Book Title: Jain Granth aur Granthkar
Author(s): Fatehchand Belani
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 12
________________ कुलक, उपदेशामृत कुलक, प्राभातिक स्तुति, मोक्षोपदेश पंचाशिका, उपदेश पंचाशिका, रत्नत्रय कुलक, शोकहर उपदेश, सम्यक्त्वोत्पाद विधि, सामान्यगुणोपदेश कुलक, हितोपदेश कुलक, कालशतक कुलक. मंडल विचार कुलक, द्वादशवर्गं । वादी देवसूरि (मुनिचंद्र के शिष्य) दार्शनिक प्रमाणनयतत्त्वालोक - 'स्याद्वादरत्नाकर' टीका युक्त (८४००० श्लोक ) जन्म ११४३, बीक्षा ११५२ आचार्य ११७४, स्वर्ग १२२६ देवचन्द सूरि ( हेमचन्द्राचार्य के गुरु ) शान्तिसूर (बृहद्गच्छ ) हेमचन्द्र (पूर्णतल्लगच्छ ) जन्म ११४५, दीक्षा ११५४ आचार्य ११६६, स्वर्ग १२२९ (१८) Jain Education International आगमिक मूलशुद्धि की स्थानक टीका ( स्थानकानि ) शान्तिनाथ चरित्र (प्रा० ) ११६० चरित्र " पृथ्वीचन्द चरित्र व्याकरण सिद्धमशब्दानुशासन बृहद् वृत्ति लघुवृत्ति धातुपारायण, उणादिसूत्रवृत्ति, लिङ्गानुशासन बृहन्म्यास सहित | द्वपाश्रय (संस्कृत) (प्राकृत) कुमारपाल चरित । अभिधानचिन्तामणि सटीक, अनेकार्थं संग्रह सटीक, देशीनाममाला सटीक, निषंदुशेष अलंकार काव्यानुशासन अलंकार चूडा मणि और विवेक सहित छन्दोनुशासन सटीक प्रमाणमीमांसा, अन्ययोगव्यवच्छेदिका । वादानुशासन (अनु० ) काव्य कोष छंब बार्शनिक 37 देवसूरि (वीरचंद्रसूरि के शिष्य) धर्मघोषसूरि ( चन्द्रप्रभ सूरिपौमिक गच्छस्थापक के शिष्य) विनयचंद्र वनेश्वर ि श्रीचंद्रसूरि (पावंदेव सूरि ) धनेश्वर के शिष्य ( १९ ) पुराण For Private & Personal Use Only योग स्तोत्र स्तोत्र यशोदेवसूरि ( उपकेशगच्छीय) अगमिक नीति आगमिक व्याकरण त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित परिशिष्ट पर्व सहित योगशास्त्र सटीक अयोगव्यवच्छेदिका, वीतराग स्तोत्र, महादेव स्तोत्र अनीति (?) जीवानुशासन सटीक (११६२ ) शब्दसिद्धि ऋषि मंडल स्तोत्र नवपद (देवगुप्त कृत) प्रकरण वृत्ति की बृहद्वृत्ति (११६५) नवतत्व प्रकरण की वृत्ति ११७४ चरित्र कथा चंद्रप्रभ चरित्र प्रा० ११७८ कथानक कोश ११६६ आगमिक सूक्ष्मार्थं विचार सार की वृत्ति ( १४००० श्लोक० ११७१) आगमिक निशीय चूर्णि (जिनदास) की विशोद्देशक व्याख्या ११७३ श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र की वृति १२२२ नंदी टीका दुर्गपद व्याख्या, सुखबोधा सामाचारी, जीतकल्प बृहत् चूर्णि की व्याख्या १२२७ निरयावल को वृत्ति १२२८० वंदनसूत्रवृत्ति, सर्व सिद्धान्त विषमपद व्याख्या, दार्शनिक न्यायप्रवेशक (दिङनाग ) की हारिभद्रीय वृत्ति की पञ्जिका ११६९ www.jainelibrary.org

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