Book Title: Jain Karm Siddhant ka Tulnatmaka Adhyayan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 31
________________ जैन कर्म सिद्धान्त : एक तुलनात्मक अध्ययन किये हुए शुभाशुभ कर्मों का फल दूसरे व्यक्ति को दे सकता है अथवा नहीं दे सकता? क्या व्यक्ति अपने किये हुए शुभाशुभ कर्मों का ही भोग करता है अथवा दूसरों के द्वारा किये हुए शुभाशुभ का फल भी उसे मिलता है ? इस सन्दर्भ में समालोच्य आचार. दर्शनों के दृष्टिकोण पर भी विचार कर लेना आवश्यक है। जैन दृष्टिकोण जैन विचारणा के अनुसार प्राणी के शुभाशुभ कर्मों के प्रतिफल में कोई भागीदार नहीं बन सकता । जो व्यक्ति शुभाशुभ कर्म करता है वहीं उसका फल प्राप्त करता है । उत्तराध्ययनसूत्र में स्पष्ट विधान है संसारी जीव स्व एवं पर के लिए जो साधारण कर्म करता है उस कर्म के फल-भोग के समय वे बन्धु-बान्धव ( परिजन ) हिस्सा नहीं लेते।' इसी ग्रन्थ में प्राणी की अनाथता का निर्णय करते हुए यह बताया गया है कि न तो माता-पिता और पुत्र-पौत्रादि ही प्राणी का हिताहित करने में समर्थ हैं। भगवतीसूत्र में भगवान महावीर से जब यह प्रश्न किया गया कि प्राणी स्वकृत सुखदुःख का भोग करते हैं या परकृत सुख-दुःख का भोग करते हैं ? तो महावीर का स्पष्ट उत्तर था कि प्राणी स्वकृत सुख-दुःख का भोग करते हैं, परकृत का नहीं। इस प्रकार जैन विचारणा में कर्मफल संविभाग को अस्वीकार किया गया है। बौद्ध दृष्टिकोण ___ बौद्ध दर्शन में बोधिसत्व का आदर्श कर्मफल संविभाग के विचार को पुष्ट करता है । बोधिसत्व तो सदैव यह कामना करते हैं कि उनके कुशल कर्मों का फल विश्व के समस्त प्राणियों को मिले । फिर भी बौद्ध दर्शन यह मानता है कि केवल शुभकर्मों में ही दूसरे को सम्मिलित किया जा सकता है। बौद्ध दृष्टिकोण के सम्बन्ध में आचार्य नरेन्द्रदेव लिखते हैं कि सामान्य नियम यह है कि कर्म स्वकीय है, जो कर्म करता है वही ( सन्तानप्रवाह की अपेक्षा से ) उसका फल भोगता है । किन्तु पालीनिकाय में भी पुण्य परिणामना (पत्तिदान ) है । वह यह भी मानता है कि मृत की सहायता हो सकती है । स्थविरवादी प्रेत और देवों को दक्षिणा देते हैं अर्थात् भिक्षुकों को दिये हुए दान ( दक्षिणा ) से जो पुण्य संचित होता है, उसको देते हैं। बौद्धों के अनुसार हम अपने पुण्य में दूसरे को सम्मिलित कर सकते हैं, पाप में नहीं। हिन्दुओं के समान ही बौद्ध भी प्रेतयोनि में विश्वास करते हैं और प्रेत के निमित्त जो भी दान-पुण्य आदि किया जाता है उसका फल प्रेत को मिलता है, यह मानते हैं । बौद्ध यह भी मानते हैं कि यदि प्राणी मरकर परदत्तोपजीवी प्रेतावस्था में जन्म लेता है, तब तो उसे यहाँ उसके निमित्त किया जानेवाला पुण्यकर्म का फल मिलता है, लेकिन यदि वह मरकर मनुष्य, १. उत्तराध्ययन्स त्र, १३.२३, ४।४. २. वही, २०१२३-३०. ३. भगवतीसत्र, ११२।६४. ४. बौद्ध धर्म दर्शन, पृ० २७७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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