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[ परिशिष्ट संवत १७२५ वर्षे वैशाख सुदि चन्द्र सा० बीरचन्द सुत ताराचंदेन श्रीपार्श्वनाथबिम्ब भरापितं । श्रीविजयारपंदसूरिंगच्छे
श्रीविजयउदयसूरि उपदेशात् श्रेयोर्थ प्रतिष्ठितं । बगलमे प्रतिमा तिणमे नामो
संवत १८२५ वर्षे वैशाख वदि शुक्र श्रीमालवृद्धशाखायो सा. हेमचन्द........पार्श्वचंद्रगच्छे प्रति० श्री तपागच्छे .....सूरिभिः । पासे देहरी तिणमे प्रतिमा ३-.
संवत १८८० वर्षे माह शुदि ५ शुक्र श्रीपार्श्वनाथबिम्बं कारितं बाई रतन पुत्रज जीवतेन प्रतिष्ठितंच श्रीखरतरगच्छे उपाध्याय श्री दीपचंद्रगणिभिः।
पासे १ देहरी तिणमे प्रतिमा ५ मूलनायकजी मे नामो--
खरतरगच्छे जंयु०प्र०म० श्रीजिनलाभसूरिभिः । बगलकी प्रतिमामे संवत १८३८ वैशाख शुदि ५ बुधे श्रीसूरतबिंदरवासी सा नेमीदास सुत सा० भाईदासकेन श्रीखरतरगच्छे श्रीअजितनाथबिम्ब ।। पांचही बिम्ब में प्रतिष्ठा खरतरनी॥ देहरी पहिली मे प्रतिमा दोय हैं।
सं० १६०० वैशाख सित १५ गुरुवासरे श्री लखणे उवास्तव्य श्रीमालज्ञातीय वद्धशाखायां सा० सदासुखजी तत्पुत्र छ......जी चुनीलालजी शिवप्रसाद सपरिवारयतेन श्रीचन्द्रप्रभ (बिम्बं) कारापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छ ५० देवचंदजीशिष्य हीराचंद्रण प्रतिष्ठितं । एनाम पटडी मे है।
मूलनायकजी मे छे, १ मालूम होता है। प्रतिमा २ है। पासवाडे प्रतिमामे नामों मंडोरीयोरोछे । पटडी नीचे तारी छ । २ देहरी प्रतिमा ४ मंडोरीयेरी प्र० पटडी तीन में है लषणेउरा रतनचन्द, बनारसरा थानसिंहजीरी भार्या शभोबीबी।
"Aho Shrut Gyanam"