Book Title: Jain Dharm Vikas Book 01 Ank 11 Author(s): Lakshmichand Premchand Shah Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth View full book textPage 6
________________ ૩૧૨ धर्म विस.. ॥श्री शीलकुलकम् ॥ कर्ता-जैनाचार्य श्रीपद्मसुरिजी. (गतis ५०४ २८१ था अनुसधान) ॥ आर्यावृत्तम् ॥ मुंजते बहुभोए-सुहिओ होमि त्ति सुक्खतहाए । जाणिज्जा किंतु तुमं-भविस्ससि प्पगय परिवरिओ ॥११॥ नेउण्णेणं तेणं-किं जं जायइ गयस्स समयम्मि। पावविहाणावसरे-अचेयणं खेयचिंधं तं ॥१२॥ हाहा हं चयसमये-ण चेइओ तेण तिव्वदुक्खमिणं । बंधक्खणे चउरणरा-अप्पं वि दुहं ण पावते ॥१३॥ कहकिट्टवाहिविहुरो-नियं किलेसेइ भक्खणा दहिणो । एवं बंधविमूढा-नियं किलेसेइ कम्मुदए ॥१४॥ साहीणो बंधखणो-उदयखणो णो तहत्ति जाणित्ता । उदयखणो बलवंतो-सुही तयाईइ चेअंता ॥१५॥ दासा जे आसाए-विण्णेया सव्वलोयदासा ते । आसा जेसिं दासी-दासो लोओ सया तेसिं ॥१६॥ इह दिलुतो णेओ-णिवजोगीणं निवोवि तं सोचा । वेरग्गं पप्प मुया-बहुसो पणमेइ जोगिपयं ॥१७॥ ॥मंदाक्रान्ता ॥ किं तं नाणं हवइ कइया जम्मि राओ बलिट्ठो। नाणं भाणू हरइ तिमिरं तं ण भाणुप्पयासे ॥ . चाओ नाणस्स फलममलं तेण होजा विराआ। भव्वा ? हारंति ह ण विउहा तुच्छमोहेण भदं ॥१८॥ जे णो लिप्पंति वियडदुहेणं पमोहेण कइया । ते विण्णाणी पसमनिरया भाविकल्लाणजुग्गा ॥ सुत्ती वाणी विहडइ सया मोहतेणस जालं। . तं मोएणं जिणअ गइयं तं वियारिज णिचं ॥१९॥ [अपूर्ण]Page Navigation
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