Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 33
________________ अङ्क ५] पुस्तक-परिचय! १५६ अनाथ अबलाओंको धैर्य तथा शान्तिकी कोष्ठक* और साधारण अनुक्रमणिका प्राप्ति हो और कुमार साहबकी आत्मा लगाकर उसे विशेष उपयोगी बनाया. सद्गति पावे, यही हमारी आन्तरिक गया है । इसमें सन्देह नहीं कि पुस्तकके भावना है। तय्यार करने में बहुत कुछ परिश्रमसे काम लिया गया है, जिसके लिए बैरि स्टर साहब और ब्रह्मचारीजी दोनों पुस्तक-परिचय। धन्यवादके पात्र हैं। बैरिस्टर साहबकी इस कृतिसे अब अँग्रेजी संसारके लिए भी १-तत्वार्थसूत्र, अंग्रेजी अनुवाद तत्वार्थसूत्रका दर्वाजा खुल गया है । सहित। यह पुस्तक विद्यार्थियोंके विशेष कामकी है, और शायद ज्यादातर उन्हींको लक्ष्य प्राराकी 'दि सेक्रेड बुक्स आफ दि करके तय्यार भी की गई है । इसके शुरूजैन्स'-अर्थात् , जैनियोंके पवित्र ग्रन्थ' में पाँच पंजीकी एक, ऐतिहासिक प्रस्तानामकी ग्रन्थमालाका द्वितीय ग्रन्थ । वना भी दी हुई है जो बहुत साधारण प्रकाशक कुमार देवेन्द्रप्रसादजी पारा। है। अच्छा होता, यदि इस प्रस्तावनाके पृष्ठसंख्या सब मिलाकर २४० और मूल्य लिखने में कुछ विशेष परिश्रम और अनुकपड़ेकी जिल्द सहित, साढ़े चार रुपये। सन्धानसे काम लिया जाता । इसमें ___ यह श्री उमास्वाति आचार्यके सुप्र- कितनी ही बातें आपत्तिजनक भी हैं। सिद्ध तत्वार्थ सूत्रका अंग्रेजी अनुवाद एक स्थानपर यह बतलाया गया है कि है जिसे मिस्टर जे. एल० जैनी साहब ग्रन्थकर्ताका नाम दिगम्बरोंके अनुसार बैरिस्टरने ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीकी उमाखामी और श्वेताम्बरोंके अनुसार सहायतासे तय्यार किया है। यद्यपि इस 'उमास्वाति है। परन्तु यह बात इतिसारे अनुवादको देखनेका हमें अवसर हासकी दृष्टि से ठीक नहीं है। दिगम्बरोंनहीं मिला तो भी हमने जहाँतक देखा के अनुसार भी ग्रन्थकर्ताका नाम प्रायः है, उससे ऐसा मालूम होता है कि अनु- 'उमास्वाति' ही पाया जाता है-दिगवाद प्रायः अच्छा है और अच्छे ढंगसे म्बर सम्प्रदायके बीसियों प्राचीन शिला. किया गया है। सूत्रोंके अनुवादके बाद लेख इसी बातकी शिक्षा दे रहे हैं। कुछ बहुधा नोट्स और टीकासे पुस्तकको थोड़ेसे आधुनिक उल्लेख ऐसे जरूर हैं अलंकृत किया गया है। मूल सूत्रोंको जिनमें उमास्वामी नाम भी पाया जाता सबसे पहले देवनागरी अक्षरोंमें, और है। तत्वार्थ सूत्रके रचे जानेकी जो कथा उसके बाद अँग्रेजी अक्षरोंमें दिया है। दी है उसके सम्बन्धमें यह नहीं लिखा अनुवादादि करते समय खास खास कि वह कौनसे ग्रन्थसे अथवा कहाँसे शब्दोंको भी दोनों अक्षरोंमें जाहिर किया -------- है, जिससे वे लोग पूरा लाभ उठा सके * यह कोष्ठक वही है जो रायचन्द्र जैनशास्त्र-मालामें प्रकाशित 'सभाष्यतत्वार्थाधिगम सत्र' के साथ लगा हुभा जो 'देवनागरी' का एक अक्षर भी नहीं है। वहींसे उठाकर और उन्हीं देवनागरी अक्षरोंमें यह जानते । पुस्तकमें तत्वार्थसूत्रका सार, यहाँ ज्योंका त्यो रवखा गया है । ग्रन्थका विषयविभाग, दिगम्बर और + यथा-श्रीमानुमास्वातिरयं यतीशस्तत्वार्थ सूत्रं श्वेताम्बरानायके सूत्रपाठोंका भेदप्रदर्शक प्रकटीचकार----श्रवणवेल्गोस्थ शि० ले० नं० १०५ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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