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'नवदिगम्बर सम्प्रदाय' की कल्पना कितनी समीचीन? : १०७
से मेल खाते हैं, तब आचार एवं विचार के क्षेत्र में आचार्यों में मतभेद तो अस्तित्व में आ गये थे, किन्तु सम्प्रदाय भेद नहीं हुआ था। सम्प्रदाय भेद के पूर्व के अभिलेखीय और पुरातात्त्विक प्रमाण तो हमें मथुरा के अभिलेखों और मूर्ति शिल्प में मिल जाते हैं, जो यापनीय और श्वेताम्बरों के अस्तित्व में आने के पूर्वस्थिति के सूचक हैं। उन्हें श्वेताम्बर, दिगम्बर या यापनीय नहीं कहा जा सकता है। दिगम्बर, यापनीय और श्वेताम्बर परम्परा का सम्प्रदाय के रूप में विकास उसके भी दो-तीन शताब्दी बाद हुआ है।
श्वेताम्बर (श्वेतपट्ट) दिगम्बर (निर्ग्रन्थ) और यापनीय संघों के स्पष्ट उल्लेख पाँचवीं शती से मिलते हैं, उसके पूर्व नहीं। जहाँ तक प्रो० हम्पा नागराजैय्या का यह कथन कि शीलांक और हेमचन्द्र श्वेताम्बर परम्परा का तथा गुणभद्र और पुष्पदन्त दिगम्बर परम्परा का प्रतिनिधित्व करते हैं, यह किसी भी दृष्टि से विवाद का विषय नहीं है। किन्तु उनका यह कहना कि रविषेण, पुन्नाट जिनसेन और हरिषेण यापनीय न होकर नवदिगम्बर हैं, यह बात प्रमाणों के अभाव में मान्य नहीं हो सकती है। रविषेण, पुन्नाट जिनसेन और हरिषेण के ग्रन्थों का यदि हम सूक्ष्मता से अध्ययन करते हैं, तो उनकी अनेक मान्यताएँ यापनीय संघ की मान्यताओं के निकट ही दिखाई देती हैं। मेरी दृष्टि में रविषेण का पद्मचरित्र, पुन्नाट जिनसेन का हरिवंशपुराण और हरिषेण की वृहद्कथा- ये तीनों वस्तुतः यापनीय ही प्रतीत होते हैं। क्योंकि इनकी अनेक मान्यताएँ दिगम्बर और श्वेताम्बर-दोनों से भिन्न हैं। ऐसा सम्प्रदाय यापनीय के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं हो सकता है। उनको नवदिगम्बर कहना एक स्वैरकल्पना के अतिरिक्त कुछ नहीं है, क्योंकि श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं से आंशिक समानता और आंशिक मतभेद रखने वाली एक मात्र यापनीय परम्परा ही थी, जिसके साहित्यिक और पुरातात्त्विक साक्ष्य मिलते हैं।
- आदरणीय डॉ० हम्पा नागराजैय्या के अनुसार रविषेण के पद्मपुराण और पुन्नाट जिनसेन के हरिवंशपुराण के रामकथा सम्बन्धी कथानक दिगम्बर परम्परा से भिन्न हैं
और विमलसूरि के पउमचरियं के कथानक का अनुसरण करते हैं, इस कारण वे उन्हें नवदिगम्बर परम्परा में रखना चाहते हैं। किन्तु यदि वे यह मानते हैं कि रविषेण ने पद्मचरित्र में यापनीय विमलसूरि का अनुसरण किया है, तो इस आधार पर तो उन्हें भी यापनीय मानना चाहिए न कि नवदिगम्बर। किन्तु यहाँ वे अपनी मान्यता की पुष्टि हेतु कैकयी का कथानक प्रस्तुत करते हैं। वे लिखते हैं कि दशरथ की रानी कैकयी को 'पउमचरियं' में मुक्ति को प्राप्त बताया गया है, चूँकि स्त्रीमुक्ति यापनीयों को मान्य है
इसलिए विमलसूरि तो यापनीय हैं, किन्तु रविषेण ने अपने पद्मचरित्र में उनकी मुक्ति Jain Education International
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