Book Title: Jain Dharm Vikas Book 01 Ank 07 08
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ જનધર્મવિકાસ. पुस्त: १ वैशाम, स. १८८७. स ७ मी. मंगलमालापराभिधान ॥ श्री सिद्धचक्रस्तोत्रम् ॥ ॥ कर्ता-विजयपद्मसूरिः॥ ॥ मंगलाचरणम् । आर्यावृत्तम् ।। पणमिय परमिट्टिपए-गुणगुरुगुरुणेमिसरिमंतपए । सिरिअजियसंतिथवर्ग-रएमि सिरिसिद्धचक्कथवं ॥१॥ ॥ अरिहंतस्तवनम् । राग-अजिअं जिअ०॥ परमे परमग्गदए-बुद्धे परबोहगे पुरिससीहे ॥ नियगुणपुण्णरमणए-वंदमि सययं जिणवई हैं। गाहा ॥१॥ ॥राग-ववगयमंगुलभावे० ।। अणुवममंगलगेहे-इंदाइंपयरसमच्चसुहदेहे ॥ मयणलपसंतिमेहे-वंदे जिणए पनिण्णेहे ॥ गाहा ॥२॥ ॥राग-सव्वदुक्खप्पसंतीणं ॥ भव्वचारित्तलीणाणं-केवलीणं महेसीणं॥ तिलोयसरणिजाणं-णमो जिणगणेसाणं । सिलोगो॥३॥ ॥राग-अजिअजिणसुहप्पवत्तणं० ॥ भुवणगुरु ? पयत्थभासणं ।। विजयपयं पहु ? तुझ सासणं ॥ सयलवियडविग्यणासणं। बहुभयमोहपसत्तुतासणं ॥ मागहिया ॥४॥ ॥राग-किरिआविहि०॥ अरिहंतपयं विभयं गयसंसहमतिहरं। . . वरसत्तियमोयसमुद्दविवडणचंदयरं । परभावणिरोहगमिट्ठपयाणसुरदुमहं। पणमामि कसायचउक्कपतावजलं सइ ह ॥ आलिंगणयं ॥५॥ अपूर्ण

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 52