Book Title: Jain Dharm Vikas Book 03 Ank 02 03
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 22
________________ જૈનધર્મ વિકાસ में खुल्लम खुल्ला यों कहा था किः- "क्या आपने कभी इस पर विचार किया है कि जैन समुदाय में हजारों वर्षों से प्रचलित मूर्तिपूजा का विरोध कर के स्थानकवासी सम्प्रदाय की स्थापना करने वाले लौकाशाह पर किस धर्म का प्रभाव पड़ा था। मेरा खयाल है कि यह इस्लाम या मुस्लिम धर्म का ही प्रभाव था। दिगम्बर संप्रदाय का तारण पंथ भी शायद इसी प्रभाव का फल है, प्रेमीजी के ये शब्द भी मूर्तिपूजा की प्राचीनता को ही सिद्ध कर रहे हैं इनका तो यहां तक कहना है कि मूर्तिपूजा हजारों वर्ष प्राचीन है और इसके विरोध का सिलसिला इस्लाम धर्म के संस्कार से ही प्रारंभ हुआ है। यवनों के पूर्व क्या हिंदू और क्या जैन सब मूर्तिपूजक ही थे। विद्वद् समाज और विशेष कर स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे संशोधकों का कहना है कि"संसार भर में सब से पहिले मूर्तिपूजा का प्रारंभ जैनियों से ही हुआ और अन्य धर्मावलम्बियोंने मुर्तिपूजा का पाठ जैनियों से ही सीखा । अर्थात् जैने. त्तर लोगों में मूर्ति का पूजना जैनियों का ही मात्र अनुकरण हैं। इसी लिये तो आज भी भूगर्भ में से पांच पांच हजार वर्ष प्राचीन जैन तीर्थंकर मूर्तियों नीकलती है। (अपूर्ण) संसार परिवर्तन शील है. लेखक-कल्याणकिंकर जैन भिक्षु कुशलविजय, अहमदाबाद. प्रिय मित्रों ? प्रकृति का यह अटल नियम है कि पदार्थों की पर्याय समय २ पर पलटती ही रहती है। या ऐसा कहना चाहिये कि संसार परिवर्तन शील है। आज हम जिस वस्तु को नूतन रुप में देखते हैं वही कालान्तर से जीर्ण शीर्ण देखी जाती है। वस्त्र, पात्र, मकान आदि किसी भी वस्तु को देख लिजिये संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नही मिलेगी जो कि 'सदाकाल एकसी रहती हो। ऐसा क्यों होता है ? इसी लिये संसार का स्वभाव ही परिवर्तन शील है। मनुष्य का बाल्यजीवन कितना सुन्दर और प्रिय होता है। शरीर पर वस्त्रदागीने आदि नही होने पर भी वह बालक कितना प्रिय लगता है ? स्वच्छता से रहने वाले भी उस बच्चे को गोदि में लेकर खेलाते हैं-प्यार करते हैं। परन्तु कालान्तर में वही बालक जब परिवर्तन अवस्था में आ जाता है. तब उनका रुप और ही हो जाता है। कपडे दागिने आदि पहनने पर भी पूर्ववत् मनोहरता नहीं रहती। अगर जो कपडे आदि नही पहनाये जाय तब तो उनका रूप दर्शनीय (6) ही हो जाता है। ज्यों २ परिवर्तन होता जाता है त्यों २

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