Book Title: Jain Gita
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Ratanchand Bhayji Damoha

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Page 14
________________ ( १२ ) प्रात्मानुभवी मंत भ्रमण करने-करते श्री दि० सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर जी में वो बाबा के दर्शनार्थ पाये, मात्र तीर्थ यात्रा करने । परन्तु हम मध्यप्रदेश वालो का मौभाग्य रहा कि बडे बाबा के चरणों में मन् १९७६ एवं मन् १९७७ मे दो चातुर्माम मानन्द बहुन शालीनता के साथ एव अमृतवाणी की वर्षा के साथ सम्पन्न हुए और इन दो वर्षों में वीनगगी मन की वाणी एवं श्रमणोनम चर्या की हजागे, लाग्यो लोगो ने कुण्डलपुर पाकर मुना पौर देखा । इन दिनी में कुण्डलपुर जी में तो चतुर्थकाल का नजाग देखने वनना था । मा लगता था कि प्राचार्य श्री के चरणों में माग जीवन ममाप्त होव और मम्यक्त्व का प्रकार प्राप्त कर हम अपने मनप्य भय का मफल करे । प्राचार्य श्री को चातुर्माम के बहुन निमत्रण पाते रहते हैं। हम फिर भी पाया है कि प्रगना चातुर्माम भीश्री दि० मिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर जी में ही होगा। नभी दगंन ज्ञानचारित्र की एकता में सम्पन्न हम मन के ममागम मे हम लोग पान्म कल्याण के पथ पर और प्राग स माँगे । श्री दि० सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर जी में हजागे यात्रियों ने पाकर प्राचार्य श्री के प्रवचनों का लाभ लिया है। जिसके कारण ही प्राचार्य श्री जहाँ भी बिहार नग्ने है वहाँ दशनायियों की अपार भीड प्राचार्य श्री के. दगंन करने एव उनके मंह में निकले दा गन्द सुनने को प्राकुलित रहती है। अन्त में बई बाबा में प्रार्थना है कि प्रापकी भान के प्रभाव मे इम पामर का हृदय इतना निमल ही जावे कि उम हृदय में प्राचार्य श्री के चरण कमल नब तक रहे जब तक हम कीट का उद्धार न हो जावे नपा प्रापकी चुम्बकीय शक्ति का इतना प्रमार होव कि प्राचार्य श्री का बिहार कही भी होवे पग्न्त चातुर्माम हर बार कुण्डलपुर जी मे ही हो । इन शब्दों के साथ में इस अनुवाद ग्रन्थ को विद्वानी के हाथो समर्पित करता हूँ। इम भावना में कि इसे पढकर सब लोग प्रात्म-कल्याण के पथ पर अग्रसर होरे पोर ऐमी भावना करता हूँ कि प्राचार्य श्री विद्यामागर जी महाराज बहुत समय नब हमाग पथ प्रदर्शन करते रहे । एक चरण सेवक सिंघई गुलावचद मोह (म.प्र.)

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