Book Title: Jain Granth aur Granthkar
Author(s): Fatehchand Belani
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
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देवनंदि ( पूज्यपाद जिनेंद्र बुद्धि)
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चन्द्रपिं महत्तर
छठवीं
देवगिणि क्षमाश्रमण (देववाचक) आगम ( आगमों को पुस्तकारूढ किया) मल्लवादी
(दोनों अनुपलब्ध)
( ४ )
आगमिक
व्याकरण
(६) श्रीचंद - टिप्पण
(७) जयनंदि - टिप्पण
योग
वैद्यक
मंत्र
प्रकीर्णक
असल सूत्र पाठ ३००० सूत्र
दार्शनिक
कर्मशात्र
सर्वार्थसिद्धि, ( तस्दार्थ टीका ) जेनेंद्र * शब्दावतार न्यास ( पाणिनि पर अनुपलब्ध)
समाधितंत्र
वैद्यकशास्त्र
(२) अमितगति संस्कृत आराधना,
(३) पं. आशाघर - मूलाराधना दर्पण
(४) प्रभाचंद्र - आराधना पंजिका, आराधना कथा कोश.
(५) पं. शिवलाल जी - भावार्थ दीपिका ( १८२८), एक प्राकृत टीका
मंत्र यंत्र शास्त्र
अर्हस्प्रतिष्ठा लक्षण (अनु० ), सारसंग्रह (अनु० ), जैनाभिषेक (अनु०), शान्त्यष्टक (अनु० ), दशभक्ति इष्टोपदेश
नन्दीसूत्र
नयचक्र ( द्वारशार), सन्मतितर्क टीका (अनु०), पंचसंग्रह सटीक
(८) देवसेन - कृत आराधनासार,
* जैनेन्द्र व्याकरण (अनेक शेष) पर टीकाएं
आचार्य अभयनंदिकृत महावृत्ति श्लोक१२००० नौवी बारहवीं शताब्दी के बीच श्रुतकीर्तिकृत पंचवस्तु प्रकिया ३३००० श्लोक |
प्रभाचंदकृत शब्दाभोजभास्कर व्यास १६००० श्लो. पर प्राप्य १२००० लोक महाचंद्रकृत लघुजैनेन्द्र (बीसवीं शताब्दी)
संघदास क्षमाश्रमण धर्मसेन गणि
जिनभद्र क्षमाश्रमण
कोट्टाचार्य धर्मदास गणि (?)
मानतुंग सूरि ( ? ) सिंगणि ( सिंहसूर) जिनदास महत्तर (चूर्णिकार )
समन्तभद्र
कोट्याचार्य हरिभद्रसूरि
पीछले सूत्र पाठ पर ३७००
(१)
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कथा
वसुदेव हिडि आगमिक पंचकल्प भाष्य ( संघदास तथा धर्मसेन दोनों ने मिलकर )
विक्रम सातवीं आगमिक
12
औपदेशिक
स्तोत्र
दार्शनिक
आगमिक
आचार
दार्शनिक स्तोत्र
विशेषावश्यक भाष्य सटीक जीतकल्पसूत्र, ( ६६६ ),
मु
विशेषणवती,
विशेषावश्यक टीका
उपदेशमाला ( प्राकृत )
भक्तामर स्तोत्र
नयचक्र की टीका
नंदी सूत्र चूर्णि (६३५ में ) निशीथसूत्र चूर्णि रत्नकरंडधावकाचार, *
आप्तमीमांसा युक्त्यनुशासन, स्वयंभू स्तोत्र,
विक्रम आठवीं आयमिक
गुणनंदिकृत प्रक्रिया - (शब्दार्णवप्रक्रिया यही पीछला सूत्र पाठ माना जाता है। सोमदेव सूरिकृत शब्दार्णव चन्द्रिका (गुणनंदिके शब्दार्णव पर यही टीका है ) चारुकीर्तिकृत शब्दाव प्रक्रिया (जैनेन्द्रप्रक्रिया)
जैनेन्द्र भाग्य ( अनुपलब्ध)
* प्रो० हीरालालजी ने अन्य कर्तृक सिद्ध किया है।
आगमिक अनुयोगद्वारवृत्ति, नन्दी लघु
वृत्ति, प्रज्ञापनासूत्र व्याख्या, आवश्यक लघुटीका, आवश्यक बृहत्टीका, ओधनियुक्तिवृत्ति,
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