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जैनहितैषी।
[भाग १५
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घेदी है। उसकी एक प्रतिमा पर अब भी हैं कि किसी तरह इनका अन्त हो संवत् ११६० की वैशाख सुदी ६ का, 'जाय, इस लेखका बहुत कुछ उपयोग हो सिद्धराज जयसिंहके समयका लेख है * सकता है। जिससे मालूम होता है कि उस समय . परम वीतराग भगवानका शान्तिप्रद अर्थात् कुमारपाल महाराजके मन्दिर. शासन दोनों पक्षके मखियोंको सद्धि निर्माणके पहले, वहाँ पर दिगम्बरियोंके दे कि वे इस जैन धर्मको कलंकित
मन्दिर और प्रतिमाएँ थीं और कुमारपाल करनेवाले व्यवसायसे शीघ्र ही पराङ्मुख • प्रतिबोधके कथनानुसार संभव है कि हो जायँ । पर्वत पर दिगम्बरियोंका ही अधिकार वीतराग मार्गकी रक्षा तीर्थों या हो । इसी तरह पावागढ़ सिद्धक्षेत्र पर मन्दिरोंको अपनी अपनी सम्पत्ति बना इस समय सम्पूर्ण अधिकार दिगम्बरियों- लेनेसे नहीं होगी, किन्तु उन तीर्थों और का है; परन्तु पर्वतके ऊपर कई ऐसे मन्दिरों से घर घर और घट घटमें मन्दिरोंके खण्डहर पड़े हुए हैं जो शान्ति, दया, क्षमाके सन्देश पहुँचानेसे श्वेताम्बर सम्प्रदायके हैं और जिनसे होगी । इस बातको हमें घड़ी भरके लिए मालूम होता है कि वहाँ पर श्वेता. भी न भूलना चाहिए । म्बरी भाई भी जाते थे और उनके मन्दिर थे । कदम्बवंशी राजाओंके जो ताम्रपत्र प्रकाशित हुए हैं, उनमेसे दूसरे
हाथीगुफाका शिलालेख । ताम्रपत्रमें श्वेताम्बर महाश्रमणसंघ और दिगम्बर महाश्रमणसंघके उपभोगके लिए जैन सम्राट् खारवेलका इतिहास। कालवङ्ग नामक ग्रामके देनेका उल्लेख है।
[लेखक-कुमार देवेंद्रप्रसाद, पारा। ] यह स्थान कनाटक प्रदेशम धारवाड़
(गतांकसे आगे।) जिलेके आस पास कहीं पर है। अवश्य ही उस समय वहाँ पर कोई श्वेताम्बर __हाथीगुफाका वह म्ल शिलालेख संघका भी स्थान, तीर्थादि होगा। परन्तु जिसे श्रायुत कु० पा० जाय
जिसे श्रीयुत के० पी० जायसवालने पर्वत बहुत समयसे उस ओर श्वेताम्बरी परसे पुनः जाँच द्वारा संशोधित करके भाइयोंका एक तरहसे प्रभाव ही है, इस 'दि जर्नल आफ दि बिहार ऐंड उड़ीसा कारण उक्त स्थान या तो नष्टभ्रष्ट हो गया रिसर्च सोसाइटीके, दिसम्बर सन् १६१८ होगा या दिगम्बरियों के अधिकारमें होगा। के अंकमें, संस्कृत छायानुवाद सहित आशा है कि पाठकगण उक्त प्रमाणों
प्रकाशित कराया था और जिसका से दिनम्बर-श्वेताम्बरोंके झगड़ेकी अस
परिचय गतांकमें दिया गया है, अपने
उस संशोधित रूपमें, संस्कृतानुवाद लियतको बहुत कुछ समझ जायँगे। इस समय जब किदोनों सम्प्रदायके समझदार मोरे (ब्लैक) टाइपमें छापे गये हैं।
सहित, निम्न प्रकार है। इसमें जो अक्षर लोग इन झगड़ोंसे ऊब गये हैं और चाहते
इस बातको सूचित करनेके लिए हैं कि -देखो जैनमित्र भाग २२ अंक १२ ।
शिलालेखमें उन खास खास शब्दोंसे + इन ताम्रपत्रों का विवरण देखो जैनहितैषी भाग १४ पहले उन्हें गौरवके साथ उच्चारण करनेके मंक ७-८ में ।
वास्ते, कुछ स्थान खाली छोड़ा हुआ है।
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