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परिशिष्ट ]
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पासे देहरी १ ति में आलो ( खत्तक) पिछे तिरसमें प्रतिमा १, मुंह आगे चोवीसीना चरण के ।
संवत् १८८८ वैशाख सित दिल्लीना गंगादास प्रमुख कराया बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः विजयराज्ये पं० देवचंद्र प्रतिष्ठितां ।
ए नाम मात्र लिखा है । लिखित यादी है सो जाना'' एक देहरी पासे तिरणमे चोमुष है । नामोमा वारकातीवाई मोती०र पासे देहरी प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे भ० श्री जिनलाभसूरिभिः प्रति० । १ पासे देहरी प्रतिमा १ चरण दो है नामो प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे सासो० “भागचूला पादुका" सा० पुष्पचूला पादुका | आगे देहरो बडो तिमे मूलनायकजी री प्रति० १ वडी । प्रतिमा तीन ओर है । has मूर्ति १ चक्रेश्वरी मूर्ति १ दोय मूर्ति ओर है । तिमे नामरी
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सुरतानूरदीन जहाँगीरसवाइ हैविजयराज्ये ॥ सं० १६७५ वैशाप शुदि १३ शुक्रे श्रोसवालज्ञातीय भासाली सा० साना भार्या भूली पुत्र कमलसी भार्या कमलादे पुत्र-लषराज भार्या वरवाई पुत्ररत्न सा० सद्वाकेन भार्या पहुती पुत्री देवकी प्रमुखसहितेन श्रीराजनगरवास्तव्येन श्री अजितनाथविम्बं कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत् खरतरगच्छे" "श्री जिनसिंहसूरिपट्टालंकार भ० श्री जिनराजसूरि राजैः ॥
१ कवयक्षमूर्त्ति १ चक्रेश्वरी मूर्त्ति
१ यह प्रेमचंद्रजी वही होने चाहिये जो पादलिप्तपुर - पालीताना में रहा करते थे। यों तो वे पूर्वावस्था में बीकानेर के थे परन्तु बाद में आपने मिथ्या परिग्रह का सर्वथा त्यागकर मुनित्त्व की दीक्षा स्वीकार कर ली थी ! आपका चारित्र बहुत ही उच्चकोटि का था । आपने योग का भी अच्छा अभ्यास किया था। आपकी यौगिक शक्ति को देखने वाले अभी भी बंगाल में विद्यमान हैं । वयोवृद्ध बाबू गोविन्दचंदजी भूरा (जीयागंज वाले) ने आपके विषय में मुझे भलीभांति परिचित कराया । छुटपन में आपके पास ये पढ़े थे । श्रीभूराजी भी उस समय के धार्मिक इतिहास की एक कड़ी है । इतिहास के स्वाभाविक रुचि होने के कारण आपको उस समय की घटना श्राज भी ज्यों कि त्वों याद है । मु० कां० सा०
"Aho Shrut Gyanam".