Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ...167
179. मूलाचार, 458 180. पिण्डनियुक्ति, 499 181. आहारदायगाणं, विज्जा मंतेहिं देवदाणं तु । आहूय साधिदव्वा, विज्जामंतो हवे दोसो ।
मूलाचार, 459 182. चूर्णः औषध द्रव्यसंकरक्षोदः-अनेक औषधियों के मिश्रण को चूर्ण कहते हैं।
पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 73 183. पिण्डविशुद्धि प्रकरण टीका, पृ. 40 184. एवं वसिकरणादिसु, चुण्णेसु वसीकरेत्तु जो तु परं । उप्पाएती पिंडं, सो होती चुण्णपिंडो तु॥
जीतकल्प भाष्य, 1456 185. नेत्तस्संजणचुण्णं, भूसणचुण्णं च गत्तसोभयरं । चुण्णं तेणुप्पादो, चुण्णयदोसो हवदि एसो॥
मूलाचार, 460 186. पिण्डनियुक्ति, 502 मलयगिरि टीका- पृ. 143 187. गब्भपरिसाडणाइ व, पिंडत्थं कुणइ मूलकम्मं तु।
(क) पिण्डनियुक्ति 502, मलयगिरि टीका, पृ. 143
(ख) पंचवस्तुक, 760 188. मंगलमूलीण्हवणाइ, गब्भवीवाह करण घायाई । भववण मूलं कम्मं, ति मूलकम्मं महापावं ।
पिण्डविशुद्धिप्रकरण, 75 189. मूलाचार, 461 190. अनगार धर्मामृत, 5/19 191. पिण्डनियुक्ति, 513 192. एसण गवेसणऽण्णेसणा य, गहणं च होंति एगट्ठा।
पंचवस्तुक, 761 193. पिण्डनियुक्ति, 514-15

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328