Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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२० ]
[ परिशिष्ट संवत् १९२१ वर्षे वैवा० सु० ५ दिने सूरतनगरे पासे देहरी तिरणमे चरण
संवय १८०२ फा० व०२ दिने श्रीवीकानेरवास्तव्य वेद मगनी रामेण श्रीआदिनाथपादुका कारापितं श्री बृहत्खरतरगच्छे जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः ।
पासे देहरो | सकलसूरिराजाधिराज श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ पासे एक मन्दिर तिण में प्रतिमा ३ मूल श्याम सहित दोय जूनी मूरत, चोवीसट्टो १, नन्दीश्वरपट्ट १, विगत
संवत १६७५ वैषाख सुदि १३ शुक्रे श्री राजनगरवास्तव्यः प्राग्वाटज्ञातीय सं० सोमजी.......... श्रीपार्श्वनाथबिम्वं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री बृहत्खरतरगच्छाधिराज प्रधान श्रीजिनसिंहसुरिपट्टे शृङ्गारक भट्टारक वृन्दारक श्रीजिनराजसूरीश्वरैः।
संवत १६७५ वैषाख सुदि १३ शुक्र श्री रूपजीकेन परमकल्याणाय युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरिमूतिः कारिता प्रतिष्ठिता श्रीजिनराजसूरिभिः दूजी मूरति श्रीजिनकुशलसूरिजी री है।
सम्वत १८८४ वर्षे मगसिर वदि ५ दिने श्रीनन्दीश्वरद्वीप द्विपञ्चाशतचैत्यशाश्वत जिनबिम्बं कारितां अहम्मदावादवास्तव्य श्रीमालज्ञातीय सा० ताराचन्द पुत्र हरखचन्द्रेण कारिता प्रतिष्ठता श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक १८६ जिनचन्द्रसूरिशाखायां महोपाध्याय श्रीराजसारजी तत्शिष्य महोपाध्याय श्रीज्ञानधरमजी शिष्य उपाध्याय श्रीदीपचंदगणिसंयुतैःसम्यगदर्शन प्रात्स्यर्थ भवतु लिखितं पण्डित मतिरत्नमुनिना । मसे चलता देहरो बडो तिनरी विगत
"Aho Shrut Gyanam"

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