Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 126
________________ १८ ] [ परिशिष्ट प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीर देवपट्टपरंपरायात् श्रीजिन उद्योतनसूरि श्री वर्द्धमानसूरि वस्तिमार्गप्रकाशक इत्यादि शास्त्र...........घूरि शृङ्गारक सकलभट्टारक पुरंदर बन्दारक जंगम-युग-प्रधान श्री जिनहर्षसूरीश्वर विजयर राज्ये बृहत्खरतरगच्छे वा० कनकशेखर जी तत् शिष्य पं० जयभद्रजी तत् शिष्य पं० देवचन्द्र ेण प्र० ॥ E उहां सेती गु० टोडरमलजी तारा बन्द आए थे । अयं प्रशस्ति । चौमुखी में वडतां बडी पोल आगे है। चौमुखजी तथा पुंडरीकजी री विगती लारले पानेमे है सो देखलेणी | पुण्डरीकजी से डावे पासे लेई जीमणे पासेस' धीरी विगत लिखे हैं । पुण्डरीकजी गणधर पादुका देहरी ३ है । सम्वत १७८४ वर्षे मगसिर वदि ५ दिने श्रीमालज्ञातीय खुशालचन्द्र भार्या वाइमावा कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे उपाध्याय श्री दीपचंद शिष्य पं० देवचंदयुतेः श्री ॥ पासे छोटी देहरी एक चौमुखजीरी, ४ और देहरी पिए है सर्व प्रतिमा १५ देहरी १ में । सम्वत १८६३ माघसित १० बुधौ श्री शान्तिनाथविम्बं कारितं बृहत्खरतरगच्छे मंडोरीयेरी ( श्री जिनमहेन्द्रसूरि ) प्रतिष्ठितं । श्री पालीताणानी तलहटी " संजत गुलाब" एनांव (म) प्रतिमा में हैं । नीचे पटड़ी है- सम्वत १८६६ ना वइशाष मासे कृष्णपक्षे तिथौ ५ गुरुवासरे लखनऊवास्तव्य उसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां ...... लाव गोत्रे महानन्दजी तत्पुत्र सदानन्दजी तत् भार्या बाई कुमारी.... गुलाबरायजी भार्या जूनोबीबी भातृ मेहताबरायजी श्रीविमलाचलोपरिविहार कारितं, गुलाबरायजीन शान्तिनाथजी, जूनोबीबी धर्मनाथजी, महेताबराय सुमतिनाथजी, अमरोबीबी चन्द्रप्रभु गुलाबबीधी ऋषभदेवविम्बं कारापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी शि० पं० देवचन्द्र शिष्य हीराचन्द्र प्रतिष्ठितं । बिम्व ५ है देहरी ३ में है । "Aho Shrut Gyanam"

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