Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 120
________________ १२] [ परिशिष्ट मूलनायकजी समेत प्रतिमा४२, धातुकी ३, नवपदजी, ओंकार, हींकार तिणमें प्रतिमा ५८ है, प्रतिमाकराणेबालेरी जोडसमेत । सामने पुंडरीकजी। संवत् १६८६, पुंडरीकजी समेत प्रतिमा १७, चोवीसटो १, पंचतीर्थी ४, पाषाणरी, वड़ता जीमणा पासेटांको १ जलरो है । ७ देरी में (देवकुलिका) में प्रतिमा १६० हैं चौमुख सं० १५५२ नों ज्येष्ठ वदि । डा पासे चौमुख १, विनानामेरा (बिना नाम का) है। आगे पोल तिनरे पार दो तरफ कुण्ड बीच में पगथीया मीभू कुएड, खोडीकुण्ड, डावे पासे बगीचो तिसमें देहरी १, गौतम ना चरण सं० १९७७ रो। प्रेमावसीनी विगत मूलनायकनो मंदिर _ "संवत् १८४३ शाके १७०८ प्रवर्त्तमाने माघमासे शुक्लपक्षे ११ तिथौ चन्द्रवासरे श्रीराजनगरवास्तव्यः श्रीमालीज्ञातीय वृद्ध शाखायां काश्यपगोत्रे पुरमारवंशे मोदी श्रीखजी, तस्यपुत्र लवजी भार्या रतनबाई तत्पुत्र प्रेमचन्द्रेन कारापितं श्रीआदिनाथबिम्ब श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिभिः तपागच्छे ।। __ प्रतिमा मूलगुंभारे ६६, यक्ष एक, माता ४, सभामंडप है तिनरी विगत ओंकार ह्रींकार ११ प्रतिमा और सवी ६६ है। बिंबे, सामने पुंडरीकजी संवत् १८४३ माघ शुदि ११ चन्द्रे सा० हेमचंद्र लालचंदकेन पुंडरीक कारापितम् ।। प्रतिमा ३१ देहरो जीमणी बाजू "Aho Shrut Gyanam"

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