Book Title: Jain Dharm Ka Parichay Author(s): Bhuvanbhanusuri Publisher: Divya Darshan Trust View full book textPage 6
________________ Sd प्रकाशकीय निवेदन स्व-पर कल्याण और जीवन की सफलता का आधार सम्यक् जीवन में वृद्धि तथा आध्यात्मिक प्रवृत्ति है / महान् पुण्योदय से जैन कुल में जन्म प्राप्त करने पर भी पढ़ने वाले अधिकतर विद्यार्थियों को धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा न मिलने के कारण आज के युग में प्रचलित भौतिकवादी ज्ञान-विज्ञान और शिक्षा मानव बुद्धि को तृष्णा, असन्तोष, विषय-विलास तथा तामसिक भावों से रंजित रखती है | फिर इस प्रकार विकृत हुए मानव की प्रवृत्ति पापयुक्त हो जाय तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है / यह बात सुनने और जानने में आई है कि इस निराशाजनक दृश्य को देखकर धर्मनिष्ठ माता-पिता को क्षोभ होता है और उन के हृदय में करूणा उत्पन्न होती है / ऐसी दशा में नई पीढ़ी के निमित्त किसी व्यवस्थित योजना के अभाव में निर्मित भावी जैन संघ के स्वरूप की कल्पना भी हृदय को क्षुब्ध कर देती है / ऐसे जड़ विज्ञान, भौतिक वातावरण तथा विलासी जीवन की विषाक्तता का निवारण करने के लिए तत्त्वज्ञान और सन्मार्ग सेवन की अाधक आवश्यकता है / किसी भी मोक्षदृष्टि भव्यात्मा के लिए यह अत्यावश्यक है कि तत्त्व परिणति का ऐसा रूप प्राप्त किया जाए जिसके परिणामस्वरूप तत्त्वज्ञान भी अन्तरात्मा में परिणत हो जाए | तत्त्वपरिणति के लिए तत्त्व का बोध, चिन्तन और इसे आत्माPage Navigation
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