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जैन जीवन-दृष्टि : १२५
धर्म कहते हैं', जैन धर्म के अनुसार साधना का अथ और इति दोनों ही 'समत्व' या समता है। समत्व से तात्पर्य है अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में चित्तवृत्ति में विचलन या विक्षोभ नहीं होना। गीता की भाषा में कहें तो दुःख में अनुद्विग्नता और सुख में विगत स्पृहा होना ही समता है।
सामान्यतया विभिन्न धर्मों और दर्शनों में जीवन का लक्ष्य मोक्ष या निर्वाण की प्राप्ति माना गया है, किन्तु यहां मोक्ष या निर्वाण का जैन दृष्टि में क्या अर्थ है यह समझ लेना आवश्यक है। जैन दर्शन में आचार्य कुन्दकुन्द ने स्पष्ट रूप से कहा है कि 'मोह और क्षोभ से रहित आत्मा की जो समत्वपूर्ण अवस्था है, वही मोक्ष है।' व्यवहार के क्षेत्र में भी हम देखते हैं कि संसार का प्रत्येक व्यक्ति तनावों से मुक्त होकर आत्मिक शान्ति को प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि यही उसकी आंतरिक आकांक्षा या निज स्वभाव है। इस प्रकार वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जैन दर्शन के अनुसार जीवन का सम्यक लक्ष्य तनावों से मुक्त होना ही है। सभी प्रकार के तनाव इच्छा, अपेक्षा और भोगाकांक्षा (तृष्णा) जन्य है, अत: जैनों के जीवन-दर्शन का लक्ष्य इच्छा और आकांक्षाओं से परे समत्वपूर्ण चैत्तसिक अवस्था की प्राप्ति है।
मानव समाज का यह दुर्भाग्य है कि वह अपनी अन्तरात्मा से तनावों से मुक्त होना चाहता है, किन्तु उसके सारे प्रयत्न तनावों के सर्जन के लिए ही होते रहते हैं। इच्छा, आकांक्षा, राग-द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार, कपटपूर्ण जीवन-व्यवहार आदि सभी व्यक्ति के जीवन की आत्मतुला को उद्वेलित करते रहते हैं और यही आत्म-असंतुलन या चित्तवृत्त के विक्षोभ की स्थिति उसे तनावपूर्ण स्थिति में ले जाती है। अत: जैन दर्शन के अनुसार जीवन का लक्ष्य तनावों से मुक्ति ही है, यही वास्तविक धर्म है, सम्यक साधना है, इसे ही आत्मपूर्णता या आत्मिक शान्ति कहते हैं। सूत्रकृतांगसूत्र में कहा गया है कि सभी अर्हत् (वीतराग पुरुष) इसी आत्मिक शान्ति में ही प्रतिष्ठित हैं।
अत: यदि सार रूप में कहना हो तो जैन धर्म-दर्शन के अनुसार जीवन का लक्ष्य तनावों से मुक्ति ही है। वे सभी जीवन व्यवहार जो मेरे वैयक्तिक जीवन में, मेरे परिवार में या समाज में या राष्ट्र में अथवा समग्र विश्व में तनाव उत्पन्न कर स्वयं को व दूसरों को उद्वेलित करते हैं, वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में शान्ति भंग करते हैं, वे सभी अधर्म हैं और वे सभी प्रयत्न या उपाय जिनके द्वारा व्यक्ति इन चैत्तसिक विक्षोभों को या चैत्तसिक विचलन को समाप्त कर पाता है, वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन में शान्ति स्थापित करता है, वे सभी धर्म हैं, इसीलिए गीता में भी कहा गया है कि समत्व ही योग है। इसी बात को प्रकारान्तर से भागवत में भी कहा गया है कि समत्व की आराधना ही अच्युत अर्थात् भगवान की आराधना है। इस प्रकार जैन जीवन-दर्शन का प्राथमिक सिद्धान्त है हम तनावों से मुक्त होकर जीवन जीये। वर्तमान युग में जो
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