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महावीर का जन्म भगवान महावीर का जीव अच्युत कल्प के पुष्पोत्तर नामक विमान से च्युत होकर पाषान शुक्ला षष्ठी के दिन, जबकि हस्त और उत्तरा नक्षत्रों के मध्य में चन्द्रमा अवस्थित था, त्रिशला देवी के गर्भ में पाया। उसो रात्रि में त्रिशला देवी ने सोलह स्वप्न देखे', जिनका फल राजा सिद्धार्थ ने बतलाया कि तुम्हारे शूरवीर, धर्म-तीर्थ के प्रवर्तक और पराक्रमी पुत्र का जन्म होगा जो अपनी समुज्ज्वल कीति में जनता का कल्याण करेगा । भगवान महावीर जबसे त्रिशला के गर्भ में आये, तवसे राजा सिद्धार्थ के घर में विपुल धन-धान्य को वृद्धि होने लगी, राज्य में सूख-समद्धि हई । सिद्धार्थ के घर में अपरिमित धन और वैभव में बढ़ोतरी होती हुई देखकर जनता को बड़ा आश्चर्य होना था कि सिद्धार्थ का वैभव इतना अधिक क्यों बढ़ रहा है और उसकी प्रतिष्ठा में भी निरन्तर वद्धि हो रही है।
नौ महीने और पाट दिन व्यतीत होने पर चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को रत्रि में सौम्य ग्रहों और शुभ लग्न में जब चन्द्रमा अवस्थित था, उत्तरा फाल्गुणी नक्षत्र के समय भगवान महावीर का जन्म हमा। पुत्रोत्पत्ति का शुभ
(क) मिद्धार्थनपतितनयो भारतवास्ये विदेह कुण्डपरे ।
देया प्रियकारिण्या मुस्वप्नान् संप्रदय विभुः ।। भापासुमिनपाठयां हस्तोत्तर मध्यमाथिते शशिनि ।
मायातः स्वर्गमुन्त्र भुक्त्वा पुष्पोनराधीशः ।।-(निर्वाणभक्नि)
(ख) यहां मह प्रघट कर देना अनुचित न होगा कि इवेनाम्बरीय कल्पसूत्र घोर अावश्यक भाध्य में ८२ दिन बाद महावीर के गर्भपहार की असंभव और अप्राकृतिक घटना का उल्लेख किया है। यह घटना ब्राह्मणों को नीचा दिखाने की दृष्टि से घड़ी गई प्रतीत होती है। उसमें कृष्ण के गर्भारहार का अनुसरण पाया जाता है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में उसे मछेरा या दश प्रापचयों में गिनाया गया है। दिगम्बर सम्प्रदाय के किमो भी ग्रन्थ में इस घटना का उल्लेख तक नहीं है। दूसरे यह बात सभव भी नहीं जंचती। सभी तीर्थकरों और महापुरुषों को जब एक ही माता-पिता की सन्तान बतलाया गया है तब भगवान महावीर के दो-दो माता-पितामों का उल्लेख करना कसे उचित कहा जा सकता है ? यह घटना घज्ञानिक भी है। इतिहास में ऐसी एक भी घटना का उल्लेख देखने में नहीं पाया जिसमें एक ही बालक के दो पिता और दो भाताएं हो।
वसूदेव की पत्नी देवकी के गर्भ को सातवें महीने में दिव्य शक्ति के द्वारा पत्नी रोहिणी के गर्भ में रखे जाने की जो बात हिन्द पौराणिक पाख्यानों में प्रचलित थी, उसका अनुसरण करके महावीर के लिये भी ऐसी अप्राकृतिक प्रदभूत घटना को किन्हीं विद्वानों ने प्रछेरा बहकर प्रग-सूत्रों में अंकित कर दिया । श्वेताम्बरी मान्य विद्वान् पं० मुखलालजी भी इसे अनुचित बतलाते हैं।
चार तीर्थकर १०१०९ २. (4) सिद्ध स्वराय पियकारिणोहि पयरम्भिकडले वीरो।
उतरकगिरिक्खे चिपिया तेरसीए उप्पण्णो॥-तिलो.प. (पा) र सित पक्ष फाल्गुनि शशांक योगे दिन त्रयोदश्यां ।
जो स्वोच्चस्येषु ग्रहेषु सौम्येष शुभलग्ने । –निर्वाण भक्ति
(1) "प्रासाद जोह पकाद-छुट्टीए कुडपुर ण गराहिव-गाहास-सिद्धरप-गरिबस्स तिसला देवीए गम्भमागंतूरण' तस्य प्रदिवसाहिय रणवमासे अच्छिा चइत्त-मुक्त-वक्त नरमीए रत्तीए उत्तरफग्गुणों णक्वते गम्भादो णि खंतो बड़हमारण निरिणदो ॥
-जय घ० भा० ११०७६-७७ (६) उम्मीलितावधिदशा सहम, विदित्वा तज्जन्म भक्तिभरत: प्रणतोतमांगाः ।
घंटानिनादसमदेतनिकायमुख्या दृष्टया ययुस्तदिति कुण्डपुरं सुरेन्द्राः ॥-प्रसंगकरि रुत वर्षमान परित