Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 03
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 17
________________ हाथीगुफाका शिलालेख । १४३ शिलालेखका हिन्दी अनुवाद।। ___उत्सव और समाजके द्वारा नगरीका शिलालखका हिन्दा अनुवाद मनोरञ्जन किया। .. पंक्ति १-अर्हतोको नमस्कार । सर्व- और चौथे वर्ष में, विद्याधर निवासिद्धोंको नमस्कार। ऐल-महाराज महा सोको, जो पहले कभी नष्ट नहीं हुए थे मेघवाहन, चैत्रराजवंशवर्धन, प्रशस्तशुभ और जो कलिंगके पूर्व राजाओं के निर्माण लक्षणसम्पन्न, अखिल-देश-स्तम्भ, कलि- किय किये हुए थे......... माधिपति श्रीखारवेलने। ___ उनके मुकुटोंको व्यर्थ करके और पंक्ति २-पन्द्रह वर्ष तक,श्रीसम्पन्न उनके लोहेके टोपोके दो खंड करके और' और फडार (गन्दुमी) रंगवाले शरीरसे उनके छत्र, कुमार क्रीड़ाएँ की। बाद में लेख, रूप पंक्ति ६-और शृंगारों (सुवर्णगणना, व्यवहार-विधिमें उत्तम योग्यता कलशो) को नष्ट करके तथा गिराकर, प्राप्त करके और समस्त विद्याओंमें प्र और उनके समस्त बहुमूल्य पदार्थों तथा वीण होकर उसने नौ वर्षोंतक युवराज रत्नोंका हरण करके, उसने समस्त राकी भाँति शासन किया। ष्ट्रिकों और भोजकोंसे अपने चरणोंको जब वह पूरा चौबीस वर्षका हो चुका बन्दना कराई। तब उसने, जिसका शेष-यौवन विजयोसे ___ इसके बाद पाँचवें वर्ष में उसने तन उत्तरोत्तर वृद्धिंगत हुआ,-तृतीय मुलिय मार्गसे नगरीमें उस प्रणाली - पंक्ति ३-कलिंगराजवंशमें, एक पु (नहर ) का प्रवेश किया जिसको नन्द राजने तीन सौ वर्ष पहले खुदवाया था। रुषयुगके लिए महाराज्याभिषेक पाया। अपने अभिषेकके पहलेही वर्ष में उसने छठे वर्षमें उसने राजसूय यज्ञ करवातविहत (तूफान के बिगाड़े हुए ) गोपुर के सब करोंको क्षमा कर दिया, (फाटक) प्राकार (चहारदीवारी) और पंक्ति ७-पौर और जानपद (संस्था. भवनोंका जीर्णोद्धार कराया; कलिंग ओं) पर अनेक शतसहस्र-अनुग्रह वितनगरीके फव्वारेके कुण्ड, इषितल्ल (१) रण किये। और तड़ागोंके बाँधोंको बँधवाया; समस्त सातवें वर्ष राज्य करते हुए, वज्र उद्यानोंका प्रतिसंस्थापन कराया और घरानेकी धृष्टि (प्राकृत-धिसि) नानी पैंतीस लक्ष प्रजाको सन्तुष्ट किया। गृहिणीने मातृक पदको पूर्ण करके सकुमार पंक्ति ४-दूसरे वर्ष में, सातकर्णि- ()...(0) की चिन्ता न करके उसने पश्चिम देशको आठवें वर्ष में उसने (खारवेलने) बहुतसे हाथी, घोड़ों, मनुष्यों और रथोंकी बड़ी दीवारवाले गोरथगिरि पर एक एक बड़ी सेना भेजी। कृष्णवेण नदी पर बड़ी सेनाके द्वारा सेना पहुँचते ही, उसने उसके द्वारा पंक्ति-आक्रमण करके राजगृहमूषिक-नगरको सन्तापित किया। तीसरे को घेर लिया। पराक्रमके कार्योंके इस घर्ष में फिर समाचारके कारण नरेन्द्र [नाम]...अपनी पंक्ति ५-उस गन्धर्व-वेदमें निपुण- घिरी हुई सेनाको छुड़ाने के लिये मथुरामतिने दम्प, नृत्य, गीत, वाद्य, सन्दर्शन, को चला गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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