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अङ्क ५] तीर्थोंके झगड़ोंका रहस्य ।
१३७ राया ही कैसे जा सकता है ? कुछ लोग ताराइ बुद्धदेवीइ मंदिरं, पुराने दस्तावेज और तमस्सुक पेश करके
तेण . कारियं पुवं । अपना अधिकार सिद्ध करनेका प्रयत्न किया करते हैं; और सम्भव है; उनसे ..
आसन्न गिरम्मि तओ, उनका अधिकार सिद्ध भी होता हो, परन्तु
भन्नइ ताराहरंति इभो ॥ क्या उनसे यह प्रश्न नहीं किया जा तेणेव तत्थ पच्छा, सकता कि उन दस्तावेजोसे पहले भी तो ये दोनों सम्प्रदाय थे। तब क्या इनसे
भवणं सिद्धाइयाइ कारवियं। पहलेके प्रमाणपत्रोंका तुम्हारे प्रतिपक्षीके
तं पुण कालवसेण, पास होना सम्भव नहीं है? और यह ___दियंवरेहिं परिग्गहियं ॥ सिद्ध करना तो बाकी ही रह जायगा
तस्थ ममाएसेणं, कि उनके लिखनेवाले शासकोंको वैसे किसी सार्वजनिक धर्मस्थानके सम्बन्धमें
अजिय जिणिंदस्स मंदिरं तुगं। दस्तावेज लिख देनेका अधिकार था या दंडाहिव अभएणं नहीं। यह संभव और स्वाभाविक है कि
जसदेव सुएण निम्मवियं ॥ किसी समय पर किसी सम्प्रदायवालोंका ऐहिक वैभव और प्रभाव बढ़ गया इन गाथाओंका अभिप्राय है किहो और उस समय उनके समीपके तीर्थ- "पहले उसने तारा*नामकी बौर देवीका का प्रबन्ध उनके हाथमें आ गया हो और मंदिर पर्वतके समीप बनवाया; इस कारण किसी समय उनके बदले दसरोके इस तीर्थको तारापुर कहते हैं । इसके बाद पास चला गया हो। परन्तु इससे उसीने फिर वहीं पर सिद्धायिका (जैनयह सिद्ध नहीं हो सकताकि उस तीर्थका देवी) का मन्दिर बनवाया। परन्तु कालवास्तविक अधिकारी श्रमक सम्प्रदाय ही वशसे उसे दिगम्बरियोंने ले लिया । अब था। ऊपर उपदेश-तरंगिणी ग्रन्थका जो वहीं पर (कुमारपाल राजा कहते हैं) मेरे अवतरण दिया है, उससे मालूम होता है आदेशसे उस देवके पुत्र दंडाधिप अभयकिसंघवी धाराकके समय में गिरनार तीर्थ की देखरेख में अजित | जिनेन्द्रका ऊँचा पर ५० वर्षसे दिगम्बरियोंका अधिकार मन्दिर बनवाया गया है।" इससे मालूम था और पीछे आम राजाकी कृपासे वह होता है कि कुमारपाल राजाके समय अधिकार श्वेताम्बरियोंके हाथमें चला तक समूचे तारंगा तीर्थ पर या कमसे गया होगा। इसी तरहका एक उल्लेख कम सिद्धायिका देवीके मन्दिरपर तारंगा सिद्धक्षेत्रके सम्बन्धमें कुमारपाल दिगम्बरियोका अधिकार था। प्रतिबोध नामक श्वेताम्बर प्रन्थमें मिलता तारंगा पर्वत पर कोटिशिला पर एक है । यह प्रन्थ सोमप्रभ सूरिका बनाया हमा है और 'गायकाड़ श्रोरिएण्टल . तारंगा पर्वतकी तलैटीसे उत्तरकी ओर लगभग डेढ़ सीरीज' में हालमें ही प्रकाशित हुआ है। मीलकी दूरी पर तारादेवीकी मूर्ति अब भी मौजूद है और इसकी रचनाका समय विक्रम संवत् उस पर बौद्धोंकी एक प्रसिद्ध गाथा लिखी हुई है। १२४१ है। इसमें प्रार्य स्खपुटाचार्यकी कुमारपाल महाराजका यह विशाल मन्दिर भव कथामें लिखा है कि
भी वर्तमान है।
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