Book Title: Jain Dharma me Atmavichar
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 334
________________ ७५ ७८ ६१ २५ २४ २६ उत्पादव्ययधुव संचरति ज्ञानस्थाप्यात्मवहीं तव्यवच्छेदार्थ उत्पादव्ययध्रुव प्राणाधिप: संचरति ज्ञानस्याप्यात्मविश्वतस्वप्रकाश तव्यवच्छेवार्थ २५ पा १०७ १०८ १०६ २३ २२ का परिवतन एव परिवर्तन एवं १४ ११८ २२ संसारी कर्मोदय अतिरिक्त दुःखादि के कारण भोक्तृत्व सभी को १२१६ १२१ १० १२३ १ १२४ १६ १२४ ३१ १२५ ससारी कमोदय . अतिरिक दुःखादि कारण भोक्तृत्व सभी की ने, एक षट्खडागम षटपण्डागम क्षायिका बघ. द्रव्याथिक मोक्षा संवादो होते हैं श्वासोछवास गार्गणा क्रोधादिख्यात्मनः सर्वाथसिद्धि पचास्तिकाय एकांकी १२७७ १२८६ षट्खण्डागम षटखण्डागम क्षायिक बन्ध द्रव्याथिक मोक्ष संवावी होते हैंश्वासोच्छ्वास मार्गणा क्रोधादिरप्यात्मनः सर्वार्थसिद्धि पञ्चास्तिकाय एकांगी १४१ १४२ २८ * २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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