Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 127
________________ परिशिष्ट ] [११ सम्बत १८८८ वर्षे महाशुदि ५ दिने सोमवासरे उकेशज्ञातीय भणशाली विमलसाहजी तत्पुत्र........साहजी तत्भार्या जमुनाबाई श्रीऋषभनाथबिम्ब कारापितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिविजयराज्ये पं० देवचन्द्रण प्रतिष्ठितं । श्री मूरतबिम्ब २ तिणमे १ मंडोरीये प्र० देहरी ४ में सम्वत १८९३ ना शाके १७५८ मासोत्तममासे माघमासे शुक्ल पक्षे दशमीतिथौ बुधवासरे उसवाल ज्ञातीय लोभजी पुत्र प्रभा करापितं श्रीसम्भवनाथजीबिम्ब प्र० मंडोरीयेरी (श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः ३ बिम्ब है। आगलो देहरो - सम्बत १६७५ वैशाख सित १३ शुक्रे सुरताणनूरदोजहांगीर सवाई............. ...................नी । १ मूलनायकजीमे नाम १ प्रतिमा ओर २ चोवीसट्टा पाषाणरा पासे देहरी एक तिणमे प्रतिमा ६ है। सम्बत १८५६ शाके १७२१ प्रवर्तमाने माघ शुक्ल पंचम्यां गुरौ श्रीमहिमापुर बास्तव्य गहिलड़ागोत्रे बाबू गंगादास पुत्र हुकमचन्द भार्या जयकुंअरकया श्रीपार्श्वनाथबिम्ब कारापितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छेश भ० जिनहर्षसूरिभिः । पासे छोटी देहरी तिणमें चोमुख “प्रति जिनहर्षसूरिभिः" पासे देहरी एक तिणमे चरण दादेजीरा। सम्वत १८७० अषाढ़ शुदि १० दिने दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी, दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी, मुंह आगे चरण ३ हैं। सांजाराजोड ३ मुह आगे चरण कल्लाजीरा, पासे देहरी विणमे श्रीजिनलाभसूरिजी, श्रीजिनचन्द्रसूरिजी रा चरण । १८५७ मिती फागुणवदि १ दिने। पासे देहरी तिणमे प्रतिमा ५ १ यह लेख "एपिग्राफिया इण्डिका" और "प्राचीन जैनलेखसंग्रह) पृ० ३३ में प्रकट हो चुका है। अतः यहां नहीं दिया है। "Aho Shrut Gyanam"

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