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* जैन-गौरव-स्मृतियां
श्री वामा देवी के सुपुत्र थे। गृहस्थदशा में भी आपने विवेक शून्य तापसों से विचार संघर्ष किया और सत्य प्रचार का मंगल आरम्भ किया तत्पश्चात् राजसी वैभव को ठुकरा कर आप आत्म साधना के लिए निग्रन्थ बन गये ।
आपके हृदय में समभाव को स्रोत उसड़ रहा था। साधनावस्था में कमठ ने इन्हें भीषण कष्ट दिये परंतु आप उस पर भी दया का स्रोत बहाते रहे । धरणेंद्र, ने आपकी उस उपसर्ग से रक्षा की तो भी उस पर अनुराग न हुआ। आप- . त्तियों का पहाड़ गिराने वाले कमठ पर नतो द्वेष हुआ और न भक्ति करने वाले धरणेद्र पर अनुराग हुआ। इस प्रकार पाचप्रभु ने अखण्ड साम्यभाव । की सफल साधना की । परिणाम स्वरूप आपको विमल ज्ञान का आलोक प्राप्त हुआ। आपने विश्वकल्याण के लिए चतुर्विध संघ की स्थापना की और . ज्ञान का प्रकाश फैलाया । सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर आप निर्वाण पधारे।
प्रभु पार्श्वनाथ के निर्वाण के बाद उनके आठ गणधरों में से शुभदत्त संघ के मुख्य गणधर हुए इनके बाद हरिदत्त, आर्यसमद्र, प्रभ और केशि " हुए । पार्श्वनाथ के निर्वाण और केशि स्वामी के अधिकार पद पर आने के बीच के काल में पार्श्वनाथ प्रभु के द्वारा उपदिष्ट व्रतों के पालन में क्रमशः शिथिलता आगई थी। इस समय निम्रन्थ सम्प्रदाय में काल प्रवाह के साथ विकार प्रविष्ट हो गये थे। सद्भाग्य से ऐसे समय में पुनः एक महाप्रतापी
महापुरुष का जन्म हुआ, जिन्होंने संघ को नवीन संस्कार प्रदान किये। ये “ महापुरुष थे चरमतीर्थकर, भगवान् महावीर ।
भ० महावीर और उनकी धर्म क्रान्ति
"भगवान् महावीर अहिंसा के अवतार थे, उनकी पवित्रता ने संसार को जीत लिया था।...महावीर स्वामी का नाम इस समय. यदि किसी भी सिद्धान्त के लिए पूजा जाता हो तो वह अहिंसा है।...प्रत्येक धर्म की उच्चता इसी बात में है कि उस धर्म में अहिंसा तत्व की प्रधानता हो । अहिंसा तत्व को यदि किसी ने अधिक से अधिक विकसित किया हो तो वे महावीर स्वामी थे।"-महात्मा गांधी
प्राचीन भारत के धार्मिक इतिहास में भगवान् महावीर प्रवल और सफल क्रांतिकार के रूप में उपस्थित होते हैं। उनकी धर्म क्रान्ति से भारती