Book Title: Jain Granth aur Granthkar
Author(s): Fatehchand Belani
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 18
________________ धनपाल माघनन्दि कथा तिलकमंजरा कथासार १२६१ आगमिक शास्त्रसार समुच्चर कल्प प्रतिष्ठा कल्प (३०) उदयसिंह सूरि आगमिक पिण्डविद्धि (जिनवल्लभ) दीपिका सूत्रसहित गुणाकर सूरि आयुर्वेद योगरत्नमाला (नागार्जुन ) वृत्ति १२९९ मलधारी पद्मप्रभ आगमिक नियमसार तात्पर्य टीका समन्तभद्र (लघु) दार्शनिक अष्टसहस्त्रीविषमपदतात्पर्य टीका शिवकोटि (समन्तभद्र के शिष्य) आगमिक तत्त्वार्थ टोका पं० आशाधर आयुर्वेद अष्टांग हृदय सटीक, अष्टांग हृदय घोतिनो टीका आगमिक धर्मामृत शास्त्र मूलाराधना टीका, सागार धर्मामृत टीका १२८५ अनगारधर्मामृत टीका १३०० आराधना सार टीका ' दार्शनिक प्रमेयरत्नाकर कोश अमरकोश पर टीका, व्याकरण क्रिया कलाप अलंकार काव्यालंकार पर टीका त्रिषष्टिस्मृति शास्त्र १२९२ भरतेश्वराभ्युदय राजीमती विप्रलम्भ कल्पादि जिनयशकल्प, ज्ञान दीपिका, इष्टोपदेश, भूपाल चतुर्विशतिका टीका सहस्त्रनाम स्तव सटीक, नित्य महोद्योत, रत्नत्रय विधान, भव्य कुमुद चंन्द्रिका टीका योग अध्यात्म रहस्य, शुभचन्द्र (मेघचंद विद्य के योग ज्ञानार्णव (योग प्रद्रीप)१२०७शिष्य ८४ के बीच १३ वीं सदी अपभ्रंश हेमचन्द्राचार्य अपभ्रंशव्याकरण अमरकीर्ति कर्मशास्त्र छक्कम्मोवएस (१२४७) योगचन्द्र (योगीन्द्रदेव) योगसार, परमात्मप्रकाश माइल्ल धवल दर्शनशास्त्र (देवसेन) दोहा में किया । हरिभद्रसूरि नेमिनाहचरिय ८०३२ गाथा वरदत्त वचस्वामी चरित्र रत्नप्रभ अंतरंगसिद्धि, कुछ कुलक जयदेवगणि भावना संधि रत्नप्रभाचार्य उपदेशमाला दोघट्टी के कुछ अंश सोमप्रभ सूरि कुमारपाल प्रतिबोष के कुछ अंश चौदहवीं शताब्दी देवेन्द्र सूरि (जगत् चन्द्र सूरि के कर्मशास्त्र पांच नव्य कर्मग्रन्थ सटीक शिष्य) स्वर्ग० १३२७ (कर्मविपाक कर्मस्त व, बंधस्वा मित्व, षडशिति, शतक) आगमिक तीन भाष्य श्रावक दिनकृत्य सवृत्ति, धर्मरत्नटीका सिद्धपंचाशिका (1) चरित्र सुदर्शनाचरित्र, प्रकीर्णक दानादिकुलक, अनेक स्तवन प्रकरण आदि सतिन्द चरित्र चन्द्रप्रभचरित्र (१३०२) Jain Education Internation For Private &Personal use Only

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