Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 118
________________ १.] [ परिशिष्ट प्रतिमा काली है । मूलनायक प्रतिमा से जीमणा पासे पाला में यक्ष है, पासे पगला है । "अन्चलगच्छे प्रतिष्ठितं"। मन्दिरनी भमती माहै प्रतिमा ५ है। ओर पबासण खाली है,। रायणरे आगे मन्दिर है ३ मन्दिर १ नेमनाथजीनो प्रतिमा श्याम है । रहीनामो लिखत नहीं है। २ रायण आगे दूजो मंदिर है संवत् १६८८ वर्षे माघवदि पू पाटण नगर वास्तव्यः समृद्धि सूरमल कारितं कुंथुनाथ बिम्बं..."श्रीसुमतिसागरसूरिभिः । बिंब १ नानो चूने मे ढका है। रायणनीचे पगला श्रीऋषभदेवजी ना पादुकां, प्रभुना पादुकानै पासे देहरी ६ खाली है। छीपावसी मां वडता डाने पासे मंदिर १ तहाँ प्रतिमा ३ आदिनाथ जी भूल" में नहीं है। छीपावासी मे पड़ता डावे पासे मंदिर दूजो। "संवत् १६८८ वर्षे माघ सुदि ६शुक्र सागरगच्छे श्रीकल्याणसूरिराज्ये सा० नानजी पुत्र मदन कारितं प्रतिमा एक श्वेत । संवत् १६८८ वर्षे माघ सुदि ६ शुक्र सा० सूरचंद घुत्र लालचंद कारितं श्री युगमंधर १ बिंब प्रतिष्ठित संविज्ञपक्षीय श्रीसुमतिसागर सूरिभिः । हेमावसीनी विगत मूलमंदिर नन्दीश्वर द्विपरो है । देहरे पर चौमुख है। बीच में मेरु है। संवत १८०३ माघसुदि १० बुध राजनगरवास्तव्यः उसवाल ज्ञातीय सा. हेमाभाई प्रेमाभाई कारापितं प्रतिष्ठितं सागरगच्छे शान्तिसागरसूरिभिः ॥ "Aho Shrut Gyanam"

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