Book Title: Jain Dharma me Atmavichar
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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परिशिष्ट १
जैनेतर कोशों में आत्मा के लिए प्रयुक्त विभिन्न नाम :
आत्मा के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्द अमरकोश, मेदिनी आदि संस्कृत कोशों में उपलब्ध होते हैं । इनमें आत्मा, यत्न, धैर्य, बुद्धि, स्वभाव, ब्रह्म, परमात्मा, शरीर, क्षेत्रज्ञ, पुरुष, मन, चेतना, जीव, स्व, पर ब्रह्म, सार, अहंकार, स्वरूप, विशेषता, प्राकृतिक प्रवृत्ति, चिन्तन, विवेक, बुद्धि या तर्कना शक्ति, प्राण, उत्साह, पुत्र, सूर्य, अग्नि और वायु' शब्द आत्मा के वाचक बतलाये गये हैं ।
जैन - शास्त्रों में आत्मा के लिए प्रयुक्त विभिन्न शब्द :
जीव या आत्मा को जैनागमों में विभिन्न नामों से अभिहित किया गया है। आदिपुराण में आत्मा के लिए जीव, प्राणी, जन्तु, क्षेत्रज्ञ, पुरुष, पुमान्, आत्मा, अन्तरात्मा, ज्ञ और ज्ञानी पर्यायवाची नाम बतलाये गये हैं ।" इसी प्रकार धवला में भी जीव, कर्ता, वक्ता, प्राणी, भोक्ता, पुद्गल, वेद, विष्णु, स्वयंभू, शरीरी, मानव, सक्ता,
- [क] आत्मा यत्नो धृतिर्बुद्धिः स्वभावो ब्रह्म वष्मं च ॥ — अमरकोष, ३|३ | १०६ ।
[ख] क्षेत्रज्ञ आत्मा पुरुषः । वही, १।४।२६ ।
आत्मा कलेवरे यत्ने स्वभावे परमात्मनि । चित्ते घृतौ च बुद्धौ च परव्यावर्तनेऽपि च ॥ इति धरणिः ।
[ग] आत्मा पुंसि स्वभावेऽपि प्रयत्नमनसोरपि ।
धृतावपि मनीषायां शरीरब्रह्मणोरपि ॥ इति मेदिनी, ८५।३८-३९ ।
[घ] क्षेत्रज्ञावात्मनिपुणौ । - इति हैम: ३।१५० ।
,
आत्मा चित्ते धृतो यत्ने धिषणायां कलेवरे ।
परमात्मनि जीवेऽर्फे हुताशनसमोरबोः ॥ स्वभावे इति हैमः,
२।२६१-६२ ।
[ङ] हिन्दी शब्द सागर, प्र० भा०, प्र० सं०, [च] दार्शनिक त्रैमासिक, सम्पादक - यशदेव अप्रैल १६७५, पृ० १२४ ।
२ -- जीव: प्राणी च जन्तुश्च क्षेत्रज्ञ: पुरुषस्तथा । पुमानात्मान्तरात्मा च ज्ञो ज्ञानीत्यस्य पययाः ॥ - आदिपुराण ( महापुराण ), २४।१०३ ।
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१६६५, पृ० ४३७ ॥
शल्य, वर्ष २१, अंक २,
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