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* जैन-गौरव-स्मृतियों ★the
परिस्थिति बड़ी विषम हो गई । उपभोग करनेवालों की संख्या बढ़ती गई और जीवनोपयोगी साधन कम होते गये। ऐसी स्थिति में प्रायः जो हुआ करता है वही संघर्ष, द्वंद्व, लड़ाई-झगड़ा और वैर-विरोध होने लगा। लोगों में संग्रहभावना पैदा हो गई। उन्हें भविष्य की चिंता होने लगी। अतः पहले जो संतोष एवं उदारता की भावना थी वह विलीन हो गई। युगलियों को इस विषम परिस्थिति का सर्व प्रथम अनुभव हुआ अतः वे बड़े परेशान हुए। उन्हें कोई मार्ग नहीं सूझता था। उनके सामने निराशा का घना अन्धकार छा गया था। मानव-जाति का भविष्य घोर संकटमय प्रतीत हो रहा था । उस समय आवश्यकता थी एक महान् कर्मठ नेता की जो तत्कालीन मानव-समाज को उस विषम परिस्थिति से उबार सके। सकल मानव-जाति के सद्भाग्य से सगवान् रिषभदेव उस समय नेतृत्व करने योग्य हो गये थे। नाभिराजा ने अपने सुयोग्य पुत्र रिषभ को सारा नेतृत्व सौंप दिया।
रिषभदेव ने सारी परिस्थिति का सूक्ष्म अध्ययन किया। उनके हृदय में मानव-जाति के प्रति असीम करुणा उमड़ रही थी अतः उन्होंने उसका उद्धार करने का दृढ़ संकल्प किया। इसके लिए उन्होंने दिन-रात एक किया । अपनी कुशलता के द्वारा उन्होंने मानव-जाति को संकट से मुक्त होने के लिए नवीन मार्ग प्रदर्शित किया। उन्होंने मानव-जाति को प्रकृति के आश्रित, ही न रह कर पुरुषार्थ करने का पाठ पढ़ाया । अन्न उत्पन्न करना, वस्त्र पैदा करना, पात्र बनाना, अग्नि का उपयोग करना इत्यादि जीवनोपयोगी विविध साधनों के उत्पादन और संरक्षण के व्यावहारिक उपाय बताये । उन्होंने जनता को घर वनाना, नगर बसाना, व्यापार करना, संतान का पालन-पोषण करना
और विविध कलाओं के आश्रय से जीवन-निर्वाह करना सिखाया। रिषभदेव भगवान् के नेतृत्व में सर्व प्रथम नगरी बसाई गई जो विनीता नाम से प्रसिद्ध हुई । वही विनीता नगरी आगे चल कर अयोध्या के नाम से प्रसिद्ध हुई।
रिषभदेव ने भोगभूमि में पले हुए लोगों को कर्म की शिक्षा दी। उन्होंने पुरुषार्थ का सबक सिखाया। स्त्रियों और पुरुषों को चौसठ और :: . वहत्तर कलाओं का शिक्षण दिया। अक्षर-ज्ञान और लिपि
कर्म-युग का विज्ञान की शिक्षा दी। असि (सस्त्र) मसि (लेखन) और कृषि ... प्रारम्भ के शिक्षण के द्वारा उन्होंने मानव-जाति को उस महान् संकट ....... से उवार लिया । जनता की आवश्यकताएँ अब उसके पुरुषार्थ