Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અહો રતનાના ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર 300 000000 1000000 -: સંયોજક : શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર શા. વિમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૩૮૦૦૦૫. મો. ૯૪૨૬૫ ૮૫૯૦૪ (ઓ.) ૦૭૯-૨૨૧૩૨૫૪૩ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ II સુરિ રામ-મહોદય-હેમભૂષણ સરિભ્યો નમઃ II “અહો શ્રુતજ્ઞાનમ” ગ્રંથ જીર્ણોધ્ધાર ૧૧૨ જૈન ધાતુ પ્રતિમા લેખ ભાગ-૧ : દ્રવ્ય સહાયક : પૂજ્ય રામચંદ્રસૂરીશ્વરજી મ.સા.ના આજ્ઞાવર્તિની પૂજ્ય સાધ્વીજી શ્રી જયવધનાશ્રીજી મ.સા. તથા પૂજ્ય સાધ્વીજી શ્રી સુરક્ષિતાશ્રીજી મ.સા.ની પ્રેરણાથી વિક્રમ ફ્લેટ શ્રેયસ ક્રોસીંગ પાસે, પાલડી, અમદાવાદની શ્રાવિકા ઉપાશ્રયની જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી - સંયોજક: શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર શા. વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-380005 (મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543 સંવત ૨૦૬૭ ઈ.સ. ૨૦૧૧ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Aho Shrut Gyanam" Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પૃષ્ઠ 238 286 54 007 810 850 322 280 162 302 અહો શ્રુતજ્ઞાનમ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર- સંવત ૨૦૬૫ (ઈ. ૨૦૦૯- સેટ નં-૧ ક્રમાંક પુસ્તકનું નામ કર્તા-ટીકાકાસંપાદક 001 | श्री नंदीसूत्र अवचूरी पू. विक्रमसूरिजीम.सा. 002 | श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी पू. जिनदासगणिचूर्णीकार । | 003 श्री अर्हद्रीता-भगवद्गीता पू. मेघविजयजी गणिम.सा. 004 श्री अर्हच्चूडामणिसारसटीकः पू. भद्रबाहुस्वामीम.सा. 005 | श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं | पू. पद्मसागरजी गणिम.सा. 006 | श्री मानतुङ्गशास्त्रम् | पू. मानतुंगविजयजीम.सा. अपराजितपृच्छा | श्री बी. भट्टाचार्य 008 शिल्पस्मृति वास्तु विद्यायाम् | श्री नंदलाल चुनिलालसोमपुरा 009 शिल्परत्नम्भाग-१ | श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 010 | शिल्परत्नम्भाग-२ | श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 011 प्रासादतिलक श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 012 | काश्यशिल्पम् श्री विनायक गणेश आपटे 013 प्रासादमञ्जरी श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 014 | राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र श्री नारायण भारतीगोसाई 015 शिल्पदीपक | श्री गंगाधरजी प्रणीत | वास्तुसार श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 017 दीपार्णव उत्तरार्ध | श्री प्रभाशंकर ओघडभाई જિનપ્રાસાદમાર્તડ શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલ સોમપુરા | जैन ग्रंथावली | श्री जैन श्वेताम्बरकोन्फ्रन्स 020 હીરકલશ જૈનજ્યોતિષ શ્રી હિમ્મતરામમહાશંકર જાની न्यायप्रवेशः भाग-१ | श्री आनंदशंकर बी.ध्रुव 022 | दीपार्णवपूर्वार्ध श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 023 अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग पू. मुनिचंद्रसूरिजीम.सा. | अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग२ | श्री एच. आर. कापडीआ 025 | प्राकृतव्याकरणभाषांतर सह श्री बेचरदास जीवराजदोशी तत्पोपप्लवसिंहः | श्री जयराशी भट्ट बी. भट्टाचार्य | 027 शक्तिवादादर्शः श्री सुदर्शनाचार्यशास्त्री 156 352 120 88 110 018 498 019 502 454 021 226 640 452 024 500 454 188 026 214 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 028 414 192 824 288 520 578 278 252 324 302 038 196 190 202 | क्षीरार्णव | श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 029 वेधवास्तुप्रभाकर श्री प्रभाशंकर ओघडभाई | 030 શિલ્પપત્રીવાર | श्री नर्मदाशंकरशास्त्री 031. प्रासाद मंडन पं. भगवानदास जैन 032 | શ્રી સિદ્ધહેમ વૃત્તિ વૃતિ અધ્યાય પૂ. ભવિષ્યમૂરિનમ.સા. 033 श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्यायर पू. लावण्यसूरिजीम.सा. 034 | શ્રીસિમ વૃત્તિ ચૂક્યાસ અધ્યાય છે પૂ. ભાવસૂરિનીમ.સા. 035 | શ્રસિહમ વૃત્તિ ચૂદાન અધ્યાય (ર) (૩) પૂ. ભવિષ્યમૂરિનીમ.સા. 036 | श्री सिद्धहेम बृहद्वृति बृहन्न्यास अध्याय५ पू. लावण्यसूरिजीम.सा. | 037 વાસ્તુનિઘંટુ પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા તિલકમન્નરી ભાગ-૧ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 039 | તિલકમન્નરી ભાગ-૨ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 040 તિલકમઝરી ભાગ-૩ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી સપ્તસન્ધાન મહાકાવ્યમ પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી 042 સપ્તભીમિમાંસા પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી ન્યાયાવતાર સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) 045 | સામાન્ય નિયુક્તિ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) 046 | સપ્તભળીનયપ્રદીપ બાલબોધિનીવિવૃત્તિઃ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 047 વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટીકા શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી 048 | નયોપદેશ ભાગ-૧ તરકિણીતરણી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી નયોપદેશ ભાગ-૨ તરકિણીતરણી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 050 ન્યાયસમુચ્ચય પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 051 સ્યાદ્યાર્થપ્રકાશઃ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ પૂ. દર્શનવિજયજી 053 | બૃહદ્ ધારણા યંત્ર પૂ. દર્શનવિજયજી જ્યોતિર્મહોદય સં. પૂ. અક્ષયવિજયજી 041. 480 228 043 6o 044 218 190 138 296 2io 049. 274 286 216 052 532 13 112 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પાદક | પૃષ્ઠ ! 160 202 48 322 અહો શ્રુતજ્ઞાનમ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર- સંવત ૨૦૬૬ (ઈ. ૨૦૧૦ - સેટ નં-૨ ક્રમ પુસ્તકનું નામ ભાષા કર્તા-ટીકાકા(સંપાદક 055 | श्री सिद्धहेम बृहद्वत्ति बूदन्यास अध्याय-६ पू. लावण्यसूरिजीम.सा. 296 056 | विविध तीर्थ कल्प पू. जिनविजयजी म.सा. 057 | भारतीय हैन श्रम संस्कृति सने मना शु४. पू. पूण्यविजयजी म.सा. 164 058 | सिद्धान्तलक्षणगूढार्थ तत्त्वलोकः | सं श्री धर्मदत्तसूरि । 059 व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका श्री धर्मदत्तसूरि 0608न संगीत राजमाता | . श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी 306 061 चतुर्विंशतीप्रबन्ध (प्रबंध कोश) | श्री रसिकलाल एच. कापडीआ | 062 व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय सं श्री सुदर्शनाचार्य 668 | 063 चन्द्रप्रभा हेमकौमुदी पू. मेघविजयजी गणि 516 064 विवेक विलास सं/J. | श्री दामोदर गोविंदाचार्य 268 065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध सं पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा. 456 066 सन्मतितत्त्वसोपानम् |सं पू. लब्धिसूरिजी म.सा. 0676शमादा ही गुशनुवाई | गु४. पू. हेमसागरसूरिजी म.सा. 638 068 मोहराजापराजयम् सं पू. चतुरविजयजी म.सा. 192 069 | क्रियाकोश सं/हिं श्री मोहनलाल बांठिया 428 070 | कालिकाचार्यकथासंग्रह सं/J. श्री अंबालाल प्रेमचंद | 071 सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका सं. श्री वामाचरण भट्टाचार्य | 308 072 | जन्मसमुद्रजातक सं/हिं श्री भगवानदास जैन 128 073| मेघमहोदय वर्षप्रबोध सं/हिं श्री भगवानदास जैन 532 0748न सामुद्रिनi iय jथी J४. श्री हिम्मतराम महाशंकर जानी 0758न यित्र इल्पद्र्भ साग-१ ४४. श्री साराभाई नवाब 374 420 406 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 076 | જૈન ચિત્ર કલ્પનૂમ ભાગ-૨ સંગીત નાટ્ય રૂપાવલી 077 078 ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પસ્થાપત્ય 079 શિલ્પ ચિન્તામણિ ભાગ-૧ 080 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૧ 081 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૨ 082 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૩ | 083 | આયુર્વેદના અનુભૂત પ્રયોગો ભાગ-૧ 084 કલ્યાણ કારક 183 વિધઓપન જોશ 086 087 188 હસ્તસીવનમ્ કથા રત્ન કોશ ભાગ-1 કથા રત્ન કોશ ભાગ-2 089 એન્દ્રચનુવિંશતિકા 090 સમ્મતિ તર્ક મહાર્ણવાવતારિકા ગુજ. ગુજ. ગુજ. ગુજ. ગુજ. ગુજ. श्री साराभाई नवाब श्री विद्या साराभाई नवाब श्री साराभाई नवाब સં. श्री मनसुखलाल भुदरमल श्री जगन्नाथ अंबाराम श्री जगन्नाथ अंबाराम श्री जगन्नाथ अंबाराम पू. कान्तिसागरजी श्री वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री ગુજ. ગુજ. ગુજ. सं./ हिं श्री नंदलाल शर्मा ગુજ. ગુજ. સં. સં. श्री बेचरदास जीवराज दोशी श्री बेचरदास जीवराज दोशी पू. मेघविजयजीगणि पू. यशोविजयजी, पू. पुण्यविजयजी आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी 238 194 192 254 260 238 260 114 910 436 336 230 322 114 560 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार पृष्ठ 272 92 240 93 254 282 95 118 466 संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार-संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची।यह पुस्तके वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। क्रम पुस्तक नाम कर्ता/टीकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक |91 स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-२ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-३ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-४ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-५ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना 96 पवित्र कल्पसूत्र पुण्यविजयजी सं./अं साराभाई नवाब 97 समराङ्गण सूत्रधार भाग-१ | भोजदेवसं . टी. गणपति शास्त्री समराङ्गण सूत्रधार भाग-२ भोजदेव टी. गणपति शास्त्री 99 . | भुवनदीपक पद्मप्रभसूरिजी सं. वेंकटेश प्रेस | 100 | गाथासहस्त्री समयसुंदरजी सं. सुखलालजी भारतीय प्राचीन लिपीमाला गौरीशंकर ओझा हिन्दी मुन्शीराम मनोहरराम 102 शब्दरत्नाकर साधुसुन्दरजी हरगोविन्ददास बेचरदास 103 | सुबोधवाणी प्रकाश न्यायविजयजी सं./गु हेमचंद्राचार्य जैन सभा 104 लघु प्रबंध संग्रह जयंत पी. ठाकर ओरीएन्ट इस्टी. बरोडा 105 | जैन स्तोत्र संचय-१-२-३ माणिक्यसागरसूरिजी आगमोद्धारक सभा 106 | सन्मतितर्क प्रकरण भाग-१,२,३ सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी सन्मतितर्क प्रकरण भाग-४,५ सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी 108 | न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका सतिषचंद्र विद्याभूषण एसियाटीक सोसायटी 342 98 362 134 70 101 316 224 612 307 250 514 107 454 354 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 जैन लेख संग्रह भाग - १ जैन लेख संग्रह भाग - २ जैन लेख संग्रह भाग - ३ जैन धातु प्रतिमा लेख भाग-१ जैन प्रतिमा लेख संग्रह पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाह कांतिसागरजी दौलतसिंह लोढा विशालविजयजी विजयधर्मसूरिजी राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह प्राचिन लेख संग्रह - १ बीकानेर जैन लेख संग्रह प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग - १ प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग-२ गुजरातना ऐतिहासिक लेखो - १ गुजरातना ऐतिहासिक लेखो -२ गुजरातना ऐतिहासिक लेखो -३ ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. पी. पीटरसन इन मुंबई सर्कल-१ अगरचंद नाहटा जिनविजयजी जिनविजयजी गिरजाशंकर शास्त्री गिरजाशंकर शास्त्री गिरजाशंकर शास्त्री ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. पी. पीटरसन इन मुंबई सर्कल-४ ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. पी. पीटरसन इन मुंबई सर्कल कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत इन्स्क्रीप्शन्स विजयदेव माहात्म्यम् पी. पीटरसन जिनविजयजी सं./ह सं./हि सं./ह सं./हि सं./ह सं./गु सं. गु सं./ह सं./हि सं./ह सं. गु सं./गु सं./गु अं. अं. अं. सं. पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार अरविन्द धामणिया यशोविजयजी ग्रंथमाळा यशोविजयजी ग्रंथमाळा नाहटा धर्स जैन आत्मानंद सभा जैन आत्मानंद सभा फार्बस गुजराती सभा फार्बस गुजराती सभा फार्बस गुजराती सभा रॉयल एशियाटीक जर्नल रॉयल एशियाटीक जर्नल रॉयल एशियाटीक जर्नल भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपार्टमेन्ट, भावनगर जैन सत्य संशोधक 337 354 372 142 336 364 218 656 122 764 404 404 540 274 414 400 320 148 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु-प्रतिमालेख (प्रथम भाग) सम्पादकमुनि कान्तिसागर "Aho Shrut Gyanation Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जिनदत्तसूरिप्राचीन पुस्तको द्वारफण्ड, जैन धातु - प्रतिमालेख प्रथम भाग संग्राहक और संपादक शान्तमूर्ति परमपूज्योपाध्याय मुनि श्रीसुखसागरजी महाराज के शिष्यरत्न:मुनि कान्तिसागर प्रकाशक--- -d जबलपुर निवासी गोलेच्छा कुलोत्पन्न स्वर्गीय श्रेष्ठिवर्य बन्धुद्वय प्रतापचन्दजी धनराजजी के परिवार द्वारा प्रदत्त द्रव्य सहाय्य से वीर निर्वाण सं २४७६ 111 मंत्री, श्रीजिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार सूरत प्रथमावृत्ति ५०० प्रयांक ६० ईस्वीसन् १६५० "Aho Shrut Gyanam" { विक्रम संवत् २००७ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्ति स्थान श्रीजिनदत्तमरि ज्ञानभंडार शीतलबाड़ी, गोपीपुरा सूरत, (उत्तर गुजरात) प्रतापचन्द धनराज गोलेच्छा सदर बाजार जबलपुर, (मध्यप्रान्त) सम्पतलाल मूलचन्द गोलेच्छा, कटनी। सुरक(१) जोरावरमल जैन प्रतिभा प्रिंटिंग प्रेस ३६६ सराफा, जबलपुर म०प्र० (पृष्ठ १ से ६४ तक) (२) एन० एल० जैन चन्द्रकान्ता प्रिंटिंग वर्क्स ४५२ गांधीगंज. जबलपुर म०प्र०) ( प्रावरण से प्रस्तावना पर्यन्त ) (पृष्ठ ६५ से ८० तक) "Aho Shrut Gyanam" Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. किंचित् प्रास्ताविक श्रमणसंस्कृति-- भमएसंस्कृति का अतीत अत्यन्त उज्ज्वल और प्रेरणाप्रद रहा है। मानव-पवित्रता की रक्षा के लिये इस जनतन्त्रमूलक संस्कृति ने कितना भारी वर्ग संघर्ष किया है, कितनी यातनाएं सही, यह तो इसका इतिहास ही बतायेगा, निवृत्तिमूलक प्रवृत्ति द्वारा इस परंपरा ने भारतीयसंस्कृति और सभ्यता के मौलिक स्वरूप को संकटकाल में भी, अपने आपको होमकर, सुरक्षित रखा। भारतीय नैतिकता और परंपरा की रक्षा, श्रमण एवं तदनुयायी वर्ग ने भलीभांति की। उसमें सामयिक परिवर्तन और परिवर्द्धन कर जानतिक सुख शान्ति को स्थिर रखा, मानव द्वारा मानव शोषण की भयंकर रीतिका घोर विरोध कर, समत्व की मौलिक भावना को अपने जीवन में मूर्तरूप देकर, जन-जीवन में सत्य और अहिंसा की प्रतिष्ठा की। कला और सौन्दर्य द्वारा मानव परंपरा के उच्चतर दार्शनिक भावों को छैनी एवं तूलिका के सहारे रूपदान दे-दिलवाकर भावमूलक विचारोत्तेजक परंपरा का संरक्षण किया । निर्दोष, बलीष्ठ और प्रगतिशील साहित्य की सृष्टि कर न केवल तत्कालीन जन-जीवन उभयन में महत्वपूर्ण योग ही दिया अपितु सामाजिक और लोकसंस्कृति के बहुमूल्य सिद्धान्तों एवम् भारतीय इतिहास विषयक साधनों में उल्लेखनीय अभिवृद्धि की । अनुभवमूलक ज्ञान दान से राष्ट के प्रति जनता को जागृत किया, आध्यात्मिक विकास के साथ साथ समाज और राष्ट्र को भी उपेक्षित न रखा । ज्ञानमूलक प्राचारों को अपने जीवन में साकार कर जनता के सामने चरित्रनिर्माण विषयक नूतन आदर्श उपस्थित किया, और गत्मिक साधना में प्राणीमात्र को समान अधिकार दिया । मानवकृत * त्व नीचत्व की दीवारों को समूल नष्टकर प्रखण्ड मानव संस्कृति का सामर्थन किया। इन्ही कारणों से शताब्दियों तक भमासंस्कृति की धारा अखंडरूप से वही और बह रही है । सामाजिक शान्ति के बाद उनका अन्तिम साध्य था मुक्ति । "Aho Shrut Gyanam" Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ख ] श्रमणसंस्कृति का क्रमबद्ध इतिहास आज हमारे सम्मुख नहीं है, परन्तु इस विषय के साधन ही हमारे यहां नहीं हैं, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता । कारण कि, पुरातन ग्रन्थभंडारों में और शिला व ताम्रपत्रों पर खुदी हुई लिपियों में इतिहास के तत्त्व भरे पड़े हैं । हमारी असावधानी या औदासिन्य मनोवृत्ति के कारण बहुतसी सामग्री तो नष्ट हो चुकी और दैनन्दिन नष्ट होती ही जा रही है । समाज ने अपने ऐतिहासिक साधनों पर बहुत ही कम ध्यान दिया है । ऐसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक साधन सामग्री में प्रतिमालेखोंकी उपयोगिता सर्वविदित है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में फैले हुए जिनमन्दिरों में ये साधन बिखरे पड़े हैं। इन्हीं में श्रमण-परम्परा का इतिहास छुपा हुआ है। ऐसी लेखयुक्त मूर्तियों को अध्ययन की सुविधा के लिए, हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं,-प्रस्तर मूर्ति और धातु मूर्ति । सापेक्षतः धातुमूर्तियाँ ही अधिक मिलती हैं। प्रस्तर प्रतिमाएँ भी सलेख रहती हैं, पर उनकी संख्या सैकड़ों की ही समझनी चाहिए । जब १० वीं शती के बाद की बहुत ही कम ऐसी धातु प्रतिमाएं मिलेंगी जो सलेखे न हो । अतः श्रमणों की परंपरा और जाति, कुलों, नगरों का इतिहास जानने के लिए धातुमूर्तियों पर खुदे हुए लेखों का गंभीर अध्ययन वांछनीय है। यद्यपि इस विषय पर प्रकाश डालने वाली सामग्री भिन्न-भिन्न विद्वानों द्वारा संग्रहीत हो पर्याप्त प्रकाश में आ चुकी है, परन्तु अभी भी बहुतसी सामग्री अंधकार के गर्भ में है। जब तक इस .प्रकार के सभी साधन हमारे सामने नहीं आ जाते तब तक स(गीय इतिहास की कल्पना संभव नहीं । धातुप्रतिमाओं के लेखों की चर्चा करने के पूर्व कलाकी दृष्टि से धातु मूर्तियों का क्रमिक विकास जान लेना श्रावश्यक है। धातु मूर्तियाँ अद्यावधि प्राप्त प्राचीन जैनप्रतिमाओं में प्रथम कोटि की प्रतिमा प्रस्तर की ही हैं । सर्व प्रथम कलाकारों ने भाव प्रकाशन के माध्यम स्वरूप प्रस्तर को ही उपयुक्त समझा था। __ कलाकार प्रारमस्थ सौंदर्य को कल्पना के सम्मिश्रण से उपादान द्वारा रूप प्रदान करता है। इसमें उपादानों की अपेक्षा आन्तरिक भावों की ही प्रधानता रहती है। तात्पर्य कि किसी भी प्रकार के माध्यम द्वारा, यदि कलाकार में सौंदर्य-दर्शन एवं प्रदर्शन की उत्कृष्ट क्षमता है, तो वह व्यक्त "Aho Shrut Gyanam" Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ग ] कर देगा। जैनाश्रित कलाचार्यों ने यही किया है। समस्त जैनाश्रित शिल्पकृतियों पर दृष्टिपात करने से विदित होता है कि सभी प्रकार के उपादानों का उपयोग कलाकारों ने भावों के व्यक्तिकरण में सफलतापूर्वक किया है । प्राप्त प्रतिमाओं के आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि सर्व प्रथम मूर्ति निर्माण में काष्ठ-प्रस्तरादि का उपयोग हुश्रा । पर काल परिवर्तनशील होता है । कलाकार भी सामयिक उपादानों की उपेक्षा नहीं कर सकता। गुप्तकाल में मूर्ति निर्माण विषयक कला उन्नति के शिखर पर थी। इस युग में धातु की ढली हुई मूर्तियाँ प्रचुर परिमाण में बनती थीं। इस युग में जैन मूर्तियाँ भी धातु की बना करती थीं। यद्यपि इस काल की जैनप्रतिमाएँ बहुत ही कम उपलब्ध होती हैं, पर जो भी हैं, वे तात्कालिक कला का प्रतिनिधित्व कर सकती है । गुप्तकालीन एक जैनधातुप्रतिमा सोनागिरि में थी, जो अब भारतकलाभवन में सुरक्षित है। मेरे विनम्र मतानुसार यही, उपलब्ध जैन धातुमूर्तियों में सर्व प्राचीन है। इसके बाद गुजरात की उन मूर्तियों का स्थान प्राता है जिन पर डा० हीरानन्द' शास्त्री, साराभाई। नवाब, डा० एच० डी० सांकलिया श्रादि विद्वान प्रकाश डाल चुके हैं । सातवीं शती तक की सलेख मूर्तियों में इन मूर्तियों का अपना स्वतंत्र स्थान है। प्राचीन धातुप्रतिमाओं की कला से ज्ञात होता है कि उन दिनों वे प्रायः अपरिकर ही बनती थीं। अति प्राचीन प्रस्तरोत्कीर्ण मूर्तियों के व्यापक भाव सूचक परिकर का प्रभाव उन पर नहीं है। लेख लिखने की पृथा भी व्यापक नहीं थी। इसी कारण मूर्ति का पृष्ठ भाग भी उतना साफ नहीं बनता था। परन्तु कला और सौन्दर्य की दृष्टि से इन प्रतिमाओं का महत्व सर्वोपरि है शरीर रचना, सौष्ठव और विन्यास कलाकार की दीर्घकालव्यापी साधना का परिचय देता है । मुखमण्डल पर शान्ति की आभा परिलक्षित होती है। इनकी प्रभावशाली रचना एवं कुछेक उपकरण तो जैनाश्रित मूर्तिकला में अभिमान की वस्तु है। गुप्तकाल से १९ वीं शती की प्रतिमाओं को एक ही भाग में रखना उचित है । इस युग की जितनी भी धातुप्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं उनका १-रिपोर्ट ऑफ दि श्रार्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ बरोरा स्टेट, १६३७-८ । २-भारतीय विद्या वर्ष १, अं० २ ॥ ३-बुलेटिन ऑफ दि डेक्कन कॉलेज रिसर्च इन्स्टिट्यूट, १९४० मार्च । "Aho Shrut Gyanam" Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 1 ] अपना स्वन्तत्र स्थान है । नवग्रहों का स्पष्ट अंकन भी उस समय आवश्यक था । ऐसी एक प्रतिमा मुझे भी मध्यप्रदेश से प्राप्त हुई थी । इस युग की कुछेक मूर्तियों में लेख भी उपलब्ध हुए हैं, पर वे सामान्य बातों की ही सूचना देते हैं । प्रतिष्ठापक प्राचार्य या मुनि तथा बनवाने वाले प्रावक का नाम और कुछेक में संवत, बस लेख यहीं समाप्त ! इस काल की कृतियों पर मैंने अन्यत्र विस्तार से विवेचन किया है अतः यहां पिष्टपेषण व्यर्थ है। उत्तरवर्ती कालीन जैनप्रतिमात्रों की निर्माण शैली में भारी परिवर्तन हुआ । सम्पुर्ण परिकरयुक्त मूर्तियां ११ वीं शती. के बाद भी मिलती हैं परन्तु उनमें कला तत्व बहुत दी कम रह गया। परिकर का विकास तो हुआ, पर प्रधान प्रतिमा का गौरव कम हो गया, आकर्षकतत्वविहीन प्रतिमा कलाकारों की वस्तु न रहकर धार्मिक वस्तु तक ही सीमित रह गई । पिछला माग पूर्वापेक्षया अधिक स्पष्ट और साफ रहने लगा, और विस्तार से लेख लिखे जाने लगे । संवत, प्राचार्यररंपरा, ग्रहस्थ,नाम शाती, नगर, नक्षत्र, वार श्रादि अनेक ज्ञातव्य बातों का उल्लेख पश्चातवर्ती मूर्तियों में रहने लगा । निर्माण संख्या भी खूब बढ़ी। पश्चिम भारतीय मूर्तियाँ श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध है, दक्षिण की दिगम्बर । परन्तु कला और लेखन शैली का जहाँ तक प्रश्न है श्वेताम्बर अधिक सफल रहे। धातुप्रतिमा के लेखों का महत्व सार्वजनिक इतिहास की दृष्टि से भले ही अधिक न हो, पर श्रमणपरंपरा और समाज विषयक इतिहास की अपेक्षा से महत्वपूर्ण है । जातियों और गच्छों का तथा भारतीय भौगोलिक इतिहास की सामग्री इन्हीं से प्राप्त होती है । सुप्रसिद्ध विद्वान डा० ए० गेरिनाट ने ठीक ही कहा है-- उन शिला लेखों का व जैनों के व्यवहारिक साहित्य का अभ्यास भारतीय इतिहास के.ज्ञान प्राप्त करने में सहाय रूप हो सकेगा। धातु प्रतिमाओं के लेखों से इतना तो कहा ही जा सकता है कि जैन "Aho Shrut Gyanam" Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ छ ] मुनियों में इतिहास के प्रति शुरू से रुचि रही है। ब्राह्मणों की अपेक्षा जैन मुनियों ने इस दिशा में अधिक कार्य किया है। डॉ. गेरिनॉट ने इस १६०५ तक के प्रकाशित लेखों में से ८५. लेखों का प्रमाणिक विवेचन किया। इसमें २२०० वर्षों का जैन इतिहास सुरक्षित है। जैन मूर्तियों के लेखों का संकलन करने वाले विद्वानों में मुनि जिनविजयजी, धर्मसूरिजी, बुद्धिसागरजी, बाबू पूर्णचन्दजी नाहर, अगरपन्दजी नाहटा, भवरलालजी नाहटा, बाबू कामताप्रसाद जैन और बाबू छोटेलाल जैन श्रादि कुछ प्रमुख है। प्रसुत "जैन धातु प्रतिमा लेख" के पीछे भी छोटा सा इतिहास है। इसे देना उचित समझता हूं। १६३६ की बात है, उन दिनों मैं परमपूज्य गुरुमहाराज श्रीउपाध्याय मुनि श्रीसुखसागरजी एवं ज्येष्ठगुरुबन्धु मुनि श्रीमंगलसागरजी महाराज के साथ बम्बई में चातुर्मास व्यतीत कर रहा था। गुजराती जैन साहित्य के प्रकांड पंडित और अध्यवसायी विद्वान् स्व. मोहनलाल दलीचन्द देसाई B. A. LL. B. एडवोकेट, मेरे संग्रह की प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों के अवलोकनार्थ अक्सर पाया करते थे। इतिहास और संशोधन की ओर मुझे मोड़ने वाले दो चार व्यक्तियों में देशाई भी थे। एक दिन प्रतिमालेखों की बात चली पड़ी। देशाई ने कहा कि हम लोग गवेषणा के लिये बाहर जाते हैं तो वहां के मूर्तिलेख वगैरह संग्रहीत कर लेते हैं, पर बम्बई में इतने वर्ष रहने के बाद भी यहाँ का कार्य अभी तक प्रारम्भ ही नहीं कर सके है। मुझे यह बात उसी समय चुभ गई और निश्चय किया कि कम से कम बम्बई के समस्त जिनमंदिरस्थित धातु और प्रस्तर मूर्तियों के लेख ले लिये जाय, यद्यपि उन दिनों लिपि विषयक मेरा शान अत्यन्त सीमित था, परन्तु देशाई और पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्रीजिनविजयजी का सहयोग न मिलता तो मेरा उत्साह वहीं ठंडा हो जाता । मैं लेखों को एकत्र कर उभय विद्वानों को बताता, वे भूले निकालो, फर मैं मूल लेखों से मिलता, इस प्रकार छ: मास में मैंने बम्बई के लेख तो "Aho Shrut Gyanam" Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ E च ] एकत्र कर लिये और मन में निश्चय किया कि बिहार में आनेवाले जैन अजैन सभी धर्मों के लेखों को निष्पक्षपात पूर्वक एकत्र किया जाय। उसी निश्चय का यह फल है। मैंने जहाँ से भी लेख लिये उन स्थानों का उल्लेख निम्न भाग में कर दिया है। संग्रहीत समस्त लेख श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ही हैं। यद्यपि २५० से ऊपर दिगम्बर लेखों का भी मैंने संग्रह किया है पर स्थानाभाववशात उनका उपयोग इस संग्रह में नहीं कर सका। श्वेतांवर लेख भी बहुत से छोड़ देने पड़े। इस संग्रह के अंत में एक दैनन्दिनी (डायरी) को मैंने उद्धत किया है। ऐसी ही छ: दैनन्दिनिये मेरे संग्रह में हैं, जिन में ३०० से ऊपर लेख हैं, पर मैं उनका उपयोग दूसरे भाग में करूंगा! परिशिष्टान्तर्गत लेखों में से बहुतों का प्रकाशन सर्व प्रथम इसी ग्रन्थ के द्वारा हो रहा है। वहाँ पर अाज वर्णित या उल्लिखित लेख मिलते हैं या नहीं यह तो मैं नहीं कह सकता। परन्तु हमारे तीर्थ-मन्दिरों में प्राचीन सामग्री न मिलने का सबसे बड़ा कारण तो यह है कि हम आज शुष्क सौंदर्य प्रेमी हो गये हैं। संगमरमर के मोह ने हमारी बहुत सी प्राचीन शिल्प सम्पत्ति नष्ट कर दी। यही हाल पालीताने में भी हो चुका है। श्राज से १६-२० वर्ष पूर्व की बात है । मेरे ज्येष्ठगुरु बन्द मुनि मंगलसागरजी ने पहाड़ पर जीर्णोद्धार के समय वहाँ के कार्यकर्ता का ध्यान प्राचीनता की रक्षा की ओर आकृष्ट किया था, पर कुछ परिणाम न निकला। हमारी ही असावधानी से हमने बहुत कुछ खोया है और खोते जा रहे हैं। धातुप्रतिमाओं के लेख लेते समय मैंने अनुभव किया कि दिगंबर मूर्तियाँ श्वेतोवर मन्दिरों में पायी जाती हैं और श्वेताम्बर मूर्तियाँ दिगम्बर मन्दिरों में । इसे संगठन का एक प्रतीक ही समझना चाहिये। उभय सम्प्रदायों में मूर्तिनिर्माण कला में पार्थक्य नहीं है, पर दिगम्बर प्रतिमाओं में मैंने परिकर के अग्रभाग में "चरण" और "शास्त्र का प्रतीक देखा है । कुछेक मूर्तियों में गोमट्टस्वामी का आकार भी । लेख लेखन शैली में भी थोड़ा सा अन्तर पड़ता है । धातु की प्राचीन प्रतिमाएँ साम्प्रदायिक मेदों से बिलकुल ऊपर उठी हुई वस्तु है। श्वेतांबर समाज के लेखों के कई संग्रह प्रकाशित हुए पर दिगंबर समाज इतिहास विषयक साधनों पर समुचित रूप से ध्यान नहीं दे रहा है। यदि कोई श्वेतांबर भाई लेख लेने की चेष्टा भी करता है तो वह सन्देहात्मक "Aho Shrut Gyanam" Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ छ ] दृष्टि से देखा जाता है। मुझे इसका अनुभव है। हमारे में वैचारिक उदारता तो बढ़ती जाती है पर सक्रिय औदार्य पनपने नहीं पाता, यही दुर्भाग्य का विषय है। _इस लेखसंग्रह में बम्बई से लगाकर कलकत्ता के बीच में आने वाले मन्दिर स्थित मूर्तियों के लेस हैं जो अद्यावधि अप्रकाशित थे । पुरातत्व संग्रहालयों की मूर्तियोंके लेख अभी प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं । ___ इस संग्रह को प्रकाश में लाने का पूरा श्रेय तो मेरे परमपूज्य गुरु महाराज उपाध्याय मुनि श्रीसुखसागरजी महाराज को है, जिन्होंने जबलपुर-सदर के गोलेच्छा परिवार को उपदेश देकर, इतिहास जैसे शुष्क विषय के साधन को प्रकाश में लाने के लिये आर्थिक सहायतार्थ उत्प्रेरित किया, अतः इस परिवार के, सजनता और सौजन्य की मूर्तिसम श्रावक श्रीसोहनलालजी गोलेच्छा आदि सब भन्यवाद के पात्र हैं। इसे मूर्त रूप देने और हर प्रकार से सुन्दर बनाने में श्रावक श्रीयुत जोरावरमलजी सांड और चन्द्रकान्ता प्रेस के सुयोग्य और सुश्शील व्यवस्थापक श्री 'नीरज" जी जैन ने जिस उत्साह प्रात्मीयता और सजगता का परिचय दिया है, वह प्रशंसनीय है। उन्हें धन्यवाद कैसे दिये जाय ? जपुर के श्रीसंघ के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना भी अनिवार्य ही है जिनके विशेष श्राग्रह से हम सब को रुकना पड़ा और उसने सत्र प्रकार के साधनों को समुचित व्यवस्था की । जैनश्येतोवर धर्मशाला, ५ सराफाबाजार, जबलपुर म०प्र०। ) मुनि कान्तिसागर, ताः २७-१२-५० "Aho Shrut Gyanam" Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Aho Shrut Gyanam" Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय श्रीजिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार-ग्रन्थमाला के महत्वपूर्ण प्रकाशनों से विद्वत्समाज भलीभांति परिचित है। जैन वाङमय की विविध शाखाओं के प्रामाणिक ग्रन्थों का प्रकाशन ही इसका एकमात्र ध्येय रहा है। भारतीय संस्कृति, साहित्य, लोकजीवन, और आध्यात्मिक साधना के पुनीत इतिहास पट पर वेधक प्रकाश डालनेवाले प्राकृत,संस्कृत और देश्यभाषा में गुम्फित दर्जनों ग्रन्थों का प्रकाशन विगत वर्षों में हुआ है ! इन मूल्यवान एवं प्रेरक प्रन्थों की प्रशंसा करनेवाले भारतीयविद्वानों में मुनि श्रीजिनविजयजी (संचालक राजस्थान पुरातत्व विभाग और भारतीय विद्या भवन बम्बई), प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य के परममर्मज्ञ डा० ए०एन० उपाध्ये (प्रो० राजाराम कालेज, कोल्हापुर) डा०बनारसीदास जैन (मूतपूर्व प्रो० ओरियंटल कालेज लाहौर)जैन साहित्य के गंभीर अन्वेषक प्रो० एच० डी० वेलणकर, (प्रो. विल्सन कालेज बम्बई) भारतीय विद्या के तलस्पर्शी विवेचक श्री पी० के० गोडे (क्युरेटर भांडारकर ओरियंटलरिसर्च इंस्टियूट पूना) तथा पुरातत्त्व के प्रकाण्ड पंडित डॉ० हँसमुखलालजी सांकलिया (डेक्कन कालेज रिचर्च इन्स्टिट्यूट पूना) आदि अदि प्रमुख हैं। प्रन्थमाला के मुख्य संचालक और संपादक परमपूज्य स्वर्गीय आचार्य महाराज १००८श्रीजिनकृपाचंद्र सूरीश्वरजी के शिश्यरत्न उपाध्याय पदविभूषित मुनि श्री सुखसागरजी महराज एवं उनके सुयोग्य अन्तेवासी संशोधन प्रिय मुनि श्री मंगलसागरजी महराज हैं, जो मूक रूप से जैन साहित्य और संस्कृति की ठोस सेवा वर्षों से कर रहे हैं। जैन धातुप्रतिमालेख उपाध्यायजी महाराज के शिष्य मुनिकांतिसागरजी की दीर्घकालीन साधना का फल है। १४ वर्ष की अवस्था से ही आपने इस कार्य को प्रारम्भ कर दिया था। जैनइतिहास के निर्माण में प्रतिमालेखों की उपयोगिता अपना स्थान रखती है। आशा है विद्वान इस संग्राहत्मक कृति का समादर कर हमें एतद्विषयक अन्य ग्रन्थों के प्रकाशन का अवसर देंगे। इसके प्रकाशन में प्रतापचंदजी धनराजजी के परिवार में से श्रीसंपतलालजी सोहनलालजी की ओर से ४००) श्री मूलचंदजी २००) तथा श्रीयुत रतनचंदजी लालचंदजी की ओर से २००) सौ रुपयों की सहायता कर ज्ञानवृद्धि के निमित्त बने हैं। मैं आपको हार्दिक धन्यवाद देते हुए अपना वक्तव्य समाप्त करता हूँ। "Aho Shrut Gyanam" Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारे सांस्कृतिक प्रकाशन १ गणधरसार्धशतकां- १८ षट्स्थानप्रकरणम् प्रातरगतप्रकरणम् १६ धन्यशालिमद्रचरित्रम् २ जयतिहुअरणवृत्ति; २० धन्यचरित्रम् ३ दिवालीकल्पः २१ सामाचारीशतकम् ४ प्रश्नोत्तरसार्धशतकम् २२ कल्पसूत्र-कल्पलताव्याख्या ५ विशेषशतकः २३ प्राकृतव्याकरणं ६ संदेहदोलावलीवृन्तिः २४ विधिमार्गप्रपा ७ पंचलिंगिप्रकरणम् . २५ सप्तस्मरणटीका ८ चैत्यवंदनकुलकवृतिः(त्तिः) २६ गाथासहस्त्री ६ अनुयोगद्वारसूत्रमूलं २७ अतिमुक्तकमुनिचरित्रम् १० कल्पद्रुमकलिकाभाषांतर २८ गणधरसार्धशतकवृत्तिः ११ संवेगरंगशाला २६ कल्पद्रुमकलिकाटीका १२ श्रीपालचरित प्राकृत-भाषांतर ३० पुण्यसारकथानकम् १३ द्वादशपर्वव्याख्यानभाषा ३१ पोषधविधिप्रकरणवृत्तिः १४ जीवविचारादि प्रकरणभाषा ३२ चर्चर्यादि अन्धत्रयी १५ कल्याणमंदिरस्तोत्रटीका ३३ नगरवर्णनात्मक प्राचीन हिंदी १६ भक्तामरस्तोत्रटीका पद्य-संग्रह १७ द्वादशकुलकविवरण ३४ संघपट्टकवृत्ति (प्रेस में) प्राप्ति स्थानः-- श्री जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार. शीतलवाड़ी गोपीपुरा, सूरत । "Aho Shrut Gyanam" Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्र परिचय आपका जन्म जोधपुर राज्य के अंतर्गत फलोदी नगर में सम्वत् १९२६ में हुआ। आपके पिताजी सेठ हंसराजजी ने जबलपुर में करीब १२५ वर्ष पूर्व आकर व्यवसाय की नींव डाली। आज भी सेठ हंसराज बखतावरचंद व सेठ प्रतापचंद धनराज के नाम से फर्म प्रसिद्ध है। सेठ धनराजजी आपके लघुभ्राता थे । आपके श्रीसम्पतलालजी और श्रीमूलचन्दजी, ये दो पुत्र हैं। श्रीसम्पतलालजी ज्येष्ठ पुत्र हैं, जिन्होंने एक कुशल व्यापारी के नाते कटनी में पर्याप्त उन्नति की और यह उन्हीं की व्यवसाय कुशलता है कि 'सम्पतलाल मलचंद' फर्म कटनी की प्रसिद्ध फर्मों में है। सेठ धनराजजी के दो पुत्र सेठ श्रीरतनचंदजी और श्रीलालचंदजी हैं। बन्धु युगल वक्ता और समाज सेवी है। सदर के सार्वजनिक जीवन में और धार्मिक कार्यों में इनका योग सदैव एकसा रहता है। इस तरह दोनों भ्राताओं का अच्छा बड़ा कुटुम्ब है सबमें पारस्परिक सद्भावना पूर्ण प्रेमभाव अनुकरणीय है। आप में धर्मानुराग तथा वात्सल्य तो कूट फूटकर भरा हुआ था। श्रीसम्पन्न और इतने प्रतिष्ठित होने पर भी आपका जीवन सादगी से भरा था। असहाय लोगों को आप गुप्त रूप से दान देते रहते थे। मारवाड़ व इधर की धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं में दान की संख्या आपकी ही ऊंची रहती थी। श्रीजिनेन्द्र का पूजन, साधुभक्ति व स्वधर्मी जनों की सेवामें ही आपका जीवन बीता। आपने सहकुटुम्ब सब जैन तीर्थों की यात्रा की थी। जिस समय आपने अट्राई का व्रत किया, उस समय आप.सदर बाजार में जैन मंदिरजी के न होने से, शहर में जो सदर से २ मील दूर पड़ता है, दर्शन करने के लिये वहाँ जाया करते थे। उसी समय आपके दिल में यह भाव 'अंकुरित हुआ कि सदर में भी जिन मंदिरजी का होना आवश्यक है ! श्रापको श्रीगुरुदेव जिनदत्तसूरिजी महाराज पर अटल श्रद्धा थी। आपने उन्हीं का ध्यान किया और इस कार्य में सफल होने की प्रार्थना की। श्रीगुरुदेव का आशीर्वाद उन्हें मिला और सेठसाहब ने उसी समय आगे होकर इस कार्य का सूत्रपात कर दिया। अन्य जैन बन्धुओं की सहायता से सदर में शीघ्र ही "Aho Shrut Gyanam" Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बहुत ही सुन्दर और विशाल जिनमंदिर बन गया। जिसमें श्रीशांतिनाथ भगवान की मूर्ति व श्री गुरुदेव जिनदत्तसूरिजी महाराज के चरण पादुका प्रतिष्ठित कराये। आप प्रतिदिन सबेरे सामायिक प्रभु पूजा करते थे तथा शाम को तिथियों के दिन प्रतिक्रमण किया करते थे। प्रभु दर्शन व आरती भी आपका नित्य का कार्य था। प्रत पचखान भी आप रोज करते थे। इस तरह आपका जीवन धर्म मूलक भावनाओं से ओतप्रोत था। ७२ वर्ष की अवस्था में सम्वत् २००१ में आपका स्वर्गवास हुआ। मृत्यु के एक सप्ताह पूर्व आपने सभी कुटुम्बियों आदि से समता पूर्वक क्षमाभाव प्रकट किया एवं धार्मिक ग्रन्थों के श्रवण और अंतिम समय तक पद्मावतीजीवराशि आराधना का भक्ति पूर्वक श्रवण किया। अन्त में काउसग्ग अवस्था में आपने देहत्याग किया। __ आपके ज्येष्ठ पुत्र सेठ सम्पतलालजी भी परम थर्मानुरागी हैं। जो सज्जनता और विनम्रता की मूर्ति हैं। कटनी में आपको अच्छी लोकप्रियता प्राप्त है। आपके तीन पुत्र है। चि० सोहनलाल, प्रेमचन्द व हेमचन्द । श्री सोहनलाल भीअपने पिता की गुरम परंपरा के प्रतीक हैं। सेठजी के द्वितीय पुत्र सेठ मूलचन्द गोलेच्छा भी बड़े स्वाध्याय प्रेमी व्यक्ति हैं। जबलपुर के सदर बाजार के आप ख्याति प्राप्त व्यापारी हैं। समय समय पर सार्वजनिक कार्यों में आपका सहयोग रहता है तथा आप कई स्थानीय संस्थाओं के पदाधिकारी है। श्रीमूलचन्दजी के दो पुत्र हैं, इन पंक्तियों का लेखक और चिं. ज्ञानचन्द । यहां सेठ साहिब का परिचय कराने का हमारा यही अभिप्राय है कि ऐसे ही आदर्श पुरुष जिनमें सांसारिक संस्कार प्रसंगतः आते हैं और उचित पोषण भी पाते हैं। पर धार्मिक संस्कार जन्मतः साथ हैं तथा उनकी सरल धार्मिक वृत्ति के फलस्वरूप सदा बढ़ते रहते हैं। अपने आसपास का वातावरण शुद्ध सांस्कृतिक बनाकर अपना और दूसरों का कल्याण करने में सफल होते है। -जीवनचंद गोलेच्छा बी. ए. "Aho Shrut Gyanam" Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पणा परमपूज्य ज्येष्ठगुरुबन्धु मुनि श्रीमंगलसागरजी महाराज -जिन्होंने मेरे जीवन की दिशा स्थिर कीके करकमलों में सादर -मुनि कान्तिसागर "Aho Shrut Gyanam" Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Aho Shrut Gyanam" Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || श्री स्थंभन पार्श्वनाथाय नमः ॥ जैन धातु - प्रतिमा लेख res ( १ ) गृहप्रतिमा स्थापिता । सम्वत् १.८०...... ( २ ) ऋषभनाथप्रतिमाऽयं मूलनायक सम्वत् १०८३ ० ० १५ १. गोड़ीजी मंदिर पायधुनि बंबई २. खरतरगच्छीय जैन मंदिर १३६ कोटन स्ट्रीट कलकत्ता । "Aho Shrut Gyanam" Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख सम्वत् ११६४ माघ शुदि १४ पद्मप्रभ सुत......। (४) सम्बत् ११६६ जेठ सुदि १३ शुक्ने नामऽदे...चालापि करापितं । सम्वत् ११९६ वैशाख सु. १० भाडवाचार्यगच्छिय(गकछीय) साध...लाडि पुत्र नमिकुमारेण नि० (बिम्बं) कारितः । सम्वत् १२१० आषाढ़ शुद ६ सोमे श्री सोडएक० जेहल राजिमतिम्या......मित्र प्रतिमा कारिता । दे ६ ...............श्रीपार्श्वनाथमूर्ति .. (९५० १० कारितं.........द्र सूरिभिः । सम्वन १२२५ वैषाख शुदि २ बुधे चतंगकीय साहेप सुत प्रान्त (?) श्रावकेण मु० श्रेयो) श्रीपार्श्वनाथप्रतिमा कारिता ...... पूर्णभद्रसूरिणां । ३. निज दैनन्दिनी से ४. खरतरगच्छीय प्राचीन जैन मंदिर अमरावती ५. जैन मंदिर भीवंड़ी ६. शिखरजी के मुख्य मंदिर में मधुवन ७. गोडीजी मंदिर पायधुनि बंबई ८. शिखरजी के मुख्य मंदिर में "Aho Shrut Gyanam" Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख - - - सम्वत् १०३३ ४० ग्री० मा० वहा नेमिकुमारेण भार्या रतनी श्रेयसे नमिजिनः (बिम्ब कारित)। सम्वत् १२३८......सुदि २......। (११) सम्वत् १२५६ वैषाख शुदि ३ बुधे से (? श्रे०) जेहई सुत सा० बहुदेव......रभंद्वाभ्यां मातराज श्री (? श्रे)योर्य श्रीपार्श्वनाथप्रतिमा कारितं प्रतिष्ठितं देवंदसूरिभिः। सम्वत् १०२७९ वैशाख सुदि ३ प्रतिपालवंशीय श्रे सिंधू सु महं कीलराजेन प्रतिमाकारिता प्रतिष्ठिता श्रीधर्मघोषसूरिभिः......। (१३) सम्वत् १२८६ (वर्षे) वै० सुद ५ शुक्र श्री सरपुनवास्तव्या श्रीमालज्ञातीय श्रे० लाखू सावकुमार भार्या...दे. सया) (श्रेयार्थ) संखीसर(शंखेश्वर )वर्ति श्रीपार्श्वनाथयिम्बं कारापितं प्रतिष्टितं श्रीसरवालगच्छे श्रीवर्द्धमानसूरि शिष्य श्रीजिनेश्वरसूरिभिः । ६. जैन मंदिर भीवड़ी १०. श्रादिनाथ मंदिर पायधुनि, बंबई ११. निज दैनंदनी से १२. जैन मंदिर लालबाग, अम्बई १३. जैन मन्दिर, हींगनघाट (म. प्र.) "Aho Shrut Gyanam" Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (१४) सम्वत् १२६८ वर्षे ज्ये० शुदि १३ सोम कोरंटगच्छे श्रे० लिखा ,सु० पासारणा पुत्र महुदेव सहितेन प्रतिमाकरिता प्रतिष्ठिता श्रीकक्कसूरिभिः । सम्वत् १३००......कक्कसूरिभिः । (१६) सम्वत् १३१६ वर्षे वैषाख सु० ६ रवौ श्रीमालज्ञा० पाल्हा भा (०) पाल्हणेद वितठल्हदे (?) श्रेयसे सुत.........श्रीशांतिनाथवियंकारितं चन्द्रसूरीणामुपदेशेन प्र० स० । सम्बत् १३३६ वे......सोनी जागा पुत्र हंसा......कोल्हण श्रेयसे कारित। (१८) सम्बत् १३४६ चैत्र सुदि १ भोम पित्तकुठार (? ठाकुर) सिंह यसे सुत सांगाकेत(न) श्रीशांतिनाथ विद्य) कारितं प्रतिष्ठितः यशोभद्रसूरि शिष्य विबुधप्रभसूभिः १५. शांतिनाथ जैन मन्दिर भीडी बाजार बंबई १५. आदिनाथ जैन मन्दिर भायखला बम्बई १६. जैन मन्दिर हींगनघाट म. प्र. १७. जैन मन्दिर तपागच्छीय) बालापुर (बगर) १८. जैन मन्दिर (तपागच्छीय) बालापुर बरार) "Aho Shrut Gyanam" Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (१६) सम्बत् १३५६ वर्षे ज्येष्ट शुदि १४ बुधे प्रावाट जा(ज्ञाति) महं सादा सुत महं राजा श्रेयसे सुत महं भालदेव कारितं प्रतिष्ठितंच श्रीआदिनाथबिम्बं......। (नाम मिटा दिया है)। (२०) सम्वत् १३५३ माघ यदि १ श्री शांतिनाथ प्रति० श्रीजिनचन्द्रसरिभिः प्रतिष्ठिता च सा० हेमचन्द्र भा० रतन सुत श्रावकाभ्यां देव (१) लक्ष्मी श्रेयो) । (२१) श्री प्रश्न ३० ६३६८......तिहूअणपाल भार्या रूपल सहिता... पित्रो श्रेयार्थ श्री भानन्द सूरि श्रीहेमप्रभसूरिभिः वृहत्वाच्छेः । (२२) सम्वत् १३६२ (वर्षे) वे० सु० ६ धणसिंह भार्या डाझीकेन पिता महं धणसिंह श्रेयार्थं श्रीसागरचन्द्रसूरिरूपदेशन कारितं । (२३) सम्वत् १३१६ फागुण शुदि : सोमे श्रे० भूणपाल भा० सुहिवदे पुत्र श्री आदिनाथबिंब कारितं प्र० चित्रगन्छे अजितदेवमूरिभिः । १६. निजदैनंदिनी से २०. बड़ा मन्दिर नागपुर २१. ... ... २२ अनन्तवाथ जैन मन्दिर काथा बाजार बंबई २३. प्राचीन जैन मन्दिर लालबाग बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) तिहूणपाल : भार्या रूपल सहिता जैन-धातु प्रतिमा लेख श्री प्रश्न वा० १३६६. ...पित्रोः श्रेयार्थ श्रीश्राणदसूरि श्रीहेमप्रभसूरिभिः बृहद्गच्छेः । ( २५ ) सम्वन १३६६ वर्षे ज्येष्ठ वदि १३ शुक्रे पितृ महं वयजल मातृ जसदे श्रेयार्थं सामतं...ऽ सिंह प्रभृति पुत्रैः ह० साल्हा शांतिनाथ बिम्बं कारापितं प्रतिष्ठापितं च ॥ श्री ॥ ( २६ ) सम्वत् १३७३ वर्षे वैपाख सुदि १२ श्रीश्रीमालज्ञा० भ्रातृ देवसी श्रेयसे... श्रीपार्श्व... प्र. गुणाकरसूरि. ...t (२७) सम्वत् १३७५ प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० आमउं...द्र भार्या रत्नादेव (? वी) पुत्र सहजा देपाल... श्रीशान्तिनाथ... का० हेमप्रभसूरिभिः || प्र० भद्द डहिया । ( २८ ) सम्वत् १३७६ वर्षे अषाढ़ सुदि... गुरौ श्री नाणकाष्ट कर्मसीह भा० रूपदे पुत्र अभयपाल श्रेयसे भ्रातृ रावणेन श्रीपार्श्व का० प्र० सिद्धसेन सूरिभिः । २४. जैन श्वे० मंदिर नागपुर (म.प्र) २५. प्राचीन जैन मन्दिर लालबाग बंबई २६. जैन मन्दिर भाव २७. गोड़ीजी मन्दिर पायधुनि बंबई २८. "Aho Shrut Gyanam" Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख सम्बत् १३८१ माघ वदि १ चन्द्रे श्रावण वाहणसुत जानकेन पितु श्रेयसे श्री शान्तिनाथ (बिषं कारितं) प्रति श्री श्रीतिलकसूरिभिः । १३९१ ........चन्द्रसहिते आत्मश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनदेवमूरिः। यह प्रतिमा पुरानी है, मनोहर है। प्रतिष्ठित प्राचार्य का नाम अाधुनिक लिपि में है। (३१) सम्वत् १३६४ वर्षे वै० सु० ६ पल्लीवाल ज्ञा० धीणा मा० रासल सुत तेजड़ पितृ निमित्तं श्रीपाश्वबिंबं का प्र० कठईया श्रीहरिभद्रसूरिभिः । (३२) सम्बत् १६९४ व. बैसाख वदि ६ शनौ! श्रीश्रीमाल जातीय खूजा भार्या मुहणदे भा० मैइलिक......शांतिनाथ वि० प्र०......... रत्नाकरसूरीणामुपदेशेन। सम्बत् १४०० वर्षे वाय...अर्जुन साभः...पुत्र देडसीहेन पित्रोः श्रेयसे श्रीमहावीर(विंबं) का श्रीगुणचंदसरीणामुपदेशेन प्र० श्रीसरिभिः । २६. प्राचीन मन्दिर धनज (अमरावती) ६०. निज दैनन्दिनी से ३१. जैन मन्दिर मुलुद बंबई ३२, जैन मन्दिर (ब्रह्मचर्याश्रम) चांदवड (नासिक, ३३. प्राचीन जैन मन्दिर लालबाग बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (३४) सम्वत् १४०३ वर्षे वैषाख शुदि पूजकरा (?) ज्ञातीय साह...... पूत पालात्मज सा० सदाकेन प्रात्मश्रेयोर्य श्री पार्श्वनाथस्बिं कारितं प्रति श्रीउकेशगच्छे श्रीकक्कसूरिभिः। (३५) सम्वत् १४०४ वैषाख वदि १३ श्रीमाल ज्ञातीय श्रे० सामा भा० रत्ना श्रेयसे सुत नडलिकन श्रीचन्द्रप्रभविबं कारितं प्र० श्रीनाणचन्द्रसूरिभिः । (३६) सम्बत् १४०५ वर्षे वषाख सुदि ३ .श्रीउपके शगच्छे तातहडगोत्रे सा धरणा...भार्या ब्रह्मादे तहापुत्र संध सा० चाजूकेन सकुटुम्बेन श्रीऋषभानाथ विंबं का. प्र० ककूदाचार्यसंताने काकसरिभिः । (३७) सम्वत् १४१० वर्षे आषाढ़ वदि १३ दिने वपुडारणा गोत्रे कुंडिल सुत देवराज ज्ञानपु०.. पद्मराजयुतेन स्वश्रेयसे श्री......बिम्ब कारितं श्रीसर्बानंदसूरिभिः। ---..-..--------------------... -- ३४. गोड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर पायधुनि बंबई ३५. प्राचीन जैन मन्दिर लालबाग बंबई ३६. नेमिनाथ जैन मन्दिर भीडीवाजार बबई ३७. खरतरगच्छीय बड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता "Aho Shrut Gyanam" Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख ( ३८ ) सम्वत् १४२१ वैषाख वदि ५ महंलू रूपा श्रे० प्रकृतिगाने . सोमलाखण सुत गोहाभ्यां श्रीमहावीरबिमत्रं कारितं श्र० महं... श्रीधर्म तिलकसरीणा प्र० श्री० । ...... : ६ ) भा० सम्वत् १४२२ वैषाख वदि ११ उपकेशज्ञातीय .. श्री पार्श्वपंचतीर्थी कारिता बृहद्गच्छे कपूरदे पुत्र ४ जगसिंह...... महिंदसरिभिः । ܕ ( ४० ) सम्वत् १४२३ वर्षे फाल्गुन शुदि २ प्राचाटज्ञातीय सा० टाठा भा०... तत्पुत्र आल्हा केन पितृमातृश्रेयसे श्री पार्श्वनाथ ......कीय विनयचन्द्रसूरि वीरसिंहस रिभिः । कारापितं ( ४१ ) सम्वत् १४२३ वर्षे फा०सु० श्रीश्रीमाल ज्ञातीय पितृ राणा भा० रानादे पुत्र मेगल - प्रधाभ्यां श्रीवासुपूज्यविव (चित्र कारितं श्रीरशेखरसूरीणामुप० प्रतिष्ठितं श्रीसरिभिः । म (४२ ) सम्बन् १४२३ वर्षे 'फा० सु०६ मोमे... ज्ञातीय पिता ठा हमा ठा० पिता...महा... श्रीशांतिनाथ विका० श्रीहेमरलसूरिभिः नागेन्द्र गच्छे। ३८. प्राचीन जैनमन्दिर लालबाग बंबई ३६. प्राचीन जैनमन्दिर नासिक ४०. शांतिनाथ जैन मन्दिर कोट ब ४१. चिंतामणि पार्श्वनाथ मन्दिर गुलालवाड़ी बम्बई २. जैनमन्दिर पिपलगांव ( नासिक ) "Aho Shrut Gyanam" Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (४३) सम्वत् १४२७ वर्षे ज्ये० शु० १५ गुरौ प्राग्याटजातीय आगमिय वा० डूगर भार्या किल्हणदे सुत सांगा......श्रीमहावारपंचतीर्थी (का: प्रतिष्ठितं। सम्वत् १४३२ वर्षे फागुण शुद २ उपकेशज्ञातीय...साह बीरा भार्या लखमादे पुत्र मामाकेन लघुभ्रातृनिमित्त श्रीपाश्वविवं का० प्र० बाकड़ा (जा) वालगच्छे धर्मसरिभिः । सम्बत् १४३१ वर्षे फाल्गुन शुदि २ शुक्रे श्रीश्रीमान ज्ञातीय कान्हा भा० माणिकदे...केन मातृपितृश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंब कारित प्र० श्रीलक्ष्मीतिलकसरिभिः । (४६) संवत्...१४३४ वर्षे ज्येष्ठ वदि २ गुरौ वर हुडियागोत्र सा. भोजदेव पुत्र.........भार्या सरस्ती श्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथविबं कारितं । इन्द्र(देवाचार्य श्री...सूरिभिः ।। सं० १४३५ महावदि १३ श्रीमालज्ञा० . . . . पराल्हो श्रेयसे भ्रात ताजानिकेन श्रीपार्श्वनाथपंचतीर्थी कारि० श्रीनरप्रभसूरिणामु१० प्र० श्रीसूरिभिः । ४४. शांतिनाथ जैनन्दिर भीड़ी बाजार बंबई ४५. प्राचीन जैनमन्दिर लालबाग बंबई ४३. शांतिनाथ जैनमन्दिर भीड़ीबाजार बंबई ४६. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर तुलापट्टी कलकत्ता ४७. गाडीपार्श्वनाथ का मंदिर पायधुनि बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैन-धातु प्रतिमा लेख (४८) संवत् १४३५ वर्षे वैषाख शुदि ५३ सा० दोदा सुत महीपाल श्रेयोर्थ पंचतीर्थीबिंबं कारितं सा० पद्माकेन प्रतिष्ठितं श्रीजिनरामसूरि भिः) श्रेयोभवतु। (४६) संवत् १४३८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ शनी श्रीश्रांजलिकेन का पन्नी वील्हणदे पुत्र लखमसिंहश्रावकेन श्रीपार्श्वनाथविवं कारित प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः। (५०) संवत् १४४० वर्षे वैषाख शुदि ३ सकालूकेन पितृव्य घेला श्रेयसे शांतिनाथ( विवं ) कारितं प्रति० मलधारि श्रीराजशेखरमूरिभिः । संवत् १४४१ वर्षे फाल्गुण शुदि १ शनौ श्रीश्र मानज्ञातीय श्रादिनाथविवं कारितं प्रतिष्ठित नागेन्द्र श्रीगुणाकर सूरिभिः । (५२) संवत् १४४६ आषाढ़ शुदि २ गुरौ श्रीअंथलगकरे उकेशवंशे गोखरुगोत्रे सा० शल्हण भार्या तिहुश्रणसिरी पुत्र सा० नागराजेन स्वपितुः श्रेयसे श्रीशांतिनाथथि बं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमरिभिः ।। --... .. ४८. दि. जै. म. सिंदी ४६. दिगम्बर जैन मंदिर नांदगांव ( अमरावती) ५०. शांतिनाथ जैन मंदिर कोट बंबई ५१. शांतिनाथ जैन मंदिर कोट चंबई ५५. बड़ा जैनमंदिर तुलापट्टी कलकत्ता . .. ---- .. .---- -- "Aho Shrut Gyanam" Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ जैन-धातु प्रतिमा लेख संवत १४५२ वर्षे वैषाख वदि १ श्रीश्रीमाल ज्ञा० भा० जान्हा भा० जन्हदे सुत वीकम भा० पनणी सु० सांडू भा० पूंजी तथा पितृव्य वांगाक वाहणदे मा० भावाकेन श्रीशांतिनाथमुख्यचतुर्वीशति पट्टकारितं श्री पू० हरिसेणसरिपट्टे धनप्रभसरीणामुपदेशेन का० प्र० श्रीसूरिभिः “पेथड समस्त पूर्वज श्रेयसे" । संवत् १४५३ वैषाख शुदि ५ गाँधीगोत्रे में नानापुत्र सा.... भार्या अमगद श्रे बिंब का. प्र. नल..... मतिसागरसूरिभिः । (५५) संवत् १४५४ व. वैषाख दि ११ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृम० छाड़ा मातृ श्राहिवदेवि म० वद्राग सर्वगोत्रिणां श्रे० म. पांचाकेन श्रीचन्द्रप्रभपंचतीर्थी का० पिपलाचार्य-श्रीगुणासमुद्रसूरोणापट्टे श्रीशांतिसरिभिः । संवत् १४५४ वर्षे महाशुद्धि : शनौ मा .... 'गच्छे श्रीश्रीमालजातीय . . . . 'आदि पंच का. प्र. विजयसिंहसूरिभिः । ---.... ... .. - . ... ... ... ... . -.--.-...-------- ५३. जैनमंदिर कारंजा ( अकोला) ५४. शांतिनाथ जैनमंदिर कोट बंबई ५५. चिंतामणि पार्श्वनाथ जनन्दिर गुलालवाडी बंबई ५६. महावीर स्वामी जैनमंदिर पायधुनि बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (५७) संवत् १४५५ वर्षे वैषाख वदि १० रवौ महं कडूपा सुन वीठाकेन श्रीअम्बकागोत्र कारापितं । संवत् १४५८ जे. शु. गोत्र खइरज हूँबड जातीय श्रे० धारणा भा० सईमल सु- सामनसी भा० साहवा सुत खेतलआत्मश्रेयसे शांतिनाथ (विवं ) प्र. श्रीसूरिभिः । संवत् १४५६ चैत्र वदि १ शनौ प्राग्वाटज्ञातौ श्रे० वीरा० भा० मोहणदे सु० भाडलेन भा० पोमादेसहि (तेन) श्रीसुमति (नाथ) बिम्ब का० प्र० जीरापल्लीयगच्छे श्रीशालिभद्रसूरिभिः । (६०) संवन् १४५६ ज्येष्ठ वदि १२ शनौ सूराणागोत्रे सा० अमर भार्या अहवहदे सुता सा० तोदासाल्हाभ्यां आत्मश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथवित्रं का. प्र. धर्मघोषग० भ० मलयचंदमूरिभिः । संवत् १४५६ वर्ष ज्येष्ठ वदि १३ शनौ प्राग्वाटज्ञातीय श्रे. रवना भार्या लाछलदे पुत्र सांगाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीआदिनाविन्य कारितं प्र. श्री......। ५७. लोंकागरूकीय जैनमंदिर बालापुर (अकोला ५८. आदिनाथ जनमंदिर भायखला बंबई ५६. लोंकागच्छीय जैनमंदिर बालापुर (अकोला) ६०. लोंकागच्छीय जैनमंदिर बालापुर (अकोला) ६१. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर तूलापट्टी कलकत्ता "Aho Shrut Gyanam" Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैन-धातु प्रतिमा लेख संवत् १४५६ वर्षे मासे चैत्र वदि १ उपएसज्ञातीय व्य० देवराज भार्या जम्मादे पुत्र थम भा० फूलदेसहितेन पित्रोमातृश्रेयसे श्रीपद्मप्रभबिम्ब कारितं प्र० ब्रह्माणगच्छे. उदयाणंदसूरिभिः। (६३) संवत् १४५६ वर्षे ज्येष्ठ वदि १३ शनौ प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० खना भार्या लाचलदे पुत्र सांगाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीश्रादिनाविम्बं कारितं प्र० श्री। संवत् १४३१ ज्येष्ठ शु. १० उपकेशज्ञातीय गांधीकशालायां सुदितित (?) गोत्रे श्रे० सहदेव भा० सहजलदे. पुत्र श्रांकन श्रीशांति( नाथ )बिम्ब का० प्र० उकेशगच्छे ककूदाचार्य मंताने भ० श्री देवगुप्तरिभिः। (६५) संवत् १४६३ वर्षे आषाढ़ शु० १० शुक्रे प्राग्वाटजातीय स० साम ( 1 ) सामलादे पुत्र माडलेन भार्या लाख... दाम सहितेन श्रीपार्श्वनाथबिम्बं का. प्र... रत्नपूरीय श्रीसोमदेवसूर पट्टे श्रीधणचन्दसूरिभिः। ६२. खरतरगच्छोय बड़ा मंदिर तुलापट्टी कलकत्ता ६३. निज दैनन्दिनी से ६४. निज दनन्दिनी से ६५. शांतिनाथ जैनमंदिर कोट बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख १५ संवत् १४६५ वर्षे का० ५० ५ गुरौ स० उदेसिंह भा० उत्तमदे सुत वणा मा० वीझलदे श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिम्ब कारितां श्रीपल्लीगच्छे श्रीशांतिसूरिपट्टे श्रीसूरिभिः (मस्तक पीछे “उसवाल ज्ञाति” । संवत् १४६८ वर्षे वैषाख वदि ३ शुक्र श्रीश्रीमाल ज्ञातीय श्रे० देपाल भार्या बोझलदे सुत मांझाकेन भार्या सइम्साहितेन पितृ-मातृ श्रेयसे श्रीशांतिनाथविवं कारितं प्र० पूर्णिमापक्षीय श्रीविद्याशेखरसूरिभिः । (६८) मंवत् १४६८ वर्षे कार्तिक बदि २ सोमे श्रीश्नीमाखज्ञातीय भ० विज भाया बाई गामी तयोः सुत..... श्रीसुविधिनाथविध कारापितं पिनुः श्रेयार्थम् प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः । (६९ संवत् १४६३ वर्षे ज्येष्ठ वदि १२ रवौ श्रीप्राग्वाटज्ञातीय सा० जाल्हा बा० गडरदे सयोः सुनाः सा० हेमा, देवसी, पूना, हेमाकेन स्वमातृश्शेयार्थ शांतिनाथविवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे सोमसुन्दरसूरिपादे। ६६. जैनमंदिर भादक ६७. जैनमंदिर चांदवड ( नासिक ) ६८. जैनमंदिर मनमाड़ ( नासिक ) ६६. अनन्तनाथ जैन दिर काथा बाजार बम्बई । "Aho Shrut Gyanam" Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (७०) सम्बत् १४७३ वर्षे माघ सुदि पांचम (?मी) दिने थलपूरीयगोत्रे सा० गाजा पुत्र सा० मोला.... देवाम्म श्रे श्रीशांतिनाथविध का० प्र० धर्मघोषगच्छे श्रीरत्नसागरसूरिभिः। (७१) सम्वत् १४५८ वर्षे वैशाख सुदि ६ दिने प्रावाटजातीय ५० अता भार्या सरसइ सु० श्रे० लीबा भा० लखमादेउवइ श्रे० वेलायां पागोनराधो (?) देवड़देनामः देव भा० देवड़दे एतैर्विद्यमान निजमातृ श्रीश्रेयांस (नाथ)बिंब कारितं श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः प्रतिष्ठिां । सम्वत् १४७८ वर्षे वै० शु० ६ दिने प्राग्वाटजातीय सा० हाता सु० श्रे० माडण भार्या माणिकदे महगलदे सुत डूगर भा......गरेरण श्रेयसे सुविधिनाश्रबिंब कारिनं प्रतिष्ठित तपागच्छे हेभसुन्दरसूरिभिः । (७३) सम्वत् १४७५ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ रवौ दिने श्रे० र णा भार्या मद्य सुत ठ० नगकेन स्वभगिनीश्रेयो) श्रीपार्श्वन विवं कारित प्रतिष्ठितं श्रीमत्तपागच्छमंडन श्रीसोमसन्दरसूरिभिः । ७०. आदिनाथ जैनमन्दिर भायग्नला बम्बई ७१. महावीरस्वामी जनमन्दिर पायधुनि बम्बई ७२. गाडीजी पार्श्वनाथ जैनन्दिर पायधुनि बम्बई ७३. खरतरगच्छीय बा मन्दिर नृलापट्टो कलकत्तः "Aho Shrut Gyanam" Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (७४) स्वतिश्रीजयाभ्युदय सम्बत् १४८० वर्षे वेषाख वदि ७ शुक्र श्रीमालज्ञातीय स्तम्भतीर्थवास्तव्य संघपति माणिक्य भायी स० वामनाया पुत्र स० सीघाकेन जीवतस्वामि श्रीआदिनाथबिब कारापितं प्रति० श्री...। सम्वत् १४८१ वर्षे वैषाख वदि १२ रवौ उप० ज्ञा० श्रे० साल्हा भा० सीती पुत्र चांपाकेन भा० ल्ह......सहितेन आत्मश्रेयसे पद्मप्रभबिंब का०प्र० ब्रह्माणीयगच्छे उदयप्रभसूरिभिः। सम्बन् १४८३ (वर्षे) वैषाख सु० २ सोमे श्रीमाल ज्ञातीय श्रे० डुगर भा० बा० जइती पुत्र द०... ..धर्माकेन पिता महपितृ श्र. श्रीशीतलनाथबिम्ब का प्र० त्रिभवीटा श्रीधर्मशेखरसूरिभिः । सम्बत् १४८५ वर्षे वै० सुद ६ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ आन्ता मातृ अणपमादेविश्रेयार्थ सुत जेसाग ऋषिताभ्यो नीशांतिनाथबिंब कारापितं श्रीपूर्णिमापक्षे श्रोसाधुरनसरीणामुपदेशेन प्र० विधिना ॥६॥ ७४. जनमन्दिर (चांदवरकर गलो) नासिक ७५. जैन मन्दिर (गांव का) चांदवड़ (नासिक) ७६. शांतिनाथ जैनमन्दिर कोट बम्बई ७७. महावीर जैनविद्यालय बम्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (७८) सम्वत् १४८७ वर्षे. . . . . . . . . 'त्रम................ ज्ञातीय सा० काश्यपगोत्रे..............."माया सोमा............. शीतलनाथबिम्ब प्रति...... सम्वत १४८८ माघ वदि २ शुक्र श्रीवायडजातीय श्रे० लींबा भा चांपलदे सुत सूराकेन भा० सुहवदेस हितेन माताश्रेयसे अजितनाथबिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं भीवात्तापक्षे श्रीजयशेखरसूरिभिः। (८०) सम्वत् १४८६ वर्षे मात्र वदि २ शुक्र श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीअरिवृतेभि गो० श्रीश्रीमा... व गोया भा८ वलादे सुत परमा भा० काउ सुत जीवण मुहण सोवछाभिः पित्रोश्रेयसे श्रीशीतलनाथबिंब का. प्रतिष्ठितं श्रीपमनसूरिभिः। (८१) सम्बत् १४९२ वर्षे वैषाख सुदि ५ कडारागोत्रे सा० सोना पु. वीसल भा० चील्हणदे पु० घणसिंह भा. हेउस० पितृव्य त्रिमूठा पुण्यार्थ श्रीशीतलबिंबं का० प्र० श्रीसंडेरगच्छे श्रीशांतिसूरिभिः । (८२) सम्बत् १४९२ वर्षे श्रीआदिनाथबिंबं प्रति० खरतरगणे श्री जिनभद्रसूरिभिः कारितं कांकरिया सा सोहड भाया हीरादेवो श्राविकया। ७८. शांतिनाथ जैनमन्दिर दादर बम्बई ७६. महावीरस्वामी जैनमन्दिर पायधुनि बम्बई ८८. प्राचीन जैन मन्दिर अमरावती ८१. जैन मन्दिर (गांवका) चाँदवड (नासिक) ८२. गोडीजी पार्श्वनाथ जैनमन्दिर पायधुनि बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख ( ८३ ) सम्बत् १४९३ ज्ये० शुदि १० प्राग्वाट प० अभयसी भा० सलखणदे पुत्र हेमा भा० मही पुत्र प० पाताकेन भा० अधू सुत नाथाद कुटुम्बयुतेन स्वमातृपितृश्रेयसे श्रीसंभवनाथवित्रं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ( ८४ ) सम्वत् १४६५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे ३ ज्ञा० पूर्णिमापक्षे काश्यपगोत्रे सा० उदा भा० काउ पु० कूपाकेन भा० रूपिणि भ्रातु प्र० भोजासहितेन मातृपितृस्वश्रयसे श्रीमुनिसुव्रतविम्बं का प्रय श्री सूरिभिः । ( ८५ ) " सम्वत् १४६५ वर्षे ज्ये० सुदि १४ बुधे उ० ज्ञाः पूर्णिमाप क्षे काश्यप गो० सा० उदा भायी काउ पु० कूपाकेन भा० रूपिणि भ्रातृपु० भोजासहितेन मातृपितृस्वश्रेयस श्रीमुनिसुव्रतत्रिं क'० 身 श्रीसर्वसूरिभिः (-5) सम्वत् १५६६ वर्षे फागु सुदि २ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञानीय मं० कड्या भार्या गडरी पुत्र श्र पर्वतेन भा० अमरीयुतेन श्रीचगच्छेश श्री शीतलनाथविनं मातुश्रेयसे श्रीश्रीजयकीर्तिसूरीणापमदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरसिंह मूरिभिः १६ f ८३ महावीर स्वामी जैनमन्दिर पायधुनि बंबई ८४. जैनमन्दिर कारंजा ८५. ८६. गोडीजी पार्श्वनाथ जैनमन्दिर पायधुनि बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (८७) || सम्वत् १४९६ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १० बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय *० फर्मसी भार्या मटकू सुत गुणीमाकेन श्रीसकुलश्रेयसे कुन्थुनाथबिम्ब कारित प्रतिष्ठित श्रीवृद्धतपापक्षे भ. श्रीज्ञानकल ससूरि पट्टे भोविजयतिलकसूरिभिः ।। श्री: 17 {८८ ___ सम्वत् १४६८ वर्षे फा० सुदि ५ गुरौ श्रीउकेशवंशे वडालिया (१) वरडिया) गोत्रीय सा भीमसिंह सुतं सयामन ......सोमदत्त सहितन तेन श्रीशांतिनाथबिंब का०प्र० श्रोजिन००न्द्रसरिभि.खरतरगच्छे । (८९) सम्बत् १४६६ व० वें वदि १ शनौ ओसवालज्ञातौ सा० गोइंद भा० राजलदे सुते नभो० उलसन (?) पितो श्रे० श्रीआदिनाथबिंब कारिनं प्रतिष्ठितं उकेशगच्छे श्रीदेवगुप्तसरिभिः। संवत् १४६९ फागुण दि ३ गुरौ उपकेशज्ञातीय वरहड़ी सा० पितृश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंब कारित का०प्र० रत्नप्रभमूरिभिः । (६१) संवत् १४६९ फागुण वदि ६ प्राग्वाटवशे कासप ( कश्यप गोत्रे सिद्धपवास्तव्यः म० परबत भा० मेठू सुत समधरेण भा० अमुक मातृज मूलराज केशवसहितनश्रेयसे श्रीआदिनाथविकारितं प्रतिष्ठितं बृहत्तपापक्षे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः । ८७. सम्मेदशिखर मन्दिर मधुवन ८८. जैनमन्दिर शाहपुर (थाना) ८६. शांतिनाथ जैनन्दिर कोट बंबई ६७. गोडी पार्श्वनाथ जैनमंदिर पायधुनि बंबई ६१. गोडी पार्श्वनाथ जैनमंदिर पायधुनि बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख २१ (६२) स्वस्ति संवत् १५ गु० १ वर्षे फागुण शुदि १२ बुधै श्रीमान् महरोलगोत्रे सा० लष ( ? ख । मण भायो ईदा सुत सं० षि ( ? खि) मराजेन सं० महादेवे श्रोअजितनाथविंबं प्र० श्राविजयप्रभार । (६३) संवत् १........ माघ शुदि १० शनौ ऊकेशवंशे घुल्लगोत्रे सा० सांडा० भा० करणू पुत्र सा० जिनन्द्रतेन सं० जगमाल साधु जीवा सा० जोग प्रमुखपरिवारयुतेन स्वभार्याश्नायिकालखमादे पुण्यार्थ श्रीसुविधिनथाबिंब कारापिवं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्धन सूरिभिःपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि पट्टेशः श्रीजिनसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। श्री। संवत् १५०१ वर्षे आषाढ़ शुदि २ प्राग्वाट झा० व्य० उगम भार्या गुरी सुत धर्माकन भार्या लोंबीयुतेन स्वभ्रातृदेवाश्रेयार्थ श्रीआदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीमुनिसुन्दरसूरिभिः ॥ श्रीमहीगल वास्तव्यः । (६५) संवत् १५०१ बर्षे कार्तिक शुदि १५ उकेशवंशे जागोजा गोत्रे सा० देवसी पुत्र विसुश्रा भा० वईजलदे पुत्र मनाकेन माहिम जगल्ला सहितेन आत्मार्थे श्रीसुमतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीपल्लिी (वाल ) गच्छे श्रोशांतिपूरिप? श्रीयशोदेवसूरिभिः । ६२. खरतरगच्छीय बड़ामंदिर तूलापट्ठो कलकत्त । ३. तपागच्छीय जैनमंदिर बालापुर ६४. चन्द्रप्रभजैनमंदिर सेंडहर्स्ट रोड बंबई १५. शांतिनाथ जैनमंदिर भींडीशजार बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (६६) संवत् १५०१ जे० शु० १०.. देपा भार्या देल्हणदे पुत्री हासू श्राविकयाश्रेयोर्थ श्रीअभिनन्दनबिंबं कारितं प्र० तपागच्छे श्रीसोस सुन्दरसूरि ( सोमसुन्दरसूरि ) मुनिसुन्दरसूरिभिः । (६७) संवत् १५०१ वर्षे माघ शुदि ६ गुरौ ऊ० पालडेचागोत्रे साह नील्हा भा०तारादे पुत्र धमा भायो नायकदे पुत्र कुन्भ देपाल सहि । प्रात्म श्रे० श्रीशीतलनाथविः का०प्र० बडा श्रीनायकचन्द्रसूरिभिः । (८) ___ संवत् १५०३ पोषे शु० प्राग्वाटज्ञातीय व्य० वरश्यंग भार्या भरमादे सुत बदरू श्रावकेन भार्या माधू सुत जगा श्रेयार्थं श्रीसंभवनाथविवं कारितं प्रतिष्ठितं तया श्रीजयचन्द्रसूरिभिः। प्तांडरवास्तव्य । ( 66 ) संवत् १५०३ वर्षे माघ शुदि १४ सोमे कुमारदेव्या सुपुण्याय श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं श्रीजाल्लोघरगच्छे भद्ररत्नसूरि माणिकसरिभिः शिष्यैः प्रतिष्ठितं । (१००) संवत् १५०४ वर्षे ज्येष्ठ शुदि हरवौ श्रीकोरंटगच्छे उपकेशज्ञातीय साह सालिंग भार्या मूलयरि पुत्र चांपाकेन भार्या धर्मिणसहितेन पितृमानिमित्तं महावीरबिंबं कारितं प्र० भावदेवसरिभिः । १६. जैनमंदिर इतवारी नागपुर ६७. शांतिनाथ जैन मंदिर दादर बंबई १८. लोंकागच्छीय जैनमन्दिर बालापुर ६६. अनन्तनाथ जैनमन्दिर काथाबाजार बंबई ५००. लोकागच्छोय जैनमन्दिर बालापुर "Aho Shrut Gyanam" Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख संवत् १५०४ वर्षे मा० व० २ सिद्धपूरी श्रे० खेतसी भा० प्रीमी पुत्र श्रे० माईआकेन भार्या जयनो पुत्र कोकादिकुटुम्बयुतेन श्रीसुमतिनाथविंबं कारितं प्रति० तपा जयचन्द्रसरिभिः । संवत् १५०५ वर्षे शुदि ५ रवौ उपकेशवंशे साधुशाखायां सा० धन्ना भा० धनादे पुत्र सा. मंडण सा० पहजाम्यां स्वपितुः श्रेयसे श्रीश्रेयासनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे अजिनसागरसरिभिः । (१०३) संवत् २५०६ वर्षे फागुण दि० ११ रवौ उप० माधरण भा० मदनादे पुत्र पूणाभ्यां चाद पुत्रसहितेन स्वभा......."आंबा अर्जन श्रीश्रीधर्मनाथचिंचं का० प्र० संडेरगच्छे श्रीपशिलप्रभसरिसंगने शांति सरिभिः। . (१०४) संवत् १५०६ श्रीश्रीमालज्ञातीय दोसी डूगर भार्या भ्यापुरी सुत भुंजाकेन भार्या सोही सुत वीकायुतेन आत्मश्रेयसे श्रीसुविधिनाथ चतुर्विंशतिपट्ट आगमगच्छे श्रीअमरसिंहसूरिपट्टे श्लीहेमरत्नसूरिगुरुपदेशन प्रतिष्ठितः गंधार वास्तव्यः । (१०५) संवत् १५०६ वर्षे पौष सुदि ह उसवंशे कांकरिया गोत्रे सं० साइदेव भा० करणू पुत्र सामल भार्या नयणादे पु० श्रीवच्छसहिता प्रात्मपुण्यार्थं श्रीश्रेयांमबिम्बं का प्र० कृष्णार्षिगच्छे श्रीनयचंद्रसरिभिः । १०१. प्राचीन जैनमन्दिर अमरावती १०२. गोड़ी पार्श्वनाथ जैनमन्दिर पायधुनि बंबई १०३. गोड़ी पार्श्वनाथ जैनमन्दिर पायधुनि बंबई १०४. निजदैनन्दिनी से १०५. जैनमन्दिर तूलापट्टी कलकत्ता "Aho Shrut Gyanam" Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (१०६) संवत् १५०७ वर्षे भाद्र सुदि १३ शुके श्रीश्रीमालजातीय स. साल्हा भाछ होलू पुत्र भा० रायवसा "सहिमा" आर्या हावा पकृ. (भृ)ति बांधवे भग्नि (भगिनि ) सल्हाइ पु... .........अत्म श्रेयसे श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्र० चैत्रगच्छे गुणदेवसरिसंताने जिनदेवस रिभिः । संवत् १५०७ वर्षे ज्येष्ठ व० ५ प्रा० प० आका मा० चांपू पुत्र प० वरसिंग वीसलदे भातृ वरसिंग भा० हर्ष पुत्र राजा गोला. सालिग, वासण प्रभृतिकुटुम्बयुतेन स०( स्व श्रेपार्थं श्रीसंभवनाथविवं कारापित उकेश (गच्छे ) श्रोसिंहाचार्यसंताने प्र० श्रीदेवगुप्तसरि श्रीकक कसरिमिः । संवत् १५०७ वर्षे शुक्रे...ज्ञातीय श्रे० लूणा सुत समधर भायों भची नाम्न्या पुत्र हेमादियुतया निजश्रेयोर्थं सुमतिनाथवि कारितं प्र० तपागच्छनायकपोमसुंदरसूरिशिष्य श्रीश्रीरलशे वरस रिभिः । वीकमाणायागे । (१०६) सं० १५०७ प्रा० सा० पाल्हणसी भा० भोट सुत सा० राज्ञान भा० मंदोपरि सुत सीहा कडुन श्रीकुन्थुमपरिकरचतुर्विंशतिपट्टः कारिता प्रतिष्ठितः श्रीसोमसुन्दरमूरिशिष्ये श्रीनशेखरसूरिभिः ।। संवत् १५०७ वर्षे वैषा व सुदि ३ मौमे श्रीश्रीमान्लज्ञातीय श्रेकराजा भा० लाछि सुत देवराज सिद्धराज नाकर तन्मध्य नाकरकेन भा. मृगयतेन स्वपूर्वजश्रेयस श्रीचन्द्रप्रभम्वामीबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीश्रागमगच्छे श्रीमनिरलसरिभिः ।। हांसुट वास्तव्य ।। १०६. महावीरस्वामी जैनमन्दिर पायधुनि बंबई १०७. महावीरस्मामी जुन मन्दिर पायधुनि बंबई १०. शांतिनाथस्वामी जैनमन्दिर भीडा बाजार बंबई १८६. निज दैनन्दिनी से ११०. चन्द्रप्रभस्वामी जैनमन्दिर सेंडहर्स्ट रोड बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख्न ( १११) संवत् १५०८ वर्षे वैषाख शुदि ५ चन्द्र खेता भा० खेतलदे पुत्र ताता विल्हादे पा० खेताकेन डूगरतीनित श्रीधर्मनाथविम्बं का०प्र० चैत्रगच्छ भ० श्रीमुनितिलकसरिभिः । (११२) संवत् १५०८ राणपुरे प्राग्वाट सा० हीरा भा० कमादे पु० केन भा० देवलदे पुत्र देवराजादिकुटुम्बयुतेन श्रीसुपार्श्वनाथ) विम्बं का प्र. तपा श्रीसोमसुदरसूरिशिष्यः रलशेखरसरिभिः ।। श्री॥ संवत् १५०० वर्ष फाल्गुण शुदि ३ गुरौ उसवालज्ञातीय स्तमतीर्थवास्तव्य सा० शिवराज भा० रंगादे सुन राणा मा० काली नाम्न स्वपतिश्रेयसे श्रीशांतिनाथविन्दा कारितं प्रतिष्ठितं बहत्तपापक्ष रत्नसिहसूरिभिः । संवत् १५०६ वर्षे उकेशवंशे, दोशीगोत्रो मं० हूंडा पुत्र सा. परबत भार्ग सांपू तत्पुत्रः सा. पाना चउक्षा धारा सुश्रावके पुत्र गणपति गुणदत्तादिकुटुम्बसहितैः श्रीशांतिनाथविम्ब कारतं प्रतिष्ठित श्रीखरतरगच्छे जिनभद्र पूरिभिः ।। संवत् १५.६ वर्षे माघवदि , भू । भौ मे उपकेश ज्ञा. वृद्धसंताने सा० नाथा भा, नाभलदे सुत कर्मण धर्मण. श्रेवार्थ श्रीश्रादिनाचिम्नं कारितं श्रीचैत्रगच्छ भा वीर देवरिपट्टे श्रीपारसदेवसरिभिः प्रतिष्ठितं सदरडायामे। १११. गोडी पार्श्वनाथ जैनमन्दिर पायधुनि बंबई ११२. जैनमन्दिर भांदक ११४. नेमिनाथ जैनमन्दिर भीडी बाजार बबई ११५. जैनमन्दिर चांदवड़ ( नासिक ) "Aho Shrut Gyanam" Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (११६) संवत् १५०६ वर्षे श्राषाढ़ शुदि १० रवी श्रीमालज्ञातीय श्रेष्टिराधव भार्या रत्नादे सांपू सुत जेसा सा० परसा लिगदला भायो परमादे सुत पुना भाईया राजा, तेजा स्वपूर्विपितृमातृपितृव्यभ्रातपुत्र श्रेयोर्य श्रीआदिनाथविंग कारितं आगमगच्छे श्रीशीलरत्नसीणामुपदेशेन प्रतिष्ठित श्रीसूरिभिः । वडालबी वास्तव्यः । (१५७) संवत् १५०६ माघ सुदि ५ गुरौ दंडाहिदेशे आजउलीग्रामे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय श्रे झीला सुत श्रे० कडुया भा० डाहो सुत श्रे वेला श्रे० लाला लघुभ्राता श्रे० पो...केन भार्या तेजुयुतेन...श्रेयसे श्रीपद्मप्रभबिम्ठी का० प्र० वृहत्तपापक्षे रत्नसिंहसरिमिः ॥ . (११८) संवत् १५०६ (वर्षे ) माघ सुदि ५ प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० आका भार्या धरणू सुत स० कर्मणेन भा० सं० कर्मदेव्यादिकुटुम्बयुतेन निजश्रेयार्थ श्रीश्रीमुनिसुवृतबिम्ब का० प्र० तपागच्छेश श्रीसोमसुंदरिसर शिष्य रत्नशेखरसूरिभिः। (११६) संवत् १५०० माघ उकेश नरपति भा० हेमाई पु० को० पुनरत्न भा० को गना मातृ जाय सा वीरपाल भा० वाळू पुजे जाई नाम्न्या पु. हेमाई युतया श्र मुनिसुवृतबिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं तपा श्रीसोमसुंदरसरि शिष्यरत्न श्रीरत्नशेखरसरिभिः ॥ वेदूर वास्तव्य ।। श्री ॥ ११६. दिगंबर जैनमन्दिर सिन्दी (वर्धा) १५७. महावीरस्वामी जैनमन्दिर पायधुनि बबई २१८. चिन्तामणि पार्श्वनाथमन्दिर गुलालबाड़ी बंबई ११६. जैनमन्दिर घोटी ( नासिक) "Aho Shrut Gyanam" Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन-धातु प्रतिमा लेख (१२०) संवत् १५०९ वर्षे वैशाख सुदि ११ शुक्र श्र.श्रीमान्मज्ञातीय श्रे० धरणिग भा० धांधी तत्पुत्र श्रे० प्रासा भा०सारभ तत्पुत्रम सं मारिसकेन मातुःपुष्पार्थ श्रीशीतलनाथबिंबंकारितं प्रतिष्ठितं श्रीमलधारिगच्छे श्रीश्रीगुणसुन्दरसूरिभिः (१२१) __संवन् १५.०९ वर्षे माघ मासे पंचम्यां तिथौ श्रीकोरंटगच्छे नन्नाचार्य संताने उपकेशज्ञातीय साह धन्ना भार्या गोरी तन्पुत्र सा जावडेन स्वकुटुम्बसहितेन निजमातृपितृश्रेयार्थ श्रीधर्मनाथविंबं का. प्रतिष्ठितं श्रीकक्कसूरिपट्टे सावदेवसूरिभिः (१२२) संवत् १५१० वर्षे माघ सुदि ५ शुक्रे श्री प्राग्वाटज्ञातीय साह झामट सुत मा० धन्धु भार्यारूप सु सूगकेन अमरीकुटुम्बयुतन श्रीसुपाश्वनाथबंध कारितं प्रति तपागच्छे श्रीरत्नशेखरसूरिभिः । धन्धुका वास्तव्यः ॥ (१२३) संवत् १५१० वर्षे ज्येष्ठ शुदि मंत्रिदलयवंशे मुंडतोड गोत्रे सा. रत्नसिंह भार्या वाउ सा. देवसीकेन भार्या माणिक्यदेवी लूगदे भ्रा० मा० सुदासी देवराज पुत्र बाछायुतेन स्वश्रेयोथे श्रीसंभवनाथचिंचं का खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्र सूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरि प्रतिष्ठतं ॥ (१२४) संवत १५.१० वर्षे माप्रशीर शु १० प्राग्वाटजातीय व्य० भांबा भार्या रमादे सुत मेताकेन भार्या भली पुत्र तिला, राणा, गला, पांचादि कुटुम्बयुतेनस्वश्रेयसे श्रीसुमतिनाथविंबं का० प्र० सपा श्रीरत्नशेखर सरिभिः ॥ बोसरण वास्तव्यः ॥ १२०. जैनमंदिर चालीसगांव १२१. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैनमंदिर गुलालवाड़ी बंबई १२२. आदिनाथ-पार्श्वनाथ जनमंदिर पायधुनि बंबई १५३. शांतिनाथ जैनमंदिर भीडीबाजार अंबई १२४. जैनमंदिर भद्रावत "Aho Shrut Gyanam" Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ( १२५ ) संवत १५१० वर्षे फागुण वदि ३ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातय ठकुर धरण भार्या बाई गांगी त ठकुर मांडण भार्या बाई अरधू || तेन स्वकुटु. Free श्री आदिनाथबिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रागमगच्छे श्री श्री (? श्रमर) सूरीणामुपदेशेन श्री स्तुकल्याणं । नाम ज्ञान चूक किसी ने मिटा दिया है जन धातु प्रतिमा लेख ( १२६ ) संवत् १५११ वर्ष माघ वदि ५ बुध दिने श्री लोढागोत्रे सा० गोल्हा संताने सा० ऊधर भार्या उदयणि पुत्रः सा० खाभाकेन आत्मश्रेयस श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्रति० श्रीरुद्रपल्लीयगच्छे श्रीदेवसुन्दरसूरि प० श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ (१२७) संवत् १५११ वर्षे माघ शुदि ५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय ४० सोम भा सिरियादे पुत्र सुमल भा० राणी सुत अमेसिंह भा० धीर पानावेन श्रात्म मदन झाड मातृ जाया 'सहकुटुम्ब परिवृत्तेन सुविधिनाथ का० प्र० तपा० श्रीसोमसुन्दरसार भूमि (? मुनि) सुन्दर सूरि श्रं जयचन्द्रसूरि विशालराजसूरिशिष्य सम्प्रतिविद्यमानगच्छनायक श्री रत्नशेखरसूरिभिः ॥ ( १२८ ) सं० १५११ वर्षे पौष वदि ६ मंत्रीश्वरगोत्रे हरिया भा० सुजू खा० मन भार्या श्रीबज्ञातीय सहन सिंहसेनसूरिभिः । १२५. जैनमंदिर तुलापट्टी कलकत्ता १२६. तपागच्छ जैनमंदिर बालापुर १२७, जैनमंदिर भायखला बंबई १८. सम्मेदशिखर मंदिर मधुवन "Aho Shrut Gyanam" Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (१२९) संवत् १५११ आषाढ़ सुदि ४ गुगै थ्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठि देवराज भार्या सीनू सुत कीकवजू समधर अजा भार्या रंगी अजाकन म्वपितृमातृकन्नत्र श्रेयोथं चन्द्रप्रभस्वामिबिंबंकारितं प्रतिष्ठित आगमगच्छे श्रशीलरत्नसूरिभिः ॥रणेला वास्तव्य ॥६॥ (१३० । संवन १५११ वर्षे आषाढ वद ९ श्रीउकेशवशे शाहशाखायां सा० सोभ्रम पावन भार्या उसत्ती पुत्र हरिपाल करपालयतेन श्री शातिनाथविध कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिपट्ट' श्रीजिनभद्रसूरिगुरुभिः ॥अ. खरतरगच्छे।। (१३१) मंवत १५१२ वर्षे पोष वदि ५ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० ठाकुरसी भार्या पाल्हणदे. सुत धीरम वीकम रतना भुवा एते मातृपितभ्रातृनिमित्तं प्रात्मश्रेयो) श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं श्रीपूर्णिमापक्षो श्र.कमल प्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं । विधिना टीमा ग्रामवास्तव्यः॥ श्री।। ( १३२) ५० सं० १५१२ वर्षे आषाढ़ व. १ श्री उकेशवंशे दरड़ागोगे मा. हरिपाल सुत सा० श्रासा साधू तत्पुत्र सं० मंडलिक सुश्रावकेन भार्या सं० रोहिणि पुत्र सं० साजण प्रमुखपरिवारसहितेन निजश्रेयसे विमलनाथबिंबंकारितं प्रतिष्ठितं च. खरतरगच्छे अंजिनराजसूरिपट्ट श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ १२९. जैनमन्दिर पीपलगांव नासिक १३०. नया जैनमन्दिर नागपुर १३१. जैनमन्दिर वर्धा १३२. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैनमन्दिर पायधुनी बस्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख . (१३३) संवत् १५१२ वर्षे फागुण शुदि बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय वापच उंध भा० वां (चां) पलादे सुत राजा भार्या राजलदे सुत लखा; बना; राघव वीरा सहितेन पितृमातृचांपा-निमित्तं प्रात्मश्रश्रेयसे श्रीचतुविंशतिपट्ट का० मुक्ष्य (? मुख्य) श्रीसुमतिनावबं प्र०पिष्फल गच्छे (पिपलगच्छे) भ० उदयदेवसूरिभिः ।। कोतरवाडा वास्तव्यः॥ (१३४) संवत् १५१२ वर्षे माघ वदि ८ शुक्र श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेखता भा० राजलदे सुत साह दासहदेभ्यां स्वपित्रो (?) श्रेयसे कुंथ (थु नाथबिंब कारिता (तं) प्र अ (१) श्रागम गच्छे श्रीसाध (? धु) सुन्दरसूरीणामुपदेशेन कारितं । ( १३५ ) संवत् १५१२ वर्षे माघ ( ? महा ) शु०५ प्राग्वाटज्ञातीय अं० माइग्रा भार्या महिगल सुत गोइया भा० दूबड़ी सुत हीराकन भार्या माणिकि मातृभटापरबतस्वश्रेयोश्रीश्रादिनाथबिचं का० प्र० तपा श्र रत्नमागरसूरिभिः॥ ( १३६) संवत् १५१२ वर्षे चै० सु० ५ उसवाल 40 थुणागोत्रे सा० महणा.भागमहणादे सुत सा०सीपावेन भा० सुलेसरिप्रमुख कुटुम्बयुतन श्रीआदिनाथभिबं कारित प्रति० श्र.कक्कसूरिभिः ।। १३३. महावीरस्वामी जैनमन्दिर पायधुनी बम्बई १३४. शान्तिनाथ जैनमन्दिर भीडी बाजार बम्बई १३५. नेमिनाथ जैनमन्दिर भींडीबाजार बम्बई ५३६. नेमिनाथ जैनमंदिर भीडी बाजार बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-थातु प्रतिमा लेख (१३७) संवत १५१२ वर्षे वैशाख सुदि ५ शुके श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ स० भूल मात तेजलदेश्रेयोथे सुत श्रीपासाकेन श्रीश्रीअभिनंदनमुख्यपंचतीर्थी कारिता महकरगच्छे प्रतिष्ठितं श्रधनप्रभसूरिभिः ॥ चूल्हा वास्तव्यः॥ (१३८) संवत् १५१३ वर्षे का० १० ११ रखो त्रिपुरपाटकवासि प्राग्वाट (ज्ञातीय ) श्रेषिठ होरा भार्या श्रीराजीनाम्न्या स्वमातृकामल देश्रेयोर्थ श्रीसुमतिनाथसिंबं कारितं प्रति० तपा श्रीसा (साम) सुन्दरसूरि शिष्य श्रीरत्नशेखरसूरिभिः। (१३६) संवत् १५१३ वप माघ सुदि......श्रीश्रमालज्ञातीय गंधारवास्तव्य श्रे देवधर भार्या भांजू नाम्न्या पु० रुपा, वस्ता, पुत्री समतिप्रति कुटुम्बयुतयास्वश्रेयसे श्रीसुमतिनाथर्विबं कारितं प्रति० तपापो श्रीसोम. सुन्दरसूरिशिष्य श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ।। श्री रस्तु । संवत् १५१३ वैषाख वदि ५ अहम्मदाबादवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय सा० लूणसी चमकू पु० आम......श्रीविमलनाथबिंबं का. प्रति. मुनिसुन्दरसूरिपट्ट श्रीरलशेखरसूरिभिः ।। (१४१) संवत् १५१३ वर्ष माघ शुदि ५ रबौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय म० महिपा द्वि० भार्या देवल दे सु० लाडणकेन भा० ललनादे पितृमात. श्रेयोर्थ प्रात्मश्रेय से पाशांतिनाथविम्ब कारितं श्रीनागेन्द्रगच्छे गुणसमुद्रसूरिभिः ॥ धांधराज ग्रामे || श्री ।। १३७. शांतिनाथ जैनमंदिर कोट बंबई ५३८. गोडो पार्श्वनाथ जैन मंदिर पायधुनि बंबई १३६. शांतिनाथ जैनमंदिर कोट बंबई १४०. निज दैनन्दिनी से १४१. , . " "Aho Shrut Gyanam" Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (१४२) संवत् १५१३ वर्ष वषाम्ब शुदि ३ गुरौ अं.उपकेशज्ञातो कर्णाट गोत्रे सा० हरिपाल भा० गूजरी पु० सा० सोहणकेन भा० सूइबदे पुत्र श्रीपतिराजयुतेन म्वश्रेयसे श्रीअभिनन्दननाथबिंबं कारितं श्राउपकेश. गच्छीय श्रीकुकुदाचार्यरताने प्रतिष्ठितं भ० श्रीकक्कसूरिभिः ।। संवत् १५१३ वर्षे फा० व० ११ प्राग्वाट स्व० नाउला भा० जास्तू सुत छन्ना भार्यया श्रा० धर्मिणिनाम्न्या पुत्रो लाडिकियार्थ श्रीशांतिनार्षिवं कारितं प्रति० तपा सोमसुन्दरशिष्य रत्नशेखरसूरिभिः ।। संवत् १५१३ वर्षे वैषाख मासे सु०४... ज्ञा० हाथउंडीयागोत्रे सा० कालू भाया कामल दे सु० पोपाकेन भार्या पाल्हणदे स० श्र अंचल गच्छे (यहां पर सुन्दर चित्र उत्कीर्णित है) श० ) जय कशरिसूरि वाचा पितृश्रेयसे श्रीसुविधिविंबं का० प्र० श्रीसंधेना ।। श्री। (१४५) संवत् १५१३ वर्षे वषाख दि २ बुधे अंधे मालज्ञातीय गांधी नरपात भार्या नामल दे तयोः सुतः गांधी जेमा भार्या गंभू गांधी संवा भा० शाणी स्वपितृश्रेयोथं चन्द्रप्रभस्वामीबिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रा आगमगच्छे पाणंदप्रभसूरिभिः सलखणपुर वास्तव्यः ।। संवत् १५१३ वर्ष आषाढ़ सु० ५ सोमे श्र.श्रीमालज्ञातीय सा० महिदे भा० सांतू सु० सा. राणामधेन स्वश्रेयसे श्रयांसचिंबं कारित प्रतिष्ठितं पूर्णिभापक्षे श्र वीरप्रभसूरिभिः।। १४२. पार्श्वनाथ जैनमंदिर भद्रावती ५४३. जैनमंदिर घाटकोपर बंबई । १४४. पुराना जनमंदिर अमरावती बरार १४५. जैनगृहमंदिर नादगांव (मनमाइ) १४६. लोंकागच्छीय जैमंदिर बालापुर "Aho Shrut Gyanam" Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैन-धातु प्रतिमा लेख संवत् १५१३ वर्षे प्राषाढ़ सुदि १० बुघे प्राग्वाटज्ञातीय व्य० गंगा भा०कमली सुत व्य० समधर भाराहि (यहां पर सुन्दर दिव उत्कीर्णित है जिसका भाव इस प्रकार है कि १ मानव छत्र चामर लेकर खड़ा हुआ है शायद इन्द्र ही हो ) प्रमुखकुटुम्बयुतन श्रीअंचलगन्देश श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन का. श्रीकुथुनाथबिंब का०प्र० श्री सपेन श्री। सवत् १५१३ वर्ष आषाढ़ सुद २ श्रीउकेशवंशे झारकगोत्र सा० जगमाल पुत्र मा० जेठा सा० ऋदम्य स्वापुण्यार्थ श्रीवासुपूज्यवियं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रेजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ (१४६.) संवत् १५१४ अत्ववाहग्रामवासि सा० लीला भा० अमरी पुत्र सा० नाथू नाम्ना भा० चनू पु० डुंगरादियुतेन भ्रातृउगमश्रेयसे मुनिसुव्रतबिं का०प्र० श्रीतपागच्छेश श्रीरत्नशखर सूरिभिः ।। पुरंदारे (?) (१५०) संवत् १५१५ वर्षे फागुण शुद ८ शनी श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ मणोरस। भ्रातृ मेधू श्रेयोर्थ सुतवेला लखु सुमधुर भोजा वा............ विमल नाथ (बिंब) का० श्रापूर्णिमा श्रीसाधुरलसूरिपट्ट' श्रीसाधुसुन्दरसुरोगामुपदेशेन कारितं सवत् १५१५ वष आषाढ़ सुद २ प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० शेखा भार्या मोनो सुत धर्माकन भार्या मटकू भ्रातृ पुत्र सुन पोपटठकुर भाया मगरमादिकुटुम्बयुनिस्वयसे .श्रीविमलनाथविष का० प्र० तपागच्छे श्ररत्नशेखरसूरिभिः ।। नारंगपुरे ।। १४७. प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर बालापुर १४८. जैन मन्दिर धनज बाजार (अमरावता) १४६. जैनमन्दिर ब्रह्मचर्याश्रम चांदवड़ नासिक १५.. चिन्तामणि पार्श्वनाथमन्दिर गुलालवाड़ी बम्बई १५१. पाश्वेनाथ जैनन्दिर भद्रावती "Aho Shrut Gyanam" Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जैन-धातु प्रतिमा लेख (१५२) संवत् १५१५ वर्ष वैशास्त्र सु० १३ रवी श्रीश्रीमालज्ञातीय दो. इला० भा० उभादे सुत गेला न......देपाल नामा पुत्रसहितेन श्रीविमलनाथबिंब का० प्र० पिप्पलगरले म०विजयदेव पूरिउपदेशेन श्री. सालिभद्रसूरिभिः ॥ ली बडीग्रामे ॥ (१५३) सम्वत् १५१५ वर्षे वैशाख शु. ३ श्रीश्रीमालीयज्ञा० व्य. देऊषा भार्या नोडी द्वि. काऊ सुत हाथाकेन भार्या हर्पू सुत हरपाल भूभवसहितेन पितृमातृस्वयार्थ श्रीसम्भवनाथमिम्बं का. प्र. श्रीपूर्णिमापक्षे राजतिल कसरीणामुपदेशेन प्र० (१५४) संवत् १५६५ वर्षे मार्ग सुदि शुक्र श्रीश्रीमाल ज्ञातीय म० काला भा० मकतू सु० आंबा भीमा रामा एतैः पितृमातृश्रेयोथ श्रीवासुपूज्य. विबं कारितं श्रीधहद्भाणगछे श्र मुणिचन्द्रसूरिभि:। दहोडापाम वास्तव्य । सम्वत् १५१५ वष माघ शुदि १ शुके श्र नभाएगच्छे श्रमाल. जातीय श्रे० ग्वीमा भा० शाणी सुन चांपुनाम्न्या स्वयसे जीव त्यादि नि० संमनाथबिम्बं कारितं प्र. श्रीविमलसूरिभिः सीहज वास्तव्य । सम्बत् १५१५ वर्षे फागण शुदि ८ शनी श्रीश्रीमाल ज्ञातीय पितृभणरिसी भ्राह मेधू श्रेयोर्थ सुत वेला लखु समुधर भोजावा "विमलनाथ बिम्सां का श्रीपूर्णिमा श्र साधुरत्नसुरीणामुपदेशेन कारितं ।। १५२. पाश्वनाथ जैनन्दिर भद्रावती १५३. जैनमन्दिर पाचोरा १५४. श्राशांतिनाथ जैनमन्दिर भीडीबाजार बंबई १५५ चिन्तामणि पाश्वनाथमन्दिर गुलालवाड़ी बंबई १५६. श्वे. जैन मन्दिर घोटी (नासिक) "Aho Shrut Gyanam" Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख सम्वत् १५१६ वर्षे कातिक बदि २ शनो श्रीमालवंशे मा० अञ्जन भा० आल्हण दे पुत्र संहाटा सुश्रावकेण भार्या दिवलदे ( यहां पर अतीव सुन्दर चित्र अंकिन है) पुत्र माला, बाला, सहितेन श्रीअंचलगच्छगरु अ.जयकेसरिसरीणामुपदेशेन श्रीआदिनाथविम्ब कारित ५० श्रोसंधेन ॥ ( १५%) __ संवत् १५१६ वर्ष आपाढ़ सुदि ३ रवौ महतीयाणज्ञातीय आंधा गोत्रे सा० फंग भार्या अरधू पुत्र सा० भ पुकेन भार्या श्रम पुत्र मा० कुंअरपाल युतेन श्रीमुनिमुत्रनम्बामिबिम्ब का प्रश्न खरतर. गच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिभिः ॥ संवन् १५१६ वर्षे पैसाख सुदि १३ करताकदिने गोबर चो. गोत्र महत्तीप्राण कलाल भार्या धर्मसी सुत श्री पासधर भा० चांपल दे. सुन नेमदासेन भा० गारवदेवो पुत्र उधरण तेजपाल, चम्पाल कुंअरपाल प्रमुख कटम्त्युतेन६अं यार्थ श्रीश्रीश्रीनेमिनार्थाबम्ब कारितं प्रनिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिःपट्टालंकार श्री जिनचन्द्रसूरिभिः। (१६०) मंवत् १५१६वष माग (? ध) सुदि उकेशवंशे रांकागोत्र श्रेारा० पु० आमाकन भार्या माझा चम; पुत्र हरपाल, थिरपाल, वधु रंगाई प्रमुखपरिवारसहितेन यार्थ अभिनन्दनविम्बं कारितं प्रतिष्ठित श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ १५७. जैन मन्दिर धमतरी म. प्र. १५८. जैनमन्दिर बालाघाट , , १५६, चिन्तामणि पाश्वनाथ मन्दिर गुलाल बाड़ी बंबई १६०. जैन मन्दिर भायखला बंबई १६१. "Aho Shrut Gyanam" Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेखन संवत् १५१७ वर्षे फागुण सुदि ३ शुक्र श्रीश्रीमाल ज्ञातीय श्रे मृधा भा० माणिक दे सु० झांझण वरेण भार्या नीशू प्रभृत्तिकुटुम्म (युतेन) श्रामुनिसुव्रतस्वामीपंचतीर्थी भागमगछ' श्रीहेमरलसूरि-गुरुपदेशेन कारिता प्रतिष्ठितान अथवामणवाडिया सतलपुर वास्तव्य ।। (१६२) संवत् १५१७ वर्षे माघ सुदि ६ गुरौ श्रीश्रीशे अ. भला भार्या रतन पु. कवा सुश्रावकेण (सुन्दर चित्र उल्लिखित है) श्र:अंचलगच्छ श्वर भाजय केसरीस रीश्वराणांमुपदेशेन स्वश्रेयसे श्रीनमिनाथपियं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंधेन ॥ (१६३) संवत् १५१७ वर्षे माघ सुदि ४ शुक्र असाउलि गस्तव्या श्रीश्र.. मालज्ञातीय सा० धना भार्या धनादे पुत्र सा महिराज भार्या चंगाई पुत्र नरपाल जेजपाल स्वयसे श्रीसंभवनाथविम्यं कारित प्रति० श्रीकृहत तपापक्ष श्रीरलसिंहस रिभिः ।। (१६४) संवत १५१७ वर्षे पोप बदि ५ गुरु श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठि भारणा भार्या धांधलदे सुत महिराज भार्या हीरुकेन जीवितस्वामी ओशांतिनाथयिम्ब कारितं प्रतिष्ठित श्रीस रिभिः ।। वीरममाम वास्तव्यः ।। १६१. नया जैन मन्दिर अमरावती १६२. जैन मन्दिर चांदवड १६३, दिगम्बर जैन मन्दिर कोंडाली सी. पी. १६४. जैनमन्दिर चांदवड़ "Aho Shrut Gyanam" Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख (१६५) संवत् १५१७ वर्ष फाल्गुण सुदि ३ शुके श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे गोवल सुत अ. नागसी भा० वमकू दे. रत्नाकेन भार्या गुरी सु० श्रे. सिंधरादिकुटुम्च्युतेन म तृपितृश्रेयसे श्रीसुमतिनाथविम्नं पूर्णिमापो श्रीगुणसमुद्रस गणापट्ट गुणधीरस रीरमा मुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना।। संवत् १५१८ भाषाढ़ गुण श्री भादा भा० भरभादे पुत्र श्रे. मेला भार्या भरणादि नाम्नाकुटुम्ब (यु) तया नत्यास्त श्रेयोर्थ श्री श्रीवासुपूज्यबिम्बं का० प्र० तपागच्छ लक्ष्मीसागरस रिभिः ।। संवत् १५१८ वर्षे वैषाम्ब सुदि ३ शनी श्रीमालझातीय श्रे० गांगा भा० शागी सु० पितृवन भा० मचकू सुत सहवेन श्रीसुविधिनाथमि कारित पूर्णिमापक्षीय श्रीसाधुग्लसरिपट्टे श्रीसाधुसुन्दरसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठित विधिना, जहना वास्तव्यः॥ संवत् १५१६ वर्षे वि (2) पारख वदि ११ शुके उपकेशज्ञातो मा देवा भातृ लहका पु० परवतेन भा० डाकी (? ही) पहितेन स्व यसे संत (भ) वनाथविंबं कारितं प्र० उपकेशग० ककुदाचार्यसंता (ने) श्रीककसूरिभिः॥ संवत् १५१६ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १३ सोमे उपकेशज्ञातीय भंडारीगोत्रे सं० देवराज भार्या वल्हादे पुत्र ३ रत्नसिंह कान्हा जसराज पितरपूर्व जननि निमित्तं श्री नमिनाथविध का० श्री संडेरगर भ०सालिमूरिभिः १६५ ओ पार्श्वनाथ जैन मन्दिर भद्रावती म. प्र. १६७. गोड़ी पार्श्वनाथ जैनमंदिर पायधुनि धंबई १६८, महावीरस्वामी जैनमंदिर पायधुनि बंबई १६६. महावीरस्वामी जैनमंदिर पायधनि बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ( १७० ) संवत् १५१६ वर्ष वैषाम् दि ११ भृगुरेत्यां प्राग्वाटज्ञातीय श्र े० सारंग भार्या सिरीयादे सुत नानाकेन भार्या जोगी कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्री श्रेयांसबिंबं का०प० तथा श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ॥ श्री वीसलनगरवासि ॥ ( १०१ ) संवत् १५१६ वर्षे वैषाख सुदि ११ शुक्रे श्रीमालज्ञातीय पिना मुहता हाली पितामही खेती पितृ परबर मात्र रुडी सुत खेता राउलाभ्यां श्रीसुमतिनाथपंचतं श्रीविवं कारितं प्रतिष्ठितं पिपलगच्छे श्र गुणरत्नसूरिभिः ॥ चूडायामे ॥ जैन- धातु ( १७२ ) संवत् १५१६ वर्षे कार्तिक वदि ४ गुरु श्रीमालज्ञातीय मंत्री देवा भार्या सहि सुन वरजांगकेन भ्रातृ जेमा नरवद हाथा सहितेन पितृ मातृश्रयसे श्रीनाथादि चतुर्विंशनि कारित प्रतिष्ठितं श्रीश्रमाण गच्छे मुनिचंद्रसूरिपट्टे श्री वीरप्रभसूरिभिः ॥ मेंा दातव्यः ॥ श्रीशुभंभवतु ॥ श्री ॥ ( १७३ ) सं० १५१६ वर्षे आषाढ़ यदि १ मंत्रोलीय श्रीकारणा गोत्रे ठ० भाधू भा० धर्मिणि पू० अचलदासेन पू० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल वीरसेन पहिराजादियुतेन श्रीशान्तिनाथ देव का० श्री जिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्टित || १७२. शांतिनाथ जैनमंदिर कोट बंबई १७१. चिन्तामणि पार्श्वनाथमदिर गुलालवाड़ी बंबई १०२. खरतरगच्छी बड़ा मंदिर तूलापट्टी कलकत्ता १७३. 33 प्रतिमा लेख 39 33 "Aho Shrut Gyanam" Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख ( १७४ ) संवत् १५५६ ज्ये० व० ११ बडलिवासि प्रा० महा० भा० मेवादे पुत्र स०... भारमल भा० पूंजी पुत्री नीलूनान्या पुत्र हेमादियुतेन श्रश्र यमनाथवि कारितं प्र० साधु ...... 1 ( १७५ ) संवत् १५१९ वर्षे वैशाख वदि ११ भृगुरेवत्यां भटोडाग्रामवासिक प्राग्वाटजाताय को० काका भा० भूनू सुन को० भीला भा० इसी सुत कडुन भा० भोली द्वितीय भा० कामलदे सुन लांपा वृद्वभातृ लुंभा राजादिबहु कुटुम्प्रयुतेन स्व यसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिचतुर्विंशतिपट्ट का० प्र० तपा० श्राश्री लक्ष्मीसागरसूरिभि: पं० पुण्यनन्दनगणि उपदेशेन ॥ श्री ॥ ३९ ( १.६ ) संवत् १५२० वर्षे मागशिर शु० ६ शनों उपकेशज्ञातीय सुराणागोत्र सं जिणदेव भा० जयतलदे तत्पुत्र सं० बच्छराज भा० सं० पालदे कारितं तत्पुत्र सा० जगवर सरवण उदयराज हंसराज श्रीचन्द्रप्रभस्वामी (का) प्र० श्री धर्मयो ( ? घो ) बगच्छे पद्मशेखरसूरिशिष्य पद्मानंद सूरिभिः ॥ १०४. जैनमंदिर चांदवड ( नासिक ) १७५. प्राचीन जैनमंदिर अमरावती ( १७७ ) संवत् १५२० वर्ष वैषाख सुदि १२ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० होरा भा० जीवणि सुत कान्हाकेन भा० पदमाई सुत रत्नसहितेन स्वश्रेयसे श्रीकुंथुनाथत्रिबं कारापित (प्र) श्रीरत्न सूरिभिः ॥ अहमदाबाद || १७६. शांतिनाथ जैनमंदिर भींडीबाजार बंबई १७०. तपागच्छ जैनमंदिर बालापुर "Aho Shrut Gyanam" Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धात प्रतिमा लेख (१७) संवत् १५२८ वर्षे वैषाख मासे श्रीप्राग्वाटजातीय परि मूला भा माल्हरण दे पत्राः प० वीरा राजा बद्रजा एतैः स्वमातुःश्रेयसे श्रीविमलनाथ वित्र का प्रति० श्रीकृष्धतपापो श्रीउदयवल्लभ मूरिभिः ।। (१७) संवत् १५२१ वर्षे माघ शु. १३ प्राग्वाटज्ञा० पर्वत भार्या खेपु पत्र म० पापाकेन भा० आसल दे पुत्री वाम पुत्रस्वकुटुम्बयुतेन श्रायुगादिदेवबिंचं स्वश्रयसे का०प्र० तपा रत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मी सागरसूरिभिः । श्र सोमदेवसूरियुतेः अहमदाबादनगरे । (१८०) संवत् १५२१ वष वैपान सु० ३ प्राग्वाटज्ञातीय स्व (?) कडूआ भा० होमादे पु० स्व० भटाकेन भा० वारु सुपत्र खेता, जयता, पाता वधू धनी व छिणि हनुपाउ तोला क का कुटुम्बयु नस्वश्रयसे श्रीवादपूज्य व तुर्विशनिपट्ट कारिनः प्र० तपागच्छे श्रीरत्नशेखरसृरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ।। डोडाणा ग्रामे ॥ (१८१ ) सं० १५२१ ज्येष्ठ शु० ४ मंडुपदुर्गे पाग्वाट(ज्ञा) स० अर्जन भा० टक्कू सु० सा० वम्ता भार्या गजी सुत स० चांदा भा० जीविरिण नाम्या पुत्र स० लींवा आकाहि (दि) युतया मातुः श्रेयसे श्रीधर्मनाथ चतुर्विशतिपट्टः का• तपापो श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः ।। १७८. जैन मंदिर लालबाग बंबई १७६. गणेशमल सौभाग्यमल जैनमंदिर बंबई १८०. जैनमंदिर चालीसगांव (खानदेश) १८१. जैन मंदिर पांचोरा ( खानदेश) "Aho Shrut Gyanam" Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन धातु प्रतिमा लेख ( २ ) संवत् १५२१ ज्ये० शु० ४ प्राग्वाटज्ञाति सं० अर्जुन भर्या टबकू सुत to वरता भा० रामी सुत स० चांदाकेन भार्या जीविणि सुत सं० खींवा आकादिकुटुम्बयुतेन चतुर्विंशतिपट्टान कारापिता स्वश्रेयसे श्री पार्श्वनाथ च० पक्का प्र०श्री तपागच्छेश श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागर सूरिभि: ४१ ( १-२ ) संवत् १५२१ वर्षे माघ शुदि १३ प्राग्वाट ज्ञा० केल्हा भा० कल्हणदे पुत्र कोलाकेन भा० कुतिगादे... त्रादे पु० राजा ज्येष्ट भ्राता सूरा, पेथा, नाल्हा मालादियुनेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० तपा० श्रीसूरिभिः ( १८५ ) संवत् १५२१ वर्षे माघ शु० १३ प्राग्वाट १० पर्वत भार्या खेपू पुत्र मं० आपाकेन भार्या आसलदे पुत्री वारु पुत्र स्वकुटुम्बयुनेन युगादिदेव स्वयसे का० प्र० तपा रत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागर सूरिभिः श्रीसोमदेव सूरियुतेः । अहमदाबाद नगरे ("=1) संवत् १५२२ वर्ष वैशाख सुदि १० गु० उप० झा० शां जहाग गोत्र सं० जसा भा० नाइ पुपम धूचल नीमा गोकन्न सा० धूवल भार्या मनी पुएसगध (?) मरवण भ्रना म० श्रात्मश्र ेयसे श्रीमुनिसुव्रतfii कारित प्रतिष्ठित श्रीखंडेरकग के श्रीयशोभद्रसूरिचताने श्रीसालिभद्र सूरिभिः ॥ १८२. जैनमन्दिर अमरावती १८३. दिगंबर जैनमंदिर नांदगांव ( श्रमरावती ) १८४. जैनमंदिर, गणेशमल सौभाग्यमल का बंबई १५. पार्श्वनाथ जैन मंदिर भद्रावती "Aho Shrut Gyanam" Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (१८६) संवत् १५२२ वर्ष माघ शु० ११ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० देवगज सा० ययजू पुत्र श्रे० पणदासेण (न) भार्या मातृभ्रातृ सूरदास सारंग विमात श्रीप्रमुख कुटुम्बातेन स्वश्रेयसे श्रीनमिनाथविबं का० प्र० तपा० श्र रत्नशेखरसूरिपट्ट श्री श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ।। ___संवत् १५२३ वर्षे वैषाख सुदि ६ सोमे श्रीश्रीमालजातीय श्रे. मंडलिक सुत..... श्रीअनन्तनाबिम्बं कारितं निमगाछ श्रीसाधुरत्नसूरिपट्ट श्रीसाधुसुन्दरसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठित मंडुपदुर्गे ।। (१८८) संवत् १५२३ वर्ष वैषाख सुनि ! सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय अं. कंध सुत पदमसी स० पित मोबा" मा"मोखल दे श्रेयसे सुन अर्जन मजनाम्यां (?) श्रीवासुपूज्यबिम्बं कारितं पूनिमगच्छ श्रीसाधुसुन्दरसरीणामुप० प्रतिः । बलख वास्तव्यः॥ (१८६) संवत् १५२३ वर्षे माघ सुदि १ बुधे पाग्वाटज्ञातीय सा० सारंग भार्था शांणी पुत्र मेघानेन भार्या मंदोदरी पु० २० देह भा. साई वछादियुतेनात्मपुण्यार्थ श्रीअंचलगन्छ प्राजयकेशरीमूरिभिः ॥ चुरसदकला। (१०) संबत् १५२३ वर्षे माघ वदि ११ वृहस्पति उपकेशवंशीय नाहरगोत्रे मा० सूग पु. रतन नद्भार्या गूरी प.सं. हेमा भा. सं. हमीगदे पुत्र छाजू कोकायुतेन श्रीपार्श्वनाविश्व का० प्र० श्रीधर्मघोषगन्छ धे पदाशेखर सूरिपट्टे भट्टारक श्री.पद्मानन्दसूरि श्रीपाल्हादनयः ।। १८६. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैनमंदिर गुलालवाड़ी बबई १७. श्री शांतिनाथ जैन मन्दिर भीडी बाजार बंबई १८८. आदिनाथ भगवान जैनमन्दिर पायधुनि बंबई १८९. आदिनाथ भगवान जैनमन्दिर नागपुर म. प्र. १९०. जैन मन्दिर शाहपुर जि. ठाणा "Aho Shrut Gyanam" Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (१६) संवत् १५२३ वर्षे मा० मुदि ६ रवौ उसवालजातीय बहुगगोत्रे सा षिमा पुत्र वरसा बालहदे स्वभ्रातृ रुल्ला श्रीविमलनाथविम्बं कारितं प्रति० ओचित्रमालगच्छ गुणाकरसुरिभिः ( १९२) संवत् १५२३ वर्षे वैसाख सुदि ६ श्रीश्रीप्राग्वाट् जा० जेसंध भार्या गांगी सुत सहिदेकेन :मातृपितृवात्मश्र० श्रीकंथुनाथभिवं का० श्रीपिष्प० श्रीधर्मसागरसूरिणा प्रतिष्ठित संवत् १५२४ वर्षे वैसास्त्र यदि : सोमे श्री मालज्ञातीय दोसी श्रजा भार्या धरमिणि सुत खेता सिवा रत्नाभ्यां पितृमातृश्रेयसे नमिनाबिम्बं पंचतीर्थी कारापितां (न) श्रीपूर्णिमापक्ष श्रीराजतिलक. सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः । वीरमग्राम वास्तव्यः ।। (१६४) संवत १५२४ वैसाख सुदि १० उकेश वेदरवासि २० महिराज भा० चंपाई सुत पद्ममिहेन भगिना पझाई प्रमुख कुटुम्बयुतेन श्रोशीतलनाथ विम्ब १० प्र० तपा सोमसुन्दरसरि सन्ताने श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ।। भवत् १५२४ वै शुदि प्रा० श्रे० पाता भा० वाळू पुत्र जोगाकेन भा० जावडि यु० रामदाम भ्रास अर्जुन भा० सोनाई प० कुटुम्बयुतेन श्रीशीतलनाथबिम्बं का० प्र० श्रोसोमसुन्दर मूरि सन्ताने श्रीलक्ष्मीसागर. सूरिभिः । १९१. हरतरगच्छीय बड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता १९२. आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बंबई १९३. आदिनाथ जैन मन्दिर पायधूनि बंबई ६६४. ग्वरतरगच्छीय बड़ा जैनन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता १६५. स्वरतरगच्छोय वा जैनमंदिर तुलापट्टी मालकत्ता "Aho Shrut Gyanam" Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जैन धातु प्रतिमा लेख ( १९६ ) संवत् १५२४ वर्षे चैत्र वदि ५ शनो श्रं ब्रह्मागच्छ श्रीश्रीमालज्ञातीय महं गाला भार्यां करणं पुत्र शिवा भा० हरखू पुत्र जावड़ भावड़ आदेः पितृगा ( मा ?) तृ श्रेयार्थ चन्द्रप्रभस्व.मिविम्बं कान्तिं प्रतिष्ठितं श्रीवीरस रिभिः । श्रीश्राणा वास्तव्यः । (१६) संवत् १५२५ वर्ष मार्गसिर सुदि १० दिने प्राग्वाट्ज्ञातीय श्रे० गांगा भार्या हरखू पुत्र श्रे० जालाकेन भार्या लीलाई पुत्र हरपतियुतेन स्वार्थं श्रीशांतिनाथ बस्नं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छ श्रीजिनह स. रिभिः || ( १६८) पुत्र संवत् १५२५ वर्षे पात्र सुदि ६ सोमे श्रीमाल शिवराज भा० मांडू माधव श्रोपालाभ्यांयुतेन पितृनिमित्त आत्मश्रेयसे श्रीसुमतिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं पूर्णिमापक्ष सोमसुन्दरस रिभिः । श्रहम्मदाबादे हर्षपरवाट् । ( १९९ ) संवत् १५२६ . शु० ६ सोमे गंधारवासि प्राग्वाटज्ञातीय वि गर भार्या हर्ष पुत्र वि० पताकेन भार्या तीलाई सुत कर्मसी वीग्म की कादियुतेन निजजननिश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिं० का० प्र० तपागच्छराजलक्ष्मीसागरस रिभिः । ( २०० ) संवत् १५२७ वर्षे ज्येष्ठ शुदि ४ गुर्गे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय सा० डूंगर भा० देवलदे सुन पाताकेन भा. काई पुत्र गोई आदि युतेन लघु पुत्र मूला विष्नो... शान्तये श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं श्रं पूर्णिमापक्ष भीमपल्लीय भ. जयचन्द्रसुरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं ॥ १६६. श्री अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिर सिरपुर (अकोला) १९७. जैनमंदिर घाटकोपर बंबई १६८. श्रादिनाथ जैनमंदिर पायधुनि बंबई १६६. शांतिनाथ जैनमंदिर भींडीबाजार बंबई २००. शांतिनाथ जैन मंदिर भींडीबाजार बंबई " Aho Shrut Gyanam" Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख ( २०१ ) संवत् १५२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० बुधे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० पाना भा० साधी सा० टीडा भा० कमाई सुत रीमाकेन भार्या वीरीयुतेन भा०रमादे श्रेयसे श्रीनाथ त्रिबं श्री. पू. श्रीसदगुरूणामुपदेशेन का. प्र. विधिना स्तंभतीर्थनगरे ! ( २०२ ) संवत् १५२७ वर्षे श्रं मालज्ञातीय म० झांझा भाव मांडू सुतभाटा भा० सुद्दिविदे सुत श्रीपाले धपाल मह मातृपितृश्रेयोर्थ श्री आदिनाथबिम् का प्रति तथा लक्ष्मीसागरसूरिभिः । ४५ ( २०३ ) संवत् १५२८ वर्षे का० शु० पू० धारवासि प्राग्वाट सा० सारंग भा० नानी त मा० रामान भा० पदमाई प्रमुखकुटुम्ब युतेन स्वश्रय से सुमतिबिंबं का प्रति० तपा लक्ष्मीसागरसूरिभिः || ( २०४ ) संवत् १५२८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्र े० उदयमी भा० वइजलदे सुतमेचा भा० गुरादे सुत वेताकेन पितृमातृ श्रयये श्रीगंम (व) नाथम्नं पूर्णिमापक्षे श्रीगुणरत्नसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना भागलपुरे || ( २०५ ) संवत् १५.२८ . ( चै त्र व १० गुरौ श्रीउसवंशे मीठ आसो वाड भार्या जसमादे सो. गुणराजे सु० श्रावकेन भार्या मेधाइ पु० पूजा महिपाल (यहां सुन्दर चित्र है) भ्रातृ हरवा श्री राजसिंह राज सोनपाल सहितेन श्रीअंचलगच्छे श्रीजय केश/रसूरि उपर पनिपुण्यार्थ कुन्थुना कारितं प्र० श्रीसंवेन चिरनंदतु । २०१. श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर भद्रावती २०२, जैनमन्दिर ब्रह्मचर्याश्रम चांदवड ( नासिक ) २०३, पार्श्वनाथ जैनमन्दिर भद्रावती २०४, जैनमन्दिर भींवडी २०५. लोकागच्छीय जैनमन्दिर बालापुर "Aho Shrut Gyanam" Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ जैन-धातु प्रतिमा लेख (२०६) संवत् १५२८ वर्षे चैत्र वदि ५ र यौ उसवालज्ञा सा० महिपा भार्या मालूपदे पु० बीकम देदा केन भातृ सामल पाचा मा० माल्ही पु. खेता'""जानोलादि कुटुम्बयु विमलनाथविध का० प्र० उकेशगच्छ सिद्धाचार्य सन्ताने खरातपा सिद्धिसूरिभिः॥ (२०७) संवत १५२८ वर्ष वैसाख सुदि १० दिन मंडोरागोत्रे साह पोचा पुत्र सोजपाल श्रेयार्थ श्रीशांतिनाबिम्ब कारापितं प्र० धर्मघोषगच्छे साधुरत्नसूरिभिः ।। (२०) संवत् १५२८ वर्षे श्रापाढ़ सुदि ५ रवौ प्रावादज्ञा० श्रे० मीणा भार्या जीविण पृ० श्रे० यचा भार्या धारू पत्र माणिकसहितेन श्रीधर्मनाथबिम्ब कारितं अंचलगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीजय केसामरिभिः ।। (२०६) संवत् १५२६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ७ बुधे भावसार गोसल भा० तेजू तया (:) सत्सुत्रं भदिरेण भार्यापुत्र कान्हा हरपाल केसव सहितेन स्ता कुटुम्बश्रेयोथे श्रीसीतलनाथचतुर्विशतिपट्टः कारापितं श्रीवृद्धतपापचे। संवत् ५५२६ जे० वि० (? ब) १ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय मधु श्रे. वयरा भा० मवी पुत्र सिंहाकेन भा० धम्मिणि पुत्र गहिला वेलासहितेन म्व श्रेयसे कुथुबिंब कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीचैत्रगच्छ भ० श्रीलक्ष्मीसागर सूरिभिः ॥ श्री लीलापुर ग्राम वास्तव्यः ।। २०६. शांतिनाथ जैनमन्दिर भीडीबाजार बंबई २०७. चिन्तामणि पाश्वनाथ मन्दिर गुलालवाड़ी बंबई २०८. गाडी पार्श्वनाथ जैनमन्दिर पायधुनि बई २०९. गोडी पार्श्वनाथ जैनमंदिर पायधुनि बम्बई २१०. महावीर स्वामी जैन मंदिर पायधुनि बम्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा मेख (२११) संवत् १५३० वर्षे चैत्र वर्वाद ४ बुधे प्राग्वाटज्ञातय श्रे. जयत! भा० झूरी पुत्र सिवा. कदुआ बरुआ भार्या क्रीको पुत्र कता मावड़युतेन म्वपितृमातृस्वयसे श्रीश्रजितनाथबिंब कारित भीमपल्लीय भ० जयचन्द्रसूरितपट्टे भावचन्द्रसूरि किंवां प्रतिष्टितं श्री ।। संवत् १५३० वर्षे माघ शुदि ३ रवौ श्रीश्रीवंशे लधुसन्ताने भ० भूजा भा० महिगल दे सुत जांसा इया भा० हीरू पुत्र मे गोपा सुश्रावण भार्थी गुरदे सहितेन श्रीअंचल गच्छे श्रीजय केसरसूरीणामुपदेशेन वृद्ध भ्रातृ गोविंद भार्या लोलीपुण्यार्थ श्रीधर्मनाथबि झारित प्रतिष्ठित श्रोसंधेन ( । चिरनंदतु ।) (२१३) सवत् १५३० वर्षे चैत्र ब. ५ गुरु श्रीमंत्रीश्वर गोत्रे हुबड ज्ञातीय स० हाया भा०पातू सुत संघ०वीरा भार्या लाडुनाम्न्या स० वीरा श्रेयसे श्रीसुविधिनाथ बिन कारितं श्री हुबडगच्छे श्रीसिंघदत्तसूरि उपा० श्रोशीलकुजरगणिभिः श्रयो भवतु ।। श्री !! ___(२१४) मंवत् १५३० वर्षे माघ व. २ शुक्र अजाउलि वास्तव्य श्रीश्रीमान ज्ञातीय दो शिवा भा० शिंगारदे पुत्र धणसी भार्या रवी महितेन शिंगार दे आत्मपुण्यार्थ श्रीशीतलनाथवि. का. ३० श्रीपूर्णिमापो धर्मशेखरसूरिपट्ट श्रीविशालगजसूरणामुपदेशेन विधिना । २११. नेमिनाथ स्वामी जैनमंदिर भींडीबाजार बम्बई २१२. पार्श्वनाथ जैनमंदिर भद्रावती २१३. पाश्वनाथ जैनमंदिर भद्रावती २१४. आदिनाथ जैनमंदिर भायखला बम्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (२१५) गंवत १५३० वर्ष फागुण सुदि ७ भूप (भीम) दिने उसवाल ग्याति गोवंशे सा० जयता भार्या वोरणि पुत्र सा० सूपा० भा० नया पु० सरवण भ्रा० सा. संधारण समस्तपुण्यार्थ श्रीआदिनाथ बिम्ब कारितं प्र० श्रीख (घ) देरगच्छे श्री.सा लिभद्रसूरिभिः। (२१६) रांवत १५३१ वर्ष माघ वर्वाद प्रतिपदा सोमे साडिया प्राग्वाटज्ञातीय ठ० नरपाल भार्या वापू सुत समरण सूरानीनायोर्थ श्रीआदिनाविध श्रीसौराष्ट्रगच्छे भटारिक (? भट्टारक) श्रीक्षि (क्ष भाव (म ?) द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं च ! (२१७) मं० १५१ वर्ष वै. F. ६ सौम श्र उ शक्शे आभूसन्ताने भ० भोजा पुत्र नम्णुतादूति भ० जोल्हा नारदाभ्यां श्रीअभिनन्दन जिनबिंचं कारितं प्र. श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्दसूरिभिः ।। (२५८) सम्बत् १५३१ ज्येष्ट सुदि २ रवो श्रीश्रीमालजातीय प० हाथी भा० है मादे सुत दूमणेना भा० रगो सुत अदादिकुटुम्धयुतेन भ्रातृ धोधर ख मा श्रयं यं श्रीशांतिनाबिन म.० पू० गुणधीरसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रनिष्ठितं च विधिना विरमग्रामे ॥ २१५. श्राअन्तरिक्ष पार्श्वनाथमंदिर सिरपुर २१६. भी महावीर मंदिर पायधुनि बांबई २१७. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर तूलापट्टी कलकत्ता २१८. "Aho Shrut Gyanam" Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख ४५ सम्वत् १५३१ वर्षे वैषाख वदि ११ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय सा. गोश्रा भार्या कुसु सा० साजण भा नंदोअरि सुत सा. लटकण भा. सागू श्रीराजेन भार्या हीराई प्रभृति समस्त कुटुम्बसहितेन श्रीअभिगन्दनादिचतुर्विंशतिपट्टः पूर्णिमापक्षे श्रीश्रीपुण्यरलसूरीणामुपदेशेन कारिता प्रतिष्ठिता स्वविधिना। (२२०) सम्वत् १५३१ वर्षे वैसाख सुदि ५ सोमे उसवालज्ञातौ सा• तेला भा० करणू पु० धरणी भा० झवकू पु० सा. प्राणदेन भा० रंगादे भात धणपाल देपालपुत्रेन सुश्रेयसे श्रीआदिनाथविंबं का.प्र. उपकेशगच्छे कक्कुदाचार्यसंताने श्रीदेवगुप्तसरिभिः । वेलाकृले। (२२१) सम्बत् १५३१ वष वैसाख मासे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० भाइमा मा० सइभ सुत तेजाकेन भार्या देमति सुत हरदास नरपाल वीरपाल... लकरम्पण धरमणादियुतेन स्वपितृश्रयसे श्रीवासुपूज्यादिपचतीर्थी श्रीभागमगा छेश श्रीअमररत्नसूरिगुरुपदेशेन कारिता प्रतिष्टिता च । ( २२२) सम्बत १५३३ वर्षे वैषाखे गोधरणवासी प्रा० व्य. सहजा भार अपू पुत्र मनांकन भ्रातृ दूला मीना भा० रुकमणि हान्ह प्रमुख कुटुम्ब युतेन शीतलनाथवि० का० तपाश्रीरत्नशेखरसृरिपट्ट श्रीलक्ष्मीसागरस रिमि (२२३) सम्वत् १५३३ माघ सुद ७ २१९. जैनमंदिर ब्रह्मचर्याश्रम चांदवड नासिक २२०. दोपचंद निहालचन्द गली जैनमंदिर नासिक २२१. जैनमंदिर पायधुनि बंबई २२०. लोकागच्छ जैनमन्दिर बालापुर २३. जैनमन्दिर कटंगी (बालाघाट) "Aho Shrut Gyanam" Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन-धातु प्रतिमा लेख (२२४) सम्वत १५३१ वर्ष पोष वदि १० गु. गावाटज्ञातीय श्रे० मोकल भा. माल्हप दे सुत अ. नामिंग भा. पनी भा० लाल श्रे० स्मरमिंग सुत डूगरनाथ प्रमुखकुटुम्बयतेन श्रीशीतलनाथबिंबं का०प्र० श्रीवृतपा भट्टारक श्री ..."सागरसूरिभिः । (२२५) सम्बत् १५३४ वर्षे वेषाख सुदि ३ गुरु उपमन्यगाो प्रा० बहन सजने भ० हीर • भा० तिलू पु. कीताकेन भा० ताद श्रेयसे पु० अम. राजी वासुहासिणि प्रऊ यतेन स्वमातृश्रेयो) श्रीवासुपूज्यविर का० प्र. तर श्रीसोमसुंदरसरि श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । डालिभाय। (२२७) सम्वत् १५३४ वर्षे वैषाख वदि १३ सोमे ३० रासनीगोत्रे मा० रतना भार्या षठी पुत्र भाला भा० लीलू पु० थिरपाल भात्मश्रेयसे सुमतिनाथवि क. प्र. श्रीगच्छे श्रीसोमकीर्तिरि सवारवेन्द्र सूरिभिः। ( २२७ ) सम्वत् १५३४ वर्षे माघ शुदि १० बुधी श्रीश्रीवंशे दो भासा भार्या मांक सुत दोषी भावल भा. रामति सुत दो गणपति सुश्राव. केण भा० कपुरी पुत्र मणोर ( यहाँ पर अतीयसुन्दर चित्र मकित है ) देवरत द्वितीय भा० कनडगदे पुत्रशिवा पितृव्य. दो. अजा भा. गोमतिपुत्र व हराज सहितेन श्रीअंचलगच्छे श्रीजयकेसरसुरीणामुषशेन स्वश्रेयसे श्रीसुविधिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं । चिरनदतु श्री २२४. जैनमन्दिर भायखला बम्बई २२५. गोड़ी पार्श्वनाथ जैनमन्दिर पायधुनि बम्बई २२६. जैनमन्दिर हींगनघाट २२७ पाश्वनाथ जैनमन्दिर भद्रावती "Aho Shrut Gyanam" Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख ५१ (२२८) सम्बत् १५३४ वर्षे पोष व.६ रवी प्राग्वाट् ज्ञा० सा० चांभा० चांपलदे पु.२ महिराज धना भार्या डाहाका पु० अंबा श्रे० श्रीधर्मनाथबिंब का० प्रा० लहुतपापचे श्रीलक्ष्मीसागरेण । (२२२) सम्वत् १५३४ वर्षे वैषाख सुदि ३ मोमे प्राग्वाट्नातीय दीपा भा० हांसलदे पुत्र जवादेन भा० रोहिणि पु. डामर डुगरादि कुटुम्बयुतेनस्वश्रेयोश्रीनमिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं भीश्रीसोमसुन्दरसूरि सन्ताने तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसरिभिः । मादडमामे। (२३०) सवत् १५३४ बर्ष महा सुदि १३ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय दो. वीसल भार्या वील्हणदे सुत दो० भीकाकन भार्या सोही कुटुम्बस्वपितृ श्रयसे नमिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं पिपल गच्छे शालिसूरिभिः सपत् १५३४ वर्ष ज्येष्ठ शुदि १. दिने चोपडागोत्रे स • करमा पुत्र देल्हाकेन भार्या देल्हणदे पुत्र देवादिपरिवारसहितेनस्वयसे श्रामुनिसुव्रतबिंब कारितं. खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसृरिप' श्रीजिनचन्द्र सूरिभिः। (२३२) संवत् १५१६ वर्षे शुदि १ दिने गुरौ तातहगोत्र १० लध्धा पुत्र साहा भार्या नगराज पुत्र नाखू युतेन स्वपुण्यार्थ श्री शीतलनाभिवं कारापिनं प्रतिष्ठितं ककुदाचार्यसन्ताने श्रीकक्कसूरिपट्टे श्रीदेवगुप्तसूरिभिः । २२८. अादिनाथ जैनमंदिर भायखला बंबई २५९. पुराना जैनमंदिर नासिक २३०. शांतिनाथ मंदिर भीडी बाजार बम्बई २३१. ... ... ... .." २३०. ... "Aho Shrut Gyanam" Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ जैन-धातु प्रतिमा लेख (२३३) संवत् १५३५ पोष वदि १३ बुधे उपकेशज्ञातीय ठाकुरगोगे साइ सामंत भार्या ह्रखू सुत साह सालिग भार्या धरणू भातृ साह सारंगु भार्या धारु साह सालिग सुतरू शेगु सिंधु मांडण श्रीआदिनाथबिंब कारापितं श्रीज्ञानकीयगच्छे भट्टारक श्रीधनेश्वरसूरिभिः । ( २३४) संवत् १५३५ वर्षे पोष वदि । उकेश ज्ञा० सा''ध भार्या राजू सुत राजा भरणादे पु० सवा श्रीचन्द्र भाडण भ्रा० सिरिया-साल गणेशादि कु० पितृश्रेयोर्थ श्रीसुविधिनाथविध कारापित प्र० श्रीलक्ष्मी. सागरसूरिभिः। (२३५) संवत् १५३६ वर्ष मार्ग शुदि६ शुक्रे श्रीर्थ मालज्ञातीय श्रे० तेजा भा० तेजल दे पुत्र खोनाकेन भा० जीविणि पु० नगा श्रमरमी प्र कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयोथं श्रीआदिनाथमिंबं कारित प्रश्नमाणगच्छे श्र.वीरप्रभा सूरिभिः ॥ तिमिरपुरे॥ सं० १५३६ वष वैशाष(ख) शुदि ८ शनी उपकेशज्ञातीय वर धरणीधर भा० भला सुत देवा भा० कुटीकेन स्वभत-आत्मअयोध श्रीधर्मनाथविबं का० प्रति० श्रीनागवालगच्छे श्रीधनेश्वरसूरिभिः ।। कोरडा वास्तव्यः ।। सं० १५३६ व० वैशाष व० ११ शुक्रे माईआकेन श्रीगौतम स्वामी का० प्र० २३३. पार्श्वनाथ जैनमंदिर बालापुर २३४. श्रीआदिनाथ जैनमंदिर भायखला बंबई २३५. जैनमंदिर गांव वाला चांदवड़ २३६. खरतरगच्छीय बड़ा जैनमंदिर तुलापट्टी कलकत्ता २३७. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर तुलापट्टी कलकत्ता "Aho Shrut Gyanam" Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन-धातु प्रतिमा लेख (२३८) संवत् १५३६ वर्षे आषाढ़ सुदि ६ श्रोउसवालज्ञातीय सा०३०या० भा० कुमादे सुत सा टीला भा० अछबादे नाम्न्या सुत जेसा सहितया आत्मश्रयसे श्रीअभिनन्दनबिंब कारित प्र० सर्वसूरिभिः । (२३६) मंवत् १५३७ वर्षे वैषाख सुदि ३ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय म० भाईश्रा भा० माणिक्यदे सुत सहसा भा. वड़धी आत्मश्रेयोर्थं जीवित. स्वामिश्रीआदिनाथबिंब का०प्र०पिप्पलग० त्रिमविश्रा श्रीधर्मसागरसूरिभिः।। संवत् १५४२ वर्षे शु० २० गुगै श्रीश्रीमाली गंधारवासि श्रे०हीरा भा० मेलू सु० नगराज भा. वाल्ही सु० अं० वीरपालेन भा० गोई प्रमुखकुटुम्बयुतेन श्रीसंभवनाथबिंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीरलशेखर. सूरिपट्ट श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । संवत् १५४२ वर्षे माघ सुदि १० रवी श्रीउसवाल ज्ञा० रुपेथऽनशे स० रन भार्या मेधाई पुत्र सं० भोजराजेन भार्या हरखाई पुत्र पूनजी सं० देवजी सं० बाउजी प्रमुखकुटुम्बयुतेन म्बश्रेयो) श्रे:अजितनाथादि चतुर्विंशतिपट्ट का प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागर. सूरिभिः ॥ शुभं भवतु श्री॥ सं० १५४२ वर्ष माघ शुदि २ शनी उकेशज्ञातीय सोनी षटवडगोत्रे सा० डूंगर पुत्र सा० तेजा भार्या तेजलदे पुत्र सा. नरपालेन भार्या देमी पु० मारग भ्रातृ वरदेयुतेन श्रीसुविधिनाथKि०० रुपपल्लीय गच्छे श्रीजिनोदयसूरि प० श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः । २३८. श्रीआदिनाथ जैनमंदिर भायखला बंबई २३६. नया जैनमंदिर नासिक २४०. श्रीआदिनाथ जैनमंदिर भायखला बंबई २४१, श्रीआदिनाथ जैनमंदिर नागपुर २४२. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर तुलापट्ट कलकत्ता "Aho Shrut Gyanam" Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૫૪ ( २४३ ) संवत् १५४२ वर्षे जिष्ट (? ज्येष्ठ) वदि ४ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० धना भा० रागू नाम्ना स्वभ्रता जास्वार्थ वासुपूज्यपंचतीर्थी बि कारितं श्रागमगच्छेश श्रीश्रमरसूरिभिः । प्रतिष्ठितं । उदयपुर वास्तव्यः । ( २४४ ) सं• १५४२ वर्षे फागुण शुदि ५ गुरौ श्री भावडारगच्छे उल्ल.० प्राम्हेडागोत्रे प्रा० देपा भा० हाराने पु० जगपान नाथा जगपाल भा० जसमा पु पोदा पितृमातृपुण्यार्थ श्रीनाथ का प्र० श्रीभावदेव सूरिभिः । जैन धातु प्रतिमा लेख ( २४५ ) संवत् १५४३ वर्ष वैषाख वदि १० शुक्रे श्रीमालज्ञातीय आामांकी नाम्ना मनसु कुटुम्बयुतेन श्रीशांतिनाथचिव कारि० प्र० बृहत्तपागच्छे उदयसागरसूरिभिः । गंधार बंदिर || ( २४६ ) संवत् १५४३ फा. वदि शनौ देवासनगरवासी प्राबाटज्ञातीय सा० साजरा भार्या सूहब देवी पु० मह लापा भाव करमी पुत्र रत्नासाह देवसिंहेन भार्या नाथा भगिनः श्रामाह तद् भागनेय सा० रामा भावड़ भा० धनी रंगपुत्र हरवाई प्रमुखकुटुम्बयुतेन २४ जिनपट्टसकारावित्रां (d ) स्वश्रेयसे श्रायांसबिंद का० प्र० तपागच्छे श्रीश्रीश्री लक्ष्मीसागरसूरिभि: । ( २४७ ) संवत् १५४४ वर्षे फागण दि २ गुरु श्र े० मोला भा० मडाल मणिक श्रीकोरंटगच्छे श्रीसावदेवसू (रि) | २४३. महावीर स्वामी जनमंदिर पायवुनि बंबई २४४. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर तुलापट्ट कलकत्ता २५. शांतिनाथ जैनमंदिर दादर २४६. जनमंदिर शाहपुर बंबई २४. जैनमंदिर गांववाला चांदवड़ "Aho Shrut Gyanam" Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख (२४८) सम्बत् १५४४ वर्षे वंशाख सुदि ६ शुक्र श्रीश्रीमालज्ञातीय भ. सांगा भा० हकू सुत पामराज भा० मत्कु सुत तेजपालेन भार्या हताई प्रमुम्बकुटुम्ययुतेन स्वश्रेयसे वासुपूज्यविध कारितं बृहत् तपागच्छे उदयसागर सुरिभिः । (२४६) सम्बत् १५४६ वर्षे आपाद वदि १२ रबौ शहलहागोत्रे सा० वाहठ भा०दोल्हू पु• समदा भा• सुगरणादे पुत्री हीरा जुगयुतेन सा. हे'ला कर मणिपुण्यार्थं श्र सुमतिनाचिंब कारित प्र. मलधारग-छे गुणसागरसूरिभिः। ( २५०) सम्बत् १५४६ वर्ष माघ सु० दशमी रवी ऊ० ज्ञातीय व्य० कोकाकेनश्रेयाथ श्रीगौतमस्वामी (२५१) संवत् १५४७ वर्ष माघ सुदि १३ रबौ श्रीमंडपे श्रीमालजातीय उदा भा०प पुन्स हामा भा० पूजो पुत्र जगसी भा. माऊ पु० सगोला मा० सांभा संमेघा पुत्री शाणो लधुभ्राता सं. राजा भा. माग पु० सं० जापई भार्या धनाडू जोवादि संलालादि कुटुम्बयुतेन १०४ चिम्बंकारारितं सश्रेयसे श्री .....दनधिम्ब. कारित प्रतिष्ठित तपागच्छे श्रीमोमसुन्दरमरिशिष्य श्रीलक्ष्मीसागरसूरि तत्पढे श्रीसुर्मातसाधुसूरिभिः । २४८. शांतिनाथ जैनमंदिर भीडीबाजार बंबई २४९. अन्तरिक्ष पार्श्वनाथमंदिर शिरपुर २५०. खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर तुलापट्टी कलकत्ता २५१. प्रादिनाथ मन्दिर (नया) नागपुर "Aho Shrut Gyanam" Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ जैन धातु प्रतिमा लेख (२५२) सम्वत् १५४७ वर्षे माघ सुदि १३ रवी श्रीमालज्ञातीय पु० माल भा०पुरी सु०हांसाकेन भा० रुपाई भ्रात प. मामू भा०कवाई सुतपुजादि. कुटुम्बयुतेन श्रीकुन्थुनाथविम्यं का प्र. तपापक्षि श्रीलक्ष्मीसागरसूरिपट्टे अंसुमतिमाधुमूरिभिः । (२५३) सम्बत् १५४६ वर्षे वैषाख सुदि २ दिने श्रीश्रीमालज्ञा० म० कान्हा भा० मानू सु० वरसिंग टूढा मांडग लाइण पितृमातृश्रेयार्थ श्रासम्भवनाथबिम्ब का० श्रीपूर्णिमापो श्रीसाधुसुन्दरसूरिपट्टे श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः प्रति० नगुदा वास्तव्य । (५४) सम्बत् १५४६ वर्ष फागुण सुदि २ दिने श्रीमंडपदूर्गवास्तव्य श्रा० बहुआ नासा श्रीपाल श्रावकेन श्रोकुन्थुनाथविम्ब कम निमितं कारित शुभंभवतु श्री ! सम्वत् १५५० वर्षे आषाढ़ वदि ८ शुक्रे उपकेशज्ञातौ श्रेष्ठिगोत्रे म० मवीर पुत्र म० सुरकरण आहडदेव्या पूर्ववजश्रेयसे श्रीअजितनाविम्ब कारित उपकेशगच्छे ककुदाचार्यपन्तान श्रीदेवगुप्तसूरिभिः । (२५६) सम्वत् १५५१ वर्ष महासुदि २ रवा उपकेशज्ञातीय नघणागोत्र सा दल्हा भार्या भरमादे पुत्र सा० भोपा गिमलदे पुत्र जिणदत्तश्रेयसे श्रीकुन्थुनाथविम्ब कारितं प्रतिष्ठितं उपकेशगच्छे देवगुप्त रिभिःरतिष्टितं । २५२. गोड़ी पार्श्वनाथमन्दिर पायधुनि बम्बई २५३. प्रादिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई २५४. श्रादिनाथ जैनमन्दिर भद्रावती म.प्र. २५५. जैन मन्दिर कटंगी म०प्र० २५६. जैन मन्दिर कटंगी म०प्र० "Aho Shrut Gyanam" Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन-धातु प्रतिमा लेख संवत् १५५१ वर्षे पोष सुदि १३ शुक्र श्रोध,मालज्ञातीय श्रे. होका भा० कुअरि सुत दो० मेहाजल भा०२ पूतलिदे भाई सुत २ अरपाल भा० कमलादे नाम्न्या पुत्र धर्मदासादि सहितया स्वन योर्थ श्रश्र,श्रीविमलनाथबिंब कारित प्रतिष्ठितं भीसूरिभिः । (२५८) ___ संवत् १५५१ वर्ष वैषाख वदि २ सोमे उकेशशे करमदीयागोत्रे म. गणोया भार्या लाजी पुत्र मं• सहिजा भा० सहिजल दे पुत्र मं. मणोरादिसहितेन स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथवि कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनह रिखसूरिपट्टे श्रीजिन प(१)द्र सूरिभिः । (२५९) संवत् १५५१ वर्षे वैषाख सुदि १३ गुरौ प्राग्वाटज्ञाता पदुमा ढुंगर भा० देहमणि पु० हेमाकेन भा. लाडकी पुत्र रना मांगा मात.. पादि यतेन स्वयसे अजितनाथवि कारित प्र. तपा० सुमतिसाधुसूरि पट्टे श्रीहेमविमलसूरिभिः। (२६०) संवत् १५५१ वर्षे विशाख (? वषाख) वदि १० गुरौ श्र उसवाल जातीय सोनी श्रम्ना भा० सहित सुत सानी.समरसी भा० मनाई अपरा भार्या जसमाई तेन स्वश्रेयसे श्रीसम्भवनाथमुख्यचतुर्विशतिपट्ट कारापितः प्रतिष्ठितः वृद्धतपापक्षे श्रीजिनरलसूरिभिः ॥ मंगलपुर वास्तव्यः ।। सम्बत् १५५१ वर्षे वै. घ. ५ गुरौ प्राग्वाट ज्ञा. कीका भा. (भ ?. त श्रीपाश्वनाथ कारितं आगमगच्छे श्रीर नसूरिभिः स्तंभतीर्थे । २५७. पुगतन जैन मंदिर नागपुर २५८. आदिनाथ जैनमंदिर भायखला बम्बई २५९. जैन मंदिर पुराना नासिक ६०. श्रीआदिनाथ जैनमंदिर पायधुनि बम्बई २६१. महावीर स्वामी जैनमंदिर पायधुनि बम्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू८ जैन-धातु प्रतिमा लेख (२६२) मम्वत् १५५२ वर्षे माघ शुदि ३ दिने उकेशवंशे परिक्ष ( ख) सं० परबत भा० मण की पु० सु० तेजसिंहेन भार्या डाही भातृ ५० हतादिपरिवार युतेन श्रीविमलनाथबिवं कारितं खरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्र सूरिभिः प्रतिष्ठित । (२६३) संवत् १५५२ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ शुक्र श्रीमालज्ञातीय माघलपुरागोत्र म०हंसराज भा० हांसलदे प्र० सा० षेढ़ा भार्या षीमादे आत्मश्रेज(य) से ओचन्द्रप्रभविम्वं करापिनं श्रीधर्मघोधगच्छ भ० कमलप्रभ. सूरि तत्प? भ. पुण्यवर्धनसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥छ!! (२६४) संवत् १५२ वर्ष माघ शुदि १३ श्र:उकेशवशे वहुरागोचे सा० कुरा भा० लहर पुत्र सा० बछा सा० पामाकेन मार्या रुपाइयुतेन पितृव्य मा० सदापुण्यार्थ श्रसंसवनाथविम्लां कारितं प्रतिष्ठित भीखरतरगच्छे अं जिनसमुद्रसूरिभिः । गुरुपुष्ययोगे ।। (२६५) संवत् १५५३ वर्ष वै० २० श्री शुक्र उसवालज्ञातीय ५० धारणा भार्या रमाइ सुत सा० वरता भार्या भटकू नाम्ना स्व. प. श्रेयोथ श्रीवासुपूज्यबिम्बा कारितं श्रीद्धतपापो श्रीज्ञानसागरसूरिभिः प्रतिष्ठित श्रीस्तंभती। (२६६) संवत् १५५३ वर्षे माघ शुदि ६ सोमे उसवालज्ञा० मा० लाया भा० लोलादे पत्र सा० मेघा सा० धना गणपतिभ्यां स्वभ्रातृ नरपाल श्रेयसे श्रीसुमतिनाथवि कारितं मा बि (द्वि) बंदणीकगच्छे सिद्धाचार्यसंताने प्र० श्रीकक्कस रिभिः ।। थलपामे ।। २६२. शांतिनाथ जैनमंदिर कोट बम्बई २६३. खरतरगच्छीय बड़ा जैनमन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता २६४. पुरातन जनमन्दिर अमरावती २६५. महावीर स्वामी जैनन्दिर पायधुनि बम्बई २६६. आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन-धात प्रतिमा लेख ५९ संवत् १५५५ वर्षे वैसाख शु० ३ शनौ प्रा० अ० सामल भार्या गोरीस (१ सु) त लालाकेन भार्या ललनू भ्रा० साजण सुन हर्षादि कुटुम्बयुतेनश्रेयोथे श्रीशांतिनाथबिम्बं का० प्र० तपागच्छे श्रीस(सु) मतिस रिपट्टे श्रीहेमविमलस रिभिः । मालसणावास्तव्यः ।। संवत् १५५५ वर्षे फागुण वदि २ मौमे लाटापल्ली वास्तव्यः उकेशज्ञातीय मं. भोजा. भा. सारू पत्र महं पोपट भार्या प्रीमल दे पुत्र कुरा खींमा भ्रातृ मकाना माकादि समस्तकुटुम्बयुतेन म्बयोथ श्रीसुमतिनाथ निम्नं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छाधिराज श्रीहेमविलाससूरिभिः । (२६६) संवत् १५५६ वर्षे वैसाख सुदि १३ रवौं उसकाल ज्ञातीय श्रे. खेता भा० संपुरी सु. श्रे. खोना भा० धीरु सुत लखा भा० लखमादेभ्यां सहितेन स्वश्रेयोथे श्रीशांतिनाथविम्म कारितं वडगछे प्र० देवचन्द्र स रिभिः । शेरपुरमामे ।। (२७०) मम्वत् १५५८ वर्षे भाहु (? ह) शुदि गुरौ श्रीवधारणगच्छे श्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठी (? ष्ठि) खोता भार्या धाऊ पुत्र झीणा भार्या हांसी सुत हादा भार्या सुहिवदे भातृरूपासहितेनभ्रातृपितृ निमित्तं श्रात्म श्रयाथ श्रीशरिश्वनाथ (! पार्श्वनाथ)श्विं प्रतिष्ठित श्रीविमल सूरिपट्टे बुध (१ द्धि) सागरसूरिभिः । (२७१) सम्वत् १५५६ अंबडी में २६७ नया जनमन्दिर अमरावती (बरार) २६८. अंतरिक्ष पार्श्वनाथमन्दिर सिरपुर (बरार) २६६. गणेशमल सौभाग्यमल का मन्दिर बम्बई २७०. श्री महावीर स्वामी जैनमंदिर पायधुनि बाई "Aho Shrut Gyanam" Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० जैन-धातु प्रतिमा लेख ..(२७२) सम्बत् १५६० वर्ष वैषाख वदि ३ रवी श्रीहुबडजातीय वृध्धशाखायां व्य० महिराज भा० हेमादे सु० से मांगा देवदास भा० हेमादे कबाई प्रमुखस्वकटुम्बश्रेयोर्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिन कारितं प्र. श्री वृद्धतपापक्षे भ श्रीधनरत्नसूरिभिः । सम्बत् १५६० वर्षे वैशाख शुदि ३ दिने उसवालज्ञातीय मंडवा मा० संपूरि सुन भागचन्द्र भार्या गंगादे सहितेन श्रीकु थुनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीद्विवंदणीकगच्छे भ० कक्कसूरिभिः ॥ खेड़ामाम वास्तव्यः ।। (२७४) सम्बत् १५६० वर्ष माघ सुदि १३ सोमे श्रीश्रीवशे सा० जगडू भार्या शांति सुत सा० लटकण भार्या ललादे अंअंचलगच्छे सिद्धान्तसागरसूरीणामुपदेशेन श्रीसम्भवनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं असंधेन स्तंमतीर्थे । सम्बत् १५६० वै० २०३७ सा० तुला मा सलखू पुत्र नीरूलेन भा० नारिंगदे प्रभोला हुंगर, भाऊ जलादि कुटुम्बयुतेन श्रीश्रेयांसबिच का०प्र० तपा श्रीहेमविलाससूरिभिः । (२७६) सम्वत् १५६३ वर्षे वैषाख सुदि ३ दिने श्रीमालशातीय भांडीया गोत्री (वे) सा० अजिता पुत्र सा० लाखा भा० अटी सुश्राविकया श्रीचन्द्रप्रभबिंब कारितं स्वपुण्यार्थ प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे अंजिनसमुद्रसरि पट्टालंकार श्रीजिनहससूरिभिः । कल्याणं भूयात् महासुदि १५ दिने । २७२. श्रीअन्तरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिर सिरपुर २७३. शांतिनाथ जैनमंदिर भींडीबाजार बम्बई २७४. श्रीगोडी पार्श्वनाथ जैनमंदिर पायधुनि बम्बई २७५. जैनमंदिर पांचोरा २७६. गोडी पार्श्वनाथ मंदिर पायधुनि बम्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेन-धातु प्रतिमा लेख (२७७) सम्वत् १५६३ वर्षे वैषाख सुदि ११ शुक्र श्रीश्रीयंशे म० महिराज सु० म० बाला भायो रमाई पुत्री रूपू (यहां पर सुन्दर चित्र अकित है) मुश्राविकया स्व श्रेयोर्थ श्रीअंचलगच्छेश भावसागरसूरीणामुपदेशेन श्रीनमिनाथबिंबं कारित प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन । श्रीजान पामे। (२७) सम्वत् १५६४ वर्षे वैषाख सुदि ८ श्रीश्रीमालज्ञातौ घेवियागोगे सा० देपा पुत्र सा० महिया पुत्र सा० करणा भा० श्राविका कस्तूरी पुत्र सा जीजा भार्या सा० मेघा पुत्रीकया देवगुरुभक्तिकथा रत्नाई सुश्राव किया स्वभ→ श्रेयोर्थ श्रीपार्श्वनाथबिंब कारित प्रतिष्ठित खरतरगच्छे जिनहंससूरिभिः। (२७९) सम्बत् १५६५ वष माघ शुदि ५ गुगै श्रीश्रीमालज्ञातीय सा० नाथा भा० वंगी नाम्न्या सा० जागा भा० अधिक सुत ठाकुर प्रमुख समस्तकुटुम्बयुतया स्वश्रेयोर्थ श्रीचन्द्रप्रभत्रिवं कारापितं प्रतिष्ठित प श्रीपूर्णिमापो श्रीसुमतिरमसूरिभिः विधिना । (२८.) सम्बत् १५६५ वर्ष वैषाख वदि १० रवी श्रीउसवाल ज्ञातीय सा० अगसी भा० जिबी "सुहवदे स्व भरि निमित्त श्रीकुथुनाथविन कारापित प्रतिष्ठितं पूनमीया उदयचन्द्रसूरिभिः । २७७. जैनमंदिर घाटकोपर बम्बई २७८. पुरातन जैनमंदिर अमरावती २७६. पार्श्वनाथ जैनमन्दिर भद्रावती २८०. पुरातन जैनमन्दिर अमरावती "Aho Shrut Gyanam" Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन-धातु प्रतिमा लेख (२८१) सम्वत् १५६५ वर्षे विषाख सुदि ९ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे. चोटा भा. वीरी सुन अं. लखमण श्रे० नाथा श्रे० साजण श्रे पासड़ जगडू लखमण भार्या लखमादे सुत जागाकेन भार्या अधकू सुत ठाकुर प्रमुख कुटुम्बयुतेन आत्मश्रेयसे श्रामिनाथयुतश्चतुर्विशांत पट्टः श्रीपूर्णिमापदो श्र पुरयरलसूरिपट्टे भ० सुमतिरत्नसुरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठित वधिना मंडपदुर्गे। (२८२) संवत् १५६६ वर्षे माघ वदि ५ गुरौ लघुशाखायां सा० विरम भा० कली पुत्र सा० आसा भार्या कुंअरी नाम्न्या मुनिसुव्रतविम्बं कारितं स्वश्रेयसे प्र० तपागच्छे देवांवमल सूर्तिमः ।। नलकछे ।। (२८३) संवत् १५६६ वर्षे माघ सदि पंचम्यां सोमे उसवंशे अंधिकागोत्रो सा० सिधा भा० वती पु० सा० राजा सा सीया भा० सिकताद पुत्र हीरजी पदमसी सकतादे स्वपुण्यार्थ श्रीसुमतिनाथबिम्बं कारित भावड़ हरागच्छे भट्टारिक श्रीविजयसिंधसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। (२८४) संवत् १५७० वर्षे कार्तिक दि २ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्र० श्री राज भा० इकू नाम्न्या श्रात्मश्रेयसे श्रीअभिनन्दनस्वामीबिम्बं कारितं आगमगच्छ श्रीसोमरलसूरिभिः गुरुपदेशेन प्रतिष्ठित च विधिना चापानेरदुर्गे ॥ २१. गाड़ी पार्श्वनाथ जनमन्दिर पायधुनि बम्बई २-२. गोडी पाश्वनाथ जैनमन्दिर पायधुनि बम्बई २-३. आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई २८४. चन्द्रप्रभु जैनमन्दिर सेन्डहर्स्ट रोड बम्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख (२८५) संवत् १५७० वर्षे माघ वदि ६ शनो श्रीमालज्ञातीय मं० सहद भा० सहजलदे पु० मंत्रिर हाथी ( अन्य क्षरों से ) सुभाव केण भार्या नार्थ सा० हांसा काका मुख्य कुटुम्बयुतेन श्रीचगच्छेश श्रीभावसागरसूरिणामुपदेशेन श्रीआदिनाथविम्बं कारितं प्र० श्र. चपकपुरे श्री ।। ६३ (२८३) संवत् १५७३ वर्षे वै० शुदि १० शुक्रे पत्तनवा तव्यः श्रीआठारौ (?) श्र० लखमसा सु० श्र० मीसा सु० मेघा श्र० सोभा श्रे० समरा मेघा भार्या नाथी नयास्थेपसे श्रीपारवनाथ वित्र (? विम्बं ) कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः । (२८७) संवत् १५७५ वर्षे माघ वदि २ सौमी श्री श्रोसवंशे लघुसंताने भ० कदा भा० जीमलदे पुत्र महं श्रम भा० पूरि पुत्र श्राटोल पटाल लटका - सुने | श्रीवासुपूज्यविम्बं का० द्विवदण (?) गच्छे सिद्धाचार्यसंताने श्रीदेवगुप्तसूरिभिः || उंझामामवास्तव्यः ( २८८ ) संवत् १५७५ वर्ष मात्र सुदि ६ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय स० हर्षा भा० लाडडि सुत० सवछा स० नीया भा० रूपा मं पांचा संकीका प्रमुख कुटुम्बयुतेन बाई लाडिक नाम्म्या आत्मश्रेयसे श्रीसीतलनाथतीर्थंकरयुतचतुर्विंशतिपट्टः कारितं श्रीश्रागमगच्छे श्री श्रमररत्नसूरि तत्पट्टे श्री सोमरत्न सूरिगुरुपदेशेन प्रतिष्ठिताच विधिना विजापुरे || २८५ आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई २८६. शांतिनाथ जैनमन्दिर भींडीबाजार बम्बई २८७. शांतिनाथ जैनमन्दिर भींडीबाजार बम्बई २. जैनमन्दिर आरवी म. प्र. "Aho Shrut Gyanam" Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ जैन-धातु प्रतिमा लेख (८९) संवत् १५७६ वर्षे वैशाख मासे सुद पक्षे षष्ठितिथौ सोमवासरे पुष्यनक्षत्रे श्रीश्रीउकेशवंशे श्री षवड (2) गोत्रे सा० सहज भा० सह जलदे तपो(?)पुत्र सा० हेतरसिंध भार्या श्रीगांगी पुत्र सा० सीधा भायो हांसाइ पुत्र साहण जपाल भा० सुश्राधिका अहवदे तयो(:) पुत्रा (१) साइ सोहनपाल साह पूना साह भोजा, साह भीमा, साह भजवल साह भरत प्रमुखपरिवाराणां सु० श्रीहांसाई श्रेयसे मूल नाह (य) क अं संभवनाथप्रमुम्बचतुर्विनिजिनापट्टक कारितं प(?) श्री कमल प्रभ. सूरिपट्ट भट्टारिक श्री उदयप्रभसूरिभिः ।। (E) संवत् १५७६ वर्षे वै० सु० ६ सोमे श्रीकर्करपाटके नागरज्ञातीय श्रे० होसा भार्या हांसल दे सुन ० रामदाम केन भार्या रूपो सुत सह. देयाल प्रमुख युतेन श्रीशांतिनाथबम्वं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीवृद्धतपापो बोधनरलमूरिभिः । (२६१) संवत् १५७६ वर्षे वैशाख सुदि ५ रवौ प्राग्वाट्शातीय सा० जगमल्ल भा० अमरी सुत सोभा भार्या सोभागिणि आत्मयो आदिनाथबिम्ब कारितं श्रीवृद्धतपापक्षे भ० श्र श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं । सूद्रोसण व.रत यः । (२६२) संवन् १५७६ वर्ष वंशा० सु०६ सोमे पं अभयसागरगण प्रयदि शिष्य पंडित अभयमन्दिरगणि अभ्य (भय) रत्नमुनि प्रताम्यां श्रीशा तनायबिंब कारितं प्रतिष्ठितं वृहत् तपा पो) श्रीसौभाग्यसूरिभिः । २८. श्रीशांतिनाथ जैनमन्दिर भींडीबाजार बंबई २६०. श्रीशांतिनाथ जनमन्दिर भौंडीबाजार अंबई २६१. जैनमन्दिर पाचारा २६२. गोडी पार्श्वनाथ मंदिर पायधुनि बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख ] २४३ सम्बत १५७७ वर्षे वैसाख (श्व) शुदि म श्रीश्रीमाल श्रे. वइजा भार्या वइजलदे पु० सा० करनसी भा० जीवादे पुत्र कान्हा सहितेन श्रीशान्तिनाथबिम्ब का०....तं प्रति० पूर्णिमापक्षे भ० मुनिचन्द्रसूरमिः। २६४ सम्वत १५७८ माघसुदि ४ गुरु उसर्वशे आमड़गोत्रे सा० धरणा भा० ठायकू सु० पाणंद भा० रंगादे पु. परदे निजकुटुम्ब श्रेयोथ श्रीआदिनाथविम्ब कारतं प्रति उगच्छे श्रीसिद्धसूरिभिः । “वलाश्रर । सम्वत १५७८ वर्षे माधवदि ८ सोमे श्रीभावडारगच्छे प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० आसधर मुह श्रे सालिग भा० पातलि पुत्र मेघा हंसा सीवा मेधा भा० मल्ही पु० वीरपाल सोना, पूना अगरा श्रे० मेघा निमित्त श्रीकुन्थुनाथविम्ब कारितं प्र.श्रीविजयसिंहसूरिभिः । पत्तनवास्तव्य कल्याणमस्तु २६६ संवत १५७८ वर्षे फागुण सुदि । बुधे राजाधिराज श्रीनाभिनरेस्व (! श्व) र तत्भार्या श्रीमरुदेव्या तत्पुत्र श्री श्री श्री श्री श्री आदिनाथस्यबिम्ब कारितं । इन्द्राणी अभिधानेन कर्मक्षयार्थ श्रेयेस्तु शुभंभवतु॥ २६३ खरतरगच्छीय बड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता। २६४ आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई। २६५ आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई। २६६ खरतरगच्छीय बड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता । "Aho Shrut Gyanam" Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जैन धातु प्रतिमा लेख २१७ संवत १५८० वर्षे वैषाख वदि ४ गुरौ श्रीउसवालझाती सा० साहुशाखायां पारिखि (! पारिख) गोगे पा. शिवकर भार्या वाल्ही पु० परिखि जागमालेन झब्बू पत्र धीग सोमासिंहादि कुटुम्बयुतेन स्व श्रेयसे श्रीश्रीपार्षनाथबिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरगच्छे श्रीजिन हँससुरिभिः ।। मंगलपुरवास्तव्यः ॥ २६८ सम्वत १५८० वर्षे वैशाख सुदि ५ शुक्रे श्री श्रीमालज्ञातीय श्रे गोरा भा. प्रेमी सुतेन श्री वीकाकेन भा. वईजलदे पुत्र भोजा प्रमुख कुटुम्बयतेन श्रीचन्द्रप्रभुस्वामिबिम्ब कारितं प्र. पिप्पलगच्छे श्रीधर्म निमलसुरिभिः । २६८ संवत १५८१ स० मु० पदतमे.......दीपाक.......। ३०० संवत १५६१ वर्षे वैषाख वदि २ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय मंः रत्ना भा. वानू भा० बनी जवा जागना कुटुम्बयुतेनस्वश्रेया श्रीअजितनाथविम्बं कारितं वृद्धतपागच्छे श्रीधनरलसुरिभिः । भगड़वाल वास्तच्यः॥ २६७ गणेशमल सौभाग्यमल मन्दिर, झवेरी बाजार बम्बई। २६८ गोडी पार्श्वनाथ मन्दिर पायधुनि बम्बई । २६६ आदिनाथ मन्दिर नया, भाजीमण्डी नागपुर म०प्र० ३०० आदि जिनमन्दिर भायखला बम्बई । "Aho Shrut Gyanam" Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख] [६७ ३०१ संवत् १५६७ वर्षे माघशुदि १३ रवौ उकेशबंशज्ञातीय बरहडीयागोत्रे सा० भीमसी भा० केल्ह पुत्र सा० गांपूकेन परा देपादि कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीनभिनाथबिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्री लक्ष्मीसागरसूरिप? सुमतिसाधुसूरिभिः चंदेरानगरे । ३०२ संवत् १५० (?) माघ शुद १० शनौ उकेशवंशे घुलगोत्रे सा० सांडा भार्या करणू पुत्र सा० जिनदत्तेन स० जगमाल साधु जीवा सा० जोग प्रमुखपरिवारयुतेन स्वभार्याश्रविकालखभादेपुण्यार्थ श्रीसुविधिनाथबिम्बं कारापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवद्धनसरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टेशः श्रीजिनसागरसूरिभिः ।। श्री।। ३०३ संवत् १६०० वरष व इस ष (वैसाख) सुदि २ गौ? (गुरौ) श्री चांपानेरवास्तव्यः उसवालन्यात सा० मेरा पुत्र गागा तासुपुत्र थावर तास भारज्या (भार्या) रषिता पुत्र आणंद । ऋषभदास लषा धर्मदास श्री वज्य द रामसूरि (विजयानन्द सूरि !) तपागच्छे श्रीपार्श्वनाथबिंब रिषभदास ६००1 ३०४ संवत् १६०० वर्षे ज्येष्ठ शुदि ३ शनौ श्रीश्रीमालज्ञातीय लघुशाखायां सा० सहिसकरण भा० ममनादे पुत्र साह सकल भार्या चंद सुश्राविका स्वश्रेयसे अंचलगच्छे श्रीगुरणनिधानसरीणामुपदेशेन श्रीधर्मनाथबिम्ब कारितं प्र० श्रीसंघेन ॥ ३०१ जैन मंदिर गणेशमल सौभाग्यमल, झवेरी बाजार ३०२ जैन मंदिर तपागच्छ बालापुर ३०३ खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर तूलापट्टी कलकत्ता ३०४ चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर गुलालवाडी बंबई "Aho Shrut Gyanam" Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ ] [ जैन धातु प्रतमा लेख ३०५ संवत् १६०१ वर्षे श्रीमाली वृद्धशाखाया दो० भाणा भार्या गटू पुत्र दो० नाकर ठाकर नाकर भार्या रजई नारकेन स्वमातृपितृ पुण्यार्थ श्रीश्रेयांसनाथबिम्ब कारापितं प्रतिष्टि (ष्ठि) तं बोरसिद्धीय पूर्णिमापक्षे श्रीगुणकारित (?) तत्पट्टे श्रीउदयसुन्दरसूरितत्पट्टे ज्ञानसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीवोरसिद्धीय ग्राम वास्तव्यः । संवत् १६०४ वर्षे वैसाख वदि ७ सोमे स्तंभतीर्थे उसवाल (? उसवाल) ज्ञातीयवद्धशाखायां श्री कमा भा० करमादे श्रीमुनिसुव्रत स्वामि (बिम्बं कारित) प्रतिष्ठितं श्री वृद्धतपापक्षे श्रीश्रमररत्नसूरि (भिः)। संवत् १६०७ वर्षे श्रावण सुदि ८ दिनै ऊकेशवशै नवलखा गोत्रे सा० तानिग पुत्र सा. जगा हरिचंद वरजागवीरा केन निजभ्राता पुतांकर श्रेयसे श्रीशांतिाथबिंबं कारितं श्रोजिनमाणिसूरिभिः ।। (प्रतिष्ठितम् ) ३०८ संवत् १६०४ वर्षे श्रीसत धारवास्तव्य श्रीमालज्ञातीयः पा० सहिजपाल प्र. सा. सध श्री पार्श्वनाथ बिम्ब कारापित ३०६ सम्बत १६१५ वर्षे पोस (ष) वदि ६ शुक्ले श्रीगंधारनास्तव्य प्राम्वाहासीय सेजपाल भा लाडक सुत दोन श्रीकर्णभार्या सिंगारदे सुत देवराज' नाम्ना श्रीविमलनाथविम्ब कारापितं तपागच्छे श्रीविजयदान सुरभिः प्रतिष्ठितं स्वश्रेथोर्थः।। ३०५.गोडी पार्श्वनाथ मंदिर पायधुनि बबई ३०६ निज़ दैनन्दिनी से ३०७ खरतरगच्छीय घड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता । ३०० ३०६ गोडी पार्श्वनाथ जैन मन्दिर पायधुनि बम्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख ] सम्वत १६१६ वर्षे विशाख (१ वैशाख) सुदि १० रवौ श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्य श्रीमोदज्ञातीय वृद्धशाखायां कासवः (? काश्यप) गोत्रे ठा गांगा सुत ठा त्रंबमा बाई अताई पुत्री बाई चांदला नाम्न्या श्री आदीश्वरचतुर्विंशतिजिनबिम्ब प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे सरीन्द्र श्रीश्रीश्री विजयदानसूरिभिः श्री। श्री ।। श्री शुभं भवतु ।। ३११ __ सम्बत १६१८ वर्षे फागुण शुदि ११ शनौ राजा श्रीसंवर माता श्री राराणा तत्पुत्र श्री संभवनाथ विवं कारितं । श्री खंभात वास्तव्य श्रीश्रीमाल ज्ञातीय..."कर्म क्षयार्थ कारितं ।। ३१२ सम्वत १६२० वर्षे फागण वदि १२ बुधे सीरोहीनगरे उपकेश ज्ञातीय गे....सी.नेदा भा० वील्हणदे प्र० सदारगच्छेभ....पार्श्वनाथ कारापितं श्रीजीराउलागच्छे श्रीसालभद्रसुरभिः ॥ सम्वत १६२६ वर्षे फागुण सुदि ८ दिने तपागच्छे भट्टारक श्रीहीरविजयसरि स्वहस्तप्रतिष्टितं श्री शांतिनाथ बिम्ब गां लखमसी भा० वरवाई सुत नकरा पदमसी बडलीग्रामे ।। संवत् १६२७ वर्षे शाके १४१२ प्रवर्तमाने पोसमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमातिथौ गरुवासरे श्रीमालज्ञातीय वद्धशाखायां सं. राणा भार्या बा. राजलदे सुत सु चांपा अमीपाल श्रीनेमिनायबिम्बम् कारित प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे श्रीरविजयदानसरि तत्प? श्रीहरीविजयसूरिभिः । श्रीस्तंभतीर्थे नगरे ।। शुभम् भूयात् ।। ३१० शांतिनाथ जैन मन्दिर कोट बम्बई। ३११ खरतरगच्छीय बड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता। ३१५ जैन मन्दिर ( गांव का) चांदवड । ३१३ पार्श्वनाथ जैन मन्दिर भद्रावती। 359 अादिनाथ जैन मन्दिर भायखला बम्बई। "Aho Shrut Gyanam" Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] [ जैन धातु प्रतिमा लेख ३१५ संवत् १६४० वर्षे पोस वदि २ सोमवार दिने श्रीतपागच्छ नायक श्री हीरविजयसूरिभिः श्रीआदिनाबिम्बं प्रतिष्ठितं सा.. श्राविका सा. भगिणि सुत सा. मेघजीकेन कारितं ३१६ संवत् १६४० वरषे ( वर्षे ) वैशाष (ख) वदि सोम श्रीश्रोसवालज्ञातीय सा० देवदास भारया (भार्या) देवलदे तत्पत्र सा० रतनपाल भारया बा० रतनादे त० सभ्यत्रे (१) सा जावड़ भारया बा. जासलदे तरापत्री (? तस्यपुत्री) बा० जी.......धरमनाथ.... विजिदानसूरि (विजयदानसूरि ) प्रतिष्ठितं ॥ संवत् १६४३ वर्षे का० सु० ११ श्रीश्रीमाल जाता....साहमेघा भार्या जीवी सनाम्नी स्वहितुः पुण्यार्थ श्रीसुमतिनाथबिम्ब कारितं प्र० तपागच्छीय दिनमणि श्री हीरविजयसूरिराज्ये विजयसेन सूरिभः । “पत्तने श्री"। संवत् १६५६ वर्षे आषाढ़ वदि ५ दिने गुरौ उत्तराषाढायां उसवाल ज्ञातीय लोढ़ागोत्रे जिनचन्द्रसूरिभिः। श्री खरतरगच्छे । ३१६ संवत् १६५८ वर्षे माघ सितपंचमी सोमे वृद्ध सा (? |) अहम्मदाबादवास्तव्य उसवाल ज्ञातीय । सा । घोघा भार्या कान्हा सुत श्री राजा भार्या अदकू सुत सा० जयतमल भार्या जीवादे सुत सा० ३१५ शांतिनाथ जैन मन्दिर भींडीबाजार बम्बई । ३१६ श्रीदिगम्बर जैनमन्दिर नांदगांव अमरावती । ३१७ ३१८ आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई । ३१६ पार्श्वनाथ मन्दिर भद्रावती म०प्र० "Aho Shrut Gyanam" Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख ] [७१ ठाकर नामना भ्रातृ शा. पण्यपाल मां नाकर स्वभार्या गमतादे सुत लालजी वीरजी प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्री शं (? सं) भवनाथ बिम्बम् कारितम् प्र० श्री तपागच्छ महानृपप्रतिबोधक भ० श्री हीरविजयसरि तत्त्पट्टे प्रभावक सुविहित भ० श्री विजयसेनसूरिभिः श्राचार्य श्री विजयदेवसरि उपाध्याय श्री कल्याणविजय गणि प्रमुख परिवृत्तः ॥ परिकर बड़ा सुन्दर और सापेक्षतः शताब्दी की दृष्टि से सर्वथा भित्र है। ३२० __ संवत् १६६० व वै शु १३ दि. श्रीश्रीमालज्ञातीय स वछा तद भा० श्री रतनबाई श्री कंथुनाथ बि० का० प्रति तपा भ० श्रीविजयसेन सूरि प्रे नयविजय “भादक । ३२१ संवत् १६६२ वर्षे फागुण वदि २ शुक्र श्री अहिम्मदाबाद मध्ये उसवंशज्ञातीय वृद्धशाखायां सोना भार्या बा० मूली तत्पुत्र भ । कमलसी भा० बा० कमलादे तत्पुत्र भ० खंपी भा० बा० पु० भागिणी प. कीकाकेन भा० अष्ट पुत्रादि सहितेन श्री ७ धर्मनाथ बिम्बं कारित कर्मक्षयार्थ साह श्री कडूमा निसमबाई श्रीविकेन, प्रतिष्ठितं शुभंभवतु । चीरं जीयात् । कल्याण मस्तु !! ३२२ सं० १६७८ वर्षे फगुण शुदि , शनर (शौ) श्रीपत्तन वास्तव्य श्रीउसवालज्ञातीय वृद्धशाषे (खे) सोनी वद्याधर भा? बा. मनी सुत सो०-रामजी कापितं भ० बा० अजाई श्री तपागच्छे भट्टारक श्री विजयसेन सूरि पट्टा कार श्री विजयदेवसूरिभिः। ईडर नगरे प्रतिष्ठितं ।। ३२० पाश्वनाथ जैन मंदिर भद्रावती म०प्र० ३२१ खरतरगलीय बड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता ३२२ खतरगच्छीय बड़ा जैनमन्दिर तुलापट्टी कताकत्ता "Aho Shrut Gyanam" Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२] [ जैन धातु प्रतिमा लेख सं० १३७८ वर्षे फागण शुदि ६ शनउ श्री पत्तनवास्तव्य श्री असवाल ज्ञातीय वद्भशाप (खे) रामजी भा० बा० अजाई सुत सो० वमलदास करापिन भा० बा फुला श्रीतपागच्छे भट्टारक श्री विजयसेन सूरि पट्टारक श्री विजय देवसूरिभिः। प्रतिष्ठितं विमलनाथ बिम्ब इडरनगरे प्र.॥ ३२४ संवत् १६६० वर्षे माष सुदि ११ ग्वौ श्री बर्हानपुर पार्श्वनाथ विम्ब कारापितं भट्टारक विजयतिलकसूरि तत्प? श्री विजयाणंद सूरिभिः । संवत् १६६१ व. सा० नगडु भा० बीराबाई श्री संभनाथ बिम्बं का०प्र० श्री विजयाणंद सूरिभिः ३२६ संवत् १६६३ वर्षे फागुण शुदि ३ दिने प्राग्वाट ज्ञातीय सा० हयत भार्या तत्पुत्र देवकरणेन श्री जिनकुंथुनाथ बिम्बं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छे भ० विजयदेव सुरि आचार्य श्रीविजयसिंघ सूरिभिः । ३२७ संवत् १६६३ वैशाख सु० ६ गुरौ पत्तन वास्तव्यः उकेश ज्ञा० प्र० कंबरसी भा कोडिमदे सु० प्र. विमलसी केन श्री शांतिनाथ बिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छे श्री विजयदेव सूरिभिः ३२३ खरतरगच्छीय बड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता ३२४ शांतिनाथ जैनमन्दिर दादर बम्बई ३२५ पुराना जैन मन्दिर अमरावती ३२६ जैन मन्दिर मानिकचन्द्रजी भद्रावती म०प्र० ३२७ चन्द्रप्रभ जैनमन्दिर सेंडहर्स्ट रोड बम्बई "Aho Shrut Gyanam" Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख ] ३२८ संवत १६९४ वर्षे माघ शुदि ६ गुरौ रेवतीनक्षत्रे श्री द्वीपबंदिर वास्तव्य उकेशज्ञातीय वृद्धशाखीय सा० श्रीकरण भार्या श्रीसिरोदे सुत सा० मोसी भार्या श्रीसम्पूराई पुत्र रत्न सा० शिवराज नामना श्रीश्रादिनाथविम्बं कारितं स्व प्रतिष्ठि.... च । प्रतिष्ठापितम्... तपागच्छे म० श्रीविजयदेवसूरिभिः । [ ७३ ३२६ सम्वत १६६६ माघमासे कृष्ण प्रतिपक्षे.... बाटया श्रीमंडपदुर्गे श्रीनागपुरीयतपागच्छे श्रीपासचन्दसूरिभिः गुरुभ्यो नमः श्रीजयचन्दसूरि विजयराज्ये मोह खेताना सोवी सुहन देवा । ( स्फटिक रत्नकी प्रतिमा पर से ) --- ३३० सम्वत १६६६ फागुण सुद ३ वटपद्र ( वडोदा ) वासि सा० खीमजी सुपुत्र माणिकजीकेन श्रीअंतरिक्ष पार्श्वनाथबिम्बं का० प्र० तपा श्री विजयदेवसूरिभिः ॥ ३२८ ३२६ जैन मन्दिर पार्श्वनाथ भद्रावती । ३३० जैन मन्दिर नाखिक । ****** इसी मूर्ति के रजत परिकर में निम्नलिखित लेख उत्कीर्णित है सम्वत १६६७ व वै० वदि २ दिने नडीआदिनगरवासी उसबाल वृद्धज्ञातीय राधरण गोत्रीय सा० खीमजी भा. भाई तुलजाकुक्षि संभूत पुत्र सा० माणिकजी मेघजीनामाभ्यां श्रीअन्तरिक्षपार्श्वनाथ परिकर कारितः प्रतिष्ठित श्रीतपागच्छेश भट्टारक श्रीविजयदेवसूरि पादे महम्न प्रदत्ताचार्य पदप्रतिष्ठि श्रीविजयसिंह सरिभिः ॥ "Aho Shrut Gyanam" Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] [ जैन धातु प्रतिमा लेख ३३१ सम्वत १६६७ वर्षे काल्गुन सित पंचमी गुरुवासरे श्रीस्तम्भतीर्थ : वास्तव्यः वृद्धशाखाणां उकेशज्ञातीय सा. लक्ष्मीधर भार्या बाईलखमादे पत्री बा० कान्हाबाईनाम्ना स्वमात सा० धनजी सा० रतनजी सा० पंचारण प्रमुखपतया श्रीनमिनाबिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं च स्व प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठिः श्री तपागच्छाधिराज भट्रारक श्रीविजयसेनसूरीश्वर पट्टालंकार श्रीविजयदेवसूरीश्वर पट्ट प्रभाकराचार्य श्रीश्रीविजय-- सिंहसूरिकिंवा ३३२ सम्वत १७०१ वर्षे चैत्रासित अष्टभ्यां बुधवासरे नंदरकार वास्तव्यः चक्रर प्राग्वाटज्ञातौ वद्धशाखायां मां कृष्णाजी भार्यागौरी पुत्र रत्नसाह माणिकजी नाम्ना स्वभार्या रतमबाई प्रमुख परिवार श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ चतुर्विंशतिपट्टःकारिता प्रतिष्ठितः तपागच्छाधिराज भट्टारक विजयदेवसूरि (भिः) श्रीदक्षिणदेशे स्याहपुरे । ३३३ सम्वत १७०२ वर्षे श्री फागुण सुदि २ रवौ श्रीदेवगीरी ( दौलताबाद ) वास्तव्य उकेश ज्ञातीय श्री० भाइजी भा० गडसादे नाम्न्या स्वकुटुंब श्रेयसे स्वकारित प्रतिष्ठिता ॥ मुनिसुव्रतस्वामि विम्ब का प्र० तपागच्छाधिराज विजयसेनसरि पट्टालंकार भ०विजयदेवसूरिभिः महातीर्थ अंतरिक्षप्रतिमा श्रीसिरपुरे । संवत् १७२७ जं जु० खरतरगच्छीय महोपाध्याय सत्यविजय गणिना प्र० पार्श्व बिंबं॥ ३३१ खरतरगच्छीय बड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता। ३३२ श्रीशांतिनाथ मन्दिर भीडीबाजार बम्बई । ३३३ गोडी पार्श्वनाथ मन्दिर पायधुनि बम्बई । ३३४ खरतरगच्छीय बड़ा जैन मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता। "Aho Shrut Gyanam" Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख ] [५ ३३५ संवत् १७६६ वर्षे वैषाख वदि १ गुरौ श्री सूरतिबिंदरवास्तव्यः श्रीश्रीमालीज्ञातीय वृद्धशाखीय पं० सुन्दरदासं तत्पुत्र सा० नागरदास भार्या उभय कु० कुलानन्ददायिनी बाई अगतबाई केन स्वद्रव्येण पुण्यार्थ श्रीसुमतिनाथबिम्ब कारापितम् प्रतिष्ठितम् च श्रीतपागच्छे जिनशासनोन्नतिकारक सकल भट्टारक पुरंदर श्रीआणंदविमलसूरि पट्टे श्रीविजययानसूरिपटटे जगतगुरु भ. श्री विजयदेवसूरि पट्टे आचार्य श्रीविजयसिंहसूरि भ० श्रीविजयप्रभसूरि पट्टे संविज्ञ पचे महारक श्री ज्ञानविमलसूरिभिः ३३६ सम्वत् १७८४ वर्षे फागुण सुदि ५. रवी स्तंमतीर्थवास्तव्यः अकेशबंछो संघवी जवराजीसुतासंथवी मंगल जी भा संघ बहुतयो श्री स्वयंप्रभ जिनबिम्ब कारितम् मोक्षमानाय तपागच्छ ...भ.... सौभाग्यसागरसूरिभिः ।। श्रीरस्तु ।। ३३७ सम्वत् १७८५ वर्षे माह पदि ५ शुक्र श्रीअंचलगच्छे पूज्य श्रीविद्यासागरसूरीणामुपदेशेन श्रीश्रीमाल ज्ञातीय परिख प्रतापसी सुत पाता गवाछदासेन श्रीधर्मनाथ बिम्नं प्रतिष्ठापितं श्रीयभवतु । संवत १७८८ पोष वदि १ रवौ सूर्यपुरेवा चस्य'... रायसी खम्पा बाई - 'उकारितं प्र.... 'ल्याण सागरसरिभिः ३३५ महावीर जैनविद्यालय देरासर बम्बई ! ३३६ जैन मन्दिर घोटी नासिक । ३३७ खरतरगच्छीय बड़ा जैन मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता । ३३८ शांतिनाथ जैन मन्दिर दादर बम्बई । "Aho Shrut Gyanam" Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ जैन धातु प्रतिमा लेख ३३६ संवत १८१० वैसाख शुदि १२ विजयनन्दसूरिंगच्छे शाह देवल बिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे जिनलाभसूरि । ३४० संवत १८२२ वर्षे वैसाख सुदि १३ गुरो उसवंशज्ञातीय सा० साकरचन्द सुत सा० भाइचन्द स्वकुटुम्ब श्रेयोथं सुपार्श्वबिम्ब कारापितं श्रीसूर्यपुरे खरतरगचे। संवत १८२७ वैषाख शुदि १२ शुक्र दादा श्रीजिनकुशलसूरीणा पादुका सा• भाईदासेनकारिता प्रतिष्ठिता च भट्टारक श्री जिनलामसूरिभिः । ३४२ सम्वत् १८२७ वैषाख सुदि द्वादशी तिथौ शुक्र दादा श्रीजिनचन्द्रसूरिणा पादुका सा० भाईदासेनकारिता प्रतिष्ठिता च श्रीजिनलामसूरिभिः ॥ ३४३ सम्वत १८२७ प्रवर्तमाने वैशाख शुदि १२ तिथौ शुक्र अकब्बर प्रतिबोधक दादाश्रीजिनचन्द्रसूरि पादुका सा नेमिदास कारितादास सुत भाईदासेन प्रतिष्ठिता बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्री जिनत्वाभसूरभिः ।। ३३६ गोडी पार्श्वनाथ मन्दिर पायधुनि बम्बई । ३४० शांतिनाथ जैन मन्दिर कोट बम्बई। ३४१ ३४२ आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई। ३४३ आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई । "Aho Shrut Gyanam" Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन भातु प्रतिमा लेख] [ . सम्वत १८३४ शाके १८ मासोत्तममासे ज्येष्ठमासे शुक्ल पक्षे ३ रवौ दिने श्रीमालीज्ञातीय श्राविका सुकदवहु श्रीसिद्धचक्र कारापितः श्रीवर्हानपुरे ॥ सम्वत १८४३ ईरै वे (१ वै) षाख सुदि ६ बुधे उसवाल ज्ञातीय पृद्धशाखायां प्र० श्रीफतेलालजी तत्पुत्र साह श्रीसाकरलाल जी बिम्बांधर्मनाथबिम्ब (कारित) श्री बृहत्खरतराचार्यगच्छे श्री रूपचन्दजी अस्थायी भट्टारक ज. श्रीजिनचन्द्रसूरिराज्ये । ३४६ ॥ पंडित क्षमाकल्याणगणि प्रणमंति ।। सम्वत १८४८ मिति माघ वदी ३ तिथौ श्री संघेन सम्मेदशिखर पार्श्ववर्तिमधुवनमंडनविहार श्रीअजितादिविशंतिजिनचरण न्यासा: कारिताः प्रतिष्ठिताश्च श्रीसूरिभिः ।। ३४७ सम्वत १८५२ का मासोत्तममासे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे अवैरतिया दिने गुरुवारे उसवालज्ञातिय सिद्धचक्रयत्र' कारापितं पं० तिलोकसागर गरिए उपदेशात् प्र० पानकरै ।। सम्वत १८७५ मि० मार्गशीर्ष : तिथी रविवासरे श्रीजिनदत्तसूरिणाचरमपंकजादि ख० ग. जं० यु० प्र० भ. श्रीजिनहर्ष सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। ३४४ पार्श्वनाथ मन्दिर बालापुर । ३४५ तपागच्छ जैनमन्दिर बालापुर । ३४६ सम्मेदशिखर मन्दिर मधुवन । ३४७ जैनमंदिर शाहपुर। ३४८ सम्मेदशिखर मन्दिर मधुवन । "Aho Shrut Gyanam" Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ v ] [ जैन धातु प्रतिमा लेख सम्वत १८७६ वर्षे शाके १७४२ प्र० वैशाख शुक्ल अक्षयतृतीयां भौमे श्रीबृहत्खरतरभट्टारकगच्छे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चरण न्यासेयं श्रीनागपुर समीपस्थ करमणा प्रामे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिजी विजयराजे प्रतिष्ठितं । ३५० सम्बत १८७६ वर्षे शाके १७४२ प्र० आषाढ़मासे शुक्लपक्षे नवम्यां तिथौ भृगुवासरे खरतरगच्छे भट्टारक दादाजी श्रीमत जिनदत्तसूरिजौ चरणोन्यास्सेऽयं श्रीअहिपुर समीपस्थ करमणाग्रामे स्थापित समस्त श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं शुभं भवतु । सम्वत १८८५ मिती फाल्गुन सुदि ३ रवौ श्री पार्श्वनाथस्य श्रीशुभस्वामिगणधरबिम्बं प्रतिष्ठितं भ० । श्रीजिनहर्षसूरिभिः ।। बृहस्वरतरगच्छे कारित बालूचरवास्तव्य श्रीसंथेन । ३५२ सम्वत १८८५ फाल्गुन सुदि ३ रवी शिखरगिरौ श्रीसिद्धचक्रमिदं प्रतिष्ठितां भा० श्रीजिनहर्षसूरिभिः । श्रीबहल्खरतरगच्छे कारितां । ५....""पूरनचन्द्रेन । ३५३ सम्बत १८८६ मिते माघ शुक्ल दशम्यां १० तिथौ श्री गौडीपार्श्वनाथस्यद्विभूमियुक्तचैत्यं श्रीबालूचरपुरवास्तव्य दूगड़गोत्रीय श्रीप्रतापसिंघेन कारितं प्रतिष्ठितं च श्री खरतरगच्छेशः जे० यु० भ० श्रीजिनहर्षसूरीणामुपदेशात् । उ । क्षमाकल्याणगणीनां शिष्येणेति ३४६ दादावाड़ी करमरमा नागपुर । ३५० आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई। ३५१ सम्मेद शिखर मन्दिर मधुवन । ३५२ सम्मेदशिखर मन्दिर मधुवन । ३५३ सम्मेदशिखर मन्दिर मधुवन । "Aho Shrut Gyanam" Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैम धातु प्रतिमा लेख ] ३५४ सम्वत १८६३ माघ सुदि १० वार बुध राजनगरवास्तव्य उसवाल ज्ञातीय वृद्धशाखायां शेठ भगुभाई पुण्यार्थं श्रीसिद्धचकपट्ट: कारापित भट्टारक श्रीशांतिसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीसागरगच्छे पण्डित प्रमोदविजयगणि [ ३५५ संवत १८६७ फा० शु० ५ काश्यां श्री ऋषभदेवबिम्बं प्र० । श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः । बुधोत्तम श्रीकुशलचन्द्रगण्युपदेशेन कारितं श्रीमाल गडरिया गोत्रीयबहादुरसिंहात्मज चुम्नीदासेन । ३५६ श्री सागरांक वसुचन्द्र वर्ष के १८६७ नेत्रपगधरायुते शके १७६२ फाल्गुन त्रिमदसे सुतागते मार्ग वै० सितपयैधयालंके ॥ १ ॥ वाराणस्थां श्रीमद्भगवत् सहस्त्रकरणालंकृत श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रमूर्ति का० । से उदयचन्द्र धर्मपत्नि महाकुमराख्यया मूलचन्द्र सुतया बृहत्वरतरगणेश श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकृत श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा प्रतिष्ठिता श्री हीरधर्म गणि विनेय ............ ३५७ सम्वत १६०२ आश्विन शुक्ल पूर्णिमास्यां १५ सिद्धचक्रमिदं श्रीश्रीमालज्ञातौ भीडीयागोत्रीय मु । देवीदासजी तत्पुत्र मुनीलाल तत् भगिनी सुतोभिधानतया बृहत्वरतरगच्छीय ज० पु० प्रा० भट्टार्क ( भट्टारक) श्रीजिननन्दीवद्ध नसूरिभिः मुनियोघराजाभिधानोपदेशात् ३५४ आदिनाथ जैनमन्दिर भायखला बम्बई । ३५५ सम्मेदशिखर मन्दिर मधुवन । ३५६ सम्मेदशिखर मन्दिर मधुवन । ३५७ खरतरगच्छीय बड़ा मन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता | "Aho Shrut Gyanam" Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.] [जैन भातु प्रतिमा लेख ३५८ सम्वत १६०० मिती आषाढ़ शुदि ६ गुरौ श्री अजिमगंजे श्रीसुपार्श्वनाथ बिम्बं....प्रतिष्ठितं बहत्खरतरगच्छेश भ श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकार श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः कारितं च श्रीवीकानेरवास्तव्य समस्तसंघेन श्रेयोथे ।। श्री ।। सम्वत् १९०३ माधवदि पांचम अहमदाबाद वास्तव्यः उज्ञा० व० अनूपचन्द हरखचन्द भारया (भार्या)दिपालीबाई श्रीसूपारसनाथ जिनबिम्ब कारापितं खरतरगच्छे भ श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्र० । ___३६० संवत १६१० आसो सित ६ सा चन्द्रप्रभुबिम्ब कारितं च नाहटा संतोषचन्द्र भार्या वसंता व्य० पुत्र निहालचन्द्र पौत्र ठल्लुयुतेन बृहत्खरतरगच्छेश म० श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्टितं । संवत १९२१ मिति आश्विन शुक्ल १५ शनिबासरे इदं जंत्रे कारापितं श्रीमालज्ञातौ टांकगोत्र ज्वालानाथ तत्भार्या मुनीबीवी प्रतिष्ठितं भट्टारक श्री जिननन्दीवर्द्धनसूरि तत्शिष्य मुनि पद्मजस उपदेशात् ।। कल्याण मस्तु ।। (सिद्धचक्रयंत्र) संवत १९२१ वर्षे माघशुदि गुरौ श्रीअंचलगच्छे पूज्य भट्टारक रत्नसागरसूरीश्वराणामुपदेशात् श्रीकुंकरमदेशे मुंबैविंदर वास्तव्यः उसवंशेलघुशाखायां नरसी नाथासंघ समस्तेन श्रादिनाथविम्ब करापित। ३५८ सम्मेद शिखर मन्दिर मधुवन । ३५६ महावीर स्वामी जैन मन्दिर पायधुनी बम्बई । ३६० सम्मेदशिखर मन्दिर मधुवन । ३६१ (निजदैनन्दिनी से) खरतरगच्छीय बड़ामंदिर तुलापट्टी कलकत्ता ३६२ अनन्तनाथ मन्दिर काथा बाजार बम्बई । "Aho Shrut Gyanam" Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धातु प्रतिमा लेख] [६१ ३६३ संवत १६२१ वर्षे माघ सुदि ७ गुरौ श्री अँचलगच्छे पूज्य भट्टारक श्रीरत्नसागरसूरीश्वराणामुपदेशात श्रीकच्छदेशे भचाउ नगरवास्तव्यः उसर्वशे लघुशाखायो नागड़ा गोत्रे सा० नेणदेवजी पुण्यार्थ श्रीशांतिनाथबिम्बम् (कारित) सम्वत् १९२१ वर्षे माघसुदि ७ गुरौ श्रीघलगच्छे भट्टारक रत्नसागरसूरीश्वराणुपदेशेने श्रीकच्छदेशे नागनपुर वास्तव्यः उसशे लघुशाखायां खोना गोत्रे शा० वीरसी जशवन्त तत् भार्या वालवाई तत्पुत्र देअर पुण्यार्थं विमलनाथजीबिम्ब करापितं. संवत १९२६ मी० फागुन शुक्ल ७ बुधवासरे, इदम् धर्मजिन (बिम्बं) कारापितम् उसवालज्ञातौ धाडेवागोत्रे कालूराम तत्भार्या छुनोबीबी प्रतिष्ठितम् श्रीजिनहंससूरिभिः । सं० १९२६ मिती फागण शुक्ल ७ बुधवासरे इदम् विमलजिन (बिम्बं) कारापितं उसवालज्ञातौ महता भार्या मयनाबीत्री प्रतिष्ठतं भ० श्री जिनहंससूरिभिः | "उगणिस सै अरु तीस को ॥ संवत् अति श्रीकार !! शिखर गिरि की तलहटी ।। मन्दर जीर्णोद्वार ।। जीरणधार वनावणे । अति मन रंग से। अति उत्संग उदार ॥ सहर मकसूदाबाद में ।। ३६३ अनन्तनाथ जैन मन्दिर काथा बाजार बम्बई । ३६४ पुरातन जैन मन्दिर अमरावती। ३६५ खरतरगच्छीय जैनमन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता। ३६६ खरतरगच्छीय जैनमन्दिरतुलापट्टी कलकत्ता। ३६७ सम्मेद शिखर मन्दिर मधुवन । "Aho Shrut Gyanam" Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ [जैन धातु प्रतिमा लेख बालुचर शुभ स्थान ॥ दूगडगोत्र प्रधान ।। है ओसवंश शिरदार पुण्यवंत जगजश घणो ॥ प्रतापसिंह सुखकार ।। तिणके पुत्र सदा सुखी ॥ श्री ज(?ल)छमीपतिसिंह ॥ रायबहादुर यह धनी || श्री श्री-पुत्र धनपतिसिंह ।। चिरंजीव इण के सदा ॥ छत्रसिंह सुरतार ।। गनपत नरपतसिंह युत ॥ वरते जय जयकार ।। श्रावण शुद शुभ दिवसमें ।। कीनो उत्तम काम || ज (?ल) छमादतिनसिंहणे ।। तीरथ अद्भुतधाम !! म श्री श्रीसुखकार दर प्रगट्या "नगर बालूचर गौडीपार्श्वनाथमन्दिर मूलनायक की वेदी में इस प्रकार लेख खुदा है। ॥ श्री गोडीपार्श्वजिनबिम्बम् ॥संवत् १६३२ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ल ११ चन्द्र जीर्णोद्धाररुप। विजयगच्छे श्रीपूज्य श्रीजिन शान्तिसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितम् स्थापितं च ॥ ३६८ सं० १९३८ आ० कृ० १३ इदम् श्री जिनकुशलसूरि चरणम् लूणिया गो० मुन्नालाल पुत्र हीरालाल प्रतिष्ठितम् श्रीजिनचन्द्रसूरिणां ।। ३६६ शुभ सम्वत् १६५२ का मिति माघ शुक्ल नवमी उपरान्त दशम्यां तिथौ भौम्यवासरे श्रीसम्मेतशिखर श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र चरण पादुकासमस्त श्रीसंवेन कारिता प्रतिष्ठिता हितवल्लभगणि भिः श्रीखरतरगच्छे श्रीमुर्शिदावाद बालोचरनगरे राय धनपतसिंह स्व वे (चेत्ये) प्रतिष्ठिता।। ३६८ खरतरगच्छीय बड़ामन्दिर तुलापट्टी कलकत्ता । ३६६ संमेद शिखर मधुवन "Aho Shrut Gyanam" Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ? पुरातन दैनन्दिनी से सन १६४० में नागपुर (मध्यप्रदेश) के प्राचीन जैन ज्ञानभंडारस्थित हस्तलिखित ग्रन्थों के अन्वेषण करते समय एक बड़े आकार का गुटका मेरे हाथ लगा। उसमें सिद्धाचलजी की नव टंकों के कुछ प्रतिमा लेखों की प्रतिलिपि थी। थोड़ा सा परिचय भी उल्लिखित था। उसी की अविकल प्रतिलिपि भाषा में बिना कुछ परिवर्तन किए ही यहां पर दी जा रही है । ११ पत्र की यह प्रति असावधानी से कीड़ों का भोजन बन गई एवं शीत के कारण कुछ भाग ऐसा चिपक गया कि दूर करने से कुछ वर्णन नष्ट भी हो गया है। इस प्रति में न केवल प्रतिमा लेखों का ही संग्रह है अपितु विक्रम संवत १८६२ में बीकानेर और जयपुर की खरतरगच्छ की गद्दियों में विभाजन हुअा उसकी पक्षपात वाली चिड़ियां भी उल्लिखित हैं। उन दिनों जैन समाज के एक ही गच्छ में कितना भीषण वैमनस्य और मन मुटाव था इसका ज्वलन्त उदाहरण इस कृति में सुरक्षित है। बीकानेर नरेश को लिखे गये पत्र में श्रीपूज्यजी का दैन्य परिलक्षित होता है। उदयपुर से पालीताना जो पत्र लिखा गया है वह सुप्रसिद्ध बाफना परिवार (उदयपुर) का जान पड़ता है। कहीं-कहीं संग्रहीत लेखों में जहाँ भीजिनमहेन्द्रसूरिजी का नाम था वहां संग्राहक ने तीक्ष्ण द्वेषवश मंडोरीयेका उल्लेखकर छोड़ दिया है। इससे इतना तो निश्चित है कि इन लेखों का संग्राहक बीकानेर की गद्दी का कोई यति रहा होगा । नागपूर में उनकी गद्दी के यति हरदम रहा करते थे, जैसा कि वहां पर पाए गए आदेश-पत्रों से स्पष्ट है। इनका संकलन कब हुआ होगा, संवत प्रति में निर्दिष्ट नहीं है; परन्तु सम्पूर्ण दैनंदिनी के पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि १८६२ और १६१. के "Aho Shrut Gyanam" Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ परिशिष्ट भीतर ही इनका संग्रह हुअा होगा । कारण कि याग्नि के कण कुछ लेखों के संग्रह में परिलक्षित होते हैं । यतिका इतिहास-प्रेम अवश्य ही प्रसंशनीय है। इस प्रकार तीर्थ यात्रा विषयक दैनंदिनी लिखने की प्रथा यति समाज में रही है । ऐसी ही छह दैनंदिनी और भी मुझे प्राप्त हुई हैं ( एक में बीकानेर एवं तत्समीपवर्ती मन्दिरों के लेख एवं तन्निर्माताओं का उल्लेख है, एवं दूसरी गतवर्ष बनारस में राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद के घर से कुछ पुराने पत्र मिले थे । उनमें राजगृह, पावापुरी, लछवाड़, बिहार सरीफ और बनारस के लेख एवं विशिष्ट ज्ञातव्य उल्लिखित हैं। संभव है अन्वेषण करने पर इस प्रकार की और भी ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त हो । ऐतिहासिक एवं विशिष्ट कुछ ऐसी भी घटनाएं होती हैं जिनका उल्लेख ग्रन्थों में न मिलकर ऐसे फुटकर पत्रों में मिल जाता है । सिद्धाचलजी की नवटकों में भिन्न-भिन्न स्थानों की प्रतिमाओं की संख्या देने की संग्राहक ने चेष्टा की है । ऐसी ही चेष्टा उन्नीसवीं सदी में मुनि रत्नपरी ने भी की थी। सापेक्षतः रत्नपरीक्ष अधिक सफल हुए। मध्यप्रदेश के कामठी, हींगनघाट, अमरावती, कारंजा, नागपुर आदि के जैन ज्ञान भण्डारों में एतद्देशीय सामाजिक और ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डालने वाली फुटकर सामग्री प्रचुर पारमाण में उपलब्ध होती है परन्तु जैनों की इस ओर रुचि न होने के कारण प्रतिवर्ष दीमकों के उदर में प्रविष्ट हो रही है । प्रांत का दुर्भाग्य है कि सरकार भी सांस्कृतिक ठोस कार्य की ओर दुर्लक्ष्य किए हुए हैं । स्वतन्त्र भारत की शासन संस्था अपने इतिहास के प्रति इतनी बेदरकार रहे यह आश्चर्य ही नहीं अपितु खेद का विषय है। -मुनि कांतिसागर, श्री सिद्धाचल नी में नामेरी नकल है ॥५०॥ श्रीगणेशाय नमः ।। संवत १६७५ मिति (ते) सुरताणनूग्दीनजहांगीरसवाई विजयराज्येसाहिजादा .............१ । १ यह लेख "एपिग्राफिया इण्डिका" और प्राचीन जैन लेखसंग्रह पृष्ठ २४-५ में प्रकाशित हो चुका है अतः यहां देना उचित नहीं समझा ! सम्पादक, "Aho Shrut Gyanam" Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ] [ 1 "चौमुखजी से तिल मांहे भीतर पासे माहिली भमती चौमुखजी ने पासे प्रतिमा..... .१ जंत्र २ दादेजीरा चरण रूपेरा १ पंचतीर्थीरी सिवासोमजी नी मूरत" बाहिर मण्डप तिनरी विगत प्रतिमा ३ पाषानी काठ के मन्दिर में है । १ यंत्र तांबेरो "प्रकार" "ह्रींकार" प्रतिमा २६, २ गट्टा | नवपदरा चांदिरा, एक मूरति हाथी पर चांदिनी, १ पंचतीर्थी, ३ प्रतिमा सर्वधातरी देहर है वारणे गोमुखयक्ष चकेसरी है I ऊपर तिगरी विगत--- संवत् १८६३ शाके १७५८ प्रवर्तमाने माषसित १० बुधवासरे श्रीपादलिप्तनगरे गोहल श्रीकांधाजी कुँअरनोंपणजी तत् कुँअर परतापसिंघजी विजयराज्ये सुमतिनाथबिम्बं कारितं श्री वृहत्खरतरगच्छे म० श्रीजिनहर्षसूरिजी" आगे मंडोरीयेरो नामौ है । एनामो भगवानजीरेनीचे उर भगवानजीरेनीचे पटड़ी है तिनरी विगत संवत् १८६८ नामि वैषाख वदि ५ गुरुवासरे श्री विक्रमपुर वास्तव्यः उसवालजातीय वृद्धशाखायां निरखोशाखा धाडीवाल गोत्रे ० भीखणदासजी तत् भार्या कुंदनाबाई तत्पुत्र श्र े० दीपराजजी, आधुनिक दक्षिण ( ? बरार ) देशे श्रीएलचपुरवास्तव्य, तस्य माजी कुँदनाबाई श्रीसिद्धाचलजी यात्रा करणे कुँ आए, उदार चित्त से सप्तक्षेत्रे धनव्याप्त श्रीचौमुखऊपर दक्षिणदिशि गवाक्ष कारितं श्रीश्रदिजिनबिम्बं स्थापितं च बृहत्खरतर गच्छे भ० श्रीजिनहर्षसूरिजी विजयराज्ये श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी विजयराज्ये वा० कल्लीजी शि० पं० जयवन्तजी शि० पं० देवचंदजी शि० पं० प्रेमचन्दजी तत् भ्राता पं० हीराचन्द्र प्रतिष्ठितं मत स्वामी श्री श्री सुपार्श्वनाथजी । "Aho Shrut Gyanam" Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ परिशिष्ट सामने पुण्डरीकजी संवत् १६७५ वे शित १३ शुक्र श्रीबहत्खरतरगच्छे सं० सोमजी कारितं श्रीनमिबिम्बं श्रीजिनराजसरि पुरंदर प्रतिष्ठितं श्रेयसे । बिम्ब १२ तिणमें ३ बाहिरे मंडोरीया ( श्रीजिनमहेन्द्रसरिजी) प्रतिष्ठि। १५ बिम्ब इए उरीये में ७ अगला ८ मंडोरिये घरा है। नीचे में, संवत् १६७५ वैषाख शुदि १३ शुक्र प्राग्वाटज्ञातीय सं० साइया भार्या नाकू पुत्र सं० नाथा भार्या नारिंगदें पुत्र सूरजीकेन श्रीश्रेयांस बिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं च खरतरगच्छाधिराज युगप्रधान श्री जिनसिंहसूरिपट्टाहर्यक्ष प्रत्यक्ष वा० सुविहितपक्ष लब्धश्री अम्बिकाबर भट्टारक प्रवर श्रीजिनराजसरिजी श्रेयसे परिकर है ।।।। २१ बिम्ब उण ओरिये में। मंडोरीये १, और २ चरणपट्टपाषाणना है। संवत १६७५ वैषाख सित १३ शुक्र श्री प्रारवाट जातीय सं० साइया मार्या नाकू पुत्र सं० नाथा भार्या श्री नारंगदे पुत्ररत्न सं० सूर जीन्न श्रीमुनिसुव्रतबिम्बं कारितं.......... बृहत्खरतरगच्छे श्री जिनराजसूरि राज्ये...........। ___ स्वस्ति श्रीपालीताणा शुभस्थाने सर्व उपमालायक गुरांजी श्री १०८ श्री हीराचंदजी मोतीचंदजी माणकचंदजी सपरिकरान श्री उदयपुर थी लि० साह जोरावरवरमल्ल चांदणमल्ल की वंदना १०८ वार यांचज्यो तथा समाचार वांचज्यौ बीकानेर वाला पूरब के संघ साथे जात्रा करण आये है सो इणारी विध विवहार समेलो इत्यादि न करावणो। श्रीजिनहर्षसूरिजी से वचन आज्ञा याद राखने काम कारजौ। थे सामधर्मी हो तिणसे लिख्यो है, और मिन्दरजी की प्रतिष्ठा थे करजो, पिण इणरे हाथे काम होवे सो मतां करजो, थे "Aho Shrut Gyanam" Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ] [५ सारी बात जाणो छो काम करो सो विचारने करजो जे कदास भोले भावे कीनो तो आगे थाने सारी वात सुं विचार करणो पड़े सो आविचार्यो काम न करज्यो । इण बात सु थाहरो सदा मरजादीकपणो रेहसी तौ जाणज्यो । सं० १६०२ वैशाष वदि १ । तथा जूनेगढ़ वाला ने थे सारी बातरी जतावणकर देज्यो, लिख देज्यो। जैपुर, अजमेर, पाली प्रमुख कोई सामेलो हुवो नही ते विवहार सर्व ने जतावणी कर देज्यो। नकल है। पता-) २४ गुरांजी श्री १०८ श्री हीराचंदजी मोतीचन्दजी माणिकचंद जी सपरिकरान् हजूररे परवानेरी नकल छै (छाप ) श्रीलक्ष्मीनारायणजी स्वस्ति श्रीमहाराजाधिराज, राजेश्वर नरेन्द्रशिरोमणि श्री रतनसिंहजी महाराज कंबर श्रीसरदारसिंघजी वचनात श्रीवीका. नेर रा साहुकारा परदेस में छै तिका समतो दिसी सुप्रसादवंचे। अपंच भट्टारक श्रीपूज्यजी श्रीजिनसौभाग्यसूरिजीनै म० श्री पू. श्री जिनमहेन्द्रसूररी सरावका मन्या हुवे तो थेई ईयांनै मानज्यो, नहीं तो कुही मानणरो मुदो नहीं । संवत् १६ (0) मिति श्रावण सुदिक मुकाम पायतषत श्रीवीकानेर कोट दापल । स्वस्ति श्री वीकानेररा साहुकारां परदेस मे छै तिकां समता (दे) जो श्रीवीकानेर सुं लिषतु मुहता महाराव हींदुमलरा जुहार वांचज्यो अठारा समाचार श्रीजीरी निजरसँ भला छै। थाहरा सदा भला चाहिजै । अपंच श्रीपूजजी श्रीजिनसूसौभग्यसूरिजीने श्री पू० जिनमहेन्द्रसूरिजीरे सराबको मन्यां हूवै थे भी या मानज्यो। न माना हूवै तो न मानज्यो ! संवत १९०२ मिती श्रावण सुदि ८। श्रो काम महता हीदुमलजी लिष दियो छै तिनरी नकल है । "Aho Shrut Gyanam Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६] [ परिशिष्ट संवत् १६०० मिति आषाढ़ सुदि गुरौ संभवनाथस्वामिबिम्बं प्रतिष्ठितं च वृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकृत भट्टा... ....... कारितं कोठारी श्री केशरीदास जी तत्भार्या आसकरण पौत्र...राज सहितया स्व श्रेयोर्थम् सार्वधात । सेसफरणापार्श्वनाथजी ॥...... .. संवत १८६७ नेत्र घरांते शाके १६...... फाल्गुनात्. नाग के भार्या वे सितपटोव पालके ||१|| वाणारस्य श्री......... ..पार्श्वनाथ जिनेन्द्र मूर्ति का० से० न० युतयुतया वृहत्खरतरगच्छेश श्री ... ..गणि ॐ० हरीधर्म गणि...........कुलाल कृत.. .रित्र........जिन धर्मोन्नत्ति कृत्सल श्री सूरि सम्मतेयम्.. ..श्रेयसेः ॥ ...AND. संवत् १८८६ मिती माघ कृष्ण पंचम्यां श्री संघेन द्वादशसहस्त्रप्रमितेनद्रविणेन कारित, महाराजाधिराज श्री श्रीरतनसिंघजी विजयराज्ये वृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जं० यु० भट्टारक श्रीजिनहर्पसूरीश्वराणामुपदेशात् ॥ नकल है विक्रमपुरे । स्वस्ति श्रीराजराजेश्वर, महाराजा नरेन्द्र शिरोमणि महा "श्री श्री श्री श्री श्रीजी साहिबारो धर्मलाभ आशीर्वाद मालूम हुवै श्रीइष्ट देवजी की कृपा से श्रीहजूररे तेजप्रताप से सदा आनन्द है, । श्रीहजूर के आरोग्य, अखण्ड प्रताप नितप्रति चाहते हैं। तथा श्रीहजूरसें अरजी मालूम रहे श्रीहजूर से पं० प्र० जीतरंगणि नै जैशलमेर जाणे की बातर शीष वगसाव से श्रीहजूर को बडौ देशे परदेश सुयश फेल रह्यौ है । '' चितककै ममन्ती समस्त साधु श्रावकांरै फिकर "आप ईश्वर हो आप ही जो अपरौ वचन को निर्वाह न करस्यो तो और कौंग करसी, उत्तम पुरुषी रो प्रतिज्ञा निर्वाह कर" "धर्म तो उत्तम पुरुष ही पावखै कुं समर्थ हो हरेक मानवी की सामर्थ्य नहीं होय ""हजूर मैं पटुवा १ जैसलमेर में पटुवे ही उन दिनों प्रधान श्रावक थे । थे तो वे बाफणा घर किसी युग में पटुवे का काम करते रहे होंगे अतः पटवे कहलाये । सर सिरमलजी बाफना के ये पूर्वज हैं । " Aho Shrut Gyanam" Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करणै..... परिशिष्ट ! सेठांरी अरजी की चिठी आई सुणी जै है सो श्रीहजूर सुविहांन है अपणी वाई हुई वात है, तिणमे कसर न पड़े-तिण मुजब दिल में यादगिरि रखाइवसी ओर अपरणी वणाई हुई वात के निर्वाह ..."नकुंव छानही ल पासै अर राज्यनी मार्ग ....."धिराजा को । पुण्य प्रतापदिनदिन चौगणो चढतो रहे वो धारसी..........................."चतुरंग राज्य लक्ष्मी कै भोक्तामणने धारण करे हैं। अर जिण पुरसारै बोलवचन को ठिकाणी नही.................."को उ' - 'हेमी, सो वहता वाहैं बोल निहचै निर्वाहै नही तिणमाणसरो मोल, कवडी कापडी येक ही है। १ ओर श्री हजूर सै समस्त साधू समुदाय पर सुनिजर रखाई जैसी। ओर इण कलियुग के भेषधारी है सो चूकतकखीर तो भरे ही पिण श्री हजूर षट्दर्शन प्रतिपालकविरुद के धारी हो तिण से सब भूलचूक माफ करायजसी अर कारण मुलाइजौ सदानुल रपाई जैहै तिणसुरषायां जाई जसोजी, इण वडै उपाकी रीत मर्यादा हमेश की या....."जी"."."हजूर न करस्यो तो ओर कुंग करसी भीहजूर क्षमा कहै, श्रीहजूर की सुनिजर रहण से सबको निर्वाह अच्छी तरैरो हुवौ जावसी ओर आप ईश्वर हो, मोटा हो, पंचम लोक पाल उपमा धारी हो! प्रतिज्ञा निर्वाहजाहै श्रीहजूर सैं अपणे शुभचितक.... .."पाईजैहे तिणसे यादा रखाई जसीजी, सदैव से साहिबार उदैरी माला फेरणवाला अपणा शुभचिंतक जाणसीजी, उर उपासर मै रहणे वाला समस्तसाधांने श्रीहजूर से अपणा शुभचिंतक माणसीजी श्रीहजूर के वणाये हुवै स्वरूप को नियहि पिण करणौ श्रीहजूर रै हाथ है। बहूत क्या लिखें, ओर शुभचिंतक दिसी पास रूको अनायत कीयांने बहूत दिन हुय गया है सो शुभचिंतक जाण यादगिरि करसै वगसीस कराइ जसी अलायक कायीजी लिख फुरमाई जसी वलमानपत्र आरोग्यां कुशलम श्री हजूर सपरिवार सै धर्मलाभ आशीर्वाद मालूम रहै. दंत पूर्वक वगसीईजसी मिती प्रथम श्रासोज वदि ३ सं० १६०२ "Aho Shrut Gyanam" Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [परिशिष्ट नकल है। नकल लिषी। हद चूपसू , अंमधरि मन माहि। बुद्धवंत ए वांचज्यो, प्रेमसदा चित लाय . प्रेमप्रीत दोनं मिल्या, वाधे अधिक सनेह । प्रेम सदा सुषे रहो, कहो बुध गुण गेह ॥ पोथी पढ़ ज्यो प्रेम सं, धूप धरि मन माही। बांधवपने चित लायकै, प्रेम. सदा चितलाय ॥ कीरत चाहे लोक मैं, कीरत नाम उदार। अविचल कीरत जगत में, रहो सदा चिरकाल ॥ सासु .... 'चंद के पुत्र, अविचल कीरत लोक में । राखो सदा............... ....................... ॥ ५ ॥ इति आसीस वंचना ॥ ..........विगत देहरा जिन बिम्बनी सं९ १६०२ रा मि० कार्तिक शुदि २ दिने श्री मत्तपागच्छांवर दिनमणि जं० पु० प्र० भ श्री विजयदेवेन्द्रसूरिभिः। प्रतिष्ठित तपागच्छे। स्वस्ति विक्रमार्क सं०.........शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने माघमासे शुक्ल पक्षे दशमीतिथी..........गुर्जरदेशे श्रीअहम्मदाबाद नगरे श्री श्रीमालज्ञातौ लघुशाखायां भाण....दामोदरदास तत्पुत्र सा० श्री प्रेमचन्द तत्पुत्र सा० साकरचन्द्र तत्पुत्र.......मर तत् भार्या प्रथमाबाई ........बुद्वितीया मानुकुंअर ताभ्यां........या स्वपुण्यार्थ श्रीपार्श्वनाथ बिम्बं कारापितंच संविज्ञ तपागच्छे श्री विजयसिंहसूरि संतानीय संविज्ञमानी श्री पू० पं० पद्मविजय गणि शिष्य पं० रूपविजयगणिभिः प्रतिष्ठितं श्रीसौराष्ट्र देशेतिलकायमाने श्रीसिद्धिगिरितीर्थक्षेत्रे। भरथनी फणसहित मूलसहित बिम्ब १६ बाहिररै एवं २१ "Aho Shrut Gyanam" Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ] तिणमे लिखत तिणमे एहिज लेख जाणवा। बिम्ब ११ हैं। भगवान जी के जीमणेपासे मंदिर है । तिसरी नकल संवत् १८६३ वर्षे शाके १७५८ प्रवर्तमाने माघ शुक्ल पक्ष तिथौ त्रयोदशी बुधवासरे। श्रीगुर्जरदेशे श्रीअहमदाबादनगरे श्रीमालज्ञाती लघुशाखायां साहजी दामोदरदास तत्पुत्र साह प्रेमचन्द्र तत्पुत्र सा........यमुनादास तत्पुत्र खेमचन्द............प्रमुख कुटुम्बयुतेन सा. यमुनादास स्व श्रेयसे श्रीपद्मप्रभजिनबिम्ब कारापितं प्रतिष्ठितं च संविज्ञमार्गीय श्रीतपागच्छे श्रीविजयसिंहसूरिसंतानीय संविज्ञ मार्गीय श्री ५० पविजयगणि शि० पं० रूपविजय गणिभिः प्रतिष्ठितं च ।। बिम्ब १५ ___ एलिखत है प्रतिमा मूलनायकनी सामने पुंडरीकजीनी थापना मूलनायकजी ना द्वार पूर्व छे । भगवान जी सेती डावे पासे मंदिर है तिनका लेख इसा है-- स्वस्ति श्री विक्रमात् संवत् १८६३ वर्षे शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने माघमासे शुक्ल पक्ष दशमी तिथौ बुधवासरे श्री गुर्जरदेशे श्री अहम्मदावाद नगरे श्रीमाल ज्ञातौ लघुशाखायां सा० श्री ५ दामोदरदास तत्पुत्र सा० पू० प्रेमचन्द्र तत्पुत्र सा० कर्मचन्द्र तत्पुत्र सा० श्री० पू श्रीमूलचन्द्र तेन स्वश्रेयोथे श्रीपद्मप्रभबिम्ब कारापितं प्रतिष्ठित च संविज्ञ तपागच्छे श्री विजयसींहसूरिसन्तानीय श्री पू० श्री पद्मविजय गणिभिः पं० रूपविजय गणिभिः । ___ कमल लंछन बिंब १२, ७ बाहिर बिम्ब ३ देहरी में बगतामा थासे। मूलनायकजी से जीमणे पासे यक्ष (गोमुख) गबै पासे (चक्रेश्वरी) देवी है। छीपावसीनी विगत सम्वत १७४१ वर्षे वैशाष शुदि ७ विधपक्षे विद्यासागरसरि विजयराज्ये सूरतनगर वास्तव्यः सा० गोविन्दजी पुत्र गोडीदास चीम. नदास कारितं श्रीआदिनाथबिम्ब प्रतिष्ठितंच खरतरगच्छे उपाध्याय दीपचंद गणि पं० देवचन्द्र गणिना। "Aho Shrut Gyanam" Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.] [ परिशिष्ट प्रतिमा काली है । मूलनायक प्रतिमा से जीमणा पासे पाला में यक्ष है, पासे पगला है । "अन्चलगच्छे प्रतिष्ठितं"। मन्दिरनी भमती माहै प्रतिमा ५ है। ओर पबासण खाली है,। रायणरे आगे मन्दिर है ३ मन्दिर १ नेमनाथजीनो प्रतिमा श्याम है । रहीनामो लिखत नहीं है। २ रायण आगे दूजो मंदिर है संवत् १६८८ वर्षे माघवदि पू पाटण नगर वास्तव्यः समृद्धि सूरमल कारितं कुंथुनाथ बिम्बं..."श्रीसुमतिसागरसूरिभिः । बिंब १ नानो चूने मे ढका है। रायणनीचे पगला श्रीऋषभदेवजी ना पादुकां, प्रभुना पादुकानै पासे देहरी ६ खाली है। छीपावसी मां वडता डाने पासे मंदिर १ तहाँ प्रतिमा ३ आदिनाथ जी भूल" में नहीं है। छीपावासी मे पड़ता डावे पासे मंदिर दूजो। "संवत् १६८८ वर्षे माघ सुदि ६शुक्र सागरगच्छे श्रीकल्याणसूरिराज्ये सा० नानजी पुत्र मदन कारितं प्रतिमा एक श्वेत । संवत् १६८८ वर्षे माघ सुदि ६ शुक्र सा० सूरचंद घुत्र लालचंद कारितं श्री युगमंधर १ बिंब प्रतिष्ठित संविज्ञपक्षीय श्रीसुमतिसागर सूरिभिः । हेमावसीनी विगत मूलमंदिर नन्दीश्वर द्विपरो है । देहरे पर चौमुख है। बीच में मेरु है। संवत १८०३ माघसुदि १० बुध राजनगरवास्तव्यः उसवाल ज्ञातीय सा. हेमाभाई प्रेमाभाई कारापितं प्रतिष्ठितं सागरगच्छे शान्तिसागरसूरिभिः ॥ "Aho Shrut Gyanam" Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ] पोलमा वडता जिमणेपासे मंदिर है तिभरी विगत । सम्वत १८६३ शाके.......प्रवर्त्तमाने माघमासे शुक्लपक्षे दशमीतिथौ बुधवासरे श्रीअहम्मदावादवास्तव्यः उसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां सिसो० वृद्धशाखायां शेठ शान्तिदास पुत्र सा० लखमीचंद तत्पुत्र शेठ खुशालचन्द तत्पुत्र शेठ वखतचन्द तत् भार्या जड़ावबाई तत् नाम तावत् पुण्यार्थ श्रीमहावीविम्बं सेठ हेमाभाई सेठ मनसुखभाईयुतन उजमबाई प्रमुख कुटुम्बयुतेनवमातभक्त यार्थ श्री...........बिम्ब प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठापितं श्रीसागरगछे उदयसागरसूरिभिः बिम्ब सात...........देहरा पासे देरीमें बिम्ब १७ है । सागरमच्छे प्रतिष्ठित है। पोलमे वडता डाबे पासे मन्दिर है तिनरी विगत-- ॥ संवत १८६३ शाके १४५८ प्रवत्त माने माघमासे शुक्लपक्षे दशमीतिथौ बुधवासरे श्री अहम्मदावाद वास्तव्यः उसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां सिसौदियावंशे कुकडलोलगोत्रे शेठ सा० खुशालचन्द तत्पुत्र शेठ वखतचन्द तत् भार्या जडावबाई तत्पुत्र शेठ अनोपभाई तत्पुत्र शेठ डाह्याभाई प्रमुखकुटुम्बेन स्वपिताभक्तिरागेन पुण्यार्थ श्रीकॅथुनाथबिम्ब कारापित प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठापितं सागरगच्छे भ० शान्तिसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ बिम्ब १२ सर्व, मूलनायक। हेमावसीनी विगत मूलनायकमन्दिरमें संवत १६८३ ( १ १८८३) मिति ज्येष्ठवदि । श्रीशान्तिदासजी पुत्र वखतशाह तत्पुत्र खुशाल तत्पुत्र हेमाभाई श्रीअजितनाथबिम्ब कारापितं प्रति० श्रीशान्तिसागरसूरिभिः । सागरगच्छे । "Aho Shrut Gyanam" Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] [ परिशिष्ट मूलनायकजी समेत प्रतिमा४२, धातुकी ३, नवपदजी, ओंकार, हींकार तिणमें प्रतिमा ५८ है, प्रतिमाकराणेबालेरी जोडसमेत । सामने पुंडरीकजी। संवत् १६८६, पुंडरीकजी समेत प्रतिमा १७, चोवीसटो १, पंचतीर्थी ४, पाषाणरी, वड़ता जीमणा पासेटांको १ जलरो है । ७ देरी में (देवकुलिका) में प्रतिमा १६० हैं चौमुख सं० १५५२ नों ज्येष्ठ वदि । डा पासे चौमुख १, विनानामेरा (बिना नाम का) है। आगे पोल तिनरे पार दो तरफ कुण्ड बीच में पगथीया मीभू कुएड, खोडीकुण्ड, डावे पासे बगीचो तिसमें देहरी १, गौतम ना चरण सं० १९७७ रो। प्रेमावसीनी विगत मूलनायकनो मंदिर _ "संवत् १८४३ शाके १७०८ प्रवर्त्तमाने माघमासे शुक्लपक्षे ११ तिथौ चन्द्रवासरे श्रीराजनगरवास्तव्यः श्रीमालीज्ञातीय वृद्ध शाखायां काश्यपगोत्रे पुरमारवंशे मोदी श्रीखजी, तस्यपुत्र लवजी भार्या रतनबाई तत्पुत्र प्रेमचन्द्रेन कारापितं श्रीआदिनाथबिम्ब श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिभिः तपागच्छे ।। __ प्रतिमा मूलगुंभारे ६६, यक्ष एक, माता ४, सभामंडप है तिनरी विगत ओंकार ह्रींकार ११ प्रतिमा और सवी ६६ है। बिंबे, सामने पुंडरीकजी संवत् १८४३ माघ शुदि ११ चन्द्रे सा० हेमचंद्र लालचंदकेन पुंडरीक कारापितम् ।। प्रतिमा ३१ देहरो जीमणी बाजू "Aho Shrut Gyanam" Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ] [ १३ ___संवत् १८६० वैषाख सु ५ चंद्रवासरे मबह प्रेमचंद भार्या जुइती पुत्र सवाइचंदेन सहसफरणा बिम्बं कारितं प्रति विजयाणंद सरिभिः ।। बिम्ब ११ सर्व तिणमें सहसफमा बाकी, ओर इणदेहरे रे उपर चोमुख १ देहगे दूजो खूरों में, तिहाँ प्रतिमा मूलनायकजीरे पिछाडी देहरी १ तिरम में चरण बड़ा है रायणरा। देहरी ३ तीजो खूणे में तिणमें प्रतिमा १४ पाषाणरी। देहरी चक्रेश्वरीजीरी है। देहरो ४ चौथो खूणे में सहसफणाजीरो संवत् 'लारले मुजब, पहिले देहरेरो प्र०८, तिणमें सहस्रफणाजी। वाकी ओर प्रतिमा नग दोय । २२ बारणे। इणहीज मंदिररे सभामंडप में प्रतिमा २ आले में कोरणी आबूजीरी छे। इण ४ मंदिर रे ऊपर चोमुख ३ ओर है ऊपर ओर मेरु भी है। खंभा ४, प्रतिमा १६ है, एवं २८ भमतीरी देहरी ५७ तिणमें प्रतिमा सर्व २४३ है। देवी मूरत व भमती है। चौवीसट्टा २। अवे पोल बार भैंरू की मूरत २। सिंचाई की ओरडी १ है। १ कुण्ड है। खोडियामाताको बगीचो छोटो है। देहरो आदबाबारो है। तिनरे पासे मोतीबाई वेन भगवानजीरी है। बालावसीरीविगत मूलनायकजी श्रीआदिनाथजीरी सम्प्रति की भरायोडी तिणमें नामो नहीं है । पसवाड़े प्रतिमा तिण मे नामो ॥ सम्वत् १८६३ ना मि० माह सुदि पक्षे १० तिथौ बुधवासरे कल्याणजी कानजी तत्पुत्र दीपचन्द अपरनाम बालाभाई श्रीआदिनाथ बिम्ब कारापित, प्र० श्री देवेन्द्रसूरिभिः । तपागच्छे ।। प्रतिमा ३० मूलगु भारा मे, । पंचतीर्थी ४, गट्टो १, बाहिरे मंडप मे २३, वाहिर यक्ष-यक्षणी है। सामने पुंडरीकजी तिणरी विगत __ सम्वत् १८६३ ना मि० महाशुदि १० तिथौ बुधवासरे श्री मम्मोईवासी कुँवरबाई पुत्र बालाभाई आदिनाथबिम्ब कारापितं प्रति. "Aho Shrut Gyanam" Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] विजयदेवेन्द्रसूरिभिः । प्रतिमा २६, उर भ्रमती में प्रतिमां ११७ बाकी अधुरी है सुरज (बुर्ज ) १ मे प्रतिमा ६५ है । तपांरी प्रतिष्ठित है । पिछाड़ी चरण वडा है | फदेचंद सुहालीयेरो देहरो इस मे वणे छे । वगलाओ। [ परिशिष्ट मोतीवसीनी विगत मूलमन्दिर सम्वत् १८६३ ना मि० शाके १७५८ माघमासे शुक्लपक्षे १० तिथौ बुधे नागो अमीचन्द साकरचन्द तत्पुत्र मोतीचन्द तद्भार्या दीवालीबाई तत्पुत्र खेमचन्द आदिनाथबिम्बं कारापितं "मंडोरीये" ( श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी का नाम था पर लेखक ने द्वेषवश छोड़ दिया है | ) सिद्धचकाय नमः “सम्वत् १८६३ वर्षे शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममाघ मासे शुक्ल पक्षे १० तिथौ बुधवासरे श्रीपादलिप्तनगरे गोहिलवंशे श्री प्रतापसिंघजी विजयराज्ये श्री मुम्बई बन्दर वास्तव्यः उसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां नाहटागोत्रे सेठ अमीचन्द तद्भार्या रूपाबाई तत्पुत्र सेठ मोतीचंद तद्भार्या दीवालीबाई तत्कुती समोद्भुति पुत्ररत्न श्री शत्रु जय.. .भिधानं संप्राप्तश्री संघपती तिलकनवीन जिन भवनस्या........... ...साधर्मिवात्सल्यादिस्ववित्तस फलीकृत संघनायक खेमचन्द्रजी परिवारयुतेन श्रीसिद्धाचलोपरिश्री आदिनाथबिम्बं कारितं.......गच्छे भट्टारक श्रीजिनदेवसूरिः पट्टे श्री जिनचन्द्रसूरि विद्यमाने सपरिकरयुतेः प्रतिष्ठितंच श्री बृहत्खरतरगच्छे जं० यु० प्रधान श्री जिनहर्षसूरि आगे मंडोरीयेरो नाम है” ( पट्टे श्री जिनमहेन्द्रसूरिभिः ।) ........ श्री चोमुखजीरी पहिली पोल वडता डावे पासेरी विगत । बारी मे वडता डात्रे अंगारसापीर है । संवत १६७५ वर्षे वैषाख शुदि १३ शुक्रे पातसाहजहांगिर "Aho Shrut Gyanam" Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ] [ १५ विजयराज्ये उसवालज्ञातीय श्रीअहम्मदावादवास्तव्यः भणसाली .......भार्याबाई मूली भणसाली कमलसी भार्यालाई कमलादे पुत्र भ० लखराज भार्याबाई वरबाई पुत्र भ० सदूपा भणसाली लखराज प्रमुखयुतेन श्रीश्यांतिनाथबिम्बं सपरिकरण कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टालंकार दिल्लीपति पातस्याह श्रीजहागौरप्रदत्त युगप्रधानविरुद्धारक श्रीजिन चंद्रसूरिभिः तत्पट्टे भट्टारक श्रीजिनसिंहसरिभिः।। बिम्ब ८ मूल सफेद सहित परिकर युक्त । दूजो मंदिर सम्वत १५८७ ( ? १८८७) मिते वैशाख सित १३ ज्ञवासरे राजश्रीगोहिलवंशे कुंअरनोंघराजीविजयराज्ये श्रीपादलिप्तनगरे श्रीअजमेरवृद्धशाखायां उकेशज्ञातीय............पुत्र हिमरांमजी तत्पुत्र.... ....लक्षमी प्रमुख कारापितं श्रीकुंथुनाथविम्बं स्थापितं श्रीवहत्खरतरगच्छे भट्टारक जंगमयुगप्रधान श्रीजिनहर्षसूरिजीविजयराज्ये, पं० देवचन्द्र प्रतिष्टितं । श्री श्री श्री बिम्ब ७ मूलनायक सफेद पंचतीर्थी इहै । तीजो मंदिर संवत १८८८ मा० शु० श्रीश्रीमालवंशे इसढोणगोत्रे सुरतरांम पुत्र चुनीलाल तत्पुत्र कालकादासेन लखनउनगर वस्तव्येन श्री अजितजिनबिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्भद्रारक खरतर ग. जिनाक्षयसरि पाइचंचरीक श्रीजिनचंद्रसरिभः स्वयोर्थ ।। बिम्ब ३, सफेद । जीमणेपासेरी विगत । पोलरे पासे प्रथमखाडो, पडुवा, आगे मरुदेवी मातारो देहरो। आगे नरसी नाथारो देहरो वणे छ। चिलगच्छ है। रहवासममोईमे है। श्रीहालखण्डीरो देहरो दोलुमल हरषचंदरो है, तिहां मूल प्रतिमा मे नाम जंगम श्रीजिनचंदसूरि प्रतिष्ठितं.......संपवा, आदिनाथबिम्ब "Aho Shrut Gyanam" Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ परिशिष्ट श्रीखरतरगच्छे । भगवान से जीमणे पासे प्रतिमाका बारबाट श्राविकाया धर्मनाथबिम्बं श्री बृहत्खरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । मूलनायकसे डाबे पासे संवत १८६३ प्रमिते शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने माघमासे सित १० बुधौ श्री पादलिप्तनगरे गोहिल श्रीकांधाजी कुंवरनोपणजी राज्ये श्रीआदिनाथबिम्बं कारितं प्रतिष्ठितंच श्री बृहत्खरतरगच्छे भ०जव्यु. प्र० श्री जिनहर्षसूरिभिः ॥ जीमणे पासेरी विगत !! सम्वत १८८८ भा० सु० ५ श्रीश्रीमालवंशे इण्ठोणगोत्रे सूरतरांम पुत्र चुनीलाल तत्पुत्र कालकादासेन लखनऊ नगर वास्तव्येन श्रीऋषभजिनबिम्ब कारितं प्र. श्रीबहतभट्टारकखरतरगच्छे श्रीजिनाक्षयसूरि पाद चंचरीक श्रीजिनचन्द्रसूरिभि : एनाम प्रतिमाजी मे हैं। नीचे पटडी मूंकी तिणमें एनाम लिखे हैं सो जाणना ! चौमुखजीमे पहेली पोले बड़ता पासे डावे पासे मंदिर है तिनरी विगत । ४ मन्दिर श्रीखरतरगच्छे राजश्रीरायसिंहजी राज्ये श्रीजिनमाणिक्यसूरि पटै युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्रीजिनसिंह सरि समयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान प्र०॥ मुह आगे प्रतिमा तिणमे लिख्यो है ॥ सम्वत् १५ (१६) ६२ वर्ष मि० माघ शु०१ श्री अमरसरसंघेन कारितं श्रीपार्श्वनाथबिम्ब प्रति० श्रीजिनराजसूरिभिः।। बिम्ब ५ मूलवेदी मे सफेद, पाला २ जामे दोय बिम्ब । दर एक मंडोरियो। मंदिर पाचो सम्बत १७६१ (? १८६१) वैशाख शुदि सप्तमी सा० उदैसिंघ पुत्र सा० लख............पाश्र्वनाथबिम्ब कारितं अजितनाथ चौमुख है। बिम्ब १६ नीचे रखा है मंडोरीयो।। "Aho Shrut Gyanam" Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ] सम्वत् १८६१ मिते माघसित पंचम्यां चंद्रवासरे श्रीपादलिप्तनगरे गोहिल श्रीकाधाजी कुंअरश्रीनोंधणजी तस्य पुत्र प्रतापसिंघजीविजयराज्ये श्रीमकसूदावाद-~~बालुचरवास्तव्य बृहतशाखा उसवालज्ञातीय दुगडगोत्रे निहालचंदजी तस्यपुत्र इन्द्रचंदजी श्रीशजयतीर्थयात्राविधानसंप्रामनवीनजिनमुक्तबिम्ब, श्रीसा. धर्मिकवात्सल्यादिधर्मक्षेत्रेसप्तस्ववित्तसं० श्रीविमलाचलोपरिविहारशृङ्गारहार श्रीरिषभजिनबिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबहत्खरतरगच्छे भ० यंगम युगप्रधान श्रीजिनहर्षसूरीश्वर विजयराध्ये वा० कल्लाजी शिष्य पं. जयवन्तजी शिष्य पं० देवचन्द्रेण प्रतिष्ठितं ।। जोडे जिन बिम्ब दोय, बिम्ब ३ ओर है, सर्व ६ बिम्ब श्राला २ खाली है। इण आगे बडी पोल है। पहेली पोलमे वडता जीमणे पासे चोमुखजी में तीजो मंदिर--- सम्वत् १८६३ शाके १७५८ प्रमिते माघसित १० बुधे मकसूदावाद ( वास्तव्यः) उकेशज्ञातीय वृद्धशाखाया नवलखागोत्रे सा० नसरुपजी तत्भार्या रुकमादे तत्पुत्रं हर्षचंदजी सपरिवारयुतेन श्री. शान्तिनाथजीजिनबिम्बं नवीनविहारकारितं बहत्खरतरगच्छे । मूलसहित बिम्ब आठ हैं। दूजोमन्दिर सम्वत् १८६३ प्रमिते वैशाख सित ३ वार शुक्र श्रीपादलिप्तनगरे गोहिल श्रीकाधाजी कुंअरनोधणजी तत्पुत्र प्रतापसिंहजी विजयराज्ये श्रीमकसूदावाद-बालुचर वास्तव्य बृहत्शाखा प्रकट उकेशज्ञातीय दुगडगोने बाबू बुधसिंहजी तत्पुत्र बहादुरसिंहजी ततभाता बाबू प्रतापसिंहजी तद्भार्या महताबकुंअर श्रीशर्बुजययात्राविधानसंप्राप्त बाबू प्रतापसिंहजी श्रीसंघपतितिलक........ नवीनजिनभुवन....................साधर्मिकवात्सल्यादिधर्मक्षेत्रेसप्तस्ववित्तसं० श्रीविमलाचलोपरिविहारशृङ्गारहार श्रीसंभवनायजी त० श्रीपार्श्वनाथजी त० शीतलनाथजीबिम्बं कारितं "Aho Shrut Gyanam" Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ] [ परिशिष्ट प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीर देवपट्टपरंपरायात् श्रीजिन उद्योतनसूरि श्री वर्द्धमानसूरि वस्तिमार्गप्रकाशक इत्यादि शास्त्र...........घूरि शृङ्गारक सकलभट्टारक पुरंदर बन्दारक जंगम-युग-प्रधान श्री जिनहर्षसूरीश्वर विजयर राज्ये बृहत्खरतरगच्छे वा० कनकशेखर जी तत् शिष्य पं० जयभद्रजी तत् शिष्य पं० देवचन्द्र ेण प्र० ॥ E उहां सेती गु० टोडरमलजी तारा बन्द आए थे । अयं प्रशस्ति । चौमुखी में वडतां बडी पोल आगे है। चौमुखजी तथा पुंडरीकजी री विगती लारले पानेमे है सो देखलेणी | पुण्डरीकजी से डावे पासे लेई जीमणे पासेस' धीरी विगत लिखे हैं । पुण्डरीकजी गणधर पादुका देहरी ३ है । सम्वत १७८४ वर्षे मगसिर वदि ५ दिने श्रीमालज्ञातीय खुशालचन्द्र भार्या वाइमावा कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे उपाध्याय श्री दीपचंद शिष्य पं० देवचंदयुतेः श्री ॥ पासे छोटी देहरी एक चौमुखजीरी, ४ और देहरी पिए है सर्व प्रतिमा १५ देहरी १ में । सम्वत १८६३ माघसित १० बुधौ श्री शान्तिनाथविम्बं कारितं बृहत्खरतरगच्छे मंडोरीयेरी ( श्री जिनमहेन्द्रसूरि ) प्रतिष्ठितं । श्री पालीताणानी तलहटी " संजत गुलाब" एनांव (म) प्रतिमा में हैं । नीचे पटड़ी है- सम्वत १८६६ ना वइशाष मासे कृष्णपक्षे तिथौ ५ गुरुवासरे लखनऊवास्तव्य उसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां ...... लाव गोत्रे महानन्दजी तत्पुत्र सदानन्दजी तत् भार्या बाई कुमारी.... गुलाबरायजी भार्या जूनोबीबी भातृ मेहताबरायजी श्रीविमलाचलोपरिविहार कारितं, गुलाबरायजीन शान्तिनाथजी, जूनोबीबी धर्मनाथजी, महेताबराय सुमतिनाथजी, अमरोबीबी चन्द्रप्रभु गुलाबबीधी ऋषभदेवविम्बं कारापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी शि० पं० देवचन्द्र शिष्य हीराचन्द्र प्रतिष्ठितं । बिम्व ५ है देहरी ३ में है । "Aho Shrut Gyanam" Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ] [११ सम्बत १८८८ वर्षे महाशुदि ५ दिने सोमवासरे उकेशज्ञातीय भणशाली विमलसाहजी तत्पुत्र........साहजी तत्भार्या जमुनाबाई श्रीऋषभनाथबिम्ब कारापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिविजयराज्ये पं० देवचन्द्रण प्रतिष्ठितं । श्री मूरतबिम्ब २ तिणमे १ मंडोरीये प्र० देहरी ४ में सम्वत १८९३ ना शाके १७५८ मासोत्तममासे माघमासे शुक्ल पक्षे दशमीतिथौ बुधवासरे उसवाल ज्ञातीय लोभजी पुत्र प्रभा करापितं श्रीसम्भवनाथजीबिम्ब प्र० मंडोरीयेरी (श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः ३ बिम्ब है। आगलो देहरो - सम्बत १६७५ वैशाख सित १३ शुक्रे सुरताणनूरदोजहांगीर सवाई............. ...................नी । १ मूलनायकजीमे नाम १ प्रतिमा ओर २ चोवीसट्टा पाषाणरा पासे देहरी एक तिणमे प्रतिमा ६ है। सम्बत १८५६ शाके १७२१ प्रवर्तमाने माघ शुक्ल पंचम्यां गुरौ श्रीमहिमापुर बास्तव्य गहिलड़ागोत्रे बाबू गंगादास पुत्र हुकमचन्द भार्या जयकुंअरकया श्रीपार्श्वनाथबिम्ब कारापितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छेश भ० जिनहर्षसूरिभिः । पासे छोटी देहरी तिणमें चोमुख “प्रति जिनहर्षसूरिभिः" पासे देहरी एक तिणमे चरण दादेजीरा। सम्वत १८७० अषाढ़ शुदि १० दिने दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी, दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी, मुंह आगे चरण ३ हैं। सांजाराजोड ३ मुह आगे चरण कल्लाजीरा, पासे देहरी विणमे श्रीजिनलाभसूरिजी, श्रीजिनचन्द्रसूरिजी रा चरण । १८५७ मिती फागुणवदि १ दिने। पासे देहरी तिणमे प्रतिमा ५ १ यह लेख "एपिग्राफिया इण्डिका" और "प्राचीन जैनलेखसंग्रह) पृ० ३३ में प्रकट हो चुका है। अतः यहां नहीं दिया है। "Aho Shrut Gyanam" Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] [ परिशिष्ट संवत् १९२१ वर्षे वैवा० सु० ५ दिने सूरतनगरे पासे देहरी तिरणमे चरण संवय १८०२ फा० व०२ दिने श्रीवीकानेरवास्तव्य वेद मगनी रामेण श्रीआदिनाथपादुका कारापितं श्री बृहत्खरतरगच्छे जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः । पासे देहरो | सकलसूरिराजाधिराज श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ पासे एक मन्दिर तिण में प्रतिमा ३ मूल श्याम सहित दोय जूनी मूरत, चोवीसट्टो १, नन्दीश्वरपट्ट १, विगत संवत १६७५ वैषाख सुदि १३ शुक्रे श्री राजनगरवास्तव्यः प्राग्वाटज्ञातीय सं० सोमजी.......... श्रीपार्श्वनाथबिम्वं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री बृहत्खरतरगच्छाधिराज प्रधान श्रीजिनसिंहसुरिपट्टे शृङ्गारक भट्टारक वृन्दारक श्रीजिनराजसूरीश्वरैः। संवत १६७५ वैषाख सुदि १३ शुक्र श्री रूपजीकेन परमकल्याणाय युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरिमूतिः कारिता प्रतिष्ठिता श्रीजिनराजसूरिभिः दूजी मूरति श्रीजिनकुशलसूरिजी री है। सम्वत १८८४ वर्षे मगसिर वदि ५ दिने श्रीनन्दीश्वरद्वीप द्विपञ्चाशतचैत्यशाश्वत जिनबिम्बं कारितां अहम्मदावादवास्तव्य श्रीमालज्ञातीय सा० ताराचन्द पुत्र हरखचन्द्रेण कारिता प्रतिष्ठता श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक १८६ जिनचन्द्रसूरिशाखायां महोपाध्याय श्रीराजसारजी तत्शिष्य महोपाध्याय श्रीज्ञानधरमजी शिष्य उपाध्याय श्रीदीपचंदगणिसंयुतैःसम्यगदर्शन प्रात्स्यर्थ भवतु लिखितं पण्डित मतिरत्नमुनिना । मसे चलता देहरो बडो तिनरी विगत "Aho Shrut Gyanam" Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट । [२१ संवत १६७५ वैषाख सित १३ शुक्र ..............१ । भमती लगती देहरी तिणरी विगती संवत १६७५ माघवदि ४ मेमदाबादवास्तव्य श्रीमालज्ञातीय लघुशाखायां का० भ० विमलादे सुत श्रीपारसबिम्ब प्रतिष्ठतं बृहत्खरतरगच्छाधिराज भट्टारक श्रीजिनराजसूरिभिः बिम्ब ३ है। चरणपादुका चार है। तिणमें २ भगवान का २ साध्वी राज्यसरी (श्री) उदेश्री रा है। देहरी एक गणधरपादुकारी १४५२ है तिगरी विगत ।। ५०॥ नमः श्रीमारूदेवादि वर्द्धमानान्ततीर्थकराणाश्री पुण्डरीकांद्यगौतमस्वामिपर्यन्तेभ्योगणधरेभ्यः सभ्यजनेभ्यःपूज्यमानेभ्यःसेव्यमानेभ्यः। संवत १६७५ वैशाष सुदि १३ शुक्र प्रागवाटज्ञातीय सा० रूपजीकेन सार परिवारसहितेन श्रीकवड़यक्षमूर्ति कारिता प्रतिष्ठिता श्रीजिनराजसूरिभिः। बृहत्खरतरगच्छे । संवत१६७५ वर्षे वैशाख शुदि १३ शुक्र अहम्मदावादवास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातीय सं० रूपजीकेन भार्या जेठी पुत्र उदवन्त बाईकोडि कुंअरि प्रमुखपरिवारसहितेन परमहिताय श्रीचक्रेश्वरीमूर्वि कारिता प्रतिष्ठ, श्रीजिनराजसरिमिः। खरतरगच्छेश्वरे:॥ आगे देहरी तिणमे प्रतिमा ५ मूलनामो नहीं है। बगल मे प्रतिमा है तिषमे नामौ है १ यह लेख भी प्राचीन जैनलेख संग्रह में छप चुका है। अन्तर केवल इतना ही है कि इसमें शान्तिनाजिनबिम्बं भरवाने का उल्लेख है। २.यह लेख भी "प्राचीन जैन लेखसंग्रह" पृ० ३४ पर मुद्रित हो चुका है। अतः यहां देना उचित नहीं सममा मया । "Aho Shrut Gyanam" Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] [ परिशिष्ट संवत १७२५ वर्षे वैशाख सुदि चन्द्र सा० बीरचन्द सुत ताराचंदेन श्रीपार्श्वनाथबिम्ब भरापितं । श्रीविजयारपंदसूरिंगच्छे श्रीविजयउदयसूरि उपदेशात् श्रेयोर्थ प्रतिष्ठितं । बगलमे प्रतिमा तिणमे नामो संवत १८२५ वर्षे वैशाख वदि शुक्र श्रीमालवृद्धशाखायो सा. हेमचन्द........पार्श्वचंद्रगच्छे प्रति० श्री तपागच्छे .....सूरिभिः । पासे देहरी तिणमे प्रतिमा ३-. संवत १८८० वर्षे माह शुदि ५ शुक्र श्रीपार्श्वनाथबिम्बं कारितं बाई रतन पुत्रज जीवतेन प्रतिष्ठितंच श्रीखरतरगच्छे उपाध्याय श्री दीपचंद्रगणिभिः। पासे १ देहरी तिणमे प्रतिमा ५ मूलनायकजी मे नामो-- खरतरगच्छे जंयु०प्र०म० श्रीजिनलाभसूरिभिः । बगलकी प्रतिमामे संवत १८३८ वैशाख शुदि ५ बुधे श्रीसूरतबिंदरवासी सा नेमीदास सुत सा० भाईदासकेन श्रीखरतरगच्छे श्रीअजितनाथबिम्ब ।। पांचही बिम्ब में प्रतिष्ठा खरतरनी॥ देहरी पहिली मे प्रतिमा दोय हैं। सं० १६०० वैशाख सित १५ गुरुवासरे श्री लखणे उवास्तव्य श्रीमालज्ञातीय वद्धशाखायां सा० सदासुखजी तत्पुत्र छ......जी चुनीलालजी शिवप्रसाद सपरिवारयतेन श्रीचन्द्रप्रभ (बिम्बं) कारापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छ ५० देवचंदजीशिष्य हीराचंद्रण प्रतिष्ठितं । एनाम पटडी मे है। मूलनायकजी मे छे, १ मालूम होता है। प्रतिमा २ है। पासवाडे प्रतिमामे नामों मंडोरीयोरोछे । पटडी नीचे तारी छ । २ देहरी प्रतिमा ४ मंडोरीयेरी प्र० पटडी तीन में है लषणेउरा रतनचन्द, बनारसरा थानसिंहजीरी भार्या शभोबीबी। "Aho Shrut Gyanam" Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट } [ २३ ३ देहरी ५ चरण ४ मालूगोत्र छोटेमलजी शान्तिनाथ बिम्ब कारित प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्री...आगे अक्षर चरण पीछे ढंका है । (प्र०५) ४ देहरी प्रतिमा ५ मूलमे श्रादिनाथविम्वं कारितं प्रतिष्ठितंच श्रीजिनराजसूरिभिः। २ प्रतिमा मंडोरीयेरो छोटी बगल मे। (प्र० ३) ५ देहरी प्रतिमा मंडोरीयेरी नीचे पटडी मे नामो मंडोरीयेरो । सं० १८८२ ना श्रीपूज्यजी नामा ३, नामा ५ साजांरा कलाजी प्रमुखरा। आगे देहरो बड़ो एक प्रतिमा बड़ी सफेद मूलनायकरी और प्रद०५ प्रतिमा ३ सफेद २ श्याम । पसवाडे प्र० १ मंडोरीयेरी नीचे पटड़ी में नामो संवत १८८५ ना चै० सु० १३ वार भोमे श्रीबीकानेरवास्तव्य श्रोशवा० वृद्धशाखा डागागो० सा० वींजराजजी पुत्र हरषचंदजी भा० रुतनकुंवर स्वनात्मानं बाई पासां................श्रीधादिनाथ स्थापितं, श्रीखरतरगच्छे । ॥ गणधर पादुकारे आगे देहरी १ तिरणमें प्रतिमा १ चरण थापना १३ री है। ७ ओर चरण है। ॥ संवत् १७६१ वर्षे वैशाष (ख) शुदि ७ स्वौ राजनगरवास्तव्य प्राग्वाट्झातीय लघुशाखायां साह जीवनदास भार्या बाई वची पुत्र वनमालीकेन कारितं श्रीवासुपूज्यबिम्वं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे उपाध्याय श्रीदीपचंद्रगणिना उ० देवचंद्रगणिना सहितेन ! चरण ३ श्राडीबाजू लाल संवत् १८०४ ना पोष वदि ६ दिने रवी श्रीखरतरगच्छे उपाध्याय श्रीदीपचंदजी शिष्य पं० श्री देवचंद्रण ।। १५७५ वैशाखसित १३ शुक्र का एक लेख है जो प्राचीन जैनलेख संग्रह में छप चुका है। "Aho Shrut Gyanam" Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४] परिशिष्ट बगलो मे ओर चरण १ है। संवत् १८३१ ना वर्षे महाबदि ५ सोमे श्री रानेर (रांदेर) वास्तव्यः श्रीमालीज्ञातीय साषुसाल तसभार्या बाईरूपा तस पुत्र सा०मोतीचंदकेन तपागच्छे ॥ श्रीधर्मनाथ पादुका कारापितं च भ० श्रीजिनभक्तिसूरीणां चरण १, ! श्रीसुधर्मस्वामि पंचम गणधरनाचरण । भ० श्रीजिनलाभसूरीगो चरण २। वाचनाचाये श्रीअमृमधर्मगणीनो चरण । श्री प्रीतिसागरगणीनां चरण वाचनाचार्य श्रीक्षमाकल्याणगणि रा चरण । संवत् १८५४ मिते श्रावण सुदि १ बुधे श्रीमकसूदाबाद वास्तव्योपकेश्य सांउंसुखागोत्रीय सा. कीर्तिचंदाभ्यां श्रीसुधर्मास्वाम्यादीनां विद्यमांन स्वगुरोश्चपादन्यासाः कारिताः बहत्खरतरगणाधीश भ० श्रीजिनजंद्रसूरि विजयराज्ये प्रतिष्ठिता श्री वाचनाचार्य क्षमाकल्याणगणिना। श्रीरस्तुतराम्म ।। कल्याणविजयस्य पादुके इमे, विवेकविजयस्य पादुके इमे पसवाडे चोमुख १ सं० १८८१ रो चरण १ ओर है। चरस जोडा २ तपागच्छ। जातरुचि खरतर ।। संवत् १८४९ मिती श्रावण सुदि ७ पं० प्र श्री तावकुमारमुनीनाचरपन्यासः ! भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये ॥ रायणतले देहरी ३ तिणमे पगला है ३८ वड़ा तिणारी विगत । २ जोड़ा पगलावड़ा आदिनाथजी रा २ देहरी में। ३८ पगलां जोड़ा देहरी एकमे है । बगला वड़ा मे लिषत है! ॥ संवत् .. ४८ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १२ वार शुक्र आचार्या खरतरगच्छे वा० रामचंदजी तत् शिष्य प्रेमचंदजी करापितः। उपा० देवचंद्रगणिनी पादुका, वा० मनरूपगणिनी पादुका, । ३६ पगला में चरम मंडोरिया रे है। प्र। १ इस पादुका का लेख "प्राचीन लेख संग्रह पृ० २३ में छप चुका है अतः देना स्थगित कर दिया है। "Aho Shrut Gyanam" Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ] [ २५ पासे देहरी १ ति में आलो ( खत्तक) पिछे तिरसमें प्रतिमा १, मुंह आगे चोवीसीना चरण के । संवत् १८८८ वैशाख सित दिल्लीना गंगादास प्रमुख कराया बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः विजयराज्ये पं० देवचंद्र प्रतिष्ठितां । ए नाम मात्र लिखा है । लिखित यादी है सो जाना'' एक देहरी पासे तिरणमे चोमुष है । नामोमा वारकातीवाई मोती०र पासे देहरी प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे भ० श्री जिनलाभसूरिभिः प्रति० । १ पासे देहरी प्रतिमा १ चरण दो है नामो प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे सासो० “भागचूला पादुका" सा० पुष्पचूला पादुका | आगे देहरो बडो तिमे मूलनायकजी री प्रति० १ वडी । प्रतिमा तीन ओर है । has मूर्ति १ चक्रेश्वरी मूर्ति १ दोय मूर्ति ओर है । तिमे नामरी इय argle. सुरतानूरदीन जहाँगीरसवाइ हैविजयराज्ये ॥ सं० १६७५ वैशाप शुदि १३ शुक्रे श्रोसवालज्ञातीय भासाली सा० साना भार्या भूली पुत्र कमलसी भार्या कमलादे पुत्र-लषराज भार्या वरवाई पुत्ररत्न सा० सद्वाकेन भार्या पहुती पुत्री देवकी प्रमुखसहितेन श्रीराजनगरवास्तव्येन श्री अजितनाथविम्बं कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत् खरतरगच्छे" "श्री जिनसिंहसूरिपट्टालंकार भ० श्री जिनराजसूरि राजैः ॥ १ कवयक्षमूर्त्ति १ चक्रेश्वरी मूर्त्ति १ यह प्रेमचंद्रजी वही होने चाहिये जो पादलिप्तपुर - पालीताना में रहा करते थे। यों तो वे पूर्वावस्था में बीकानेर के थे परन्तु बाद में आपने मिथ्या परिग्रह का सर्वथा त्यागकर मुनित्त्व की दीक्षा स्वीकार कर ली थी ! आपका चारित्र बहुत ही उच्चकोटि का था । आपने योग का भी अच्छा अभ्यास किया था। आपकी यौगिक शक्ति को देखने वाले अभी भी बंगाल में विद्यमान हैं । वयोवृद्ध बाबू गोविन्दचंदजी भूरा (जीयागंज वाले) ने आपके विषय में मुझे भलीभांति परिचित कराया । छुटपन में आपके पास ये पढ़े थे । श्रीभूराजी भी उस समय के धार्मिक इतिहास की एक कड़ी है । इतिहास के स्वाभाविक रुचि होने के कारण आपको उस समय की घटना श्राज भी ज्यों कि त्वों याद है । मु० कां० सा० "Aho Shrut Gyanam". Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Aho Shrut Gyanam" Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिषिष्ट २ लेखों में आये हुए आचार्य व प्रतिष्ठायक मुनियों के नाम श्रजितदेवसूरि श्रमरसूरि अमररत्नसूर श्रमर सिंहसूर श्राणन्दप्रभसूर श्राणन्दविमलसूरि श्रानंदरि इन्द्र (देवाचार्य उदयचन्दसूरि हृदयदेवसूर उदयप्रभसूरि 'जयवलभसूरि - उदयसागरसूरि उदयसुन्दरसूरि उदयावान्दसूरि २३ गुणनिधानसूरि २४३ गुणदेवसूरि १२५, २२१, गुणधीरसूरि २८८, ३०७ गुणा रत्नसूर १०४ गुणसमुद्रसूरि १४५ गुण सागरसूरि ३३५ गुणसुन्दरसूरि गुणाकरसूरि कुशलचन्द्र गणि क्षमाकल्याण गणि क्षिमाभद्रसूरि गुणचन्द्रसूरि २१, २४, ४.६ ज्ञानसागरसूरि २८०, ३०५ शानविमलसरि १३३ जयकीर्तिसूरि ४५, २८ विम १४४, २४६, ३०५ कक्कसूरि १४, ३४, ३६. १०७, १२१, १३२,१३६, १४२ पचर ६२ जयचन्द्रसूरि १६८, २६६, २७३ ककूदाचार्य ३६, ६४, १४२, १६८ २२०, २३२, २५५ कमलप्रभसूरि १३१, २६३, २८६ कल्याण सागरसूरि ३.५.७ ३५५, ३४६, ३५३ जयकेशरिसूरि १४४, १४५ जयशेखरसूरि चन्द्रसूरि जिनोदयसूरि जिनकुशलसूरि जिनचन्द्रसूरि " Aho Shrut Gyanam" * १६५,१७८ १७१, २०४ ५५, १६५ RK& -२१६ जिननन्दीवर्धनसूरि ३३ जिनदत्तसूरि १२० २६,५१, ११ ३०५ *** २१, २२७ १०० ११७ ६६, १०१ १९५ २११, ३३६ ७५ 12 २४१ १८३ २०, २१, १२३ १५६ १६० १७३, २१७, ३०२, ३१८, ३४३, ३४४, ३६८ ३५७, ३६१. ३८४ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ [ ख ] जिनदेवसूरि ३०, १०६ देवगुससूरि ६४, ८६, १.४.२२०, जिनसागरसूरि १२३ २३२, २४५, २४६, २६४ जिनभद्रसरि ८२, ११४, १३०, १३२, देवन्दसूरि १४८, १४३, १३१, २५८ देवसुन्दरसूरि जिनमहिन्द्रसूरि ३५६, ३५८ देवविमलसूरि २८२ जिनमाथिक्यसूरि २६१,३०८ धणचन्दसूरि जिनरनसूरि २६. धनप्रभसरि जिनराजसूरि १४८ धनरत्नसूरि २७२, २६०, ३.. जिनराजमार १३०, १३१ धनेश्वरसूरि २३३, २३६ जिनलाभसूरि ३३६, ३४२, ३४३, धर्मसूरि जिनवर्धनसूरि ६३,३०२ धर्मघोषसूरि जिनसमुद्रसूरि २६२, २६४, २५६ धतिलकसूरि जिनसागरसूरि ३, १.१, ११ धर्मविमलसूरि २१८ १२३, ३०२ धर्मसागरसूरि १६२, २३६ जिनसुन्दरसूरि १५८ धर्मशेखरसूरि जिनसौभाग्यसूरि ३५८, ३६०, ३६४ नन्नाचार्य जिनहर्षसूरि १६७ नयचन्द्रसूरि १.k जिनहर्षसूरि ३४८, ३४६, ३५१, ३१२, नयविजय ३५३, ३५६, ३५७, ३५८, नरप्रभसूरि ३८५, ३८६,३८५, ३६०, नाणचन्द्रसूरि ३६२ नायकचन्द्रसूरि जिनहंससूरि १५८, २६५, ३६५ पजनसूरि ३६६ पद्मजस जिनहरिखसूरि २६८, २७६ पद्मानन्द्रसूरि १७६, १९ जिनेश्वरसूरि १३ पद्मशेखरसूरि १७६, १६० ज्ञानकलशसूरि ___ ८५ पारसदेवसूरि ११. सानविमलमूरि ३५१ पासचन्दसूरि ज्ञानसागरसूरि २६५, ३०५ पुण्यनन्दनगणि ११ २६ पुण्यरत्नसूरि २१६, २८१ तिलोकसागरगणि ३४७ पुण्यवर्धनसूरि दयासागर ३७६ पूर्णभद्रसूरि देवचन्द्र २६६, प्रमोदविजयगणि ३५४ - तिलकसूर "Aho Shrut Gyanam" Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [ ग ] प्रशीलप्रभसूरि १.३ राजशेखरसूरि भद्ररलसूरि १६ रिद्धिसागरसूरि ३५८ भावचन्द्रसरि २११ रूपचन्द्र भावदेवसूरि १००,२४२ रूपसागर ३७५ भावसागरसूरि २५५, २८५ लक्ष्मीतिलकसरि मतिसागरसूरि लक्ष्मीसागर २८८ मलयचन्दसूरि ६. लक्ष्मीसागर सूरि १६६, १७, १५, महिन्दसूरि १७, १८०, १८१, मागिकसरि १८२, ९८४, १८१, मुनिचन्द्रसरि १९४, १६५, १६, मुनितिलकसरि २०२, २०३, २१०, मुनिरत्नसरि २२२, २२५, २२६, मुनिसुन्दरसूरि ४, ५६, १२५ २३४, २४०, २४, १४०, १४४, १७२ २४६, २५१, २४२, ३०१ यशोदेवसरि ___Ek बड़गच्च २६. यशोभद्रसूरि १६, १८५ बर्द्धमानसूरि योधराज ३४७ धारवैन्द्रसूरि २२७ रत्नप्रभसूरि १. विजयाणंदसूरि ३०३, ३३१, ३३२ रत्नसरि १४५, २६१ विजयतिलकसूरि ८५, ३३१ रत्नशेखरसूरि ४१, १०८, १०१ विजयदानसूरि ३१३, ३१४, ३१५, ११२, ११८, ११५ ३१५, ३०१, ३१., १२२, १२४, १२५, ३१४, ३१६ १३८, १३६, १४०, विजयदेवसूरि १५२ १४३, १४६, १५१, विजयदेवसूरि ३३०, ३३१, ३३२, १५०, १७६, १८०, ३३३, ३३५, १८२, १८४, १८६, २४० विद्याशेखरसूरि रत्नसागरसूरि ५०, १३५, ३६२ विजयधर्मसूरि ३॥ ३६३, ३६४ विजयप्रभसरि रत्नसिंहसरि ९६, ११, १.३, विजयसिंहसूरि २८३, ३३५ ११५, १६३ विद्यासागरसरि रत्नाकरसरि १३२ विनयचन्द्रसूरि राजतिलकसूर १५३ विधप्रभसूरि १८, ३३५ १२ "Aho Shrut Gyanam" Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ १०७ २२७ [ 1 ] विजयसिंहसूरि ५६ सिद्धांतसागरसूरि विजयसिंहसरि ३३३, ३३१, सिद्धसूरि । २०६, २६४ ३४१, ३५, सिद्धसेनसूरि विजयसेनसूरि ३२०, ३२२, ३२३ सिंहसेनसूरि विमलविजयगणि ३५० सिंहाचार्य विमलसूरि १५५, २७. सुमतिसाधुसूरि २९१, २५२, २५६ विशालराजसूरि १२५, २१३ ।। २६५, २५१, ३.१ वीरदेवसूरि ११५ सुमतिरत्नसुरि २७६ वीरप्रभसूरि १४६, १७२, २३५ सोमकीर्तिसूरि वीरसूरि १९६ सोमदेवसूर वीरसिंहमूरि ४. सोमरत्नसूरि २९४, २८८ शान्तिपूरि ५.६६,८१ सोमसुन्दरसूरि ६४१,५३,१६, __Ek, १०३ १०८, १७, ११२, ११८, ११९, १२६, शान्तिसागरसूति ३५४, ३६५ १२५, १३८, १३९, शालिभद्रसूरि ११, १८१ १४३, १४, शीलकुंजरगणि २१३ शीलस्नसरि ११६, ११६ सौभाग्यसूरि २६२ शालिसरि २३. सौभाग्यसागरसूरि सत्यविजयगणि ३३४ हरिभद्रसूरि सर्वानन्दसूरि ३५ हरिसेपासुरि सागरचन्द्रसूरि २२ हितवल्लभ गणि साधुरलसूरि ५६, ७४, १५, १६७ हीरधर्म गरिए १८५, २०७ हीरविजयसूरि ३१३, ३१४,३१५, साधुसुन्दरसरि १३४, १५०, ३१७, ३११ १६०, १५, २५२ हेमप्रभसूरि २१, २४, २५ सालिभद्रसूरि १५२,१६६,२१५,३१२ हेमरकसरि ४१, १.४, १६१ सावदेवसरि १२१, २४७ माविमलमूरि २५६, २६० सिंहदत्तरि २१३ हेमविलाससरि २६८, २७५ सिद्धाचार्य २.६, २६६, २८७ हेमसुन्दरसूरि १६८, २१ "Aho Shrut Gyanam" Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४, ३१२, परिशिष्ट ३ लेखों में आये हुए गच्छों के नाम अंचलगन्छ ५२,८६, १४४, १४७, चैत्रगच्छ २३, १.६, १११, १५५, १६२, १८१, २०, ११५, २१०, २२५, २०८, २१२, २२५, २५४, माल्योदरगच्छ २७५, २८५, ३०४, ३६२, जावालमच्छ ३६३, ३६४, जीरापल्लीगच्छ श्राममगच्छ १०४, १०, ११६, जीराउल्लागच्छ १२५, १२९, १३४, १४५, ज्ञानकोयगच्छ २३३, १६१, २२१, २४३, २६१, तपागच्छ ६६, ७२, ५३, १४, १६, २८४, २८८, ३२३. ३३३, ११८, १२२, १४, १५, उकेशगच्छ ३४, ३६, ६४, ८६, १६६, १८०, १६, १८२, १०५, १४२, १६८, २०६, १६५, २४१, १४६, २४८, २२०,२६४, २५१, २६५, २६६, २८२, कृष्पर्षिगच्छ १०५, ३०१, ३०३, ३०६, ३१०, कोरेटगच्छ १४, १२१, २४७, ३१३, ३१४, ३१५, ३१५, खरतरगच्छ ८२, ८८, ६३, १०२, ३१६, ३२२, ३२३, ३२६, ११४, १३०, १३२, १४८, ३२५, ३२८, ३३०, ३३१, ११८, ११, १६०, १६५, ३२, ३३, ३४, ३५, ३६७ २१४, २३१, २५८, २६२, ४३, ४४, ४५, ३५१, १२, २६४, २५६, २५८, २६५, ५३, ५४, ५५, ३१८, १९, २०२, ३१८, ३३६, ३४०, तपा ६८, १०१,११२, १११, ३४१, ३४३, ३४६, ३४८, १२४, १२५, १३६, १३६, ३४६, ३५०, ३५१, ३५१, १४३, १०, १५, १ve, ३५३, ३५६, ३५५, ३५८, १८३, १४, १८६, १९४, ३५६, ३६०, ३६६, २०२, २.३, २१२, २५६, खरातपा २७५, २६२, ३२५, चित्रवालगन्छ १६१, दिवंदणीकगच्छ २६६ २७३, २८५, "Aho Shrut Gyanam" Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६, [ ख ] मर्मघोषगच्छ ६०, ४०, १0६, भीमपल्ली २११, ११०, २०५. २६३, महकरगच्छ १३५, नागेन्द्रगन्छ ४१,५१, १४१, मलधारी ५., १२०, २४६, नाणवालगच्छ २३६, रुद्रपल्लीय १२१, २४२, पल्लीगच्छ २६, १५, विजयगच्छ ३६५, पिप्पलगच्छ १३३, १५२, ११२, विजयानन्दसूरिंगच्छ २३०, २३६, २५८, वड़गच्छ पूर्णिमागच्छ या पद ७५,८४, ८५, बृहदतपागच्छ , ५, ६१, ११३, १३१, १४६, १०, १३, ११५, १६३, १५८, २०६, ११६, १६५, १६५, १८७, २४५, २४८, २६०, २६५, १८८, १९३, १९८, २००, २०४, २१४, २१९, २७८, २५०, २६०, २६१, २६२, २५०, २१, २८३, ३०५, ३००, ३०६, वृहद्गच्छ २४, ३६, तरवालगच्छ बृह्मारागच्छ ६२, ४, २३५, सदारगच्छ ३१२, वृहद्रायगच्छ १५४, सोंडरेगच्छ ८१, १०३, १६., मादवाचार्य ५, २८१, सौराष्ट्र गच्छ २१६, भावडारगच्छ २६५, हुंबड़गन्छ १३, २१३, "Aho Shrut Gyanam" Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ १३१, १५०, २२१ १३, १३" १२५, उदयपुर परिशिष्ट ४. लेखों में आये हुए नगरों के नाम नगर लेखांक जानूमाम अजाउली २१४, टीभा अड़ियाणा १६६, डोडाणा अलवाह ग्राम १४६, डाभिलाम अहमदाबाद १४०, १४, १७६, तिमिरपुर १८४, ३२१, त्रिपुरपाटक ३५६ थलग्रामे अहिपुर ३५०, द्वीपबंदिर ईडर १२२, ३२३, देवगिरि २४३, देवास ऊंमा २८७, दहिड़ा कमाया १.१, धन्धका १२१, कर्कटपाटक २६., धार कर्मणा ३४८, ३५०, धधिराज कोसरवाड़ा १३३, नगुदा १५५ कोरड़ ३६६, नडियाद खुरसदकना १८८ नन्दरचार खेड़ा २७२, नलकन्छ गंधार १०४, १६६, ३४०, २४५, नामपुर ३.६ नागलपुर ३६४, ३०१, नारंगपुर ११, चाँपानेर २८४, ३०३, पत्तन २८६, २६५, ३१७, ३२१, चंपकपुर २८५, ३२३, ३२५, ३४०, ३४३ चूड़ा १७१, पुरंदारे (१) १४६, चूल्हा १३५, बलख जहां १६५, बालूचर ३५१, ५३, ३६६ ३.६, ३८३, चंदेरा १८८, "Aho Shrut Gyanam" Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४०, ३५८ २००. ११, [ ख ] बम्बई ३६२, वडली बुरहानपुर ३२४, ३४४, यागारस बंदुर ११६, विजापुर बोरसिद्धि २०५, विद्यापुर बोस १२४, वीकानेर भांदक ३२०, वीसलनगर १६०, भादक ३२७, वीरमग्राम मचाउ ३६३, वेलाकूले भागलपुर २०४, बेलापर २०४, भिन्नमालपत्तन ३४५, सदरड़ा मंगलपुर २६०, २६५, संतलपुर मंडप २६१, सलखमापुर १४k, मंडपदुर्ग १८१,१८५, २८१,२२६, सरपुन मगडम्वाल ३००, सांडर मकसूदाबाद २६५, सिरपुर ३४४, महिगल ६४, स्याहंपुर मादड़ग्राम २२६, सीरोही मालसणा २६५, सहज १५५, मेंना १५२, सद्रोसण १६, रगोला, १२९, सूर्यपुर -सूरत ३३८, ३४., राजनगर ३१४, ३६३, संखीसर लाटापल्ली २६८, स्तभतीर्थ ७४, ११३, २०१, २६१, लोलापुर २१०, (खेभात) २६५, ३०६, ३१०, ३११, लींबडी १६२, ३१४. ३३१, ३५४, वटपद्र ३२७, ३३०, शेरपुर २६६. बडालबी ११६, हाँसुट ३४२, ३१५, "Aho Shrut Gyanam" Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौन्दर्य प्रोर कला Ma wwwwwwww.. संस्कृति के वे महान अंग हैं जो हुतंत्री के तारों को झंकृत करके लेखनी या छेनी की सहायता से मूर्तरूप धारणकर संस्कृति के सजीव और चिरजीवी प्रतीक बन जाते हैं। " श्रमण संस्कृति" में कला और सौन्दर्य का कितना सम्मिश्रण रहा है, यह अनेक प्राचीन कलात्मक शिल्पावशेष पुकारपुकारकर बता रहे हैं । प्रस्तुत विषय पर विशेष विवरणात्मक सामग्री पढ़ने के लिये अपने विषय के महान ज्ञाता श्री मुनि कांतिसागरजी द्वारा लिखित : श्रमण-संस्कृति और कला मंगाकर पढ़िये पृष्ठ संख्या १२५, मूल्य १ ) रुपया, प्राप्ति स्थानभारत नावेल्टी स्टोर्स ४८१, सुभाष पथ, जबलपुर म० प्र० "Aho Shrut Gyanam" Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી જિનશાસના જય હો !!! II શ્રી ગૌતમસ્વામીન નમઃ | | શ્રી સુધમસ્વિામીને નમ: || જિનશાસનના અણગાર, કલિકાલના શણગારા પૂજ્ય ભગવંતો અને જ્ઞાની પંડિતોએ શ્રુતભક્તિથી પ્રેરાઈને વિવિધ હરતલિખિત ગ્રંથો પરથી સંશોધન-સંપાદન કરીને અપૂર્વજહેમતથી ઘણા ગ્રંથોનું વર્ષો પૂર્વેસર્જનકરેલછે અને પોતાની શક્તિ, સમય અને દ્રવ્યનો સવ્યય કરીને પુણ્યાનુબંધી પુણ્ય ઉપાર્જન કરેલ છે. કાળના પ્રભાવે જીણ અને લુપ્ત થઈ રહેલા અને અલભ્ય બની જતા મુદ્રિત ગ્રંથો પૈકી પૂજ્ય ગુરુદેવોની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી સ.૨૦૦૫માં 54 ગ્રંથોનો સેટ નં-૧ તથા .૨૦૦૬માં 36 ગ્રંથોનો સેટ ની 2 સ્કેન કરાવીને મર્યાદિત નકલ પ્રીન્ટ કરાવી હતી. જેથી આપણો શ્રુતવારસો બીજા અનેક વર્ષો સુધી ટકી રહે અને અભ્યાસુ મહાત્માઓને ઉપયોગી ગ્રંથો સરળતાથી ઉપલબ્ધ થાય, પૂજ્યા સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતોની પ્રેરણાથી જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી તૈયાર કરવામાં આવેલ પુસ્તકોનો સેટ ભિન્ન-ભિન્ન શહેરોમાં આવેલા વિશિષ્ટ ઉત્તમ જ્ઞાનભંડારોની ભેટ મોકલવામાં આવ્યા હતા. આ બધાજપુસ્તકો પૂજ્ય ગુરુભગવંતોને વિશિષ્ટ અભ્યાસ-સંશોધના માટે ખુબજરુરી છે અને પ્રાયઃ અપ્રાપ્ય છે. અભ્યાસ-સંશોધના જરૂરી પુસ્તકો સહેલાઈથી ઉપલળળની તીમજ પ્રાચીન મુદ્રિત પુસ્તકોનો શ્રુત વારસો જળવાઈ રહે તો શુભ આશયથી આ થોનો જીર્ણોદ્ધાર કરેલ છે. જુદા જુદા વિષયોના વિશિષ્ટ કક્ષાના પુસ્તકોનો જીર્ણોદ્ધાર પૂજ્ય ગુરૂભગવતીની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી અમો કરી રહ્યા છીએ. લો અભાઈ તથા સંશોધના માટે વધુમાં વઘુઉપયોગ કરીને શ્રુતભક્તિના કાર્યની પ્રોત્સાહન આપશી. લી.શાહ બાબુલાલ સરેમા જોડાવાળાની વંદના મંદિરો જીર્ણ થતાં આજકાલના સોમપુરા દ્વારા પણ ઊભા કરી શકાશે...! = પણ એકાદ ગ્રંથ નષ્ટ થતા બીજા કલિકાલસર્વજ્ઞ કે મહોપાધ્યાય શ્રી યશોવિજયજી ક્યાંથી લાવીશું...???