Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 30
________________ १५६ और उसमें अनेक अनुमान प्रमाणोंसे यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है कि नहीं, उक्त रुपये विधवा-विवाह के प्रचारके लिये दिये गये हैं । इस लेख में हमपर यह इलाज़म लगाया है कि सेठ चिरंजीलालजी हमारे मित्र हैं और इस कारण हमने उन्हें श्रापत्ति से बचानेके लिये झूठमूठ ही उनके दानके उद्देश्यको बदल दिया है । परन्तु सम्पादक महाशयके इस लेख का कोई मूल्य नहीं है । क्योंकि वे स्वयं तो वहाँ उपस्थित न थे जो उनकी देखी सुनी बात पर कुछ विश्वास किया जय । रहे उनके अनुमान प्रमाण, सो वे एक सत्य बातको सत्य सिद्ध करनेके लिए लिखे गये हैं । उनके द्वारा तर्कपद्धतिका केवल दुरुपयोग किया है। मैं स्वयं उक्त विवाहमें उपस्थित था और वक्ता बहुत ही निकट था । श्रतएव मुझे उक्त असत्य अनुमान प्रमाणोंके वाग्जाल में फँसने की आवश्यकता नहीं । मैं फिर भी जैनहितैषीमें प्रकाशित समाचारको दुहराता हूँ कि चिरंजीलालजीका दान स्त्रीसमाजमें विदेशी वस्तु- बहिष्कार और असहयोग प्रचारके लिए ही दिया गया है । इसके सम्बन्धमें बम्बई के और भी अनेक जैन, श्रजैन प्रतिष्ठित सज्जन - जैनहितैषी । वहाँ उपस्थित थे - साक्षी दे सकते हैं; और उनकी साक्षी उन लोगोंके वचनों से निस्सन्देह बहुमूल्य है जिन्होंने सम्पादक महाशयको उक्त समाचार सुनाया और जो विवाह में शामिल तो हुए थे उत्साहसे, परन्तु पंचायतके डरके मारे जिन्होंने अपना नाम तमाशगीरों में लिखा देनेमें ही कुशल समझी थी ! साँझ वर्तमान में और उसके आधारसे दैनिक हिन्दुस्थानमें विवाहका जो समाचार प्रकाशित हुआ है, उसमें भी यह नहीं लिखा है कि उक्त दान विधवा Jain Education International [ भाग १५ विवाह के प्रचारके लिए दिया गया है । उसमें केवल यही प्रकाशित हुआ है कि इससे स्त्रीसमाजकी उन्नतिके लिए स्त्रीउपदेशिकाएँ तैयार की जायँगी । बात यह है कि उस समय सेठीजीका जो व्याख्यान हुआ था, उसमें उन्होंने यह भी कहा था कि एक ऐसी संस्थाकी बहुत श्रवश्यकता है जिससे स्त्रीसमाजकी उन्नति के लिए कुछ उपदेशिकाएँ तैयार की जायें। जान पड़ता है, रिपोर्टरने इसी बातको आगे पीछे करके उसका सम्बन्ध दानके साथ जोड़ दिया है । रिपोर्टर ने सेठीजीका जितना व्याख्यान लिखा है, उससे वह अधिक नहीं तो आठ दस गुणा श्रवश्य बड़ा था । उसमें उन्होंने अनेक विषयोंकी चर्चा की थी । राजनैतिक चर्चा तो उनके स्वभाव में ही दाखिल हो गई है । उनका चाहे जो व्याख्यान सुन लीजिये, उसमें राजनीतिक चर्चा श्राये बिना नहीं रहती । अतः उस दिन भी उन्होंने असहकार और विदेशी वस्तु - बहिष्कार के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा था । हिन्दुस्थानकी जरा सी रिपोर्ट परसे यह निर्णय कर लेना कि असहकार - की चर्चाका वहाँ कोई प्रसंग ही नहीं था, बड़े भारी साहसका काम है । क्या हितेच्छुके सम्पादक महाशय यह समझते हैं कि दैनिक पत्रोंके रिपोर्टर ऐसी सभाओं की रिपोर्टें अक्षरशः लिखा करते हैं ? उन्हें यहाँके किसी पत्रके रिपोर्टर के साथ कुछ दिनों घूमकर अपनी इस भद्दी भूलको सुधार लेना चाहिए । सम्पादक महाशयने 'असहकार ' शब्द के लिखने में मेरा हृद्रत अभिप्राय क्या था, उसे बतलाने में अपना अपूर्व शब्दपाण्डित्य प्रकट किया है और लिखा है कि मैंने इस शब्द के लिखनेमें चालाकीले काम लिया है। वास्तव में मेरा अभिप्राय For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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