसी भी जाति के यहाँ भिक्षा मांग सकता है, किन्तु भोजन केवल द्विजातियों के यहाँ कर सकता है। वसिष्ठ धर्मसूत्र के अनुसार संन्यसी ब्राह्मण के यहाँ भिक्षा मांग सकता है।56 वायु पुराण के अनुसार संन्यासी को कई व्यक्तियों के यहाँ से मांगकर खाना चाहिए। भोज्य-अभोज्य के सम्बन्ध में यह निर्देश दिया गया है कि उसे मांस या मधु का सेवन नहीं करना चाहिए, अपक्व भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और न ऊपर से नमक का प्रयोग करना चाहिए।57 वैदिक साहित्य में भोजन स्थान के सम्बन्ध में भी मतान्तर मिलते हैं। वसिष्ठ धर्मसूत्र कहता है कि ब्राह्मण संन्यासी को शुद्र के घर में भोजन नहीं करना चाहिए।58 अपरार्क की व्याख्या के अनुसार ब्राह्मण के अभाव में क्षत्रिय या वैश्य के यहाँ भोजन करना चाहिए।59 पाराशर के अनुसार वृद्ध एवं रुग्ण संन्यासी हर किसी के घर में भिक्षाटन कर सकता है तथा एक ही व्यक्ति के यहाँ कई दिनों तक भोजन कर सकता है। ___याज्ञवल्क्य के मतानुसार संन्यासी को भोजन देने से पूर्व उसके हाथ पर जल की धारा दी जाती है और भोजन देने के पश्चात भी जल धारा दी जाती है।60 धर्मशास्त्र के अनुसार संन्यासी को सन्ध्या के समय भिक्षा मांगनी चाहिए, जब रसोईघर से धूएँ का निकलना बन्द हो जाए, अग्नि बुझ जाए और बरतन आदि अलग रख दिये जाए। मनु के अनुसार संन्यासी को भविष्यवाणी करके, शकुन बताकर, ज्योतिष का प्रयोगकर, विद्या ज्ञान आदि के सिद्धान्तों का उद्घाटन कर भिक्षा मांगने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। उसे ऐसे घरों में भी भिक्षार्थ नहीं जाना चाहिए जहाँ पहले से ब्राह्मण, भिखारी या अन्य लोग आ गये हों।61 वसिष्ठ के अनुसार संन्यासी को भर पेट भोजन नहीं करना चाहिए। उसे अधिक या पर्याप्त मिलने पर न प्रसन्नता प्रकट करनी चाहिए और अपर्याप्त मिलने पर निराश भी नहीं होना चाहिए। आपस्तम्ब धर्मसूत्र में आहार का परिमाण बताते हुए कहा गया है कि


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