Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 112
________________ [ परिशिष्ट सामने पुण्डरीकजी संवत् १६७५ वे शित १३ शुक्र श्रीबहत्खरतरगच्छे सं० सोमजी कारितं श्रीनमिबिम्बं श्रीजिनराजसरि पुरंदर प्रतिष्ठितं श्रेयसे । बिम्ब १२ तिणमें ३ बाहिरे मंडोरीया ( श्रीजिनमहेन्द्रसरिजी) प्रतिष्ठि। १५ बिम्ब इए उरीये में ७ अगला ८ मंडोरिये घरा है। नीचे में, संवत् १६७५ वैषाख शुदि १३ शुक्र प्राग्वाटज्ञातीय सं० साइया भार्या नाकू पुत्र सं० नाथा भार्या नारिंगदें पुत्र सूरजीकेन श्रीश्रेयांस बिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं च खरतरगच्छाधिराज युगप्रधान श्री जिनसिंहसूरिपट्टाहर्यक्ष प्रत्यक्ष वा० सुविहितपक्ष लब्धश्री अम्बिकाबर भट्टारक प्रवर श्रीजिनराजसरिजी श्रेयसे परिकर है ।।।। २१ बिम्ब उण ओरिये में। मंडोरीये १, और २ चरणपट्टपाषाणना है। संवत १६७५ वैषाख सित १३ शुक्र श्री प्रारवाट जातीय सं० साइया मार्या नाकू पुत्र सं० नाथा भार्या श्री नारंगदे पुत्ररत्न सं० सूर जीन्न श्रीमुनिसुव्रतबिम्बं कारितं.......... बृहत्खरतरगच्छे श्री जिनराजसूरि राज्ये...........। ___ स्वस्ति श्रीपालीताणा शुभस्थाने सर्व उपमालायक गुरांजी श्री १०८ श्री हीराचंदजी मोतीचंदजी माणकचंदजी सपरिकरान श्री उदयपुर थी लि० साह जोरावरवरमल्ल चांदणमल्ल की वंदना १०८ वार यांचज्यो तथा समाचार वांचज्यौ बीकानेर वाला पूरब के संघ साथे जात्रा करण आये है सो इणारी विध विवहार समेलो इत्यादि न करावणो। श्रीजिनहर्षसूरिजी से वचन आज्ञा याद राखने काम कारजौ। थे सामधर्मी हो तिणसे लिख्यो है, और मिन्दरजी की प्रतिष्ठा थे करजो, पिण इणरे हाथे काम होवे सो मतां करजो, थे "Aho Shrut Gyanam"

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