Book Title: Jain Granth aur Granthkar
Author(s): Fatehchand Belani
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
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सोमप्रभ सूरि ( वडगच्छीय )
विजय सिंह सूरि (पोगच्छीय)
हरिभद्र सूरि बडगच्छीय
पद्मप्रभ सूरि
परमानंद सूरि (शांति सूरि शिष्य अभयदेव सूरि के शिष्य) रामचंद्र सूरि (हेमचंद्र के शिष्य) एक सौ प्रबन्ध के कर्ता
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( २४ )
काव्य
सुमतिनाथ चरित्र ( प्रा० ) कुमारपाल प्रतिबोध (१२४१) शतार्थ काव्य (सं) सूक्तिमुक्तावलि, सिंदुरप्रकर सोमशतक १२३३-३५
भूगोल जम्बूद्वीप समात ( उमास्वाति ) टीका-विनेयजनहिता (२२१४) क्षेत्रसमास (जिनभद्र) वृत्ति (?) चौबीस तीर्थंकर चरित्र (चंद्रप्रभ मल्लि, नेमि उपलब्ध १२१६ श्लोक. २४०००
ज्योतिष भुवनदीपक ग्रहभावप्रकाश (१२२१)
sifare (गर्ग) टीका (प्रथमकर्म ग्रन्थ पर
आगमिक द्रव्यालंकार स्वोपज्ञ वृत्ति युक्त वार्शनिक व्यतिरेक द्वात्रिंशिका व्याकरण
नाटक
सिद्धहेम न्यास ( ५३००० इलो०) सत्यहरिश्चन्द्र नाटक, निर्भयभीमव्यायोग राघवाभ्युदय, यदुविलास रघुविलास, नलविलास, मल्लिकामकरन्द रोहिणी मृगांक वनमाला, सुधाकलशकोश, कोमुदी मित्राणंद नाट्यदर्पण सटोक कुमार विहारशतक, युगादिदेव द्वात्रिंशिका, प्रासाद द्वात्रिंशिका मुनिसुव्रत द्वात्रिंशिका, आदिदेव स्तव, नाभिस्तव, सोलह स्तवन,
स्तोत्र
महेन्द्र सूरि (हेमचन्द्र के शिष्य)
वर्धमान गणि
(")
बालचन्द्र
(")
रनप्रभ सूरि (वादीदेवरि के शिष्य)
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( २५ )
कोष
रामभद्र (देवसूरि संतानीय जय प्रभ सूरि के शिष्य ) यशपाल मंत्री
आचार्य मल्लवादी नरपति (धारा के आम्रदेव का पुत्र)
प्रद्युम्नसूर (बादिदेव सूरि के दार्शनिक शि० महेन्द्र सूरि के शिष्य
)
जिनपति सूरि
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नाटक
13
"
दार्शनिक
शकुन ग्रंथ
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प्रकरण
अनेकार्य संग्रह कोश पर अनेकार्थ कैरवाकरकौमुदी टीका १२४१ कुमार विहार शतक पर व्याख्या चंद्रलेखा विजय नाटक
चरित्र
मानमुद्रा भंजननाटक,
( अनुपलब्ध) स्नातस्या स्तुति प्रबुद्धरोहिणेय नाटक
तीर्थमाला, संघ पट्टक (जिन वल्लभ) बृहद्वृत्ति पंचलिगि (जिनेश्वर ) विवरण दार्शनिक स्याद्वादरत्नाकरावतारिका
मोहपराजय नाटक
धर्मोत्तर टिप्पनक
नरपतिजयचर्या
वादस्थल ( जिनपति का खंडन )
प्रबोध्यवादस्थल (ऊपर के ग्रन्थ का खंडन)
महेश्वर सूरि
सोमप्रभ सूरि
कुमारपाल प्रतिबोध (१२४१) हेमप्रभ सूरि (पौर्णमिक यशोघोष प्रकीर्णक प्रश्नोत्तर रत्नमाला (विमलसूरि ) सूरि के शिष्य) परवृत्तिं ( १२४३ )
नेमिनाथ चरित्र प्रा० १२२३ उपदेशमाला ( धर्मदास) दोघट्टी वृत्ति
पाक्षिक सप्तति पर सुखप्रबोधिनी वृत्ति
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