Book Title: Jain Dharm Ka Parichay
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 7
________________ में अनुप्राणित करने की आवश्यकता है / इस उद्देश्य की सिद्धि के निमित्त तत्त्वज्ञान को समझने के लिए गुरुगम (गुरु का सम्पर्क, गुरु की शरण, तथा पाठ्य पुस्तकादि रूप साधन-सामग्री) आवश्यक अंग वीतराग सर्वज्ञ भगवान द्वारा कथित तत्त्व ही यथार्थ हो सकते हैं / महापुरुषों ने इन तत्त्वों का विस्तार विशाल 'आगम' शास्त्रों में सग्रंहित किया है / बाल जीवों के लाभार्थ अनेक ग्रन्थों के प्रकरण भी इसमें प्रकाशित किए गए हैं / प्रस्तुत ग्रन्थ में इन तत्त्वों का प्रतिपादन करने के लिए सरल हिन्दी भाषा में भिन्न भिन्न विभाग और पृथक् करणादि की योजना करके दोहनरूप - 38 प्रकरण ऐसी शैली से प्रस्तुत किए गए हैं कि जिज्ञासु को पूर्व महर्षियों द्वारा कथित तत्त्वों का ज्ञान सरलता से हो सके, चिन्तन मनन द्वारा उनमें तत्त्व परिणति प्रगट हो सके / अभ्यासार्थियों के लिए जैन शासन के अति गंभीर रहस्यपूर्ण तत्त्वों की सरल व संक्षिप्त गाइड के समान उपयोगी पुस्तक की आवश्यकता चिरकाल से थी / वि.सं. 2018 में इस विषय में यत्किंचित् सफलता प्राप्त हुई / / __ परम पूज्य परमोपकारी, सिद्धांत महोदधि, कर्म साहित्य निष्णांत आचार्य भगवान् श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराज श्री के विद्वान् शिष्यरत्न पूज्य पंन्यास प्रवर श्री विजय भानुविजयजी गणिवर (इस समय गच्छाधिपति पूज्य आचार्य श्री विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज) ने पूज्यपाद गुरुदेव श्री की अनुपम कृपा के फलस्वरूप 2 2

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