Book Title: Jain Dharm Vikas Book 03 Ank 02 03
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 5
________________ શ્રી આદિનાથ ચરિત્ર. २७ कीट रमे सब ही गोलाशा, ज्ञानी दया विचारत खाशा । पुनि अमृत सम चंदन लीना, मुनिवर देह लेप कर दीना॥ हड्डी चर्म निकाले कीटा, औषध कार्य किया मन चीता।। लेप किया गोशीर्षका, रोग हुआ सब नास । देह क्रांती अति बढ गइ, नष्ट हुइ सब त्रास ॥ परम भक्ति के साथ सब, मिल मागत हे क्षमा। प्रेम न हृदय समात, धन्य धन्य सब मित्रको ॥ मुनिवर तब विहार कर जावा, टिकहिं न साधू एको ठावा ॥' सबहि मित्र तब हृदय विचारा, बची दवा बेंच कर सारा। स्वर्ण लाय जिन चेत्य बनाओ, इहि विधि रहा शुद्ध अति भाओ॥ इमि मन ठान चेत्य बनवावा, अरिहंत प्रतिमा तब पधरावा । पुनि सब मिल प्रभु पूजा कीनी, धर्म कर्म चित वृति दीनी ॥ गुरु उपासना करि अति प्रेमा, बहु पालत वृत अरु नेमा । एक दिन उपजा हृदय विरागा, आये गुरु ढिग मित्र सब सागा॥ पुनि दिक्षा ली अति सुखदाई, तप वृत करतहिं देह सुखाई। करत विहार सबहिं मुनि संगा, तप वृतमें सबहीं मन रंगा॥ पुनि अनशन वृत लिया उठाई, पंच परमेष्ठी चित बसाई । पुनि त्यागी सब निज निज देहा, संगही रहे जीव वस नेहा ।। - नवां भव समाप्त શ્રી સામાન્ય જીણુંદ–સ્તવનમ્. . (२ययिता:-मुनिश्री शुशासवि०४५७.) (छानी छानी यानी ४ वात, प्रीतम पेशस गये...२०१) સુણે સુણ હૈયાની હમ વાત, પ્રભુજી અરજ કરીએ; નથી નથી તુમ વિન કેઈ આધાર, જીન અરજ કરીએ. સુણે આતમ નઈયા ભવ સિધુ તારી, કર્મ રિપુ દલ સઘળું વિદારી; આપ આપ કેવળ દર્શન ત, પ્રભુજી અરજ કરીએ. સુણે. (૨) નેમિ-લાવણ્ય સૂરીશ્વર નમશું, દક્ષ-સુશીલ ગુણ હૃદયે ધરશું; १२शुं १२शु सिद्धि वधु सुविध्यात, साडिA A२१ मे. सु. (3)

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