Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 131
________________ परिशिष्ट } [ २३ ३ देहरी ५ चरण ४ मालूगोत्र छोटेमलजी शान्तिनाथ बिम्ब कारित प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्री...आगे अक्षर चरण पीछे ढंका है । (प्र०५) ४ देहरी प्रतिमा ५ मूलमे श्रादिनाथविम्वं कारितं प्रतिष्ठितंच श्रीजिनराजसूरिभिः। २ प्रतिमा मंडोरीयेरो छोटी बगल मे। (प्र० ३) ५ देहरी प्रतिमा मंडोरीयेरी नीचे पटडी मे नामो मंडोरीयेरो । सं० १८८२ ना श्रीपूज्यजी नामा ३, नामा ५ साजांरा कलाजी प्रमुखरा। आगे देहरो बड़ो एक प्रतिमा बड़ी सफेद मूलनायकरी और प्रद०५ प्रतिमा ३ सफेद २ श्याम । पसवाडे प्र० १ मंडोरीयेरी नीचे पटड़ी में नामो संवत १८८५ ना चै० सु० १३ वार भोमे श्रीबीकानेरवास्तव्य श्रोशवा० वृद्धशाखा डागागो० सा० वींजराजजी पुत्र हरषचंदजी भा० रुतनकुंवर स्वनात्मानं बाई पासां................श्रीधादिनाथ स्थापितं, श्रीखरतरगच्छे । ॥ गणधर पादुकारे आगे देहरी १ तिरणमें प्रतिमा १ चरण थापना १३ री है। ७ ओर चरण है। ॥ संवत् १७६१ वर्षे वैशाष (ख) शुदि ७ स्वौ राजनगरवास्तव्य प्राग्वाट्झातीय लघुशाखायां साह जीवनदास भार्या बाई वची पुत्र वनमालीकेन कारितं श्रीवासुपूज्यबिम्वं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे उपाध्याय श्रीदीपचंद्रगणिना उ० देवचंद्रगणिना सहितेन ! चरण ३ श्राडीबाजू लाल संवत् १८०४ ना पोष वदि ६ दिने रवी श्रीखरतरगच्छे उपाध्याय श्रीदीपचंदजी शिष्य पं० श्री देवचंद्रण ।। १५७५ वैशाखसित १३ शुक्र का एक लेख है जो प्राचीन जैनलेख संग्रह में छप चुका है। "Aho Shrut Gyanam"

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