Book Title: Jain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 7
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-5 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-1 विभाग 1 (अ) जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास जैनदष्टिमे धर्म मनुष्य की दुविधा-अध्यात्मवाद / भौतिकवाद आज मनुष्य अशांत, विक्षुब्ध एवं तनावपूर्ण स्थिति में है। बौद्धिक विकास से प्राप्त विशाल ज्ञान-राशि और वैज्ञानिक तकनीक से प्राप्त भौतिक सुख-सुविधा एवं आर्थिक समृद्धि मनुष्य की आध्यात्मिक, मानसिक एवं सामाजिक विपन्नता को दूर नहीं कर पाई है। ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देने वाले सहस्त्राधिक विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के होते हुए भी आज का शिक्षित मानव अपनी स्वार्थपरता और भोग-लोलुपता पर विवेक एवं संयम का अंकुश नहीं लगा पाया है। भौतिक सुख-सुविधाओं का यह अम्बार आज भी उसके मन की मांग को संतुष्ट नहीं कर सका है। आवागमन के सुलभ साधनों ने विश्व की दूरी को कम कर दिया है, किंतु मनुष्य-मनुष्य के बीच हृदय की दूरी आज ज्यादा हो गई है। यह कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं जाति एवं वर्ण के नाम एक-दूसरे से कटते चले जा रहे हैं। सुरक्षा के साधनों की यह बहुलता आज भी उसके मन में अभय का विकास नहीं कर पाई है, आज भी वह उतना ही आशंकित, आतंकित और आक्रामक है, जितना आदिम युग में रहा होगा। मात्र इतना ही नहीं, आज विध्वंसकारी शस्त्रों के निर्माण के साथ उसकी यह आक्रामक वृत्ति अधिक विनाशकारी बन गई है और वह शस्त्र-निर्माण की इस दौड़ में सम्पूर्ण मानव जाति की अन्त्येष्टि की सामग्री तैयार कर रहा है। आर्थिक सम्पन्नता की इस अवस्था में भी मनुष्य उतना ही अधिक अर्थलोलुप है, जितना कि वह पहले कभी रहा होगा। आज मनुष्य की इस अर्थलोलुपता ने मानव जाति को शोषक और शोषित ऐसे दो वर्गों में बांट दिया है, जो एक दूसरे को पूरी तरह निगल जाने की तैयारी कर रहे हैं। एक भोगाकांक्षा और तृष्णा की दौड़ में पागल है तो दूसरा पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए व्यग्र और विक्षुब्धा आज विश्व में वैज्ञानिक तकनीक और आर्थिक समृद्धि की दृष्टि से सबसे अधिकPage Navigation
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