Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Kantisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 115
________________ करणै..... परिशिष्ट ! सेठांरी अरजी की चिठी आई सुणी जै है सो श्रीहजूर सुविहांन है अपणी वाई हुई वात है, तिणमे कसर न पड़े-तिण मुजब दिल में यादगिरि रखाइवसी ओर अपरणी वणाई हुई वात के निर्वाह ..."नकुंव छानही ल पासै अर राज्यनी मार्ग ....."धिराजा को । पुण्य प्रतापदिनदिन चौगणो चढतो रहे वो धारसी..........................."चतुरंग राज्य लक्ष्मी कै भोक्तामणने धारण करे हैं। अर जिण पुरसारै बोलवचन को ठिकाणी नही.................."को उ' - 'हेमी, सो वहता वाहैं बोल निहचै निर्वाहै नही तिणमाणसरो मोल, कवडी कापडी येक ही है। १ ओर श्री हजूर सै समस्त साधू समुदाय पर सुनिजर रखाई जैसी। ओर इण कलियुग के भेषधारी है सो चूकतकखीर तो भरे ही पिण श्री हजूर षट्दर्शन प्रतिपालकविरुद के धारी हो तिण से सब भूलचूक माफ करायजसी अर कारण मुलाइजौ सदानुल रपाई जैहै तिणसुरषायां जाई जसोजी, इण वडै उपाकी रीत मर्यादा हमेश की या....."जी"."."हजूर न करस्यो तो ओर कुंग करसी भीहजूर क्षमा कहै, श्रीहजूर की सुनिजर रहण से सबको निर्वाह अच्छी तरैरो हुवौ जावसी ओर आप ईश्वर हो, मोटा हो, पंचम लोक पाल उपमा धारी हो! प्रतिज्ञा निर्वाहजाहै श्रीहजूर सैं अपणे शुभचितक.... .."पाईजैहे तिणसे यादा रखाई जसीजी, सदैव से साहिबार उदैरी माला फेरणवाला अपणा शुभचिंतक जाणसीजी, उर उपासर मै रहणे वाला समस्तसाधांने श्रीहजूर से अपणा शुभचिंतक माणसीजी श्रीहजूर के वणाये हुवै स्वरूप को नियहि पिण करणौ श्रीहजूर रै हाथ है। बहूत क्या लिखें, ओर शुभचिंतक दिसी पास रूको अनायत कीयांने बहूत दिन हुय गया है सो शुभचिंतक जाण यादगिरि करसै वगसीस कराइ जसी अलायक कायीजी लिख फुरमाई जसी वलमानपत्र आरोग्यां कुशलम श्री हजूर सपरिवार सै धर्मलाभ आशीर्वाद मालूम रहै. दंत पूर्वक वगसीईजसी मिती प्रथम श्रासोज वदि ३ सं० १६०२ "Aho Shrut Gyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144