Book Title: Jain Granth aur Granthkar
Author(s): Fatehchand Belani
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 29
________________ (५२) तेजपाल संघ विजय चारित्रसिह कल्प दीपालिका कल्प पर अवचूरि आगमिक कल्पसूत्र दीपिका व्याकरण कातंत्र विभ्रम पर अवणि १६७५ विचार षट्त्रिंशिका (गजस्व कृत दंडक पर वृत्ति) १६७५ ज्योतिष जातक कर्म पद्धति जिन वृषम समवरण प्रकर भविक प्रकर काव्य हीरसौभाग्य काव्य सटीक श्रीपति देव विमल गणि (श्रीपति के शिष्य) सुमति हर्ष सिद्धि चन्द्र उपाध्याय व्याकरण धातु मञ्जरी, अनेकार्थनाममाला (भानुचन्द्र के शिष्य) पर वृत्ति कथा चरित्र कादम्बरी उत्तर भाग पर टीका वासवदत्ता पर वृत्ति भानुचन्द्र चरित्र स्तुति-स्तोत्र भक्तामर टीका, शोभन स्तुति पर टीका बुद्धप्रस्तावोक्ति रत्नाकर मानसागर शतार्थी पर वृत्ति नय विजय गणि पुद्गलभंगविवृति प्रकरण (विजय सेन सूरि के शिष्य) हर्ष नन्दन गणि मध्याह्न व्याख्यान, आदिनाथ व्याख्यान, ऋषिमण्डल स्तोत्र पर वृत्ति । रत्नचंद्र (शान्ति चन्द्र के शिष्य) चरित्र-काव्य प्रद्युम्न चरित्र महाकाव्य १६७१ नैषध काव्य पर टीका रघुवंश पर टीका स्तुति-स्तोत्र भक्तामर-कल्याण मंदिर-श्रीमत् धर्मस्तव-देवा प्रभोः स्तव-ऋषभ वीरस्तव पर वृत्ति अध्यात्म कृपारसकोश पर वृत्ति अध्यात्मकल्पद्रुम (मुनिसुंदर) पर कल्पलता टोका खंडन-मंडन कुमताहिविषभंगलि (धर्मसागर का खंडन) १६७१ : साधु सुंदर व्याकरण-कोष उक्ति रत्नाकर (प्राकृत सम संस्कृत शब्द संग्रह) १६७०-७४ धातुपाठ पर धातुरत्नाकर सटीक १६८० टीका क्रियाकल्पलता ज्योतिष जातककर्मपद्धति (श्रीपति) टीका बृहत्पर्वमाला(ताजिक सार टीका) गणककुमुद कौमुदी (भास्कर कृत कर्ण कुतूहल पर टीका) आगमिक कल्पसुत्र पर कल्प दीपिका १६७७ दशवकालिक वार्तिक १६७८ व्याकरण सारस्वत व्याकरण पर टीका जय विजय रामचन्द्र सूरि सहजकीर्ति गणि समद्वीपि शब्दार्णव ब्याकरणऋजुप्राज्ञ व्याकरण प्रक्रिया एकादिशतपर्यन्त शब्दसायनिक नाम कोश (छकांड) कल्पमञ्जरी स्तुति महावीर स्तुति वृत्ति अनेक शास्त्रसार समुच्चय पार्श्वनाथ स्तुति व्याकरण पदव्यवस्था (विमल कीति)टीका १६८१ साधु सुन्दर उदयकीति Jain Education International For Private & Personale Only

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