Book Title: Jain Granth aur Granthkar
Author(s): Fatehchand Belani
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 27
________________ काव्य (१५। र अष्टलक्षी ('राजानो ददते सौल्य' की) अर्थ रत्नावलि वृत्तियुक्त वीरभद्र पद्मसागर ( ४८ काव्य विजय प्रशस्ति *(१६ सर्ग पर्यन्त) श्रृङ्गार कन्दर्प चूडामणि १६३३ दार्शनिक नयप्रकाशाष्टक सटीक, युक्ति प्रकाश सटीक प्रमाण प्रकाश सटीक काव्य जगद्गुरु काव्य संग्रह १६४६ उत्तराध्ययन कथा संग्रह (प्राकृत से. संस्कृत) १६५७ कयाचरित्र तिलक मञ्जरी वुचि, यशोधर चरित्र प्रकीर्णक शील प्रकाश, धर्म परीक्षा कथाचरित्र रूपसेन चरित्र, प्रद्युम्न चरित्र मौन एकादशी कथा आगमिक जम्बूदीप प्रज्ञप्ति वृत्ति १६४५ काव्य प्रश्नोत्तर काव्य (जिनवल्लभ) वृत्ति रुचितदंडक स्तुति (भुवनहित) वृत्ति १६४४ विधि विधान इरियावहिका विशिका सटीक १६४० पोषध प्रकरण सटीक १६४५ आगमिक कल्पसूत्र पर कल्पलता वृत्ति दशवकालिक पर शब्दार्थ वृत्ति रवि सागर गुण विनय पुण्यसागर छन्दःशास्त्र वृत्त रत्नाकर पर वृत्ति १६१४ प्रकीर्णक रूपकमालावृत्ति, समाचारी शतक, वशेष शतक, विचार शतक, विसंवाद शतक, विशेष संग्रह, गाथा सहस्री, जयतिहुअण स्तोत्र वृत्ति, संवाद सुन्दर, कल्याण मंदिर वृत्ति दुरियरयसमीर (जिनवल्लभ) स्तोत्रवृत्ति काव्य खंडप्रशस्तिकाव्य पर वृत्ति, रघुवंश टीका १६४६ लघशान्ति टीका १६५१ कथा दमयंती कथा (त्रिविक्रम) वृत्ति स्तुति-स्तोत्र अजित शान्ति (जिनवल्लभकृत) पर मितभाषिणी वृत्ति, वैराग्यशतक पर टीका, संबोध सप्ततिका (जयशेखर) वृत्ति, इन्द्रियपराजयशतक टीका, हीर प्रश्न (प्रश्नोत्तर समुच्चय) संकलित किया। खंडन-मंडन उत्सूत्रोद्घाटन कुलक (धर्म सागर का खंडन) आगमिक जम्बूदीव पन्नत्ति पर प्रमेयरत्न मजुषा खीमसौभाग्याभ्युदय ग्रन्थ १६५० स्तुति अजित शान्ति स्तव, विवरण सूक्तिद्वात्रिशिका पर पद्मराज प्रकीर्णक जयसोम समय सुंदर गुण विजय शान्तिचन्द्र गणि '(सकलचंद्र के शिष्य) जीव विचार-नवतत्त्व दंडक पर वृत्ति १६९८ कथा चातुर्मासिक पर्व कथा, कालका चार्य कथा (गद्य-पद्य) *शेष पांच सर्ग और सम्पूर्ण टीका उनके गुरुभाई विद्याविजय के शिष्य गुण वजयजी ने की। टीका का नाम विजयदीपिका है १६८८ । काव्य Jain Education International For Private &Personal use Only

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