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[ परिशिष्ट
संवत् १६०० मिति आषाढ़ सुदि गुरौ संभवनाथस्वामिबिम्बं प्रतिष्ठितं च वृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरि पट्टालंकृत भट्टा... ....... कारितं कोठारी श्री केशरीदास जी तत्भार्या आसकरण पौत्र...राज सहितया स्व श्रेयोर्थम् सार्वधात । सेसफरणापार्श्वनाथजी ॥......
.. संवत १८६७
नेत्र घरांते शाके १६...... फाल्गुनात्. नाग के भार्या वे सितपटोव पालके ||१|| वाणारस्य श्री......... ..पार्श्वनाथ जिनेन्द्र मूर्ति का० से० न० युतयुतया वृहत्खरतरगच्छेश श्री ...
..गणि ॐ० हरीधर्म गणि...........कुलाल कृत.. .रित्र........जिन धर्मोन्नत्ति कृत्सल श्री सूरि सम्मतेयम्.. ..श्रेयसेः ॥
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संवत् १८८६ मिती माघ कृष्ण पंचम्यां
श्री संघेन द्वादशसहस्त्रप्रमितेनद्रविणेन कारित, महाराजाधिराज श्री श्रीरतनसिंघजी विजयराज्ये वृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जं० यु० भट्टारक श्रीजिनहर्पसूरीश्वराणामुपदेशात् ॥
नकल है विक्रमपुरे ।
स्वस्ति श्रीराजराजेश्वर, महाराजा नरेन्द्र शिरोमणि महा "श्री श्री श्री श्री श्रीजी साहिबारो धर्मलाभ आशीर्वाद मालूम हुवै श्रीइष्ट देवजी की कृपा से श्रीहजूररे तेजप्रताप से सदा आनन्द है, । श्रीहजूर के आरोग्य, अखण्ड प्रताप नितप्रति चाहते हैं। तथा श्रीहजूरसें अरजी मालूम रहे श्रीहजूर से पं० प्र० जीतरंगणि नै जैशलमेर जाणे की बातर शीष वगसाव से श्रीहजूर को बडौ देशे परदेश सुयश फेल रह्यौ है । '' चितककै ममन्ती समस्त साधु श्रावकांरै फिकर "आप ईश्वर हो आप ही जो अपरौ वचन को निर्वाह न करस्यो तो और कौंग करसी, उत्तम पुरुषी रो प्रतिज्ञा निर्वाह कर" "धर्म तो उत्तम पुरुष ही पावखै कुं समर्थ हो हरेक मानवी की सामर्थ्य नहीं होय ""हजूर मैं पटुवा
१ जैसलमेर में पटुवे ही उन दिनों प्रधान श्रावक थे । थे तो वे बाफणा घर किसी युग में पटुवे का काम करते रहे होंगे अतः पटवे कहलाये । सर सिरमलजी बाफना के ये पूर्वज हैं ।
" Aho Shrut Gyanam"