Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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भिक्षाचर्या का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अनुसंधान ... 221
निषिद्धाभिहतोद्भिन्नच, छेद्यारोहास्तथोद्दगमाः । दोषा हिंसानादरान्य, स्पर्श दैन्यादि योगतः॥
अनगार धर्मामृत, 5/5-6
31. आधाकम्मुद्देसिय, अज्झोवज्ज्ञेय पूदिमिस्सेय ठविदे बलि पाहुडिदे पादुक्कारे य कीदे च पामिच्छे परियहे अभिहड मुब्भिण्ण मालआरोहे अणिसट्टे उग्गमदोसा दु सोलसमे।
मूलाचार, 6/422-423
32. अनगार धर्मामृत, 5/7
33. वही, 5/8
34. मूलाचार, 6/6/429
35. अनगार धर्मामृत, 5/9
36. मूलाचार, 6/428
37. उत्पादनास्तु धात्री दूत, निमित्ते वनीपका जीवौ । क्रोधाद्याः प्रागनुनुति, वैद्यक विद्याश्च मन्त्र चूर्णवशाः ।।
38. धादीदूदणिमित्ते, अजीवं वणिवग्गे च तेगिछे । कोधी माणी मायी, लोभी य हवंति दस दे ॥ पुव्वी पच्छा संदि, विज्जामंते य चुण्ण जोगे य। उत्पादणा य दोसो, सोलसमो मूलकम्मे च॥
39. (क) अनगार धर्मामृत, 5 / 19
(ख) मूलाचार, 6/446
40. अनगार धर्मामृत, 5/22
अनगार धर्मामृत, 5/19
मूलाचार, 6/445-446
41. मूलाचार, 6/451
42. वही, 6/452
43. शंकित पिहित प्रक्षित, निक्षिप्तच्छोटिता परिणताख्याः । दश साधारण दायक, लिप्त विमिश्रैः सहेत्यशन दोषाः ।।
44. संकिद मक्खिद णिक्खिद, पिहिदं अपरिणद लित्त छोडिद,
अनगार धर्मामृत, 5/28 संववहरणदाय गुम्मिस्से । एषणदोसाइं दस एदे ॥
मूलाचार, 6/462

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