Book Title: Jain Granth aur Granthkar
Author(s): Fatehchand Belani
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 31
________________ गणधरवलयपूजा, पल्यवतोबापन्न १२३४ व्रतोद्यापन, अध्यात्मपद टीका सर्वतोभद्र टीका, अनेक स्तोत्र खंडन-मंडन संशयवदनविदारण (श्वेतांबर खंडन) अपशब्द खंडन अठारहवीं शताब्दी आनन्दघनजी यशोविजयजी आनन्द धन बहत्तरी (मुजराती) अध्यात्म दीक्षा १६८८, स्व. १७४३ नयविजय के शिष्य विनय विजय उ. के गुरुबंधु तत्त्वालोकविवरण, त्रिसूश्याछोक, द्रव्यालोकविवरण, न्याय बिन्दु, प्रमाण रहस्य, मंगलवाद वादमाला, वाद महार्णव, विधिवाद, वेदान्तनिर्णय, सिद्धान्ततकं परिष्कार, सिद्धान्तमञ्जरी टीका, स्याद्वादमञ्जूषा-स्याद्वाद मंजरीटीका, द्रव्यपर्याययुक्ति । आगमिक आराधकविराधकचतुर्भगी, गुरु तत्त्वविनिश्चय, धर्मसंग्रहटिप्पन, निशाभक्तप्रकरण, प्रतिमाशतक, मार्गपरिशुद्धि यतिलक्षण समुच्चय, सामाचारी प्रकरण, कूपदष्टान्तविशदीकरण, तत्त्वार्थ टीका, अस्पृशद्गतिवाद योगविशिका टीका, योग दीपिका (षोडशक वृत्ति), योग दर्शन विवरण कर्मशास्त्र कर्मप्रकृति टीका, कर्मप्रकृति' लघुवृत्ति। स्तोत्र ऐन्द्रस्तुति चतुर्विशतिका, स्तोत्रा वलि, शंखेश्वर पाश्वनाप स्तोत्र समीकापार्श्वनाथ स्तोत्र, आदिजिन स्तवन, विजयप्रभसूरि स्वाध्याय, गोडीपावनाप स्तोत्रादि, व्याकरण तिङन्तान्वयोक्ति अलंकार अलंकारचूडा मणि टीका काव्य प्रकाश टीका छन्द छन्दश्चूडामणि प्रकीर्णक शठप्रकरण योग अध्यात्ममतपरीक्षा, अध्यात्म सार, अध्यात्मोपनिषद् आध्यात्मिक मत दलन (स्वोपशटीका) उपदेशरहस्य (सटीक),शानसार, परमात्मपंचविंशतिका, परम ज्योतिपंचविंशतिका, वैराग्य कल्पलता,अध्यात्मोपदेश ज्ञानसारावणि . अष्टसहस्री विवरण अनेकान्त व्यवस्था ज्ञानबिन्द, जननकभाषा, देव धर्मपरीक्षा, द्वात्रिंशत् द्वात्रिशिका, धर्मपरीक्षा, नयप्रदीप, नयोपदेश, नयरहस्य, न्याय खण्डखाद्य वीरस्तव, न्यायालोक, भाषारहस्य, शास्त्रवासिमुच्चय टीका-स्याद्वाद कल्पलता उत्पाद व्ययधौम्यसिद्धिटीका ज्ञानार्णव, अनेकान्त प्रवेश, आत्मख्याति, दार्शनिक Jain Education International For Private & Personale Only

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