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१४ ] विजयदेवेन्द्रसूरिभिः ।
प्रतिमा २६, उर भ्रमती में प्रतिमां ११७ बाकी अधुरी है सुरज (बुर्ज ) १ मे प्रतिमा ६५ है । तपांरी प्रतिष्ठित है । पिछाड़ी चरण वडा है | फदेचंद सुहालीयेरो देहरो इस मे वणे छे । वगलाओ।
[ परिशिष्ट
मोतीवसीनी विगत
मूलमन्दिर
सम्वत् १८६३ ना मि० शाके १७५८ माघमासे शुक्लपक्षे १० तिथौ बुधे नागो अमीचन्द साकरचन्द तत्पुत्र मोतीचन्द तद्भार्या दीवालीबाई तत्पुत्र खेमचन्द आदिनाथबिम्बं कारापितं "मंडोरीये" ( श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी का नाम था पर लेखक ने द्वेषवश छोड़ दिया है | )
सिद्धचकाय नमः
“सम्वत् १८६३ वर्षे शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममाघ मासे शुक्ल पक्षे १० तिथौ बुधवासरे श्रीपादलिप्तनगरे गोहिलवंशे श्री प्रतापसिंघजी विजयराज्ये श्री मुम्बई बन्दर वास्तव्यः उसवालज्ञातीय वृद्धशाखायां नाहटागोत्रे सेठ अमीचन्द तद्भार्या रूपाबाई तत्पुत्र सेठ मोतीचंद तद्भार्या दीवालीबाई तत्कुती समोद्भुति पुत्ररत्न श्री शत्रु जय.. .भिधानं संप्राप्तश्री संघपती तिलकनवीन जिन भवनस्या........... ...साधर्मिवात्सल्यादिस्ववित्तस फलीकृत संघनायक खेमचन्द्रजी परिवारयुतेन श्रीसिद्धाचलोपरिश्री आदिनाथबिम्बं कारितं.......गच्छे भट्टारक श्रीजिनदेवसूरिः पट्टे श्री जिनचन्द्रसूरि विद्यमाने सपरिकरयुतेः प्रतिष्ठितंच श्री बृहत्खरतरगच्छे जं० यु० प्रधान श्री जिनहर्षसूरि आगे मंडोरीयेरो नाम है” ( पट्टे श्री जिनमहेन्द्रसूरिभिः ।)
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श्री चोमुखजीरी पहिली पोल वडता डावे पासेरी विगत । बारी मे वडता डात्रे अंगारसापीर है ।
संवत १६७५ वर्षे वैषाख शुदि १३ शुक्रे पातसाहजहांगिर
"Aho Shrut Gyanam"