Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 132
________________ २४] परिशिष्ट बगलो मे ओर चरण १ है। संवत् १८३१ ना वर्षे महाबदि ५ सोमे श्री रानेर (रांदेर) वास्तव्यः श्रीमालीज्ञातीय साषुसाल तसभार्या बाईरूपा तस पुत्र सा०मोतीचंदकेन तपागच्छे ॥ श्रीधर्मनाथ पादुका कारापितं च भ० श्रीजिनभक्तिसूरीणां चरण १, ! श्रीसुधर्मस्वामि पंचम गणधरनाचरण । भ० श्रीजिनलाभसूरीगो चरण २। वाचनाचाये श्रीअमृमधर्मगणीनो चरण । श्री प्रीतिसागरगणीनां चरण वाचनाचार्य श्रीक्षमाकल्याणगणि रा चरण । संवत् १८५४ मिते श्रावण सुदि १ बुधे श्रीमकसूदाबाद वास्तव्योपकेश्य सांउंसुखागोत्रीय सा. कीर्तिचंदाभ्यां श्रीसुधर्मास्वाम्यादीनां विद्यमांन स्वगुरोश्चपादन्यासाः कारिताः बहत्खरतरगणाधीश भ० श्रीजिनजंद्रसूरि विजयराज्ये प्रतिष्ठिता श्री वाचनाचार्य क्षमाकल्याणगणिना। श्रीरस्तुतराम्म ।। कल्याणविजयस्य पादुके इमे, विवेकविजयस्य पादुके इमे पसवाडे चोमुख १ सं० १८८१ रो चरण १ ओर है। चरस जोडा २ तपागच्छ। जातरुचि खरतर ।। संवत् १८४९ मिती श्रावण सुदि ७ पं० प्र श्री तावकुमारमुनीनाचरपन्यासः ! भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये ॥ रायणतले देहरी ३ तिणमे पगला है ३८ वड़ा तिणारी विगत । २ जोड़ा पगलावड़ा आदिनाथजी रा २ देहरी में। ३८ पगलां जोड़ा देहरी एकमे है । बगला वड़ा मे लिषत है! ॥ संवत् .. ४८ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १२ वार शुक्र आचार्या खरतरगच्छे वा० रामचंदजी तत् शिष्य प्रेमचंदजी करापितः। उपा० देवचंद्रगणिनी पादुका, वा० मनरूपगणिनी पादुका, । ३६ पगला में चरम मंडोरिया रे है। प्र। १ इस पादुका का लेख "प्राचीन लेख संग्रह पृ० २३ में छप चुका है अतः देना स्थगित कर दिया है। "Aho Shrut Gyanam"

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