Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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[परिशिष्ट नकल है। नकल लिषी। हद चूपसू , अंमधरि मन माहि। बुद्धवंत ए वांचज्यो, प्रेमसदा चित लाय . प्रेमप्रीत दोनं मिल्या, वाधे अधिक सनेह । प्रेम सदा सुषे रहो, कहो बुध गुण गेह ॥ पोथी पढ़ ज्यो प्रेम सं, धूप धरि मन माही। बांधवपने चित लायकै, प्रेम. सदा चितलाय ॥ कीरत चाहे लोक मैं, कीरत नाम उदार। अविचल कीरत जगत में, रहो सदा चिरकाल ॥ सासु .... 'चंद के पुत्र, अविचल कीरत लोक में । राखो सदा............... ....................... ॥ ५
॥ इति आसीस वंचना ॥
..........विगत देहरा जिन बिम्बनी सं९ १६०२ रा मि० कार्तिक शुदि २ दिने श्री मत्तपागच्छांवर दिनमणि जं० पु० प्र० भ श्री विजयदेवेन्द्रसूरिभिः। प्रतिष्ठित तपागच्छे।
स्वस्ति विक्रमार्क सं०.........शाके १७५८ प्रवर्त्तमाने माघमासे शुक्ल पक्षे दशमीतिथी..........गुर्जरदेशे श्रीअहम्मदाबाद नगरे श्री श्रीमालज्ञातौ लघुशाखायां भाण....दामोदरदास तत्पुत्र सा० श्री प्रेमचन्द तत्पुत्र सा० साकरचन्द्र तत्पुत्र.......मर तत् भार्या प्रथमाबाई ........बुद्वितीया मानुकुंअर ताभ्यां........या स्वपुण्यार्थ श्रीपार्श्वनाथ बिम्बं कारापितंच संविज्ञ तपागच्छे श्री विजयसिंहसूरि संतानीय संविज्ञमानी श्री पू० पं० पद्मविजय गणि शिष्य पं० रूपविजयगणिभिः प्रतिष्ठितं श्रीसौराष्ट्र देशेतिलकायमाने श्रीसिद्धिगिरितीर्थक्षेत्रे।
भरथनी फणसहित मूलसहित बिम्ब १६ बाहिररै एवं २१
"Aho Shrut Gyanam"

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